दण्ड प्रक्रिया संहिता धारा 82 और 83 तक का विस्तृत अध्ययन

जैसा कि आप सभी को ज्ञात होगा इससे पहले की पोस्ट मे दंड प्रक्रिया संहिता धारा 81 तक का विस्तृत अध्ययन करा चुके है यदि आपने यह धराये नही पढ़ी है तो पहले आप उनको पढ़ लीजिये जिससे आपको आगे की धराये समझने मे आसानी होगी।

धारा 82 –


इस धारा मे यह बताया गया है की-
इस धारा के अंतर्गत न्यायालय यह निर्देश दे सकती है की आरोपी को एक निश्चित समय और एक निश्चित स्थान पर हाजिर होना पड़ेगा। यदि व्यक्ति नही मिलता है तो उसको फरार माना जाएगा । यह धारा कहती है यदि कोई न्यायालय साक्ष्य लेने के बाद या साक्ष्य लेने से पहले यदि वह व्यक्ति फरार है तो यह बिस्वास किया जा सकता है की जिस व्यक्ति के खिलाफ वारंट जारी किया गया है वह नही मिल रहा तो वह अपने आप को छुपा रहा है।

और वह फरार कहाएगा। जिससे ऐसे वारंट का निष्पादन नहीं किया जा सकता तो ऐसे समय मे न्यायालय उसे या उपेक्षा करने वाली लिखित उद्घोषणा प्रकाशित कर सकता है। कि वह व्यक्ति विनिर्दिष्ट स्थान और विनिर्दिष्ट समय पर या निश्चित स्थान पर जो उद्घोषणा के प्रकाशन की तारीख से कम से कम तीस दिन के पश्चात का होगा और उसको न्याय्यलय के द्वारा आदेश होता है की हाजिर हो।


जब कोई व्यक्ति किसी अपराध करने के बाद अपने निवास स्थान अथवा अपने मूल स्थान से फरार हो जाता है। तब न्यायालय उसके फरार होने की सूचना देती है। और इसके पश्चात् वह सूचना से लेकर के तीस दिन तक का समय भी देती है। यदि कोई फरार व्यक्ति तीस दिन के अंदर न्यायालय में उपस्थित होता है। तो उसके खिलाफ आगे की कार्यवाही की जाती है।

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दंड प्रकिया संहिता की धारा82 के अंतर्गत यदि कोई व्यक्ति अपने किसी अपराध से बचने के लिए कही छिप जाता या कही भाग जाता है या उपस्थित नही होता । तो न्यायालय इस तरह से फरार व्यक्ति के खिलाफ लिखित रूप से उद्घोषणा देती है। और साथ न्यायालय के समक्ष उपस्थित होने के लिए एक निश्चित समय प्रदान करती है। यदि फरार व्यक्ति निश्चित समय पर उपस्थित नही होता है तो दंड प्रक्रिया संहिता 83 के अंतर्गत कुर्की जैसे आगे की कार्यवाही की जाती है।

धारा 83
इस धारा मे यह बताया गया है कि-
इस धारा 82 के अधीन उद्घोषणा जारी करने वाला न्यायालय जो कि ऐसे कारणों से, जो लिखा जाएगा या उसके खिलाफ उद्घोषणा जारी किए जाने के पश्चात् किसी भी समय, उद्घोषित व्यक्ति की जंगम या स्थावर अथवा दोनों प्रकार की किसी भी संपत्ति की कुर्की का आदेश दे सकता है।


परंतु यदि उद्घोषणा जारी करते समय न्यायालय का शपथपत्र द्वारा या अन्यथा यह समाधान हो जाता है। कि वह व्यक्ति जिसके संबंध में उद्घोषणा निकाली जाती है।


जिसमे अपनी समस्त संपत्ति या उसके किसी भाग का व्ययन करने वाला व्यक्ति हो या फिर उसके घर या परिवार से संबन्धित कोई व्यक्ति हो जो उसकी संपत्ति का उपभोग करता हो और इसके विरुद्ध हो ।


अथवा


वह व्यक्ति अपनी समस्त संपत्ति या उसके किसी भी भाग को उस न्यायालय की स्थानीय अधिकारिता से हटाने वाला होतो ऐसे दशा मे वह व्यक्ति उद्घोषणा जारी करने के साथ ही साथ कुर्की का आदेश दे सकता है।


ऐसा आदेश उस जिले में जिसमें वह दिया गया है। उस व्यक्ति की किसी भी संपत्ति की कुर्की न्याय्यलय के द्वारा प्राधिक्र्त की जाएगी। और उस जिले के बाहर की उस व्यक्ति की किसी संपत्ति की कुर्की तब प्राधिकृत करेगा और वह तब करेगा जब वह उस जिला मजिस्ट्रेट द्वारा जिसके जिले में ऐसी संपत्ति स्थित है। उसके द्वारा पृष्ठांकित कर दिया जाए।

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यदि वह संपत्ति जिसको कुर्क करने का आदेश दिया गया है। ऋण या अन्य जंगम संपत्ति हो, तो इस धारा के अधीन कुर्की कि जाएगी।
अभिग्रहण द्वारा की जाएगी अथवा रिसीवर की नियुक्ति द्वारा की जाएगी ।
उस उद्घोषित व्यक्ति को या उसके निमित्त किसी को भी उस संपत्ति का परिदान करने का प्रतिषेध करने वाले लिखित आदेश द्वारा की जाएगी ।


इन रीतियों में से सब या किन्हीं दो से की जाएगी। जो कि न्यायालय के द्वारा ठीक समझा गया हो।
यदि वह संपत्ति जिसको कुर्क करने का आदेश दिया गया है। जो स्थावर है तो इस धारा के अधीन कुर्की राज्य सरकार को राजस्व देने वाली भूमि की दशा में उस जिले के कलक्टर के माध्यम से की जाएगी जिसमें वह भूमि स्थित है। और अन्य सब दशाओं में-कब्जा लेकर की जाएगी अथवा रिसीवर की नियुक्ति द्वारा की जाएगी।

या फिर उद्घोषित व्यक्ति को या उसके निमित्त किसी को भी संपत्ति का किराया देने या उस संपत्ति का परिदान करने का प्रतिषेध करने वाले लिखित आदेश द्वारा की जाएगी ।


इन सभी विधि में से सब या किन्हीं दो से की जाएगी जैसा न्यायालय ठीक समझे। और यदि वह संपत्ति जिसको कुर्क करने का आदेश दिया गया है। जो कि जीवधन है या विनश्वर प्रकृति की है तो यदि न्यायालय उसको ठीक समझता है तो वह उसके तुरंत विक्रय का आदेश दे सकता है। और ऐसी दशा में विक्रय के आगम न्यायालय के आदेश के अधीन रहेंगे।


इसमे नियुक्त रिसीवर की शक्तियां कर्तव्य और दायित्व वे ही होंगे । जो सिविल प्रक्रिया संहिता अधीन नियुक्त रिसीवर के होते हैं।और यह शक्तिया सिविल प्रक्रिया संहिता के अनुसार रिसेवर को प्रदान की जाती है।

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इससे पहले की पोस्ट मे दंड प्रक्रिया संहिता धारा 81 तक का विस्तृत अध्ययन करा चुके है यदि आपने यह धराये नही पढ़ी है तो पहले आप उनको पढ़ लीजिये जिससे आपको आगे की धराये समझने मे आसानी होगी।


यदि आपको इन धारा को समझने मे कोई परेशानी आ रही है। या फिर यदि आप इससे संबन्धित कोई सुझाव या जानकारी देना चाहते है।या आप इसमे कुछ जोड़ना चाहते है।या फिर आपको इन धारा मे कोई त्रुटि दिख रही है तो उसके सुधार हेतु भी आप अपने सुझाव भी भेज सकते है।

हमारी Hindi law notes classes के नाम से video भी अप लोड हो चुकी है तो आप वहा से भी जानकारी ले सकते है। कृपया हमे कमेंट बॉक्स मे जाकर अपने सुझाव दे सकते है।

3 thoughts on “दण्ड प्रक्रिया संहिता धारा 82 और 83 तक का विस्तृत अध्ययन”

  1. 82/83 दोनो की कारवाई एक साथ की जा सकती है क्या अलग अलग करनी पडेगी दुसरी बात दोनो सीआरपीसी सेक्शन की कारवाई चालू हो गई है लेकिन आरोपी को फिर भी पता नही है उस वक्त क्या निर्णय लिया जा सकता है क्या जमानत मिल सकती है क्या तीन वर्षे कम सजा वाले केस मे कोर्ट प्रक्रिया आपना सकता है और जब यह प्रक्रिया चालू होती है तो इसे रोकने का तरीका क्या होता है

    • गिरफ्तारी का वारंट जारी करते समय न्यायालय द्वारा कानून की इस स्थिति पर विचार किया जाना चाहिए। इसका मतलब यह है कि एक व्यक्ति को न केवल एक गैर-जमानती प्रकृति के अपराध का आरोपी होना चाहिए, बल्कि अपनी गिरफ्तारी से बचता हुआ भी पाया जाना चाहिए।
      अग्रिम जमानत के लिए आवेदन करे। फरार अभियुक्त कोर्ट मे हाजिर हो जाए। तो कुर्की रोक उस पर केस चलेगा। धारा 85 crpc मे इसका प्रावधान हैं

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