दण्ड प्रक्रिया संहिता धारा 160 से 162 तक का विस्तृत अध्ययन

जैसा कि आप सभी को ज्ञात होगा इससे पहले की पोस्ट में दंड प्रक्रिया संहिता धारा  159 तक का विस्तृत अध्ययन करा चुके है यदि आपने यह धाराएं नहीं पढ़ी है तो पहले आप उनको पढ़ लीजिये जिससे आपको आगे की धाराएं समझने में आसानी होगी।

धारा 160

इस धारा के अनुसार साक्षियों की हाजिरी की अपेक्षा करने की पुलिस अधिकारी की शक्ति  को बताया गया है। इसके अनुसार कोई  भी पुलिस अधिकारी जो इस अध्याय के अधीन अन्वेषण कर रहा है। वह  अपने थाने की या किसी पास के थाने की सीमाओं के अन्दर विद्यमान किसी ऐसे व्यक्ति से जिसके अनुसार   दी गई इत्तिला से या अन्यथा उस मामले के तथ्यों और परिस्थितियों से परिचित होना प्रतीत होता है।

और  अपने समक्ष हाजिर होने की अपेक्षा लिखित आदेश द्वारा कर सकता है । और वह व्यक्ति अपेक्षानुसार हाजिर होगा। परन्तु किसी पुरुष से जो की पन्द्रह वर्ष से कम आयु का है या पैंसठ वर्ष से अधिक आयु है का या किसी स्त्री से या शारीरिक या मानसिक रूप से निर्योग्य किसी व्यक्ति से जो की  ऐसे स्थान से जिसमें ऐसा पुरुष या स्त्री निवास करती है। और  भिन्न किसी स्थान पर हाजिर होने की अपेक्षा नहीं की जाएगी।

तथा उसको अपने निवास स्थान से भिन्न किसी स्थान पर उपधारा (1) के अधीन हाजिर होने के लिए प्रत्येक व्यक्ति के उचित खर्चों का पुलिस अधिकारी के द्वारा संदाय कराने के लिए राज्य सरकार इस निमित्त बनाए गए नियमों द्वारा उपबन्ध कर सकती है।

धारा 161

इस धारा के अनुसार पुलिस द्वारा साक्षियों की परीक्षा लेने को बताया गया है।

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इस धारा के अनुसार जब कोई पुलिस अधिकारी जो इस अध्याय के अधीन अन्वेषण कर रहा है । या फिर ऐसे अधिकारी की अपेक्षा पर कार्य करने वाला पुलिस अधिकारी जो की ऐसी पंक्ति से निम्नतर पंक्ति का नहीं है । जिसे राज्य सरकार साधारण या विशेष आदेश द्वारा इस निमित्त विहित करे तो उस मामले के तथ्यों और परिस्थितियों से परिचित समझे जाने वाले किसी व्यक्ति की मौखिक परीक्षा कर सकता है।

 ऐसा व्यक्ति उन प्रश्नों के सिवाय जिनके उत्तरों की प्रवृत्ति उसे आपराधिक आरोप या शास्ति या समपहरण की आशंका में डालने की है। तब ऐसे मामले से संबंधित उन सब प्रश्नों का सही-सही उत्तर देने के लिए आबद्ध होगा जो ऐसा अधिकारी उससे पूछता है।

पुलिस अधिकारी इस धारा के अधीन परीक्षा के दौरान उसके समक्ष किए गए किसी भी कथन को लेखबद्ध कर सकता है । और यदि वह ऐसा करता है।  तो वह प्रत्येक ऐसे व्यक्ति के कथन का पृथक् और सही अभिलेख बनाएगाऔर  जिसका कथन वह अभिलिखित करता है।

परंतु यह और कि किसी ऐसी स्त्री का कथन जिसके विरुद्ध भारतीय दंड संहिता (1860 का 45) की धारा 354, धारा 354क, धारा 354ख, धारा 354ग, धारा 354च, धारा 376, धारा 376क, धारा 376, धारा 376ग धारा 376घ, धारा 376ङ या धारा 509, के अधीन किसी अपराध के किए जाने या किए जाने का प्रयत्न किए जाने का अधिकथन किया गया है। ऐसे  किसी महिला पुलिस अधिकारी या किसी महिला अधिकारी द्वारा अभिलिखित किया जाएगा।

धारा 162

इस धारा के अनुसार पुलिस से किए गए कथनों का हस्ताक्षरित न किया जाना तथा  कथनों का साक्ष्य में उपयोग को बताया गया है।
इस धारा के अनुसार  किसी व्यक्ति द्वारा किसी पुलिस अधिकारी से इस अध्याय के अधीन अन्वेषण के दौरान किया गया  की कोई कथन जो की  यदि लेखबद्ध किया जाता है ।

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तो कथन करने वाले व्यक्ति द्वारा हस्ताक्षरित नहीं किया जाएगा और न ऐसा कोई कथन या उसका कोई अभिलेख चाहे वह पुलिस डायरी में हो या न हो और न ऐसे कथन या अभिलेख का कोई भाग ऐसे किसी अपराध की, जो ऐसा कथन किए जाने के समय अन्वेषणाधीन था तो उस स्थित मे  किसी जांच या विचारण में इसमें इसके पश्चात् यथाउपबंधित के सिवाय किसी भी प्रयोजन के लिए उपयोग में लाया जाएगा।

परंतु जब कोई ऐसा साक्षी जिसका कथन उपर्युक्त रूप में लेखबद्ध कर लिया गया है। तो उस स्थित मे  ऐसी जांच या विचारण में अभियोजन की ओर से बुलाया जाता है । तब यदि उसके कथन का कोई भाग जो की  सम्यक् रूप से साबित कर दिया गया है तो अभियुक्त द्वारा और न्यायालय की अनुज्ञा से अभियोजन द्वारा उसका उपयोग ऐसे साक्षी का खंडन करने के लिए भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 (1872 का 1) की धारा 145 द्वारा उपबंधित रीति से किया जा सकता है ।

और जब ऐसे कथन का कोई भाग इस प्रकार उपयोग में लाया जाता है।  तब उसका कोई भाग ऐसे साक्षी की पुनःपरीक्षा में भी किंतु उसकी प्रतिपरीक्षा में निर्दिष्ट किसी बात का स्पष्टीकरण करने के प्रयोजन से हीउसको  उपयोग में लाया जा सकता है।

इस धारा की किसी बात के बारे में यह न समझा जाएगा कि वह भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 (1872 का 1) की धारा 32 के खंड (1) के उपबंधों के अंदर आने वाले किसी कथन को लागू होती है या उस अधिनियम की धारा 27 के उपबंधों पर प्रभाव डालती है।

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स्पष्टीकरण-
इस उपधारा (1) में निर्दिष्ट कथन में किसी तथ्य या परिस्थिति के कथन का लोप या खंडन हो सकता है। और  यदि वह उस संदर्भ को ध्यान में रखते हुए जिसमें ऐसा लोप किया गया है । यदि वह महत्वपूर्ण है  और न्यायसंगत प्रतीत होता है।  और कोई लोप किसी विशिष्ट संदर्भ में खंडन है या नहीं यह तथ्य का प्रश्न होगा।

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