जैसा कि आप सभी को ज्ञात होगा इससे पहले की पोस्ट मे दंड प्रक्रिया संहिता धारा 82 और 83 तक का विस्तृत अध्ययन करा चुके है यदि आपने यह धाराएं नहीं पढ़ी है तो पहले आप उनको पढ़ लीजिये जिससे आपको आगे की धाराएं समझने मे आसानी होगी।
धारा 84
यदि धारा 83 के अधीन कुर्क की गई किसी संपत्ति के बारे में यह कहा गया है कि उस कुर्की की तारीख से छह मास के भीतर कोई व्यक्ति जो उद्घोषित व्यक्ति सेअलग है। और इस आधार पर दावा या उसके कुर्क किए जाने पर आपत्ति करता है कि दावेदार या आपत्तिकर्ता का उस संपत्ति में कोई हित है और ऐसा हित धारा 83 के अधीन कुर्क नहीं किया जा सकता तो उस दावे या आपत्ति की जांच की जाएगी और उसे पूर्णतः या कुछ भाग को मंजूर या मंजूर किया जा सकता है ।
परंतु इस उपधारा द्वारा नियत अवधि के अंदर किए गए किसी दावे या आपत्ति को दावेदार या आपत्तिकर्ता की मृत्यु हो जाने की दशा में उसके विधिक प्रतिनिधि द्वारा चालू रखा जा सकता है।
83 (2) उपधारा (1) के अधीन दावे या आपत्तियां उस न्यायालय के अंतर्गत जिसके द्वारा कुर्की का आदेश जारी किया गया है ऐसी संपत्ति के बारे में जो धारा 83 की उपधारा (2) के अधीन पृष्ठांकित आदेश के अधीन कुर्क की गई है तो उस जिले के अंदर जिसमें कुर्की की जाती है। वह मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट के न्यायालय में की जा सकती है।
प्रत्येक ऐसे दावे या आपत्ति की जांच उस न्यायालय द्वारा की जाएगी जिसमें वह किया गया था।
परंतु यदि वह मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट के न्यायालय में किया गया था तो वह उसे निपटारे के लिए अपने अधीनस्थ किसी मजिस्ट्रेट को दे सकता है।
यदि कोई व्यक्ति जिसके दावे या आपत्ति को उपधारा (1) के अधीन आदेश द्वारा पूर्णत: या कुछ भाग को नामंजूर कर दिया गया है। ऐसे आदेश की तारीख से एक वर्ष की अवधि के अंदर उस अधिकार को दिखाना होगा ऐसा करने के लिए जिसका दावा वह विवादित संपत्ति के अधीन वाद संस्थित कर सकता है। किंतु वह आदेश के यदि कोई हो तो ऐसे परिणाम के अधीन रहते हुए निश्चायक होगा।
धारा 85
इस धारा के अनुसार कुर्क की हुई संपत्ति को निर्मुक्त करना और उस संपत्ति को विक्रय और वापस करना-
यदि उद्घोषित व्यक्ति उद्घोषणा में निश्चित समय के अंदर हाजिर हो जाता है तो न्यायालय संपत्ति को कुर्की से निर्मुक्त करने का आदेश देगा ।
यदि उद्घोषित व्यक्ति उद्घोषणा में निश्चित समय के अंदर हाजिर नहीं होता है तो कुर्क संपत्ति राज्य सरकार के अधीन रहती है। और उसका विक्रय कुर्की की तारीख से छह मास का अवसान हो जाने पर तथा धारा 84 के अधीन किए गए किसी दावे या आपत्ति का उस धारा के अधीन निपटारा हो जाने पर ही किया जा सकता है ।यदि न्यायालय के विचार में विक्रय करना स्वामी के फायदे के लिए होगा तो इन दोनों दशाओं में से कभी भी न्यायालय इसको उचित समझे तो इसका विकय कर सकती है।
यदि कुर्की की तारीख से दो वर्ष के अंदर कोई व्यक्ति जिसकी संपत्ति उपधारा (2) के अधीन राज्य सरकार के व्यवनाधीन तो उस न्यायालय के समक्ष जिसके आदेश से वह संपत्ति कुर्क की गई थी। या उस न्यायालय के समक्ष जिसके ऐसा न्यायालय अधीनस्थ है। वह व्यक्ति स्वेच्छा से हाजिर हो जाता है या पकड़ कर लाया जाता है।
और उस न्यायालय को समाधानप्रद रूप में यह साबित कर देता है। कि वह वारंट के निष्पादन से बचने के प्रयोजन से फरार नहीं हुआ या नहीं छिपा और यह कि उसे उद्घोषणा की ऐसी सूचना नहीं मिली थी जिससे वह उसमें निश्चित समय के अंदर हाजिर हो सकता। तो ऐसी संपत्ति का या यदि वह विक्रय कर दी गई है । तो विक्रय और यदि उसका केवल कुछ भाग विक्रय किया गया है तो ऐसे विक्रय और कुर्की के परिणामस्वरूप उपगत सब खर्चों को उसमें से चुका कर बाकी सब उसको परिदान कर दिया जाएगा ।
धारा 86
इस धारा मे यह बताया गया है की यदि कुर्क संपत्ति का आवेदन स्वीकार नही किया गया है तो उसकी अपील कैसे कर सकते है। यदि किसी व्यक्ति ने अपील की की संपत्ति वापस कर दीजिये और न्यायालय इसको मना कर देता है तो यह धारा इसपर लागू होगी। वह व्यक्ति जो धारा 85 के तहत व्यथित व्यक्ति है वह समान्य न्यायालय मे कुर्क के संबंध कर सकता है यह सिविल न्यायालय मे अपील नही किया जा सकता है। सिविल न्यायालय मे इस संबंध मे कोई अपील नही कर दंड न्यायालय मे इसकी अपील की जा सकती है।
धारा 87
इस धारा मे यह बताया गया है की यह धारा बताती है की समन के स्थान पर वारंट का जारी किया जाना । न्यायालय के द्वारा समन जारी करना यदि न्यायालय को यह लगता है की कोई व्यक्ति समन नही लेगा या समन से बचने का प्रयास करेगा या समन लेने से पहले वह भाग जाएगा तो न्यायालय समन के स्थान पर वारंट जारी कर देगा।
ऐसा न्यायालय जिसको इस धारा के अनुसार सशक्त बनाया गया है वह समन जारी करने के स्थान पर वारंट जारी कर देगा जब वह निम्न बातो का ध्यान रखता है जब न्यायालय को ऐसा कारण दिखता है ज्वाह व्यक्ति फरार हो गया है या उसके फरार होने की संभावना है यह समन जारी करने से पहले या बाद मे ह सकता है।
यदि वह समन जारी करने के बाद नियत समय पर हाजिर नही होता है।
न्याय्यलय यह भी देखेगा की व्यक्ति क्यो नही उपस्थित हुआ है और समन की तामिल मिल गयी हो और जब हाजिर न होने का उचित कारण नही हैऔर कोई दस्तावेज़ नही मिलता है तो यह मना जाएगा की वह व्यक्ति बचने का प्रयाश कर रहा है तब न्याय्यलय वारंट जारी कर सकता है।
यदि आपको इन धारा को समझने मे कोई परेशानी आ रही है। या फिर यदि आप इससे संबन्धित कोई सुझाव या जानकारी देना चाहते है।या आप इसमे कुछ जोड़ना चाहते है।या फिर आपको इन धारा मे कोई त्रुटि दिख रही है तो उसके सुधार हेतु भी आप अपने सुझाव भी भेज सकते है।
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