दंड प्रक्रिया संहिता धारा 33 से 38 तक का विस्तृत अध्ययन

जैसा कि आप सभी को ज्ञात होगा इससे पहले की पोस्ट मे हमने दंड प्रक्रिया संहिता धारा 1 से 32  तक का विस्तृत अध्ययन करा चुके है यदि आपने यह धराये नही पढ़ी है तो पहले आप उनको पढ़ ली जिये जिससे आपको आगे की धराये समझने मे आसानी होगी।

धारा 33

नियुक्त अधिकारियों की शक्तिया –

इसमे नियुक्त अधिकारियों की शक्तिया बतायी गयी है।

यह सरकार के द्वारा या राज्य सरकार के द्वारा या उच्च न्यायालय  द्वारा यदि कोई नियुक्त होता है तो उसकी क्या क्या शक्तिया है इसमे बताया गया है। यदि कोई व्यक्ति जो नियुक्त किया गया है और उसका स्ठांतरण  हो जाता है तो उसकी शक्तियों का भी स्ठांतरण हो जाएगा। यदि किसी व्यक्ति का प्रमोसन हुआ है और साथ ही उसका ट्रान्सफर भी हुआ है तो वह शक्तिया जो प्रमोसन के द्वारा उसको मिली है उसका भी स्ठांतरण हो जाएगा ।

यदि कोई अधिकारी अवकाश पर गया है तो उससे निचले अधीनस्थ अधिकारी को उसकी शक्तिया ट्रान्सफर हो जाएगी उस समय के लिए।

जब कोई ऐसा व्यक्ति जिसको स्थानीय क्षेत्र की शक्तिया प्रदान की गयी है तो जब कभी उस प्रकार के या उच्चतम पद पर या उसी राज्य सरकार के अधीन स्ठांतरण हुआ है तो उस उच्च अधिकारी को उसके पद के अनुसार शक्तिया भी स्थांतरित हो जाएगी।

यदि उसका प्रमोसन किया गया है तो प्रमोसन की शक्तिया उस पर लागू हो जाएंगी।

इसके लिए कोई अलग से नोटिफ़िकेशन देने की आवश्यकता नही होती है।

यदि किसी व्यक्ति को किसी स्थानीय क्षेत्र के अंदर नियुक्त किया गया है तो जब तक राज्य सरकार या उच्च न्यायलय आदेश न  प्रदान करे तब तक उसमे दी गयी शक्तिया निहित होंगी।

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धारा 34

शक्तियों को वापस लेना –

इसमे बताया गया है की सरकार राज्य सरकार और उच्च न्यायालय के द्वारा दी गयी शक्तियों उनही के द्वारा वापस ली जा सकती है।

जैसे जिला मजिस्ट्रेट अधीनस्थ न्यायालय को शक्तिया प्रदान की जाती है उच्च न्यायालय के द्वारा और राज्य सरकार द्वारा न्यायालय की शक्तिया वापस ले सकता है।

राज्य सरकार या उच्च न्यायालय सभी शक्तिया या उनके से कोई एक शक्तिया वापस ले सकता है। जो विधि द्वारा प्रदान की जाती है यह राज्य सरकार और उच्च न्यायालय के द्वारा अपने अधीनस्थ को दी गयी शक्तिया होती है।

मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट और जिला मजिस्ट्रेट के द्वारा प्रदान की गयी शक्तियों को उनके द्वारा वापस लिया जा सकता है।

धारा 35

न्यायधीशों की शक्तियों का प्रयोग उनके बाद के न्यायधीशों द्वारा की जाती है। इस धारा मे यह बताया गया है की कैसे न्यायधीशों की शक्तियों का प्रयोग उनके बाद के न्यायधीशों द्वारा की जाती है।

मजिस्ट्रेट की शक्तिया जो उनके पद के अनुसार है उसका उपयोग उस पद पर आए व्यक्ति द्वारा की जाएगी।

इस संहिता के अनुसार दिये गए उपबंधो के अधीन रहते हुए किसी भी मजिस्ट्रेट की शक्तियों का प्रयोग उसके पद उन्नति द्वारा किया जाएगा।

यदि इस संबंध मे कोई संदेह है की सहायक या अपर सेसन न्यायाधीश का पद कौन धरण करेगा तो सेसन न्यायाधीश लिखित रूप मे इसका सूचना देगा की कौन उसका पद धारण करेगा।

यदि इस बात मे संदेह है कि किसी मजिस्ट्रेट का पद कौन धारण करेगा तो इसका निर्धारण मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट करेगा।

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यदि इस बात मे संदेह है कि किसी कार्य पालक का पद कौन धारण करेगा तो इसका निर्धारण जिला मजिस्ट्रेट करेगा।

पद उत्तरवर्ती व्यक्ति निर्णय ले सकता है और प्राप्त शक्तियों का प्रयोग करेगा।

धारा 36

वारिस्थ पुलिस अधिकारी कि शक्तिया इस धारा मे बताया गया है।

थाना प्रभारी से वारिस्थ जो भी अधिकारी होंगे और वह जिस स्थानीय क्षेत्र मे वह नियुक्त होंगे वहा वह अपनी शक्तियों का उपयोग कर सकते है जैसे भार साधक अधिकारी करते है।

वारिस्थ पुलिस अधीक्षक इस प्रकार है।  पुलिस अधीक्षक ,उप पुलिस अधीक्षक ,उप महा  पुलिस अधीक्षक, अतिरिक्त महानिरीक्षक पुलिस ,उप पुलिस अधीक्षक भारसाधक ,पुलिस निरीक्षक है इनको वैसे ही शक्तिया प्राप्त है जैसे थाने के भार साधक अधिकारी को होता है।

धारा 37

इसमे बताया गया है कि जनता कब पुलिस और मजिस्ट्रेट कि सहायता करेगी।

जनता को पुलिस कि सहायता करनी पड़ती है जब पुलिस द्वारा इसकी मांग कि जाती है।

जब किसी अन्य व्यक्ति को जिसको पुलिस पकड़ना चाहती है और वह निकाल भाग रहा है जो वह जनता से उसको पकड़ने या सहायता करने कि माग कर सकता है।

यदि कही शांति भंग हुई हो या कही शांति भंग हो रही हो तो उसको रोकने के लिए।

यदि कही रेल कि संपत्ति को नुकसान पहुचाया जा रहा है या सरकारी संपत्ति को नुकसान हो रहा है तो पुलिस जनता से सहायता कि माग कर सकता है और जनता सहायता करेगी

यदि जनता पुलिस कि सहायता नही करती है तो उसको दंड दिया जा सकता है यह धारा 187 भारतीय दंड संहिता के अंतर्गत आता है। उसको 1 माह तक साधारण कारावास कि सजा दे सकती है।

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यदि अपराध के समय पुलिस जनता से अपराधी को पकड़ने की  मांग करती है और जनता मना कर देती है तो 6 माह की सजा और 500 जुर्माना हो सकता है।

पुलिस जनता से वहा उपस्थित होने पर ही सहायता की माग कर सकता है।

धारा 38

इसमे यह बताया गया है कि पुलिस अधिकारी से अलग किसी व्यक्ति से सहायता जो वारंट का निष्पादन कर रहा हो। जब किसी व्यक्ति पर गिरफ्तारी वारंट किसी साधारण व्यक्ति को जारी किया गया है और वह सामान्य व्यक्ति किसी और से सहायता ले सकता है।

धारा 72 और 73 के अनुसार न्यायालय यह आदेश देता है कि कोई भी व्यक्ति उस व्यक्ति को जो जेल से भागा हुआ हो या दोष सिद्ध हो या आपराधिक हो पकड़ कर न्यायालय के सामने प्रस्तुत कर सकता है।

यदि व्यक्ति गिरफ्तारी से बच रहा हो और पुलिस के सामने नही आ रहा हो तो ऐसे समय मे न्यायालय किसी सामान्य व्यक्ति को उसको पकड़ने का आदेश दे सकता है।

ऐसे व्यक्ति को सहायता प्रदान करना जो पुलिस नही है तब कोई अन्य व्यक्ति उस वारंट के संबंध मे सहायता कर सकता है।

 यदि आपको इन धारा को समझने मे कोई परेशानी आ रही है। या फिर यदि आप इससे संबन्धित कोई सुझाव या जानकारी देना चाहते है।या आप इसमे कुछ जोड़ना चाहते है। तो कृपया हमे कमेंट बॉक्स मे जाकर अपने सुझाव दे सकते है।

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