जैसा कि आप सभी को ज्ञात होगा इससे पहले की पोस्ट मे सिविल प्रक्रिया संहिता की धारा 60 तक का विस्तृत अध्ययन करा चुके है यदि आपने यह धाराये नही पढ़ी है तो पहले आप उनको पढ़ लीजिये जिससे आपको आगे की धाराये समझने मे आसानी होगी। और पढ़ने के बाद हमे अपना कमेंट अवश्य दीजिये।
सिविल प्रक्रिया संहिता धारा 68 से धारा 72 तक स्थावर संपत्ति के विरुद्ध डिकरीयों का निष्पादन करने की शक्ति का कलेक्टर को प्रत्यायोजन कर दिया गया है। यह धारा निरसित कर दी गयी है। यह अधिनियम 1956 के अधीन निरसित किया गया है।
धारा 73 –
निसपादन विक्रय के आगमों का डिक्रीडारों के बीच आनुपातिक रूप से वितरित किया जाना
जहा पर अस्थीय न्यायालय के द्वारा धारित है और ऐसे अस्थियो से अभिप्राप्ति के पूर्व एक से अधिक व्यक्तियों ने धन संदाय की ऐसे डिक्री का जो एक ही निर्णीत ऋणी के वीरुध पारित है निष्पादन के लिए आवेदन न्यायालय के लिए किया गया है। और उसकी तुष्टि अभिप्राप्त नही की गयी है वह अपने खर्च को काटने के बाद वह अशतीय ऐसे सभी व्यक्तियों मे अनुपात रूप से बात दी जाएंगी।
परंतु जहा कोई संपत्ति बंधक या भार के रूप अधीन विक्रय की गयी हो। वहा पर बंधकदार ऐसे विक्रय से प्रपट अंश के हकदार नही होंगे।
जब डिक्री के निष्पादन मे विक्रय के दायित्व के अधीन कोई संपत्ति बंधक या भार के अधीन है तो ऐसे संपत्ति का विक्रय बंधक दार के अनुसार होगा और उसको संपत्ति मे ऐसे ही हिसा मिलेगा जैसे जब संपत्ति उसकी थी तब मिलता ।
जहा कोई स्थावर संपत्ति ऐसे डिक्री के निसपादन मे विक्रय की जाती है जो उस पर उन्मोचन के आधार पर विक्रय के लिए आदेश देती है वहा विक्रय के आगम निम्न रूप से उपयोगी होंगे।
विक्रय का व्यय चुकाने मे
डिक्री के अधीन सोध्य रकम के उन्मोचन मे
निर्णीत ऋणी के धन के उन्मोचन के रूप मे जिसमे ऐसे विक्रय कराने वाले न्यायालय की डिक्री से संपत्ति के विक्रय से पूर्व ऐसे डिक्री के निष्पादन के लिए आवेदन कर दिया है और उनकी तुष्टि अभिप्राप्त नही है।
इस धारा की कोई भी बात सरकार पर प्रभाव नही डालेगी।
धारा 74
निष्पादन का प्रतिरोध
जहा न्याय्यलय का यह समाधान हो जाता है की स्थावर संपत्ति के कब्जे के लिए डिक्री के निसपादन मे विक्रीत स्थावर संपत्ति का क्रेता संपत्ति पर कब्जा के लिए डिक्री के निसपादन मे अभिप्राप्त करने मे निर्णीत ऋणी का या फिर उसकी और से किसी भी व्यक्ति के द्वारा प्रतिरोध किया गया है वहा डिक्रीदार या क्रेता की प्रेरणा से न्यायालय निर्णीत ऋणी या किसी ऐसे व्यक्ति को ऐसे अवधि के लिए कारागार मे निरूढ़ करने का आदेश दे सकता है। जो तीस दिन तक हो सकती है।और इसके अलावा या निर्देश भी दे सकता है की डिक्रीदार या विक्रेता को कब्जा मिल सके ।
धारा 75
कमीशन निकालने की न्यायालय की शक्ति को बताया गया है।
नय्यलय को ऐसे शक्ति और शर्तो के अधीन रहते हुए जो की विहित की गयी हो।
न्याय्यलय
किसी व्यक्ति की परीक्षा करने के लिए
स्थानीय अन्वेषन के लिए
विभाजन करने के लिए
कोई वैज्ञानिक तकनीक या विशेषक्ष अन्वेषन के लिए
ऐसे संपत्ति का विक्रय करने के लिए जो वाद न्यायालय मे अभिरक्षा मे हो।
कोई अनसचिवीय कार्य हेतु
धारा 76
इसमे अतिरिक्त न्यायालय कमीशन को बताया गया है।
किसी व्यक्ति की परीक्षा करने के लिए कमीशन उस राज्य से जिसमे उसे निकालने वाला न्याय्यलय स्थित होता है।
जो उच्च न्ययायलय नही है और जो उस स्थान पर रहता हो जिस पर न्याय्यलय हो उसकी परीक्षा की जानी चाहिए।
किसी व्यक्ति की परीक्षा कराने मे कमीशन प्रपट हर न्याय्यलय उसके अनुसरण मे परीक्षा करेगा या कराएगा और जब कमीशन सामक रूप से निष्पादित किया गया है तो वह इन लिए गए साक्ष्य सहित उस न्याय्यलय को लौटा दिया जाएगा। जिसमे उसको निकाला था परंतु यदि कमीशन निकालने के आदेश द्वारा निर्दिस्त किया गया हा तो कमीशन ऐसे आदेश के निबंधो के अनुसार लौटा दिया जाएगा।
धारा 77
अनुरोध पत्र
कमीशन निकालने के बदले न्याय्यलय ऐसे व्यक्ति की परीक्षा करने के लिए अनुरोध पत्र निकाल सकेगा जो ऐसे स्थान मे निवास करते है जो भारत के भीतर नही है।
धारा 78
विदेशी न्याय्यलयों के द्वारा निकाले गए कमीशन – कमीशन निकालने की न्यायालय की शक्ति को बताया गया है।
नय्यलय को ऐसे शक्ति और शर्तो के अधीन रहते हुए जो की विहित की गयी हो। और साक्षियों की परीक्षा कराने के लिए या कमीशन के निष्पादन हेतु या लौटने से संबन्धित उपबंधो पर कमीशन लागू होंगे जो कि
भारत के उन भाग से जहा पर न्ययायालय स्थिर नही है वहा के किसी भाग से निकाले गए हो। या किसी न्याय्यलय कि प्रेरणा से निकाले गए हो।
केंद्रीय सरकार के प्राधिकरण के द्वारा भारत के भर स्थिर किसी न्याय्यलय या चालू रखे गए न्याय्यलय द्वारा उनकी प्रेरणा से निकाले गए हो।
भारत के बाहर के किसी राज्य या देश मे से किसी न्याय्यलयों के द्वारा या उनकी प्रेरणा से निकाले गए हो।
धारा 79
इस धारा के अनुसार सरकार के द्वारा या उसके वीरुध वाद या अपनी पदीय हैसियत मे लोक अधिकारी के द्वारा या उसके विरुद्ध किया गया वाद –
केंद्र सरकार के द्वारा या उसके विरुद्ध किया गया वाद कि दशा मे भारत एक संघ होगा।
किसी राज्य सरकार कि दशा मे वह एक राज्य होगा।
सिविल प्रक्रिया संहिता की कई धराये अब तक बता चुके है यदि आपने यह धराये नही पढ़ी है तो पहले आप उनको पढ़ लीजिये जिससे आपको आगे की धराये समझने मे आसानी होगी।
यदि आपको इन धाराओ को समझने मे कोई परेशानी आ रही है। या फिर यदि आप इससे संबन्धित कोई सुझाव या जानकारी देना चाहते है।या आप इसमे कुछ जोड़ना चाहते है।या फिर आपको इन धाराओ मे कोई त्रुटि दिख रही है तो उसके सुधार हेतु भी आप अपने सुझाव भी भेज सकते है।
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