प्रारूपण और प्रारूपण के सिद्धांत तथा फ़ौजदारी और दीवानी कानून मे उपलब्ध उपचार का वर्णन

सबसे पहले हम आपको बता देते है कि प्रारूपण क्या होता है। फिर हम इसके सिद्धांत का वर्णन करेंगे। जब भी हम न्यायालय मे वाद प्रस्तुत करने जाते है उसको लिखित रूप मे देते है और उसके साथ ही कुछ दस्तावेज़ भी देते है। विधि की भाषा मे उसमे जो हम भाषा का प्रयोग करते है वह प्रारूपण कहलाता है। और कानून की भाषा मे बात करे तो इसको याचिका देना या दस्तावेज़ देना भी कहा जाता है। इसमे जिस भाषा का प्रयोग किया जाता है वह कानूनी भाषा होती है। प्रारूपण के लिए सही भाषा सही घटना और सही नियम का प्रयोग होता है।

प्रारूपण के सिद्धांत –

प्रारूपण के लिए आयोजन-

उद्देश्य

प्रारूपण तैयार करने से पहले हमे यह जानना आवश्यक है की इसका प्रयोग हम कहा करेंगे अर्थात यह किस लिए बनाया जा रहा है। अगल अगल कार्यो के लिए प्रारूपण अलग अलग होता है तथा उसमे कानूनी भाषा का प्रयोग होता है। जैसे विधियक के लिए अलग प्रारूपण और भाग के लिए अलग प्रारूपण तैयार किया जाता है।

सही ढाँचा

किसी भी दस्तावेज़ को तैयार करने से पहले उसका ढांचा तैयार कर लेना आवश्यक होता है उसी अनुसार प्रारूपण को तैयार किया जाता है यदि उसमे कुछ कामिया होती है तो वही पर सुधार कर लिया जाता है। ढांचा अगर अच्छा होता है तो प्रारूपण भी अच्छा बनता है और उसका प्रभाव पड़ता है, सभी सामग्री को भाग उपभाग खंड आदि मे विभाजित कर लेना चाहिए। तथा इसकी भाषा स्पष्ट होनी चाहिए। सही ढांचा  वह पहला तत्व है।  जिसे लिखने  के समय ध्यान में रखा जाना चाहिए।  और यह पाठ के निर्माण के लिए पहला दृष्टिकोण तैयार करता है।

योजना बनाते समय सबसे पहली चीज वह है जिसको कि  ध्यान में रखा जाना चाहिए वह है  संभाला जाने वाला विषय और वह दृष्टिकोण जिससे वह व्यवहार मे प्रयोग किया जाएगा। यह उस सामग्री को एकट्ठा  करने के लिए किया जाता है जिसे संभाला जाएगा। इसके अलावा लिखने का उद्देश्य क्या है इस पर भी निर्भर करता है कि  इसका संकेत क्या है।

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क्रम

क्रम का किसी भी दस्तावेज़ मे बहुत महत्व होता है अगर कोई सामग्री सही क्रम मे नही है तो वह उपयोगी नही होती है सामग्री को क्रम अनुसार व्यवस्थित होना आवश्यक होता है। इसको एक तर्क संगत रूप मे होना चाहिए। दस्तावेजो को  अपने में सम्पूर्ण और संक्षिप्त और क्रम अनुसार होना चाहिए।  उसमें अतिशयोक्ति, वाग्जाल और विस्तृत विवरण नही होना चाहिए।  इसके अतिरिक्त इसमे  में एक ही बात को बार-बार दुहराना नही चाहिए।  इसमे मुख्य बातें आरम्भ में लिखी जानी चाहिए और उसके बाद क्रम से सारी बातें एक क्रम में स्पस्ट लिखनी चाहिए। इसमें कोई भी आवश्यक तथ्य छूटने न पाय। यह  अपने में सम्पूर्ण हो, अधूरा नहीं होना चाहिए।

सही लेखन

किसी भी दस्तावेज़ के लिए सही लेखन आवश्यक है। उसमे निम्न गुण होना चाहिए। शुद्धता की दृष्टि से इसमे यह ध्यान रखना चाहिए कि शब्द-रचना और वाक्य-विन्यास सही हो।अर्थात  उनमें किसी भी प्रकार की वर्तनी और व्याकरणगत अशुद्धियाँ न हों।

शीर्षक –

किसी भी लेखन मे शीर्षक का होना अति आवश्यक होता है। शीर्षक ऐसा होनाकिसी भी लेखन मे सारांश के साथ उसका शीर्षक होना आवश्यक है। उससे सम्पूर्ण विवरण का पता चलता है। यह संछेप मे होना चाहिए और इसकी भाषा शुद्ध और सरल होना चाहिये जिससे सभी को आशानी से समझ आ सके। इसमे  बेशक, वर्तनी, हस्तलेख और विराम-चिह्न भी महत्वपूर्ण  होते हैं। लेकिन जब  इस बारे में अपने विचारों को एकत्रित कर एक स्वरूप देने की कोशिश कर रहे हों कि उन्हें किस बारे में लिखना चाहिए, तो वे उसी समय यांत्रिक कौशल का प्रयोग करना उचित होता है।

अनुभाग

किसी भी प्ररूपण मे अनुभाग का बहुत महत्व है। अनुभाग जायदा बड़ा नही होना चाहिए और वह 5 से जायदा भागो मे विभाजित नही होना चाहिए। अनुभाग स्पस्ट होना चाहिए। सभी अनुभाग मे खंड एक दूसरे से जुड़े हुए होना चाहिए। इसमे  विराम चिह्नों को सही स्थान पर प्रयोग किया जाना आवश्यक है। विराम चिह्नों का सही प्रयोग न होने से अर्थ का अनर्थ हो सकता है। इसमे उचित स्थान पर विराम चिह्नों का प्रयोग इसको आकर्षक बनाता हैं।

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वाक्य 

वाक्य को जायदा बड़ा नही होना चाहिए। वाक्य सरल होना चाहिए जिससे सभी को समझ आ सके। वाक्य मे व्याकरण का सही प्रयोग होना चाहिए। वाक्य सारांश से संबंधित होना चाहिए। वाक्य  लिखते समय मात्रा आदि का विशेष ध्यान रखना चाहिए। समय समय पर पैराग्राफ बदलते रहना चाहिए।

इसमे निम्न को ध्यान रखना आवश्यक है।

व्याकरण

वर्तनी

विराम चिह्नों का उपयोग

विचारों की सुसंगतता और स्पष्टता

पैराग्राफ के बीच सामंजस्य

शब्द

हमेशा सरल शब्दो का प्रयोग करना चाहिए जिससे सभी को समझ मे आ जाए ऐसे शब्दो का प्रयोग नही करना चाहिए  जो कठिन हो और जिसका मतलब निकालना पड़े। कभी भी इसमे लोकांतिया आदि का प्रयोग नही करना चाहिए ।

 उपचारी उपाय-

सिविल कानून-

सिविल कानून मे आर्थिक दंड देने का प्रावधान है इसमे उपचार के रूप मे आर्थिक दंड दिया जाता है। इसमे कितना नुकसान हुआ ,मानशिक क्षति आदि को देख कर उसका आकलन करके उपचार दिया जाता है। और उसके बदले मुआबजा दिया जाता है।

मुआबजा

मुआबजा वह राशि है जो अदालत के द्वारा क्षति हुए व्यक्ति को प्रदान की जाती है इसमे अदालत दोषी व्यक्ति को क्षति की भरपाई करने के लिए विवश करती है और क्षति के अनुसार मुआबजा दिलाती है।

विशेष राहत –

यह सिविल प्रकृया संहिता के धारा 15 और 192 मे निहित है इसके अनुसार बाद मे एक नया कानून बन गया जिसके तहत जिस व्यक्ति का नुकसान होता है या उसको कोई क्षति हुई है तो उसको अलग से राहत प्रदान किया जाएगा जैसे की यदि किसी की जमीन हड़प ली गयी है तो जमीन के साथ साथ उतने दिन जीतने दिन जमीन पर किसी और का कब्जा था उसकी भी भरपाई करनी पड़ेगी।

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आपराधिक कानून का उपचार-

आपराधिक मामलो मे उपचार के रूप मे दंड का प्रावधान होता है। इसमे हर्जाने की भी व्यवस्था की गयी है। और इसमे हर्जाने की रकम तय की जाती है।

क्षतिपूर्ति

इस विधि के अनुसार पीढ़ित व उसके परिवार को दर्द से राहत दिलाने का प्रयाश किया जाता है। कभी कभी ऐसा देखने को मिलता है की केवल क्षतिपूर्ति ही समाधान नही होता है ऐसे दशा मे क्षतिपूर्ति के साथ साथ दंड की भी व्यवस्था की जाती है। कानूनी अपराधी को अपराध के बदले क्षतिपूर्ति की व्यवस्था की जाती है। उदाहरण के रूप मे रेल के नियम न मानने पर जुर्माने के साथ साथ दंड का भी प्रावधान है।

राहत

यह सिविल प्रकृया संहिता के धारा 15 और 192 मे निहित है इसके अनुसार बाद मे एक नया कानून बन गया जिसके तहत जिस व्यक्ति का नुकसान होता है या उसको कोई क्षति हुई है तो उसको अलग से राहत प्रदान किया जाएगा जैसे की यदि किसी की जमीन हड़प ली गयी है तो जमीन के साथ साथ उतने दिन जीतने दिन जमीन पर किसी और का कब्जा था उसकी भी भरपाई करनी पड़ेगी। 

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