इससे पहले हमने आपको धारा 1 से 5 तक समझाया है। आपने अगर धारा 1 से 5 नही पढ़ा हैं। तो कृपया पहले उसको पढ़ लीजिये। इससे आपको समझने मे आसानी होगी। यह आप CrPC टैग मे जाकर देख सकते है।
धारा 5
यदि उस समय कोई स्पेशल पावर या स्पेशल नियम बताया गया हो तो दंड प्रक्रिया संहिता लागू नही होगा जबकि वही स्पेशल रुल लागू होगा।
जैसा की आपको पता ही होगा contempt of कोर्ट 2 प्रकार से होता है।
सिविल और क्रिमिनल कोर्ट
Contempt of कोर्ट मे हाइ कोर्ट मे स्पेशल jurisdiction मिला हुआ हैं । इसका क्षेत्र अलग किया गया हैं। contempt की प्रोसीडिंग इस प्रकार होगा ।
इसमे बताया गया है की दंड संहिता कब और कहा लागू नही होगा । इसमे बताया गया हैं की जब कोई स्पेशल कोर्ट बना दी गयी हो , या स्पेशल पावर दिया गया हो , या स्पेशल नियम बनाए गए हो तो जांच ,अन्वेषण उस अनुसार होगा ।
दंड संहिता एक लोचदार प्रडाली हैं और यदि कोई प्रावधान लाना है तो दंड संहिता को परिवर्तित करने की आवश्यकता नही हैं बल्कि यह अन्य धाराओ को उसमे समाहित कर लेती है।
धारा 6
दंड प्रक्रिया संहिता के अनुसार क्रिमिनल कोर्ट मे कौन कौन से कोर्ट आते है। इसमे सबसे पहले हाइ कोर्ट आता हैं इसके अलावा स्पेशल कोर्ट आता हैं, एससीएसटी ,पॉस्को आदि कोर्ट आते है। उसके बाद session कोर्ट आता हैं । और फिर फ़र्स्ट क्लास मैजिस्ट्रेट ,सेकंड क्लास मैजिस्ट्रेट आते है । कार्य पालिका मैजिस्ट्रेट आते है।
यहा बताया गया है की उच्च न्यायालय भी दंड न्यायालय मे आता हैं, उच्च न्यायालय और इसके अतिरिक्त session कोर्ट आता हैं इसमे additional और assistance कोर्ट आता है।
और फ़र्स्ट क्लास मैजिस्ट्रेट डिस्ट्रिक मे बैठता हैं। और मेट्रोपोलिटन एरिया मे मेट्रोपोलिटन मैजिस्ट्रेट आता है। और न्यायिक मैजिस्ट्रेट आता हैं । यहा डाइरैक्ट मैटर फ़र्स्ट मैजिस्ट्रेट के पास जाता है सीजेएम एक होते हैं और एससीजेएम कई हो सकते है।
चीफ मेट्रोपॉलिटन मैजिस्ट्रेट और additional मैजिस्ट्रेट होते हैं। और फिर कार्यपालक मैजिस्ट्रेट होता है। यह कलेक्टर लेवल के होते है। जब यह जुड़ीशियल मैटर देखते है तो इनका नाम एक्सिकिटिव मैजिस्ट्रेट हो जाते हैं। कलेक्टर जब जुड़ीशियल मैटर देखते हैं तो वह एक्सिकिटिव मैजिस्ट्रेट हो जाते है और जब सिविल मैटर देखते है तब उनको डिस्ट्रिक मैजिस्ट्रेट कहा जाएगा।
धारा 7
दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 7 के अनुसार प्रत्येक राज्य मे एक session खंड होगा या फिर उसमे session खंड होगा । या तो वह खुद जिला होगा या फिर उसके अंदर कई जिले होंगे। प्रतेयक महानगर मे एक session खंड और एक जिला जरूर होगा। राज्य सरकार उसमे परिवर्तन कर सकती है।
राज्य सरकार उच्च न्यायालय से संपर्क करके किसी जिले को उपखंड मे विभाजित कर सकती है, ताकि न्याय व्यवस्था को सुचारु रूप से चलाया जा सके। और वहा न्यायालय की स्थापना कर सकती है। और उनकी सीमाओ मे भी परिवर्तन कर सकती है। राज्य सरकार न्याय पालिका मे दखल नही दे सकती है पर session न्यायालय की स्थापना कर सकती है।
वर्तमान दंड प्रक्रिया जैसे बने है वैसे बने रहेंगे राज्य सरकार उच्च न्यायालय से परामर्श लेकर सीमाओ मे परिवर्तन कर सकता है।
धारा 8
दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 8 महानगर क्षेत्र को बताती हैं। यह न्याय व्यवस्था के अनुसार महानगर को बताया गया है। दंड प्रक्रिया 1973 मे इस धारा को जोड़ा गया है। cpc मे भी इसको बताया गया हैं।
महानगर धारा 8 सीआरपीसी मे भी इसको बताया गया है। और एस्को नए रूप मे लागू किया गया । राज्य सरकार द्वारा किसी अधिसूचना द्वारा बताई गयी तारीख से ऐसा नगर या क्षेत्र जिसकी जन संख्या 10 लाख से अधिक होगी वह महानगर माना जाएगा।1973 मे मुंबई,कलकत्ता ,महारास्ट आदि को शामिल किया गया ।
राज्य सरकार अधिसूचना द्वारा महानगर क्षेत्र को कम या जादा कर सकती है पर ऐसा भी नही कर सकती की उसकी जनसंख्या 10 लाख से कम हो जाये। जहा भी किसी क्षेत्र को महानगर घोसित होने के बाद जनसंख्या 10 लाख से कम रह गयी और अधिसूचना घोसित कर दी गयी तो वह महानगर नही रहेगा । परंतु अपील विचारण जो चल रहे हैं उसका निवारण ऐसे होगा जैसे वह महानगर क्षेत्र ही हो।
जहा राज्य सरकार उप धारा 3 के अधीन महानगर क्षेत्र की सीमाओ को कम करती है तो ऐसे विचारण जांच अपील इस प्रक्रिया के दौरान ऐसे निपटाई जाएगी जैसे कोई परिवर्तन न हुआ हो।
धारा 9
दंड प्रक्रिया संहिता के अनुसार धारा 9 मे सेसन कोर्ट के बारे मे बताया गया है। इसमे बताया गया है कि सेसन कोर्ट क्या होता है और कंहा कहा होता है। राज्य सरकार सभी खंड मे कम से कम एक सेसन न्यायालय की स्थापना करेगा।
सेसन न्यायालय मे एक न्यायिक जज आवश्यक है। इसलिए प्रत्येक जिले मे एक सेसन न्यायालय की स्थापना जरूरी है। इसमे अन्य सेसन कोर्ट होता है। और उच्च न्यायालय इसमे न्यायधीश का चुनाव करते हैं। न्यायालय के अन्य सेसन मे भी उच्च न्यायालय द्वारा न्यायधीश का चुनाव हो सकता है। इसमे एक पीठासीन न्यायधीश होता है जो उच्च न्यायालय की सहमति से नियुक्त किया जाता है।
दंड प्रक्रिया संहिता के अनुसार धारा 9 मे सेसन कोर्ट के बारे मे बताया गया है। इसमे बताया गया है कि सेसन कोर्ट क्या होता है और कंहा कहा होता है। राज्य सरकार सभी खंड मे कम से कम एक सेसन न्यायालय की स्थापना करेगा। सेसन न्यायालय मे एक न्यायिक जज आवश्यक है। इसलिए प्रत्येक जिले मे एक सेसन न्यायालय की स्थापना जरूरी है।
इसमे अन्य सेसन कोर्ट होता है। और उच्च न्यायालय इसमे न्यायधीश का चुनाव करते हैं। न्यायालय के अन्य सेसन मे भी उच्च न्यायालय द्वारा न्यायधीश का चुनाव हो सकता है। इसमे एक पीठासीन न्यायधीश होता है जो उच्च न्यायालय की सहमति से नियुक्त किया जाता है।
धारा 10
सेसन न्यायाधीश के अंतर्गत सहायक न्यायाधीश भी होते हैं ये सब न्यायाधीश सेसन के अंतर्गत आते हैं और यह जिले मे कार्य करते हैं। सहायक न्यायाधीश का कार्य भी क्षेत्र अनुसार बटा हुआ होता है। और यह सेसन न्यायालय के अंतर्गत ही आते है।
सेसन न्यायालय यदि कार्य का विभाजन करता है तो वह विधिपूर्ण और संहिता के अनुसार होना चाहिए। सेसन न्यायालय अपने अधिकार क्षेत्र मे ही सहायक न्यायालय के न्यायधीश को कार्य दे सकता है। यदि सेसन न्यायधीश कार्य की अधिकता या अनुपस्थित की वजह से कोई कार्य सहायक न्यायधीश को दे सकते है।
किसी प्रकार की अधीनता होने के कारण वह सहायक न्यायधीश को बोल सकता है या फिर उच्च न्यायालय मे आवेदन कर सकता है। जो मामले बहुत ही आवश्यक होता है। यदि सहायक न्यायधीश नही है तो मुख्य न्यायधीश उसको निपटाने की शक्ति रखती है।
इसमे वैधानिक रूप से निम्न परिवर्तन हुआ इसमे धारा 17 (3) दंड प्रक्रिया के पुरानी संहिता मे ये इसी रूप मे लिखित था। इसमे जिला मैजिस्ट्रेट के द्वरा सुनवाई करने का अधिकार था । इसमे अधिनस्थता को परिभाषित नही किया गया हैं । इसलिए इसमे इसको सामान्य तौर पर देखते हैं।