(सीआरपीसी) दंड प्रक्रिया संहिता धारा 309   से धारा 315  तक का विस्तृत अध्ययन

जैसा कि आप सभी को ज्ञात होगा इससे पहले की पोस्ट में दंड प्रक्रिया संहिता धारा 308   तक का विस्तृत अध्ययन करा चुके है यदि आपने यह धाराएं
नहीं पढ़ी है तो पहले आप उनको पढ़ लीजिये जिससे आपको आगे की धाराएं समझने में आसानी होगी।

धारा 309

 कार्यवाही को मुल्तवी या स्थगित करने की शक्ति —

(1) प्रत्येक जांच या विचारण में, कार्यवाहियां सभी हाजिर साक्षियों की परीक्षा हो जाने तक दिन-प्रतिदिन जारी रखी जाएंगी, जब तक कि ऐसे कारणों से, जो लेखबद्ध किए जाएंगे, न्यायालय उन्हें अगले दिन से परे स्थगित करना आवश्यक न समझे :

परन्तु जब जांच या विचारण भारतीय दण्ड संहिता की धारा 376, [धारा 376क, धारा 376कख, धारा 376ख, धारा 376ग, धारा 376घ, धारा 376घक या धारा 376घख के अधीन किसी अपराध से संबंधित है, तब जांच या विचारण] आरोपपत्र फाइल किए जाने की तारीख से दो मास की अवधि के भीतर पूरा किया जाएगा ।

(2) यदि न्यायालय किसी अपराध का संज्ञान करने या विचारण के प्रारंभ होने के पश्चात् यह आवश्यक या उचित समझता है कि किसी जांच या विचारण का प्रारंभ करना मुल्तवी कर दिया जाए या उसे स्थगित कर दिया जाए तो वह समय-समय पर ऐसे कारणों से, जो लेखबद्ध किए जाएंगे, ऐसे निबंधनों पर, जैसे वह ठीक समझे, उतने समय  के लिए जितना वह उचित समझे उसे मुल्तवी या स्थगित कर सकता है और यदि अभियुक्त अभिरक्षा में है तो उसे वारण्ट द्वारा प्रतिप्रेषित कर सकता है :

परन्तु कोई मजिस्ट्रेट किसी अभियुक्त को इस धारा के अधीन एक समय में पंद्रह दिन से अधिक की अवधि के लिए अभिरक्षा में प्रतिप्रेषित न करेगा :

परन्तु यह और कि जब साक्षी हाजिर हों तब उनकी परीक्षा किए बिना स्थगन या मुल्तवी करने की मंजूरी विशेष कारणों के बिना, जो लेखबद्ध किए जाएंगे, नहीं दी जाएगी :

परन्तु यह भी कि कोई स्थगन केवल इस प्रयोजन के लिए नहीं मंजूर किया जाएगा कि वह अभियुक्त व्यक्ति को उस पर अधिरोपित किए जाने के लिए प्रस्थापित दण्डादेश के विरुद्ध हेतुक दर्शित करने में समर्थ बनाए ।
परन्तु यह भी कि–

(क) जहाँ परिस्थितियाँ उस पक्षकार के नियंत्रण के परे हैं, के सिवाय पक्षकार के अनुरोध पर कोई स्थगन मंजूर नहीं किया जाएगा;

(ख) यह तथ्य कि किसी पक्षकार का अधिवक्ता किसी अन्य न्यायालय में लगा हुआ है, स्थगन का आधार नहीं होगा;

(ग) जहाँ कोई साक्षी न्यायालय में उपस्थित है परन्तु पक्षकार या उसका अधिवक्ता उपस्थित नहीं है अथवा ।

पक्षकार या उसका अधिवक्ता यद्यपि न्यायालय में उपस्थित है, लेकिन साक्षी का परीक्षण या प्रतिपरीक्षण करने के लिए तैयार नहीं है, तब न्यायालय, यदि उचित समझता है, साक्षी की यथास्थिति मुख्य परीक्षा या प्रतिपरीक्षा को अभिमुक्त करते हुए साक्षी के कथन को अभिलिखित करेगा तथा ऐसे आदेश पारित कर सकेगा जैसा वह उचित समझे ।

See Also  (सीआरपीसी) दंड प्रक्रिया संहिता धारा 183 से 187 का विस्तृत अध्ययन

स्पष्टीकरण 1 — यदि यह संदेह करने के लिए पर्याप्त साक्ष्य प्राप्त कर लिया गया है कि हो सकता है कि अभियुक्त ने अपराध किया है और यह संभाव्य प्रतीत होता है कि प्रतिप्रेषण करने पर अतिरिक्त साक्ष्य प्राप्त किया जा सकता है तो यह प्रतिप्रेषण के लिए एक उचित कारण होगा।

स्पष्टीकरण 2 — जिन निबंधनों पर कोई स्थगन या मुल्तवी करना मंजूर किया जा सकता है, उनके अन्तर्गत समुचित मामलों में अभियोजन या अभियुक्त द्वारा खर्चा का दिया जाना भी है।

धारा 310

इस धारा के अनुसार स्थानीय निरीक्षण को बताया गया है।
(1) कोई न्यायाधीश या मजिस्ट्रेट किसी जांच, विचारण या अन्य कार्यवाही के किसी प्रक्रम में, पक्षकारों को सम्यक् सूचना देने के पश्चात् किसी स्थान में, जिसमें अपराध का किया जाना अभिकथित है, या किसी अन्य स्थान में जा सकता है और उसका निरीक्षण कर सकता है, जिसके बारे में उसकी राय है कि उसका अवलोकन ऐसी जांच या विचारण में दिए गए साक्ष्य का उचित विवेचन करने के प्रयोजन से आवश्यक है और ऐसे निरीक्षण में देखे गए किन्हीं सुसंगत तथ्यों का ज्ञापन, अनावश्यक विलम्ब के बिना, लेखबद्ध करेगा।
(2) ऐसा ज्ञापन मामले के अभिलेख का भाग होगा और यदि अभियोजक, परिवादी या अभियुक्त या मामले का अन्य कोई पक्षकार ऐसा चाहे तो उसे ज्ञापन की प्रतिलिपि निःशुल्क दी जायगी।

धारा 311

इस धारा के अनुसार आवश्यक साक्षी को समन करने या उपस्थित व्यक्ति की परीक्षा करने की शक्ति को बताया गया है।
इस धारा के अनुसार यदि कोई न्यायालय इस संहिता के अधीन किसी जांच, विचारण या अन्य कार्यवाही के किसी प्रक्रम में किसी व्यक्ति को साक्षी के तौर पर समन कर सकता है।  या फिर किसी ऐसे व्यक्ति को  जो हाजिर हो, यद्यपि वह साक्षी के रूप में समन न किया गया हो। तो उसका  परीक्षा कर सकता है। या  किसी व्यक्ति को, जिसकी पहले परीक्षा की जा चुकी है। पुन: बुला सकता है और उसकी पुनः परीक्षा कर सकता है; और यदि न्यायालय को मामले के न्यायसंगत विनिश्चय के लिए किसी ऐसे व्यक्ति का साक्ष्य आवश्यक प्रतीत होता है तो वह ऐसे व्यक्ति को समन करेगा और उसकी परीक्षा करेगा या उसे पुन:बुलाएगा और उसकी पुन: परीक्षा करेगा।

धारा 312

इस धारा के अनुसार परिवादियों और साक्षियों के व्यय को बताया गया है।
इस धारा  के अनुसार राज्य सरकार के  द्वारा बनाए गए किन्हीं नियमों के अधीन रहते हुए  यदि कोई दण्ड न्यायालय ठीक समझता है । तो वह ऐसे न्यायालय के समक्ष इस संहिता के अधीन किसी जांच तथा  विचारण या अन्य कार्यवाही के प्रयोजन से हाजिर होने वाले किसी परिवादी या साक्षी के उचित व्ययों के राज्य सरकार द्वारा दिए जाने के लिए आदेश दे सकता है।

See Also  भारतीय दंड संहिता धारा 146 से 153 तक का विस्तृत अध्ययन

धारा 313

इस धारा के अनुसार

अभियुक्त की परीक्षा करने की शक्ति को बताया गया है जिसके अनुसार

(1) प्रत्येक जांच या विचारण में जो की  इस प्रयोजन से कि अभियुक्त अपने विरुद्ध साक्ष्य में प्रकट होने वाली किन्हीं परिस्थितियों का स्वयं स्पष्टीकरण कर सके,

न्यायालय-

(क) किसी प्रक्रम में, अभियुक्त को पहले से चेतावनी दिए बिना, उससे ऐसे प्रश्न कर सकता है जो न्यायालय आवश्यक समझे ;

(ख) अभियोजन के साक्षियों की परीक्षा किए जाने के पश्चात् और अभियुक्त से अपनी प्रतिरक्षा करने की अपेक्षा किए जाने के पूर्व उस मामले के बारे में उससे साधारणतया प्रश्न करेगा :

परन्तु किसी समन-मामले में, जहां न्यायालय ने अभियुक्त को वैयक्तिक हाजिरी से अभिमुक्ति दे दी है, वहां वह खंड (ख) के अधीन उसकी परीक्षा से भी अभिमुक्ति दे सकता है ।

(2) जब अभियुक्त की उपधारा (1) के अधीन परीक्षा की जाती है तब उसे कोई शपथ न दिलाई जाएगी ।

(3) अभियुक्त ऐसे प्रश्नों के उत्तर देने से इंकार करने से या उसके मिथ्या उत्तर देने से दंडनीय न हो जाएगा ।

(4) अभियुक्त द्वारा दिए गए उत्तरों पर उस जांच या विचारण में विचार किया जा सकता है और किसी अन्य ऐसे अपराध की, जिसका उसके द्वारा किया जाना दर्शाने की उन उत्तरों की प्रवृत्ति हो, किसी अन्य जांच या विचारण में ऐसे उत्तरों को उसके पक्ष में या उसके विरुद्ध साक्ष्य के तौर पर रखा जा सकता है ।

 (5) न्यायालय ऐसे सुसंगत प्रश्न तैयार करने में, जो अभियुक्त से पूछे जाने हैं। तो  अभियोजक और प्रतिरक्षा काउंसेल की सहायता ले सकेगा और न्यायालय इस धारा के पर्याप्त अनुपालन के रूप में अभियुक्त द्वारा लिखित कथन फाइल किए जाने की अनुज्ञा दे सकेगा ।

धारा 314

इस धारा के अनुसार मौखिक बहस और बहस का ज्ञापन को बताया गया है। जिसके अनुसार —
(1) कार्यवाही का कोई पक्षकार, अपने साक्ष्य की समाप्ति के पश्चात् यथाशक्य शीघ्र संक्षिप्त मौखिक बहस कर सकता है और अपनी मौखिक बहस, यदि कोई हो, पूरी करने के पूर्व, न्यायालय को एक ज्ञापन दे सकता है जिसमें उसके पक्ष के समर्थन में तर्क संक्षेप में और सुभिन्न शीर्षकों में दिए जाएंगे, और ऐसा प्रत्येक ज्ञापन अभिलेख का भाग होगा।
(2) ऐसे प्रत्येक ज्ञापन की एक प्रतिलिपि उसी समय विरोधी पक्षकार को दी जाएगी।
(3) कार्यवाही का कोई स्थगन लिखित बहस फाइल करने के प्रयोजन के लिए तब तक नहीं दिया जाएगा जब तक न्यायालय ऐसे कारणों से, जो लेखबद्ध किये जाएंगे, ऐसा स्थगन मंजूर करना आवश्यक न समझे।
(4) यदि न्यायालय की यह राय है कि मौखिक बहस संक्षिप्त या सुसंगत नहीं है तो वह ऐसी बहसों को विनियमित कर सकता है।

See Also  (सीआरपीसी) दंड प्रक्रिया संहिता धारा 294 से धारा 299  तक का विस्तृत अध्ययन

धारा 315

इस धारा के अनुसार अभियुक्त व्यक्ति का सक्षम साक्षी होना बताया गया है। जिसके अनुसार
(1) कोई व्यक्ति, जो किसी अपराध के लिए किसी दण्ड न्यायालय के समक्ष अभियुक्त है, प्रतिरक्षा के लिए सक्षम साक्षी होगा और अपने विरुद्ध या उसी विचारण में उसके साथ आरोपित किसी व्यक्ति के विरुद्ध लगाए गए आरोपों को नासाबित करने के लिए शपथ पर साक्ष्य दे सकता है:
परन्तु –
(क)
वह स्वयं अपनी लिखित प्रार्थना के बिना साक्षी के रूप में न बुलाया जाएगा,
(ख) उसका स्वयं साक्ष्य न देना पक्षकारों में से किसी के द्वारा या न्यायालय द्वारा किसी टीका टिप्पणी का विषय न बनाया जायगा और न उसे उसके, या उसी विचारण में उसके साथ आरोपित किसी व्यक्ति के विरुद्ध कोई उपधारणा ही की जाएगी।
(2) कोई व्यक्ति जिसके विरुद्ध किसी दण्ड न्यायालय धारा 98, या धारा 107, या धारा 108, या धारा 109 या धारा 110 के अधीन या अध्याय 9 के अधीन या फिर
अध्याय 10 के भाग ख के अनुसार और  भाग ग या भाग घ के अधीन कार्यवाही संस्थित की जातीहै।  ऐसी कार्यवाही में अपने आपको साक्षी के रूप में पेश कर सकता है :
परन्तु धारा 108, धारा 109 या धारा 110 के अधीन कार्यवाही में ऐसे व्यक्ति द्वारा साक्ष्य न देना पक्षकारों में से किसी के द्वारा या न्यायालय द्वारा किसी टीका-टिप्पणी का विषय नहीं बनाया जाएगा और न उसे उसके या किसी अन्य व्यक्ति के विरुद्ध जिसके विरुद्ध उसी जांच में ऐसे व्यक्ति के साथ कार्यवाही की गई है, कोई उपधारणा ही की जाएगी।

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