(सीआरपीसी) दंड प्रक्रिया संहिता धारा 286  से 290  तक का विस्तृत अध्ययन

जैसा कि आप सभी को ज्ञात होगा इससे पहले की पोस्ट में दंड प्रक्रिया संहिता धारा 285  तक का विस्तृत अध्ययन करा चुके है यदि आपने यह धाराएं
नहीं पढ़ी है तो पहले आप उनको पढ़ लीजिये जिससे आपको आगे की धाराएं समझने में आसानी होगी।

धारा 286

इस धारा के अनुसार कमीशनों का निष्पादन के बारे मे बताया गया है।
कमीशन प्राप्त होने पर मुख्य महानगर मजिस्ट्रेट या मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट, अथवा ऐसा महानगर मजिस्ट्रेट या न्यायिक मजिस्ट्रेट जिसे वह इस निमित्त नियुक्त करे, साक्षी को अपने समक्ष आने के लिए समन करेगा अथवा उस स्थान को जाएगा जहां पर  साक्षी है।  और उसका साक्ष्य उस रीति से लिखेगा और इस प्रयोजन के लिए उन्हीं शक्तियों का प्रयोग कर सकेगा जो इस संहिता के अधीन वारण्ट-मामलों के विचारण के लिए हैं।

धारा 287

इस धारा के अनुसार पक्षकार साक्षियों की परीक्षा कर सकेंगे यह बताया गया है।

(1) इस संहिता के अधीन किसी ऐसी कार्यवाही के पक्षकार जिसमें कमीशन जारी किया गया है। वह  अपने-अपने ऐसे लिखित परिप्रश्न भेज सकते हैं । जिन्हें कमीशन का निदेश देने वाला न्यायालय या मजिस्ट्रेट विवाद्यक से सुसंगत समझता है । और उस मजिस्ट्रेट, न्यायालय या अधिकारी के लिए, जिसे कमीशन निर्दिष्ट किया जाता है या जिसे उसके निष्पादन का कर्तव्य प्रत्यायोजित किया जाता है, यह विधिपूर्ण होगा कि वह ऐसे परिप्रश्नों के आधार पर साक्षी की परीक्षा करे।
(2) कोई ऐसा पक्षकार ऐसे मजिस्ट्रेट, न्यायालय या अधिकारी के समक्ष प्लीडर द्वारा या यदि अभिरक्षा में नहीं है तो स्वयं हाजिर हो सकता है।  और उक्त साक्षी की (यथास्थिति) परीक्षा, प्रतिपरीक्षा और पुनः परीक्षा कर सकता है।

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धारा 288

इस धारा के अनुसार कमीशन का लौटाया जाना बताया गया है।
(1) इस  धारा के अधीन जारी किए गए किसी कमीशन के सम्यक् रूप से निष्पादित किए जाने के पश्चात् वह उसके अधीन परीक्षित साक्षियों के अभिसाक्ष्य सहित उस न्यायालय या मजिस्ट्रेट को जिसने कमीशन जारी किया था। उसको लौटाया जाएगा। और वह कमीशन, उससे संबद्ध विवरणी और अभिसाक्ष्य सब उचित समयों पर पक्षकारों के निरीक्षण के लिए प्राप्य होंगे, और सब न्यायसंगत अपवादों के अधीन रहते हुए, किसी पक्षकार द्वारा मामले में साक्ष्य पढ़े जा सकेंगे और अभिलेख का भाग होंगे।
(2) यदि ऐसे लिया गया कोई अभिसाक्ष्य, भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 (1872 का 1) की धारा 33 द्वारा विहित शर्तों को पूरा करता है।  तो वह किसी अन्य न्यायालय के समक्ष भी मामले के किसी पश्चात्वर्ती प्रक्रम में साक्ष्य में लिया जा सकेगा।

धारा 289

इस धारा के अनुसार कार्यवाही का स्थगन के बारे मे बताया गया है।
प्रत्येक ऐसे  मामले में जिसमें धारा 284 के अधीन कमीशन जारी किया गया है। उसका  जाँच, विचारण या अन्य कार्यवाही ऐसे विनिर्दिष्ट समय तक के लिए जो कमीशन के निष्पादन और लौटाए जाने के लिए उचित रूप से पर्याप्त है। उसको  स्थगित की जा सकती है।

धारा 290

इस धारा के अनुसार विदेशी कमीशनों का निष्पादन को बताया गया है।

(1) इस धारा  के  उपबन्ध और धारा 287 और धारा 288 के उतने भाग के उपबन्ध जितना कमीशन का निष्पादन किए जाने और उसके लौटाए जाने से संबंधित है। और  इसमें इसके पश्चात् वर्णित किन्हीं न्यायालयों, न्यायाधीशों या मजिस्ट्रेट द्वारा जारी किए गए कमीशनों के बारे में वैसे ही लागू होंगे । जैसे वे धारा 284 के अधीन जारी किए गए कमीशनों को लागू होते हैं।

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(2) उपधारा (1) में निर्दिष्ट न्यायालय, न्यायाधीश और मजिस्ट्रेट निम्नलिखित हैं-

(क) भारत के ऐसे क्षेत्र के अन्दर, जिस पर इस संहिता का विस्तार नहीं है, अधिकारिता का प्रयोग करने वाला ऐसा न्यायालय, न्यायाधीश या मजिस्ट्रेट जिसे केन्द्रीय सरकार, अधिसूचना द्वारा, इस निमित्त विनिर्दिष्ट करे।

(ख) भारत से बाहर के किसी ऐसे देश या स्थान में, जिसे केन्द्रीय सरकार, अधिसूचना द्वारा, इस निमित्त विनिर्दिष्ट करे, अधिकारिता का प्रयोग करने वाला और उस देश या स्थान में प्रवृत्त विधि के अधीन आपराधिक मामलों के सम्बन्ध में साक्षियों की परीक्षा के लिए कमीशन जारी करने का प्राधिकार रखने वाला न्यायालय, न्यायाधीश या मजिस्ट्रेट।

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