भारतीय दंड संहिता धारा 90 से 98 तक का विस्तृत अध्ययन

जैसा कि आप सभी को ज्ञात होगा इससे पहले की पोस्ट मे भारतीय दंड संहिता धारा 89 तक का विस्तृत अध्ययन करा चुके है यदि आपने यह धराये नही पढ़ी है तो पहले आप उनको पढ़ ली जिये जिससे आपको आगे की धराये समझने मे आसानी होगी।

धारा 90

इस धारा मे यह बताया गया है की जब किसी व्यक्ति के द्वारा सहमति दी गयी है वह भारतीय दंड संहिता के अनुसार दी जानी चाहिए । वह डर के भय से न दी गयी हो जो चोट के डर से सहमति दी गयी है तो वह सहमति नही मानी जाती है। ऐसे सहमति जो नशे या पागलपन मे दी गयी है तो वह सहमति नही मानी जाती है।

और बच्चे के द्वारा दी गयी सहमति सहमति नही मानी जाती है जो बच्चा 12 साल से कम का हो।

धारा 91

भारतीय दंड संहिता की इस धारा मे यह बताया गया है कि ऐसे कार्यो का अप्वर्जन जो खुद ही अपराध है उस पर स्वीकरती या अस्वीक्रती दोनों अपराध होता है।

यदि महिला के द्वारा भ्रूण का गर्भपात कराया जाये क्योकि वह लड़की है तो डॉक्टर के द्वारा किया जाने वाला गर्भपात अपराध होगा भले ही वह महिला कि स्वीक्रती से हुआ है।

यदि कोई गेंद खेल रहा है और दूसरे को टार्गेट बना कर उसको गेंद से खेलते खेलते मारता है तो यह अपराध माना जाएगा।

यदि धारा 87,88,89 का लाभ लेना चाहता है पर वह स्वता अपराध है तो इन धारा का अपवाद का विस्तार इन कार्यो पर नही है जो इसके बिना अपराध है भले ही वह सहमति दी जा रही है इन कार्यो से किए जाने कि संभावना हो तो वह अपराध माना जाता है।

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धारा 92

भारतीय दंड संहिता की इस धारा मे यह बताया गया है कि  सम्मति के बिना सदभाव पूर्वक किया गया कार्य किसी के फायदे के लिए किया जा रहा है तो वह अपराध नही है जैसे कोई शिशु को चोट लग गयी है। और उसका देख रेख करने वाला कोई नही है  तो डॉक्टर बिना सहमति के उसका ऑपरेशन कर जान बचा सकता है।

यदि किसी व्यक्ति का एक्सीडेंट हो गया है और उसके साथ कोई नही है और डॉक्टर उसका ऑपरेशन करता है और वह मर जाता है तो यह अपराध नही है। क्योंकि डॉक्टर ने सदभाव पूर्वक उसका ऑपरेशन किया है।

धारा 93

भारतीय दंड संहिता की इस धारा मे यह बताया गया है कि सदभाव पूर्वक की गयी सूचना को बताया गया है। यह अपवाद मे आता है अपराध मे नही। यदि किसी व्यक्ति को इस सूचना से हानि हो जाती है तो वह अपराध नही है।

जैसे किसी एक्सीडेंट मे घायल मरीज को डॉक्टर यह सूचना देता है की वह मर भी सकता है और उसका हार्ट अटैक से मर गया यह सूचना सुनते ही तो वह अपराध नही माना जाएगा।

धारा 94

भारतीय दंड संहिता की इस धारा मे यह बताया गया है कि यदि कोई व्यक्ति किसी को जानसे मारने की धमकी  देकर कोई कार्य कराता है तो वह व्यक्ति जो कार्य करता है वह अपराधी नही है।

जैसे किसी व्यक्ति के द्वारा महिला के कान पर बंदूक रख जानसे मारने की धमकी देकर किसी के पर्स से चोरी कराता है तो वह व्यक्ति जो चोरी कर रहा है वह अपराधी नही होगा । पर जान से मारने से कम की धमकी इसमे नही शामिल होगी।

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 भारतीय दंड संहिता की इस धारा मे यह बताया गया है कि यदि कोई व्यक्ति किसी को जानसे मारने की धमकी  देकर कोई कार्य कराता है जो जान से मारने की हो तो वह व्यक्ति जो कार्य करता है वह अपराधी है।

और यह कार्य व्यक्ति से स्वेच्छा से न कराया गया हो। तो वह अपराध नही है।

जैसे कोई डाकू के गुट मे शामिल हो जाता है और चोरी के लिए जाता है पर वहा चोरी करने से माना कर देता है और डाकू के द्वारा उस पर धमकी दी जाती है की यदि वह चोरी नही करेगा तो मार डाला  जाएगा तो इस प्रकार की चोरी अपराध है क्योंकि वह व्यक्ति खुद ही गुट मे शामिल हुआ था।

धारा 95

भारतीय दंड संहिता की इस धारा मे यह बताया गया है कि तुच्छ कार्य क्या होता है और इसको दंड के अंतर्गत नही आता है।

जैसे भीड़ अधिक होने के कारण किसी के पैर के उपर पैर पड गया तो यह अपराध मे नही आएगा यह तुच्छ कार्य के अंतर्गत आता है और इसका एफ़आईआर नही कराया जा सकता है।

यह समान्य मे अपराध नही माना जाएगा। यह अपवाद माना जाएगा।

धारा 96

भारतीय दंड संहिता की इस धारा मे यह बताया गया है कि हर कोई व्यक्ति को अपनी रक्षा करने का अधिकार होता है। प्रत्येक व्यक्ति की सुरक्षा का दायित्व राज्य का होता है पर राज्य हर जगह मौजूद नही हो सकता है। इसलिए अपनी सुरक्षा करना होता है यदि कोई व्यक्ति पुलिस तक नही पहुच सकता तो कोई अपनी प्रतिरक्षा कर सकता है।

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हर व्यक्ति को अपनी प्रतिरक्षा का अधिकार है पर किसी को हानि नही पहुचा सकते है और यदि प्राण रक्षा की बात नही हो तो प्रतिरक्षा समाप्त हो जाती है।

धारा 97

भारतीय दंड संहिता की इस धारा मे यह बताया गया है कि शरीर की प्रतिरक्षा को बताया गया है इसमे खुद की, परिवार की, नाते रिश्तेदार या किसी अन्य व्यक्ति की रक्षा कर सकते है। इसमे चल और अचल संपत्ति की प्रतिरक्षा कर सकते है और हमलावार के प्रति प्रतिरक्षा कर सकते है।

धारा 98

 भारतीय दंड संहिता की इस धारा मे यह बताया गया है कि यदि कोई जिसका मानसिक संतुलन ठीक नही है या शिशु है या पागल है और हमला कर देने पर प्रतिरक्षा का अधिकार प्राप्त है जैसा अधिकार अन्य व्यक्ति के लिए प्राप्त है।

भारतीय दंड संहिता की कई धराये अब तक बता चुके है यदि आपने यह धराये नही पढ़ी है तो पहले आप उनको पढ़ लीजिये जिससे आपको आगे की धराये समझने मे आसानी होगी।

यदि आपको इन धाराओ को समझने मे कोई परेशानी आ रही है। या फिर यदि आप इससे संबन्धित कोई सुझाव या जानकारी देना चाहते है।या आप इसमे कुछ जोड़ना चाहते है।या फिर आपको इन धाराओ मे कोई त्रुटि दिख रही है तो उसके सुधार हेतु भी आप अपने सुझाव भी भेज सकते है।

हमारी Hindi law notes classes के नाम से video  भी अपलोड हो चुकी है तो आप वहा से भी जानकारी ले सकते है।  कृपया हमे कमेंट बॉक्स मे जाकर अपने सुझाव दे सकते है।

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