जैसा कि आप सभी को ज्ञात होगा इससे पहले की पोस्ट में दंड प्रक्रिया संहिता धारा 154 तक का विस्तृत अध्ययन करा चुके है यदि आपने यह धाराएं नहीं पढ़ी है तो पहले आप उनको पढ़ लीजिये जिससे आपको आगे की धाराएं समझने में आसानी होगी।
धारा 155
असंज्ञेय मामलों के बारे में इत्तिला और ऐसे मामलों का अन्वेषण को बताया गया है।
इस धारा के अनुसार जब पुलिस थाने के भारसाधक अधिकारी को उस थाने की सीमाओं के अंदर असंज्ञेय अपराध के किए जाने की इत्तिला दी जाती है। तब वह ऐसी इत्तिला का सार किसी ऐसी पुस्तक में या फिर जो ऐसे अधिकारी द्वारा ऐसे प्ररूप में रखी जाएगी जो राज्य सरकार इस निमित्त विहित करे या प्रविष्ट करेगा या प्रविष्ट कराएगा और इत्तिला देने वाले को मजिस्ट्रेट के पास जाने को निर्देशित करेगा।
जब कोई पुलिस अधिकारी किसी असंज्ञेय मामले का अन्वेषण किसी ऐसे मजिस्ट्रेट के आदेश के बिना नहीं करेगा जिसे ऐसे मामले का विचारण करने की या मामले को विचारणार्थ सुपुर्द करने की शक्ति है।
जब कोई पुलिस अधिकारी ऐसा आदेश मिलने पर जिसमे वारंट के बिना गिरफ्तारी करने की शक्ति के सिवाय अन्य अन्वेषण के बारे में वैसी ही शक्तियों का प्रयोग कर सकता है जैसी पुलिस थाने का भारसाधक संज्ञेय मामले में कर सकता है।
जहां पर मामले का संबंध ऐसे दो या अधिक अपराधों से है। जिनमें से कम से कम एक संज्ञेय है तो वहां इस बात के होते हुए भी कि अन्य अपराध असंज्ञेय हैं, यह मामला संज्ञेय मामला समझा जाएगा।
धारा 156
इस धारा के अनुसार संज्ञेय मामलों का अन्वेषण करने की पुलिस अधिकारी की शक्ति को बताया गया है।
(1) कोई पुलिस थाने का भारसाधक अधिकारी जो की मजिस्ट्रेट के आदेश के बिना किसी ऐसे संज्ञेय मामले का अन्वेषण कर सकता है। जिसकी जांच या विचारण करने की शक्ति उस थाने की सीमाओं के अंदर के स्थानीय क्षेत्र पर अधिकारिता रखने वाले न्यायालय को अध्याय 13 के उपबंधों के अधीन है।
(2) ऐसे किसी मामले में पुलिस अधिकारी की किसी कार्यवाही को किसी भी प्रक्रम में इस आधार पर प्रश्नगत न किया जाएगा कि वह मामला ऐसा था जिसमें ऐसा अधिकारी इस धारा के अधीन अन्वेषण करने के लिए सशक्त न था।
(3) धारा 190 के अधीन सशक्त किया गया कोई मजिस्ट्रेट पूर्वोक्त प्रकार के अन्वेषण का आदेश कर सकता है।
धारा 157
इस धारा के अनुसार अन्वेषण के लिए प्रक्रिया को बताया गया है।
इस धारा के अनुसार यदि पुलिस थाने के भारसाधक अधिकारी को जिसको इत्तिला प्राप्त होने पर या अन्यथा, यह संदेह करने का कारण है कि ऐसा अपराध किया गया है। जिसका अन्वेषण करने के लिए इस धारा के अधीन वह् सशक्त है। तो वह उस अपराध की रिपोर्ट उस मजिस्ट्रेट को तत्काल भेजेगा जो ऐसे अपराध का पुलिस रिपोर्ट पर संज्ञान करने के लिए सशक्त है। और ऐसे मामले के तथ्यों और परिस्थितियों का अन्वेषण करने के लिए और यदि आवश्यक हो तो अपराधी का पता चलाने और उसकी गिरफ्तारी के उपाय करने के लिए, उस स्थान पर या तो स्वयं जाएगा या अपने अधीनस्थ अधिकारियों में से एक को भेजेगा जो ऐसी पंक्ति से निम्नतर पंक्ति का न होगा जिसे राज्य सरकार साधारण या विशेष आदेश द्वारा इस निमित्त विहित करे।
परंतु
(क) जब ऐसे अपराध के किए जाने की कोई इत्तिला किसी व्यक्ति के विरुद्ध उसका नाम देकर की गई है। और यह मामला गंभीर प्रकार का नहीं है तब यह आवश्यक न होगा कि पुलिस थाने का भारसाधक अधिकारी उस स्थान पर अन्वेषण करने के लिए स्वयं जाए या अधीनस्थ अधिकारी को भेजते है।
(ख) यदि पुलिस थाने के भारसाधक अधिकारी को यह प्रतीत होता है। कि अन्वेषण करने के लिए पर्याप्त आधार नहीं है तो वह उस मामले का अन्वेषण न करेगा।
परंतु यह और कि बलात्संग के अपराध के संबंध मेंकिसी पीड़ित का कथन, पीड़ित के निवास पर या उसकी पसंद के स्थान पर और यथासाध्य, किसी महिला पुलिस अधिकारी द्वारा उसके माता-पिता या संरक्षक या नजदीकी नातेदार या परिक्षेत्र के सामाजिक कार्यकर्ता की उपस्थिति में अभिलिखित किया जाएगा।]
2 की उपधारा (1) के परंतुक के खंड (क) और (ख) में वर्णित दशाओं में से प्रत्येक दशा में पुलिस थाने का भारसाधक अधिकारी अपनी रिपोर्ट में उस उपधारा की अपेक्षाओं का पूर्णतया अनुपालन न करने के अपने कारणों का कथन करेगा और उक्त परंतुक के खंड (ब) में वर्णित दशा में ऐसा अधिकारी इत्तिला देने वाले को यदि कोई हो तो ऐसी रीति के द्वारा जो राज्य सरकार द्वारा विहित की जाए तत्काल इस बात की सूचना दे देगा कि वह उस मामले में अन्वेषण न तो करेगा और न कराएगा।
धारा 158
इस धारा के अनुसार रिपोर्ट कैसे दी जाएंगी इस बारे मे बताया गया है।
इस धारा के अधीन (1) धारा 157 के अधीन मजिस्ट्रेट को भेजी जाने वाली प्रत्येक रिपोर्ट जो की यदि राज्य सरकार ऐसा निर्देश तो पुलिस के ऐसे वरिष्ठ अधिकारी के माध्यम से दी जाएगी जिसे राज्य सरकार साधारण या विशेष आदेश द्वारा इस निमित्त नियत करे।
कोई भी ऐसा वरिष्ठ अधिकारी पुलिस थाने के भारसाधक अधिकारी को ऐसे अनुदेश दे सकता है। जैसा की वह ठीक समझता है और उस रिपोर्ट पर उन अनुदेशों को अभिलिखित करने के पश्चात उसे अविलंब मजिस्ट्रेट के पास भेज देगा।
धारा 159
इस धारा के अनुसार ऐसा मजिस्ट्रेटजिसको की ऐसी रिपोर्ट प्राप्त हुई जिसे देखकर उसे ऐसा प्रतीत होता है कि पुनः इस मामले में अन्वेषण (जांच) की अवश्यकता है। तो वह अन्वेषन का आदेश दे सकता है। या यदि वह ठीक समझे तो वह इस संहिता में उपबंधित रीति से मामले की प्रारम्भिक जांच करने के लिए या उसको अन्यथा निपटाने के लिए तुरन्त कार्यवाही कर सकता है। या अपने अधीनस्थ किसी मजिस्ट्रेट को कार्यवाही करने के लिए प्रतिनियुक्त कर सकता है।
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