(सीआरपीसी) दंड प्रक्रिया संहिता धारा 199 तथा धारा 200 का विस्तृत अध्ययन

जैसा कि आप सभी को ज्ञात होगा इससे पहले की पोस्ट में दंड प्रक्रिया संहिता धारा 198  तक का विस्तृत अध्ययन करा चुके है यदि आपने यह धाराएं
नहीं पढ़ी है तो पहले आप उनको पढ़ लीजिये जिससे आपको आगे की धाराएं समझनेमें आसानी होगी।

धारा 199

इस धारा के अनुसार मानहानि के लिए अभियोजन को बताया गया है।

इसके अनुसार यदि  कोई न्यायालय भारतीय दंड संहिताके अनुसार अध्याय 21 के अधीन दंडनीय अपराध का संज्ञान ऐसे अपराध से व्यथित किसी व्यक्ति द्वारा किए गए परिवाद पर ही करेगा अन्यथा नहीं

परंतु जहां ऐसा व्यक्ति अठारह वर्ष से कम आयु का होता है । अथवा जड़ या पागल है । अथवा रोग या अंग-शैथिल्य के कारण परिवाद करने के लिए असमर्थ है, या ऐसी स्त्री है।  जो स्थानीय रूढ़ियों और रीतियों के अनुसार लोगों के सामने आने के लिए विवश नहीं की जानी चाहिए।  वहां उसकी ओर से कोई अन्य व्यक्ति न्यायालय की इजाजत से परिवाद कर सकता है।

 इस संहिता के अधीन  किसी बात के होते हुए भीजब भारतीय दंड संहिता के अनुसार अध्याय 21 के अधीन आने वाले किसी अपराध के बारे में यह अभिकथित है कि वह ऐसे व्यक्ति के विरुद्ध जो ऐसा अपराध किए जाने के समय भारत का राष्ट्रपति, या भारत का उपराष्ट्रपति या किसी राज्य का राज्यपाल या किसी संघ राज्यक्षेत्र का प्रशासक या संघ या किसी राज्य का या किसी संघ राज्यक्षेत्र का मंत्री अथवा संघ या किसी राज्य के कार्यकलापों के संबंध में नियोजित अन्य लोक सेवक था तो उसके लोक कृत्यों के निर्वहन को उसके आचरण के संबंध में किया गया है । तब सेशन न्यायालय, ऐसे अपराध का संज्ञान, उसको मामला सुपुर्द हुए बिना, लोक अभियोजक द्वारा किए गए लिखित परिवाद पर कर सकता है।

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उपधारा (2) में निर्दिष्ट ऐसे प्रत्येक परिवाद में वे तथ्य जिनसे अभिकथित अपराध बनता है।  ऐसे अपराध का स्वरूप और ऐसी अन्य विशिष्टियां वर्णित होंगी जो अभियुक्त को उसके द्वारा किए गए अभिकथित अपराध की सूचना देने के लिए उचित रूप से पर्याप्त है।

 उपधारा (2) के अधीन लोक अभियोजक द्वारा कोई परिवाद

(क) किसी ऐसे व्यक्ति की दशा में जो किसी राज्य का राज्यपाल है या रहा है या किसी राज्य की सरकार का मंत्री है या रहा है, उस राज्य सरकार की;

(ख) किसी राज्य के कार्यकलापों के संबंध में नियोजित किसी अन्य लोक सेवक की दशा में उस राज्य सरकार की।

(ग) किसी अन्य दशा में केंद्रीय सरकार की, पूर्व मंजूरी से ही किया जाएगा अन्यथा नहीं।

 कोई सेशन न्यायालय उपधारा (2) के अधीन किसी अपराध का संज्ञान तभी करेगा जब परिवाद उस तारीख से छह मास के अंदर कर दिया जाता है जिसको उस अपराध का(ख) किसी राज्य के कार्यकलापों के संबंध में नियोजित किसी अन्य लोक सेवक की दशा में, उस राज्य सरकार की;

(घ) किसी अन्य दशा में केंद्रीय सरकार की, पूर्व मंजूरी से ही किया जाएगा अन्यथा नहीं।

 कोई सेशन न्यायालय उपधारा (2) के अधीन किसी अपराध का संज्ञान तभी करेगा जब परिवाद उस तारीख से छह मास के अंदर कर दिया जाता है । जिसको उस अपराध का किया जाना अभिकथित है।

इस धारा की कोई बात किसी ऐसे व्यक्ति के, जिसके विरुद्ध अपराध का किया जाना अभिकथित है, उस अपराध की बाबत अधिकारिता वाले किसी मजिस्ट्रेट के समक्ष परिवाद करने के अधिकार पर या ऐसे परिवाद पर अपराध का संज्ञान करने की ऐसे मजिस्ट्रेट की शक्ति पर प्रभाव डालेगी।

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धारा 200

इस धारा के अनुसार आरोप लगाने वाले की जांच होती है । जिसके अनुसार —

शिकायत करने पर किसी भी अपराध की जांच करने वाले मैजिस्ट्रेट को आरोप लगाने वाले की और यदि उसके साथ यदि कोईऔर व्यक्ति भी है तो जो वो आरोप लगाएंगे उनकी जांच करेंगे और ऐसी किसी भी जॉच का पूरा सार लिखा जाएगा और आरोप लगाने वाले व्यक्तियों के द्वारा और मजिस्ट्रेट द्वारा भी हस्ताक्षर किए जायेंगे। परंतु जब शिकायत लिख कर की जाती है तब मजिस्ट्रेट का आरोप लगाने वाले और उसके साथियों की जांच करना आवश्यक नहीं होता है।

यदि शिकायत करने वाला अपने पदीय कर्तव्यों के भाव में कार्य करने वाले या कार्य करने का उद्देश्य रखने वाले लोक सेवक द्वारा या न्यायालय द्वारा किया गया है।  

यदि कोई मजिस्ट्रेट जांच या विचार करने के लिए मामले को धारा 192 के अंदर किसी ओर मजिस्ट्रेट को सौंप देता है।
परंतु यदि यह मजिस्ट्रेट आरोप लगाने वाले या उसके साक्षियों की जांच करने के बाद मामले को धारा 192 के अन्दर किसी दूसरे मजिस्ट्रेट के हवाले करता है तो बाद वाले मजिस्ट्रेट के लिए उनकी फिर से परीक्षा करना आवश्यक न होगा।

इसके अनुसार शिकायती ने जिस व्यक्ति पर आरोप लगाया है। वह व्यक्ति तब तक आरोपी नहीं माना जाएगा , जब तक कि न्यायालय उसे आरोपी साबित ना करदे। यानी शिकायती ने जिस जिस व्यक्ति पर आरोप लगाया है।  वह विरोधी होता है और अदालत जब शिकायती के बयान से संतुष्ट हो जाए तो वह विरोधी को बतौर आरोपी  साबित करती है और इसके बाद ही विरोधी को आरोपी कहा जाता है।

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उससे पहले नहीं। शिकायती के बयान से अगर न्यायालय संतुष्ट न हो तो केस उसी स्थिति पर खारिज कर दिया जाता है। एक बार अदालत में आरोप साबित होने के बाद आरोपी अदालत में पेश होता है और फिर मामले की सुनवाई शुरू होती है।

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