जैसा कि आप सभी को ज्ञात होगा इससे पहले की पोस्ट में दंड प्रक्रिया संहिता धारा 223 तक का विस्तृत अध्ययन करा चुके है यदि आपने यह धाराएं
नहीं पढ़ी है तो पहले आप उनको पढ़ लीजिये जिससे आपको आगे की धाराएं समझने में आसानी होगी।
धारा 224
इस धारा के अनुसार जब कई आरोपों में से एक के लिए दोषसिद्धि करना होगा और शेष आरोपियों को वापस लेना बताया गया है।
जब एक ही व्यक्ति के विरुद्ध ऐसा कोई आरोप विरचित किया जाता है । जिसमें एक से अधिक शीर्ष हैं। और जब उनमें से एक या अधिक के लिए उसको दोषसिद्धि कर दी जाती है। तब परिवादी या अभियोजन का संचालन करने वाला अधिकारी न्यायालय की सहमति से शेष आरोप या आरोपों को वापस ले सकता है अथवा न्यायालय ऐसे आरोप या आरोपों की जांच या विचारण स्वप्रेरणा से रोक सकता है।
और ऐसे वापस लेने का प्रभाव ऐसे आरोप या आरोपों से दोषमुक्ति होगा; किन्तु यदि दोषसिद्धि अपास्त कर दी जाती है । तो उक्त न्यायालय जिसको दोषसिद्धि अपास्त करने वाले न्यायालय के आदेश के अधीन रहते हुए ऐसे वापस लिए गए आरोप या आरोपों की जांच या विचारण में आगे कार्यवाही कर सकता है।
धारा 225
इस धारा के अनुसार विचारण का संचालन लोक अभियोजक द्वारा किया जाना बताया गया है।
जिसके अनुसार सेशन न्यायालय के समक्ष प्रत्येक विचारण में अभियोजन का संचालन लोक अभियोजक के द्वारा किया जाएगा।
धारा 226
इस धारा के अनुसार अभियोजन के मामले के कथन का आरंभ को बताया गया है।
इसके अनुसार जब अभियुक्त धारा 209 के अधीन मामले की सुपुर्दगी के अनुसरण में न्यायालय के समक्ष हाजिर होता है। या फिर उसको लाया जाता है । तब अभियोजक अपने मामले का कथन के द्वारा अभियुक्त के विरुद्ध लगाए गए आरोप का वर्णन करते हुए और यह बताते हुए आरंभ करेगा कि वह अभियुक्त के दोष को किस साक्ष्य से साबित करने की प्रस्थापना करता है।
धारा 227
इस धारा के अनुसार उन्मोचन को बताया गया है।
यदि मामले के अभिलेख और उसके साथ दी गई दस्तावेजों पर विचार कर लेने पर और इस निमित्त अभियुक्त और अभियोजन के निवेदन की सुनवाई कर लेने के पश्चात् न्यायाधीश यह समझता है कि अभियुक्त के विरुद्ध कार्यवाही करने के लिए पर्याप्त आधार नहीं है तो वह अभियुक्त को उन्मोचित कर देगा और ऐसा करने के अपने कारणों को लेखबद्ध करेगा।
धारा 228
इस धारा के अनुसार आरोप को विरचित करना बताया गया है। जिसके अनुसार —
(1) यदि पूर्वोक्त रूप से विचार कर और सुनवाई के पश्चात् न्यायाधीश की यह राय है कि ऐसी उपधारणा करने का आधार है । कि अभियुक्त ने ऐसा अपराध किया है जो की –
(क) अनन्यतः सेशन न्यायालय द्वारा विचारणीय नहीं है । तो वह अभियुक्त के विरुद्ध आरोप विरचित कर सकता है । और उसके आदेश द्वाराइस मामले की विचारण के लिए मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट को अन्तरित कर सकता है । या फिर कोई अन्य प्रथम वर्ग न्यायिक मजिस्ट्रेट ऐसी तारीख को जो वह ठीक समझेउसको अभियुक्त को उसकी यथास्थितिके द्वारा मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट या प्रथम वर्ग न्यायिक मजिस्ट्रेट के समक्ष हाजिर होने का निदेश दे सकेगा। और तब ऐसा मजिस्ट्रेट उस मामले का विचारण पुलिस रिपोर्ट पर संस्थित वारंट मामलों के विचारण के लिए प्रक्रिया के अनुसार करेगा;
(ख) अनन्यत: उस न्यायालय द्वारा विचारणीय है तो वह अभियुक्त के विरुद्ध आरोप लिखित रूप में विरचित करेगा।
(2) जहां न्यायाधीश उपधारा (1) के खंड (ख) के अधीन कोई आरोप विरचित करता है वहां वह आरोप अभियुक्त को पढ़कर सुनाया और समझाया जाएगा और अभियुक्त से यह पूछा जाएगा कि क्या वह उस अपराध का, जिसका आरोप लगाया गया है, दोषी होने का अभिवचन करता है या विचारण किए जाने का दावा करता है।
धारा 229
इस धारा के अनुसार दोषी होने के अभिवचन को बताया गया है।
यदि अभियुक्त दोषी होने का अभिवचन करता है । तो न्यायाधीश उस अभिवाक् को लेखबद्ध करेगा और उसके आधार पर उसे, स्वविवेक अनुसार उस पर दोष सिद्ध कर सकता है।
धारा 230
इस धारा के अनुसार अभियोजन साक्ष्य के लिए तारीख को बताया गया है।
यदि अभियुक्त अभिवचन करने से इनकार करता है। या अभिवचन नहीं करता है। या विचारण किए जाने का दावा करता है या धारा 229 के अधीन सिद्धदोष नहीं किया जाता है तो न्यायाधीश साक्षियों की परीक्षा करने के लिए तारीख नियत करेगा और अभियोजन के आवेदन पर किसी साक्षी को हाजिर होने या कोई दस्तावेज या अन्य चीज पेश करने को विवश करने के लिए कोई आदेश को जारी कर सकता है।
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