दण्ड प्रक्रिया संहिता धारा 138 से 143 तक का विस्तृत अध्ययन

जैसा कि आप सभी को ज्ञात होगा इससे पहले की पोस्ट में दंड प्रक्रिया संहिता धारा  137   तक का विस्तृत अध्ययन करा चुके है यदि आपने यह धाराएं नहीं पढ़ी है तो पहले आप उनको पढ़ लीजिये जिससे आपको आगे की धाराएं समझने में आसानी होगी।

धारा 138

इस धारा के अनुसार जहां वह कारण दर्शित करने के लिए हाजिर है उसकी प्रक्रिया को बताया गया है।

(1) जिस व्यक्ति के खिलाफ धारा 133 का आदेश दिया गया है। और वह  हाजिर है और आदेश के विरुद्ध कारण दर्शित करता है तो मजिस्ट्रेट उस मामले में उस प्रकार साक्ष्य लेगा जैसे समन मामले मे लिया जाता है।

(2) यदि मजिस्ट्रेट यह समाधान देता है या आदेश देता है  तो जैसा मूलतः किया गया था उस रूप में या ऐसे परिवर्तन के साथ जिसे वह आवश्यक समझे, युक्तियुक्त और उचित है तो वह आदेश, यथास्थिति, परिवर्तन के बिना या ऐसे परिवर्तन के सहित अंतिम कर दिया जाएगा।

(3) यदि मजिस्ट्रेट कोई समाधान नही देते है तो उस मामले में आगे कोई कार्यवाही नहीं की जाएगी।

धारा 139

इस धारा के अनुसार स्थानीय अन्वेषण के लिए निर्देश देने और विशेषज्ञ की परीक्षा करने की मजिस्ट्रेट की शक्ति को बताया गया है।
मजिस्ट्रेट धारा 137 या धारा 138 के अधीन किसी जांच के प्रयोजनों के लिए किसी

(क) ऐसे व्यक्ति द्वारा जिससे वह ठीक समझता है वह  स्थानीय अन्वेषण किए जाने के लिए निर्देश दे सकता है।  अथवा

(ख) किसी विशेषज्ञ को समन कर सकता है और उसकी परीक्षा भी  कर सकता है।

See Also  पारिवारिक विधि के अनुसार पत्नी का भरण-पोषण- II Maintenance according to Family Law- II

धारा 140

इस धारा के अनुसार मजिस्ट्रेट की लिखित अनुदान आदि देने की शक्ति को बताया गया है।

(1) जहाँ मजिस्ट्रेट धारा 139 के अधीन किसी व्यक्ति के द्वारा उसके  स्थानीय अन्वेषण किए जाने के लिए निर्देश देता है वहाँ मजिस्ट्रेट

(क) उस व्यक्ति को ऐसे लिखित अनुदान दे सकता है।  जो कि  उसके मार्गदर्शन के लिए आवश्यक प्रतीत होते है।

(ख) यह घोषित कर सकता है।  कि स्थानीय अन्वेषण का सब आवश्यक व्यय, या उसका कोई भाग, किसके द्वारा किया जाएगा।

(2) ऐसे व्यक्ति की रिपोर्ट के मामले में साक्ष्य के रूप में पढ़ा जा सकता है।

(3) जहां मजिस्ट्रेट धारा 139 के अधीन किसी विशेषज्ञ को समन करता है । और उसकी परीक्षा करता है वहां मजिस्ट्रेट निर्देश दे सकता है कि ऐसे समन करने और परीक्षा करने के खर्चे किसके द्वारा दिए जाएंगे।

धारा 141

इस धारा के अनुसार  यदि आदेश अंतिम कर दिए जाने पर प्रक्रिया और उसकी अवज्ञा के परिणाम को इसमे बताया गया है।

(1) जब धारा 136 या धारा 138 के अधीन आदेश  को अंतिम कर दिया जाता है तब मजिस्ट्रेट उस व्यक्ति को जिसके विरुद्ध वह आदेश दिया गया है। कि  उसकी सूचना देगा और उससे यह भी अपेक्षा करेगा कि वह उस आदेश द्वारा निदिष्ट कार्य इतने समय के अंदर पूरा करे ।  जितना सूचना में नियत किया जाएगा और उसे इत्तिला देना कि अवज्ञा करने पर वह भारतीय दंड संहिता (1860 का 45) की धारा 188 द्वारा उपबंधित शास्ति का भागी होगा।

(2) यदि ऐसा कार्य तय समय सीमा तक नहीं किया जाता है तो मजिस्ट्रेट उसे कर सकता है।  और उसके किए जाने में हुए खर्चों को किसी भवन, माल या अन्य संपत्ति के, जो उसके आदेश द्वारा हटाई गई है। या फिर  विक्रय द्वारा अथवा ऐसे मजिस्ट्रेट की स्थानीय अधिकारिता के अंदर या बाहर स्थित उस व्यक्ति की अन्य जंगम संपत्ति के करस्थम और विक्रय द्वारा वसूल कर सकता है।  यदि कोई ऐसी संपत्ति जो ऐसी अधिकारिता के बाहर है । तो उस आदेश से ऐसी कुर्की और विक्रय तब प्राधिकृत होगा जब वह उस मजिस्ट्रेट द्वारा पृष्ठांकित कर दिया जाता है जिसकी स्थानीय अधिकारिता के अंदर कुर्क की जाने वाली संपत्ति पाई जाती है।

See Also  (सीआरपीसी) दंड प्रक्रिया संहिता धारा 206 से धारा 208 का विस्तृत अध्ययन

(3) इस धारा के अधीन सद्भाव पूर्वक की गई किसी बात के बारे में कोई वाद न होगा।

धारा 142

इस धारा के अनुसार जांच के लंबित रहने तक का आदेश के बारे मे बताया गया है।

(1) यदि धारा 133 के अधीन आदेश देने वाला मजिस्ट्रेट यह समझता है।  कि जनता को अत्यधिक खतरे या गंभीर किस्म की हानि का निवारण करने के लिए तुरंत उपाय किए जाने चाहिए।  तो वह उस व्यक्ति को जिसके विरुद्ध आदेश दिया गया था।  ऐसा व्यादेश देगा जैसा उस खतरे या हानि को इस  मामले का अवधारण होने तक दूर या निवारित करने के लिए अपेक्षित है।

(2) यदि ऐसे व्यादेश के तत्काल पालन में उस व्यक्ति द्वारा व्यतिक्रम किया जाता है।  तो ऐसे स्थित मे  मजिस्ट्रेट स्वयं ऐसे साधनों का उपयोग कर सकता है।  या करवा सकता है । जो वह उस खतरे को दूर करने या हानि का निवारण करने के लिए ठीक समझे।

(3) मजिस्ट्रेट द्वारा इस धारा के अधीन सद्भाव पूर्वक की गई किसी बात के बारे में कोई वाद शामिल  न होगा।

धारा 143

इस धारा के अनुसार मजिस्ट्रेट लोक न्यूसेंस की पुनरावृत्ति या इसे चालू रखने का प्रतिषेध कर सकता है यह बताया गया है।
इसके अनुसार कोई जिला मजिस्ट्रेट अथवा उपखंड मजिस्ट्रेट या राज्य सरकार या जिला मजिस्ट्रेट द्वारा इस निमित्त सशक्त किया गया कोई अन्य कार्यपालक मजिस्ट्रेट किसी व्यक्ति को आदेश दे सकता है । कि वह भारतीय दंड संहिता में या फिर किसी अन्य विशेष या स्थानीय विधि में यथा परिभाषित लोक न्यूसेंस की न तो पुनरावृत्ति करे और न उसे चालू रखे।

See Also  (सीआरपीसी) दंड प्रक्रिया संहिता धारा 281 से 285 तक का विस्तृत अध्ययन

यदि आपको इन को समझने मे कोई परेशानी आ रही है। या फिर यदि आप इससे संबन्धित कोई सुझाव या जानकारी देना चाहते है।या आप इसमे कुछ जोड़ना चाहते है। तो कृपया हमें कमेंट बॉक्स में जाकर अपने सुझाव दे सकते है।

हमारी Hindi law notes classes के नाम से video भी अपलोड हो चुकी है तो आप वहा से भी जानकारी ले सकते है।  कृपया हमें कमेंट बॉक्स मे जाकर अपने सुझाव दे सकते है।और अगर आपको किसी अन्य पोस्ट के बारे मे जानकारी चाहिए तो आप उससे संबन्धित जानकारी भी ले सकते है। 

Leave a Comment