जैसा कि आप सभी को ज्ञात होगा इससे पहले की पोस्ट में दंड प्रक्रिया संहिता धारा 200 तक का विस्तृत अध्ययन करा चुके है यदि आपने यह धाराएं नहीं पढ़ी है तो पहले आप उनको पढ़ लीजिये जिससे आपको आगे की धाराएं समझने में आसानी होगी।
धारा 201
इस धारा के अनुसार ऐसे मजिस्ट्रेट द्वारा प्रक्रिया जो मामले का संज्ञान करने के लिए सक्षम नहीं है । उसके बारे मे बताया गया है।
यदि परिवाद ऐसे मजिस्ट्रेट को किया जाता है जो उस अपराध का संज्ञान करने के लिए सक्षम नहीं है, तो
(क) यदि परिवाद लिखित है तो वह उसको समुचित न्यायालय में पेश करने के लिए, उस भाव के पृष्ठांकन सहित, लौटा देगा:
(ख) यदि परिवाद लिखित नहीं है तो वह परिवादी को उचित न्यायालय में जाने का निदेश देगा।
धारा 202
इस धारा के अनुसार यदि कोई मजिस्ट्रेट ऐसे अपराध का परिवाद प्राप्त करने पर जब जिसका संज्ञान करने के लिए वह प्राधिकृत है । या जो धारा 192 के अधीन उसके हवाले किया गया है। तो वह ठीक समझता है। और ऐसी स्थिति में जहां अभियुक्त जिस स्थान पर निवास कर रहा है। जो उस क्षेत्र के बाहर है, जिस क्षेत्र में वह अधिकारिता का प्रयोग करता है। तो अभियुक्त के विरूद्ध आदेशिका का जारी किया जाना मुल्तवी कर सकता है ।
और यह विनिश्चित करने के प्रयोजन से कि कार्यवाही करने के लिए पर्याप्त आधार है । अथवा नहीं, या तो स्वयं ही मामले की जांच कर सकता है। या किसी पुलिस अधिकारी द्वारा या अन्य ऐसे व्यक्ति द्वारा जिसको वह ठीक समझता है वह अन्वेषण किए जाने के लिए निदेश दे सकता है।
परंतु अन्वेषण के लिए ऐसा कोई निदेश वहां नहीं दिया जाएगा
(क) जहां मजिस्ट्रेट को यह प्रतीत होता है । कि वह अपराध जिसका परिवाद किया गया है। तो वह अनन्यतः सेशन न्यायालय द्वारा विचारणीय है। अथवा
(ख) जहां परिवाद किसी न्यायालय द्वारा नहीं किया गया है जब तक कि परिवादी की या उपस्थित साक्षियों की (यदि कोई हो) धारा 200 के अधीन शपथ पर परीक्षा नहीं कर ली जाती है।
(2) उपधारा (1) के अधीन किसी जांच में यदि मजिस्ट्रेट ठीक समझता है तो साक्षियों का शपथ पर साक्ष्य ले सकता है:
परंतु यदि मजिस्ट्रेट को यह प्रतीत होता है कि वह अपराध जिसका परिवाद किया गया है । तो अनन्यतः सेशन न्यायालय द्वारा विचारणीय है तो यह परिवादी से अपने सब साक्षियों को पेश करने की अपेक्षा करेगा और उनकी शपथ पर परीक्षा करेगा।
(3) यदि उपधारा (1) के अधीन अन्वेषण किसी ऐसे व्यक्ति द्वारा किया जाता है जो पुलिस अधिकारी नहीं है तो उस अन्वेषण के लिए उसे वारण्ट के बिना गिरफ्तार करने की शक्ति के सिवाय थाने के भारसाधक अधिकारी को इस संहिता द्वारा प्रदत सभी शक्तियां हाोगी ।
धारा 203
इस धारा के अनुसार परिवाद का खारिज किया जाना बताया गया है ।
इस धारा के अनुसार यदि परिवादी के और साक्षियों के शपथ पर किए गए कथन पर यदि कोई हो तो और धारा 202 के अधीन जांच या अन्वेषण के (यदि कोई हो) परिणाम पर विचार करने के पश्चात्, मजिस्ट्रेट की यह राय है कि कार्यवाही करने के लिए पर्याप्त आधार नहीं है। तो वह परिवाद को खारिज कर देगा और ऐसे प्रत्येक मामले में वह ऐसा करने के अपने कारणों को संक्षेप में अभिलिखित करेगा।
धारा 204
इस धारा के अनुसार आदेशिका का जारी किया जाना बताया गया है।
(1) यदि किसी अपराध का संज्ञान करने वाले मजिस्ट्रेट की राय में यदि कार्यवाही करने के लिए पर्याप्त आधार हैं । और
(क) मामला समन-मामला प्रतीत होता है तो वह अभियुक्त की हाजिरी के लिए समन जारी करेगा। अथवा
(ख) मामला वारंट-मामला प्रतीत होता है। तो वह अपने या फिर यदि उसकी अपनी अधिकारिता नहीं है तो वह अधिकारिता वाले किसी अन्य मजिस्ट्रेट के समक्ष अभियुक्त के निश्चित समय पर लाए जाने या हाजिर होने के लिए वारंट या यदि ठीक समझता है। समन जारी कर सकता है।
(2) अभियुक्त के विरुद्ध उपमजिस्ट्रेट का अभियुक्त को वैयक्तिक हाजिरी से अभिमुक्ति दे सकना-
धारा 205
इस धारा के अनुसार —
(1) जब कभी कोई मजिस्ट्रेट समन जारी करता है। तब यदि उसे ऐसा करने का कारण प्रतीत होता है। तो वह अभियुक्त को वैयक्तिक हाजिरी से अभिमुक्त कर सकता है और अपने प्लीडर द्वारा हाजिर होने की अनुज्ञा दे सकता है।
(2) किंतु मामले की जांच या विचारण करने वाला मजिस्ट्रेटयदि चाहे तो स्वविवेकानुसार, कार्यवाही के किसी प्रक्रम में अभियुक्त की वैयक्तिक हाजिरी का निदेश दे सकता है। और यदि आवश्यक हो तो उसे इस प्रकार हाजिर होने के लिए इसमें इसके पूर्व उपबंधित रीति से विवश कर सकता है।
धारा (1) के अधीन तब तक कोई समन या वारंट जारी नहीं किया जाएगा जब तक अभियोजन के साक्षियों की सूची फाइल नहीं कर दी जाती है।
(3) लिखित परिवाद पर संस्थित कार्यवाही में उपधारा (1) के अधीन जारी किए गए प्रत्येक समन वारंट के साथ उस परिवाद की एक प्रतिलिपि होगी।
(4) जब तत्समय प्रवृत्त किसी विधि के अधीन कोई आदेशिका फीस या अन्य फीस संदेय है तब कोई आदेशिका तब तक जारी नहीं की जाएगी जब तक फीस नहीं दे दी जाती है और यदि ऐसी फीस उचित समय के अंदर नहीं दी जाती है तो मजिस्ट्रेट परिवाद को खारिज कर सकता है।
(5) इस धारा की कोई बात धारा 87 के उपबंधों पर प्रभाव डालने वाली नहीं समझी जाएगी।
उम्मीद करती हूँ । आपको यह समझ में आया होगा। अगर आपको ये आपको पसंद आया तो इसे social media पर अपने friends, relative, family मे ज़रूर share करें। जिससे सभी को इसकी जानकारी मिल सके।और कई लोग इसका लाभ उठा सके।
यदि आप इससे संबंधित कोई सुझाव या जानकारी देना चाहते है।या आप इसमें कुछ जोड़ना चाहते है। या इससे संबन्धित कोई और सुझाव आप हमे देना चाहते है। तो कृपया हमें कमेंट बॉक्स में जाकर अपने सुझाव दे सकते है।
हमारी Hindi law notes classes के नाम से video भी अपलोड हो चुकी है तो आप वहा से भी जानकारी ले सकते है। कृपया हमे कमेंट बॉक्स मे जाकर अपने सुझाव दे सकते है।और अगर आपको किसी अन्य पोस्ट के बारे मे जानकारी चाहिए तो उसके लिए भी आप उससे संबंधित जानकारी भी ले सकते है।