जैसा कि आप सभी को ज्ञात होगा इससे पहले की पोस्ट में दंड प्रक्रिया संहिता धारा 164 तक का विस्तृत अध्ययन करा चुके है यदि आपने यह धाराएं नहीं पढ़ी है तो पहले आप उनको पढ़ लीजिये जिससे आपको आगे की धाराएं समझने में आसानी होगी।
धारा 165
इस धारा के अनुसार पुलिस अधिकारी द्वारा तलाशी को बताया गया है।
इस धारा के अनुसार जब कभी पुलिस थाने के भारसाधक अधिकारी या अन्वेषण करने वाले पुलिस अधिकारी के पास यह विश्वास करने के उचित आधार होता हैं कि वह किसी ऐसे अपराध के अन्वेषण के प्रयोजनों के लिए जिसका अन्वेषण करने के लिए वह नियम द्वारा प्राधिकृत है। और उस आवश्यक कोई चीज उस पुलिस थाने की जिसका वह् भारसाधक है या जिससे वह संलग्न है। तो वह उन सीमाओं के अंदर किसी स्थान में पाई जा सकती है।
और उसकी राय में ऐसी चीज अनुचित विलंब के बिना तलाशी से अन्यथा अभिप्राप्त नहीं की जा सकत, तब ऐसा अधिकारी अपने विश्वास के आधारों को लेखबद्ध करने तथा यथासंभव ऐसे चीज जिसके लिए तलाशी ली जानी है। उसको ऐसे लेख में विनिर्दिष्ट करने के पश्चात् उस थाने की सीमाओं के अंदर किसी स्थान में ऐसी चीज के लिए तलाशी ले सकता है या किसी के द्वारा तलाशी दिला सकता है।
उपधारा (1) के अधीन कार्यवाही करने वाला पुलिस अधिकारी यदि साध्य है तो वह तलाशी स्वयं लेगा।
यदि वह तलाशी स्वयं लेने में असमर्थ है। और कोई अन्य ऐसा व्यक्ति जो तलाशी लेने के लिए सक्षम है। तो वह उस समय उपस्थित नहीं है तो वह ऐसा करने के अपने कारणों को लेखबद्ध करने के पश्चात् वह अपने अधीनस्थ किसी अधिकारी से अपेक्षा कर सकता है। कि वह तलाशी ले और ऐसे अधीनस्थ अधिकारी को ऐसा लिखित आदेश देगा जिसमें उस स्थान को जिसकी तलाशी ली जानी है, और यथासंभव उस चीज को जिसके लिए तलाशी ली जानी है। उसको विनिर्दिष्ट किया जाएगा और तब ऐसा अधीनस्थ अधिकारी उस चीज के लिए तलाशी उस स्थान में ले सकेगा।
इस धारा मे तलाशी-वारंटों के बारे में इस संहिता के उपबंध और तलाशियों के बारे में धारा 100 के साधारण उपबंध इस धारा के अधीन ली जाने वाली तलाशी से संबन्धित नियम लागू होंगे।
उपधारा (1) या उपधारा (3) के अधीन बनाए गए किसी भी अभिलेख की प्रतियां तत्काल ऐसे निकटतम मजिस्ट्रेट के पास भेज दी जाएंगी जो उस अपराध का संज्ञान करने के लिए सशक्त है और जिस स्थान की तलाशी ली गई है, उसके स्वामी या अधिभोगी को, उसके आवेदन पर, उसकी एक प्रतिलिपि मजिस्ट्रेट द्वारा नि:शुल्क दी जाएगी।
धारा 166
इस धारा के अनुसार के अनुसार पुलिस का भार साधक अधिकारी कब किसी अधिकारी से तलाशी लेने के लिए बोल सकता है।
इस धारा के अनुसार भारसाधक अधिकारी किसी व्यक्ति को बोलकर उस व्यक्ति की स्थान की क्षेत्र की तलाशी ले सकता है। पुलिस थाने का भारसाधक अधिकारी या उपनिरीक्षक से अनिम्न पंक्ति का पुलिस अधिकारी जो भी अन्वेषण कर रहा है।और किसी दूसरे पुलिस थाने के भारसाधक अधिकारी से चाहे वह उस जिले में हो या दूसरे जिले में स्थित हो किसी भी स्थान में ऐसे मामले में तलाशी दिलाने की अपेक्षा कर सकता है। जिसमें पूर्वकथित अधिकारी स्वयं अपने थाने की सीमाओं के अंदर ऐसी तलाशी दिला सकता है।
ऐसा अधिकारी ऐसी अपेक्षा किए जाने पर जिसमे धारा 165 के उपबंधों के अनुसार कार्यवाही करेगा और यदि कोई चीज मिले तो उसे उस अधिकारी के पास भेजेगा जिसकी अपेक्षा पर तलाशी ली गई है।
इस दशा मे जब कभी यह विश्वास करने का कारण है। कि दूसरे पुलिस थाने के भारसाधक अधिकारी से उपधारा (1) के अधीन तलाशी दिलाने की अपेक्षा करने में जो विलंब होगा उसका परिणाम यह हो सकता है कि अपराध किए जाने का साक्ष्य छिपा दिया जाए या नष्ट कर दिया जाएऔर तब पुलिस थाने के भारसाधक अधिकारी के लिए या उस अधिकारी के लिए जो इस अध्याय के अधीन अन्वेषण कर रहा है। और यह विधिपूर्ण होगा कि वह दूसरे पुलिस थाने की स्थानीय सीमाओं के अंदर किसी स्थान की धारा 165 के उपबंधों के अनुसार ऐसी तलाशी ले या लिवाए मानों ऐसा स्थान उसके अपने थाने की सीमाओं के अंदर हो।
यदि कोई अधिकारी जो उपधारा (3) के अधीन तलाशी संचालित कर रहा है। और वह पुलिस थाने के भारसाधक अधिकारी को जिसकी सीमाओं के अंदर ऐसा स्थान है। तलाशी की सूचना तत्काल भेजेगा और ऐसी सूचना के साथ धारा 100 के अधीन तैयार की गई सूची की (यदि कोई हो) प्रतिलिपि भी भेजेगा और उस अपराध का संज्ञान करने के लिए सशक्त निकटतम मजिस्ट्रेट को धारा 165 की उपधारा (1) और (3) में निर्दिष्ट अभिलेखों की प्रतिलिपियां भी भेजेगा।
तथा जिस स्थान की तलाशी ली गई है। और उसके स्वामी या अधिभोगी को आवेदन करने पर उस अभिलेख की जो मजिस्ट्रेट को उपधारा (4) के अधीन भेजा जाए, प्रतिलिपि निःशुल्क दी जाएगी।
धारा 167
इस धारा के अनुसार जब चौबीस घंटे के अंदर अन्वेषण पूरा न किया जा सके तब प्रक्रिया को बताया गया है।
जब कभी कोई व्यक्ति यदि गिरफ्तार किया गया है। और अभिरक्षा में निरुद्ध है । तथा यह प्रतीत हो कि अन्वेषण धारा 57 द्वारा नियत चौबीस घंटे की अवधि के अंदर पूरा नहीं किया जा सकता और यह विश्वास करने के लिए आधार होता है कि अभियोग या इत्तिला दृढ़ आधार पर है तब पुलिस थाने का भारसाधक अधिकारी या यदि अन्वेषण करने वाला पुलिस अधिकारी उपनिरीक्षक से निम्नतर पंक्ति का नहीं है । तो वह उसके निकटतम न्यायिक मजिस्ट्रेट को इसमें इसके पश्चात् विहित डायरी की मामले में संबंधित प्रविष्टियों की एक प्रतिलिपि भेजेगा और साथ ही अभियुक्त व्यक्ति को भी उस मजिस्ट्रेट के पास भेजेगा।
वह मजिस्ट्रेट जिसके पास अभियुक्त व्यक्ति इस धारा के अधीन भेजा जाता है। चाहे उस मामले के विचारण की उसे अधिकारिता हो या न हुई हो तो अभियुक्त का ऐसी अभिरक्षा में जैसी वह मजिस्ट्रेट ठीक समझे इतनी अवधि के लिए जो कुल मिलाकर पंद्रह दिन से अधिक न होगी उतने दिन का निरुद्ध किया जाना समय-समय पर प्राधिकृत कर सकता है। तथा यदि उसे मामले के विचारण की या विचारण के लिए सुपुर्द करने की अधिकारिता नहीं है और अधिक निरुद्ध रखना उसके विचार में अनावश्यक है तो वह अभियुक्त को ऐसे मजिस्ट्रेट के पास, जिसे ऐसी अधिकारिता है, भिजवाने के लिए आदेश दे सकता है।
परंतु-
यदि मजिस्ट्रेट अभियुक्त व्यक्ति का पुलिस अभिरक्षा से अन्यथा निरोध पंद्रह दिन की अवधि से आगे के लिए उस दशा में प्राधिकृत कर सकता है। जिसमें उसका समाधान हो जाता है कि ऐसा करने के लिए पर्याप्त आधार है। किंतु कोई भी मजिस्ट्रेट अभियुक्त व्यक्ति का इस पैरा के अधीन अभिरक्षा में निरोध किया जा सकता है।
इसमे कुल मिलाकर नब्बे दिन से अधिक की अवधि के लिए प्राधिकृत नहीं करेगा । जहां अन्वेषण ऐसे अपराध के संबंध में है जो मृत्यु, आजीवन कारावास या दस वर्ष से अन्यून की अवधि के लिए कारावास से दंडनीय है।
इस धारा के अनुसार कुल मिलाकर साठ दिन से अधिक की अवधि के लिए प्राधिकृत नहीं करेगा जहां अन्वेषण किसी अन्य अपराध के संबंध में है।
और, यथास्थिति जिसमे नब्बे दिन या साठ दिन की उक्त अवधि की समाप्ति पर यदि अभियुक्त व्यक्ति जमानत देने के लिए तैयार है और दे देता है तो उसे जमानत पर छोड़ दिया जाएगा और यह समझा जाएगा कि इस उपधारा के अधीन जमानत पर छोड़ा गया प्रत्येक व्यक्ति अध्याय 33 के प्रयोजनों के लिए उस अध्याय के उपबंधों के अधीन छोड़ा गया है।
यदि कोई मजिस्ट्रेट इस धारा के अधीन किसी अभियुक्त का पुलिस अभिरक्षा में निरोध तब तक प्राधिकृत नहीं करेगा जब तक कि अभियुक्त उसके समक्ष पहली बार और तत्पश्चात् हर बार जब तक अभियुक्त पुलिस की अभिरक्षा में रहता है। तब तक व्यक्तिगत रूप से पेश नहीं किया जाता है किंतु मजिस्ट्रेट अभियुक्त के या तो व्यक्तिगत रूप से या इलैक्ट्रानिक दृश्य संपर्क के माध्यम से पेश किए जाने पर न्यायिक अभिरक्षा में निरोध को और बढ़ा सकेगा।
इसमे कोई द्वितीय वर्ग मजिस्ट्रेट जो उच्च न्यायालय द्वारा इस निमित्त विशेषतया सशक्त नहीं किया गया है। जो पुलिस की अभिरक्षा में निरोध प्राधिकृत न करेगा।