जैसा कि आप सभी को ज्ञात होगा इससे पहले की पोस्ट में दंड प्रक्रिया संहिता धारा 220 तक का विस्तृत अध्ययन करा चुके है यदि आपने यह धाराएं
नहीं पढ़ी है तो पहले आप उनको पढ़ लीजिये जिससे आपको आगे की धाराएं समझनेमें आसानी होगी।
धारा 221
इस धारा के अनुसार जहां इस बारे में संदेह हो कि कौन-सा अपराध किया गया है इसमे बताया गया है।
(1) यदि कोई भी एक कार्य या कार्यों का क्रम इस प्रकार का है। कि यह संदेह है कि उन तथ्यों मे से जो सिद्ध किए जा सकते हैं। या फिर कई अपराधों में से कौन सा अपराध बनेगा । तो उस पर अभियुक्त पर ऐसे सब अपराध या उनमें से कोई करने का आरोप लगाया जा सकेगा । और ऐसे आरोपों में से कितनों ही का एक साथ विचारण किया जा सकेगा तथा उस पर उक्त अपराधों में से किसी एक को करने का अनुकल्पतः आरोप लगाया जा सकेगा।
(2) यदि ऐसे मामले में अभियुक्त पर एक अपराध का आरोप लगाया गया है। और साक्ष्य से यह प्रतीत होता है कि उसने भिन्न अपराध किया है तो जिसके लिए उस पर उपधारा (1) के उपबंधों के अधीन आरोप लगाया जा सकता था। तो वह उस अपराध के लिए दोषसिद्ध किया जा सकेगा जिसका उसके द्वारा किया जाना दर्शित है, यद्यपि उसके लिए उस पर आरोप नहीं लगाया गया था।
उदाहरण —
क पर ऐसे कार्य का अभियोग है। जो चोरी की, या चुराई गई संपत्ति प्राप्त करने की या फिर आपराधिक न्यासभंग की या छल की कोटि में आ सकता है। उस पर चोरी करने, चुराई हुई संपत्ति प्राप्त करने, आपराधिक न्यासभंग करने और छल करने का आरोप लगाया जा सकेगा अथवा उस पर चोरी करने का या चोरी की संपत्ति प्राप्त करने का या आपराधिक न्यासभंग करने का या छल करने का आरोप लगाया जा सकेगा।
धारा 222
इस धारा के अनुसार जब वह अपराध है और जो साबित हुआ है और वह आरोपित अपराध के अंतर्गत है—
(1) जब किसी व्यक्ति पर ऐसे अपराध का आरोप है की जिसमें कई विशिष्टियां हैं। तथा जिनमें से केवल कुछ के संयोग से एक पूरा छोटा अपराध बनता है। और ऐसा संयोग साबित हो जाता है किन्तु शेष विशिष्टियां साबित नहीं होती हैं। तब वह उस छोटे अपराध के लिए दोषसिद्ध किया जा सकता है यद्यपि उस पर उसका आरोप नहीं था।
(2) जब किसी व्यक्ति पर किसी अपराध का आरोप लगाया गया है। और ऐसे तथ्य साबित कर दिए जाते हैं जो उसे घटाकर छोटा अपराध कर देते हैं। तब वह छोटे अपराध के लिए दोषसिद्ध किया जा सकता है यद्यपि उस पर उसका आरोप नहीं था।
(3) जब किसी व्यक्ति पर किसी अपराध का आरोप है तब वह उस अपराध को करने के प्रयत्न के लिए दोषसिद्ध किया जा सकता है यद्यपि प्रयत्न के लिए पृथक् आरोप न लगाया गया हो।
(4) इस धारा की कोई बात किसी छोटे अपराध के लिए उस दशा में दोषसिद्ध प्राधिकृत करने वाली न समझी जाएगी जिसमें ऐसे छोटे अपराध के बारे में कार्यवाही शुरू करने के लिए अपेक्षित शर्ते पूरी नहीं हुई हैं।
उदाहरण —
जय पर उस संपत्ति के बारे में, जो वाहक के नाते उसके पास न्यस्त है। उस पर आपराधिक न्यासभंग के लिए भारतीय दंड संहिता, (1860 का 45) की धारा 407 के अधीन आरोप लगाया गया है। यह प्रतीत होता है कि उस संपत्ति के बारे में धारा 406 के अधीन उसने आपराधिक न्यायभंग तो किया है किन्तु वह उसे वाह्क के रूप में न्यस्त नहीं की गई थी। वह धारा 406 के अधीन आपराधिक न्यासभंग के लिए दोषसिद्ध किया जा सकेगा।
धारा 223
इस धारा के अनुसार किन व्यक्तियों पर संयुक्त रूप से आरोप लगाया जा सकेगा
इस धारा के अनुसार निम्नलिखित व्यक्तियों पर एक साथ आरोप लगाया जा सकेगा और उनका एक साथ विचारण किया जा सकेगा। अर्थात् :
(क) वे व्यक्ति जिन पर एक ही संव्यवहार के अनुक्रम में किए गए एक ही अपराध का अभियोग है।
(ख) वे व्यक्ति जिन पर किसी अपराध का अभियोग है और वे व्यक्ति जिन पर ऐसे अपराध का दुप्रेरण या प्रयत्न करने का अभियोग है।
(ग) वे व्यक्ति जिन पर बारह मास की अवधि के अन्दर संयुक्त रूप में उनके द्वारा किए गए धारा 219 के अर्थ में एक ही किस्म के एक से अधिक अपराधों का अभियोग है।
(घ) वे व्यक्ति जिन पर एक ही संव्यवहार के अनुक्रम में दिए गए भिन्न अपराधों का अभियोग है।
(ङ) वे व्यक्ति जिन पर ऐसे अपराध का, जिसके अन्तर्गत चोरी, उद्दापन, छल या आपराधिक दुर्विनियोग भी है, अभियोग है और वे व्यक्ति, जिन पर ऐसी संपत्ति को, जिसका कब्जा प्रथम नामित व्यक्तियों द्वारा किए गए किसी ऐसे अपराध द्वारा अन्तरित किया जाना अभिकथित है। तथा उसको प्राप्त करने या रखे रखने या उसके ब्ययन या छिपाने में सहायता करने का या किसी ऐसे अंतिम नामित अपराध का दुप्रेरण या प्रयत्न करने का अभियोग है।
(च) वे व्यक्ति जिन पर ऐसी चुराई हई संपत्ति के बारे में, जिसका कब्जा एक ही अपराध द्वारा अंतरित किया गया है, भारतीय दंड संहिता, (1860 का 45) की धारा 411 और धारा 414 के, या उन धाराओं में से किसी के अधीन अपराधों का अभियोग है।
(छ) वे व्यक्ति जिन पर भारतीय दंड संहिता (1860 का 45) के अध्याय 12 के अधीन कूटकृत सिक्के के संबंध में किसी अपराध का अभियोग है और वे व्यक्ति जिन पर उसी सिक्के के संबंध में उक्त अध्याय के अधीन किसी भी अन्य अपराध का या किसी ऐसे अपराध का दुप्रेरण या प्रयत्न करने का अभियोग है ; और इस अध्याय के पूर्ववर्ती भाग के उपबंध सब ऐसे आरोपों को यथाशक्य लागू होंगे।
परन्तु जहां अनेक व्यक्तियों पर पृथक् अपराधों का आरोप लगाया जाता है और वे व्यक्ति इस धारा में विनिर्दिष्ट कोटियों में से किसी में नहीं आते हैं वहां [मजिस्ट्रेट या सेशन न्यायालय] ऐसे सब व्यक्तियों का विचारण एक साथ कर सकता है यदि ऐसे व्यक्ति लिखित आवेदन द्वारा ऐसा चाहते हैं और मजिस्ट्रेट या सेशन न्यायालय] का समाधान हो जाता है कि उससे ऐसे व्यक्तियों पर प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ेगा और ऐसा करना समीचीन है।