(सीआरपीसी) दंड प्रक्रिया संहिता धारा 213 से धारा 215 का विस्तृत अध्ययन

जैसा कि आप सभी को ज्ञात होगा इससे पहले की पोस्ट में दंड प्रक्रिया संहिता धारा 212   तक का विस्तृत अध्ययन करा चुके है यदि आपने यह धाराएं
नहीं पढ़ी है तो पहले आप उनको पढ़ लीजिये जिससे आपको आगे की धाराएं समझनेमें आसानी होगी।

धारा 212

इस धारा के अनुसार समय, स्थान और व्यक्ति के बारे में विशिष्टियां को बताया गया है।

(1) इसके द्वारा अभिकथित अपराध के समय और स्थान के बारे में और जिस व्यक्ति के  विरुद्ध अथवा जिस वस्तु केविषय में वह अपराध किया गया है ।  उस व्यक्ति या वस्तु के बारे में ऐसी विशिष्टियां जैसी की अभियुक्त को उस बात की जिसका उस पर आरोप है। उसको सूचना देने के लिए उचित रूप से पर्याप्त हैं आरोप में अंतर्विष्ट होंगी।

(2)इसके अनुसार  जब अभियुक्त पर आपराधिक न्यासभंग या बेईमानी से धन या अन्य जंगम संपत्ति के दुर्विनियोग का आरोप है तब इतना ही पर्याप्त होगा कि विशिष्ट मदों का जिनके विषय में अपराध किया जाना अभिकथित है, या अपराध करने की ठीक-ठीक तारीखों का विनिर्देश किए बिना, यथास्थिति, उस सकल राशि का विनिर्देश या उस जंगम संपत्ति का वर्णन कर दिया जाता है जिसके विषय में अपराध किया जाना अभिकथित है, और उन तारीखों का, जिनके बीच में अपराध का किया जाना अभिकथित है, विनिर्देश कर दिया जाता है और ऐसे विरचित आरोप धारा 219 के अर्थ में एक ही अपराध का आरोप समझा जाएगा।

परंतु ऐसी तारीखों में से पहली और अंतिम के बीच का समय एक वर्ष से अधिक का न होगा।

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धारा 213

इस धारा के अनुसार कब अपराध किए जाने की रीति कथित की जानी चाहिए यह बताया गया है।

जब कोई मामला इस प्रकार का है कि धारा 211 और 212 में वर्णित विशिष्टियां अभियुक्त को उस बात की जिसका उस पर आरोप है। उसको  पर्याप्त सूचना नहीं देती तब उस रीति की जिसमें अभिकथित अपराध किया गया हो  ऐसी विशिष्टियां भी प्रदान की जाएगी  जैसी उस प्रयोजन के लिए पर्याप्त हैं तो  आरोप में अंतर्विष्ट होंगी।

दृष्टांत
(क)
क पर वस्तु-विशेष की विशेष समय और स्थान में चोरी करने का अभियोग है। यह आवश्यक नहीं है कि आरोप में वह रीति उपवर्णित हो जिससे चोरी की गई।

(ख) क पर ख के साथ कथित समय पर और कथित स्थान में छल करने का अभियोग है। आरोप में वह रीति, जिससे कने ख के साथ छल किया, उपवर्णित करनी होगी।

(ग) क पर कथित समय पर और कथित स्थान में मिथ्या साक्ष्य देने का अभियोग है। आरोप में क द्वारा किए गए साक्ष्य का वह भाग उपवर्णित करना होगा जिसका मिथ्या होना अभिकथित है।

धारा 214

इस धारा के अनुसार आरोप के शब्दों का वह अर्थ लिया जाएगा जो उनका उस विधि में है जिसके अधीन वह अपराध दंडनीय है
इसमे बताया गया है की प्रत्येक आरोप में अपराध का वर्णन करने में उपयोग में लाए गए शब्दों को उस अर्थ में उपयोग में लाया गया समझा जाएगा जो अर्थ उन्हें इस विधि द्वारा दिया गया है जिसके अधीन ऐसा अपराध दंडनीय है।

धारा 215

इस धारा के अनुसार गलतियों का प्रभाव को बताया गया है।

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इसके द्वारा अपराध के या उन विशिष्टियों के जिनका आरोप में कथन होना अपेक्षित है। की  कथन करने में किसी गलती को और उस अपराध या उन विशिष्टियों के कथन करने में किसी लोप को मामले के किसी प्रक्रम में तब ही तात्त्विक माना जाएगा जब ऐसी गलती या लोप से अभियुक्त वास्तव में भुलावे में पड़ गया है और उसके कारण न्याय नहीं हो पाया है अन्यथा नहीं।

दृष्टान्त
(क) क पर भारतीय दंड संहिता  की धारा 242 के अधीन यह आरोप है कि “उसने कब्जे में ऐसा कूटकृत सिक्का रखा है जिसे वह उस समय, जब वह सिक्का उसके कब्जे में आया था, जानता था कि वह कूटकृत है और आरोप में “कपटपूर्वक” शब्द छूट गया है। जब तक यह प्रतीत नहीं होता है कि क वास्तव में इस लोप से भुलावे में पड़ गया, इस गलती को तात्त्विक नहीं समझा जाएगा।

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