जैसा कि आप सभी को ज्ञात होगा इससे पहले की पोस्ट में दंड प्रक्रिया संहिता धारा 162 तक का विस्तृत अध्ययन करा चुके है यदि आपने यह धाराएं नहीं पढ़ी है तो पहले आप उनको पढ़ लीजिये जिससे आपको आगे की धाराएं समझने में आसानी होगी।
धारा 163
इस धारा के अनुसार कोई उत्प्रेरणा न दिया जाना बताया जाता है।
इसके अनुसार कोई पुलिस अधिकारी या प्राधिकार वाला अन्य व्यक्ति भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 (1872 का 1) की धारा 24 में यथा वर्णित कोई उत्प्रेरणा या फिर धमकी या वचन न तो देगा और न करेगा तथा न मिलेगा और न करवाएगा।
किंतु कोई पुलिस अधिकारी या अन्य व्यक्ति इस अध्याय के अधीन किसी अन्वेषण के दौरान किसी व्यक्ति को कोई कथन करने से संबंधित जो वह अपनी स्वतंत्र इच्छा से करना चाहता है या किसी चेतावनी द्वारा या अन्यथा निवारित न करेगा।
परंतु इस धारा की कोई बात धारा 164 की उपधारा (4) के उपबंधों पर प्रभाव न डालेगी।
धारा 164
इस धारा के अनुसार स्वीकृति यों और कथनों को जो की अभी लिखित करना यानी स्वयं किसी अपराध को स्वीकार करना और बताई गई जानकारी को अभिलिखित करना बताया गया है।
इस धारा के अनुसार जब कोई भी मजिस्ट्रेट या न्यायिक मजिस्ट्रेट जब वह चाहे उसे मामले में अधिकारिता हो या ना हो इस जांच के अंतर्गत या तत्समय प्रवृत्ति किसी अन्य विधि के अंतर्गत किसी अपराध के दौरान या उस जांच के बाद या विचारण प्रारंभ होने के पूर्व किसी समय अपने से की गई किसी स्वीकृति या कथन को कभी भी अभिलिखित कर सकता है ।
ऐसे किसी व्यक्ति जो कि वह अस्थाई वह मानसिक रूप से या शारीरिक रूप से अस्वस्थ है। तो नंबर 1 के अनुसार अभिलिखित कथन को भारतीय साक्ष्य अधिनियम अट्ठारह सौ बहत्तर अट्ठारह सौ बहत्तर का एक किस सेक्शन 137 में यथा मिनी दृष्ट विनी दृष्ट मुख्य एग्जाम के स्थान पर एक कथन समझा जाएगा और ऐसा कथन करने वालों की विचारण के समय को अभिलिखित करने की आवश्यकता के बिना ऐसे कथन पर प्रतिपरीक्षा की जाएगी
इस धारा के तहत किसी भी संस्वीकृति या कथन को अभिलिखित करने वाला मजिस्ट्रेट उसे उस मजिस्ट्रेट के पास भेजेगा जिसके तहत इस मामले की जांच का विचारण किया जाना है कर सकता है।
परंतु इस उपधारा के अंदर की गई कोई स्वीकृति या कथन अपराध के आरोपी व्यक्ति के वकील की उपस्थिति में श्रव्य दृश्य इलेक्ट्रॉनिक साधनों द्वारा भी रिकॉर्ड किया जा सकता है
मजिस्ट्रेट किसी भी ऐसी स्वीकृति को अभी लिखित करने से पूर्व उस व्यक्ति को जो कुबूल कर रहा है यह समझा कि वह ऐसी स्वीकृति करने के लिए किसी की दबाव में या वह मजबूर नहीं है । और यदि वह उसे करेगा तो वह उसके विरुद्ध साक्ष्य में उपयोग में लाई जा सकती है।
और मजिस्ट्रेट कोई ऐसी स्वीकृति तब तक स्वीकार नहीं करेगा जब तक उसे करने वाला व्यक्ति से प्रश्न करने पर उसको यह विश्वास करने का कारण हो कि वक्त खुद की मर्जी से ही कर रहा हो।
ऐसी किसी स्वीकृति जिसमे किसी आरोपी व्यक्ति की जांच को स्वीकार करने के लिए धारा 281 में यह प्रक्रिया बताई गई है की किस नियम से अभिलिखित की जाएगी और स्वीकृति करने वाले व्यक्ति द्वारा उस पर हस्ताक्षर भी किए जाएंगे
उप धारा एक के अनुसार किया गया संस्वीकृति से अलग कोई कथन सबूत अभी लिखित करने के लिए इसमें इसके बाद बताई गई ऐसी रीति से अभी लिखित किया जाएगा जो मजिस्ट्रेट की राय में मामले की परिस्थिति में सर्वाधिक उपयुक्त हो तथा मजिस्ट्रेट को उस व्यक्ति को शपथ दिलाने की शक्ति होगी जिसका कत्ल इस प्रकार अभिलिखित किया जाता है।
भारतीय दंड संहिता की धारा 354, धारा 354 क, धारा 354 ख, धारा 354 ग, धारा 354 घ, धारा 376 ड, की धारा उपधारा (1) या उपधारा (दो) धारा 376 क, धारा 376 ख, धारा 376 ग, धारा 376 घ, धारा 376 ड, या धारा 509 के तहत दंड के मामलों में न्यायिक मजिस्ट्रेट उस व्यक्ति का जिसके विरुद्ध उपधारा पांच में विकृति में ऐसा अपराध किया गया है । जिसमे कथन जैसे ही अपराध का किया जाना पुलिस की जानकारी में लाया जाता है अभिलिखित करेगा।
परंतु यदि कथन करने वाला व्यक्ति अस्थाई , या स्थाई रूप से मानसिक या शारीरिक रूप से ठीक नहीं है तो मजिस्ट्रेट कथन अभिलिखित करने से पहले किसी उच्च अधिकारी या विशेष प्रबंध की सहायता लेगा
तथा इस धारा के तहत किसी संस्वीकृति या कथन को अभिलिखित करने वाला मजिस्ट्रेट उसे उस मजिस्ट्रेट के पास भेजेगा जिसके तहत इस मामले की जांच का विचारण किया जाना है।
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