जैसा कि आप सभी को ज्ञात होगा इससे पहले की पोस्ट मे हमने भारतीय साक्ष्य अधिनियम के अनुसार धारा 10 से 14 तक का अध्ययन किया था अगर आप इन धाराओं का अध्ययन कर चुके है। तो यह आप के लिए लाभकारी होगा । यदि आपने यह धाराएं नही पढ़ी है तो पहले आप उनको पढ़ लीजिये जिससे आपको आगे की धाराएं समझने मे आसानी होगी।
धारा 20
इस धारा के अनुसार वाद के पक्षकार द्वारा अभिव्यक्त रूप से निर्दिष्ट व्यक्तियों द्वारा स्वीकृति के बारे मे बताया गया है।
ऐसे कथन जो उन व्यक्तियों द्वारा किए गए हैं जिनको वाद के किसी पक्षकार ने किसी विवादग्रस्त विषय के बारे में जानकारी के लिए अभिव्यक्त रूप से निर्दिष्ट किया है। वह स्वीकृत हैं।
उदाहरण
यह प्रश्न है कि क्या जतिन के द्वारा जमेश को बेचा हुआ घोड़ा अच्छा है। जमेश से जतिन कहता है कि “जाकर जम्बो से पूछ लो, जम्बो इस बारे में सब कुछ जानता है।जम्बो का कथन स्वीकृति मानी जाती है।
धारा 21
इस धारा के अनुसार स्वीकृतियों को न मानने वाले वाले व्यक्तियों के विरुद्ध और उनके द्वारा या उनकी और से साबित किया जाना बताया गया है इसके अनुसार स्वीकृत उन्हें करने वाले व्यक्ति के या उसके हित प्रतिनिधि के विरुद्ध सुसंगत है। और यह साबित की जा सकती है। किन्तु उन्हें करने वाले व्यक्ति द्वारा या उसकी ओर से या उसके हित प्रतिनिधि द्वारा निम्न दशाओं मे ही उन्हे साबित किया जा सकता है।
कोई स्वीकृति उसे करने वाले व्यक्तियों के द्वारा या उसकी ओर से तब साबित की जा सकती है। जबकि वह इस प्रकृति की है कि यदि उसे करने वाला व्यक्ति मर गया होता। तो वह अन्य व्यक्तियों के बीच धारा 32 के अधीन सुसंगत होती।
कोई स्वीकृति उसे करने वाले व्यक्ति द्वारा या उसकी ओर से तब साबित की जा सकेगी । जब तक कि वह मन की या शरीर की सुसंगत या विवाद्य विसी दशा के अस्तित्व का ऐसा कथन है। जो उस समय या उसके लगभग किया गया था जब मन की या शरीर की ऐसी दशा विद्यमान थी। और ऐसे आचरण के साथ है जो उसी असत्यता को अधिसम्भाव्य कर देता है।
कोई ऐसे स्वीकृति उसे करने वाले व्यक्ति द्वारा या उसकी ओर से तब साबित की जा सकेगी । जब तक कि वह स्वीकृति के रूप में नहीं किन्तु अन्यथा सुसंगत है।
उदाहरण –
कुन्दन और चन्दन के बीच यह है कि अमुक विलेख कूटरचित है या नहीं। कुन्दन प्रतिज्ञात करता है कि वह असली है। और चन्दन प्रतिज्ञात करता है कि वह कूटरचित है।
चन्दन का कोई कािन कि विलेख असली है। कुन्दन साबित कर सकेगा तथा कुन्दन का कोई कथन कि विलेख कूटरचित है। यह चन्दन साबित कर सकेगा। किन्तु कुन्दन अपना यह कथन कि विलेख असली है। साबित नहीं कर सकेगा और न चन्दन ही अपना यह कथन कि विलेख कूटरचित है। साबित कर सकेगा।
चन्दन किसी पोत के कप्तान कुन्दन का विचार उस पात को व्यक्त करने के लिए किया जाता है।यह दर्शित करने के लिए साक्ष्य दिया जाता है कि पोत अपने उचित मार्ग से बाहर ले जाया गया था।
कुन्दन अपने कारोबार के मामले अनुक्रम में अपने द्वारा रखी जाने वाली यह पुस्तक पेश करता है जिसमें वे संप्रेक्षण दर्शित हैं। उनका जिनके बारे में यह अभिकथित है कि वे दिन प्रतिदिन किए गए थे और जिनसे उपदर्शित है । कि पोत अपने उचित मार्ग से बाहर नहीं ले जाया गया था। क इन कथनों को साबित कर सकेगा क्योंकि यदि उसी मृत्यु हो गई होती तो वे कथन अन्य व्यक्तियों के अीच धारा 32 खण्ड (2) के अधीन ग्राह्य होते।
कुन्दन अपने द्वारा कलकत्ता में किए गए अपराध का अभियुक्त है।तथा वह अपने द्वारा लिखित और उस दिन लाहौर में दिनांकित और उसी दिन का लाहौर डाक चिन्ह धारण करने वाला पत्र पेश करता है।
पत्र की तारीख में कथन ग्राह्य है क्योंकि यदि कुन्दन की मृत्यु हो गई होती तो वह धारा 32, खण्ड (2) के अधीन ग्राह्य होता।
कुन्दन चुराये हुए माल को यह जानते हुए कि वह चुराया हुआ है। प्राप्त करने का अभियुक्त है। वह इसको यह साबित करने की प्रस्थापना करता है कि उसने उसे उसके मूल्य से कम में बेचने से इन्कार किया था।
यद्यपि ये स्वीकृति हैं ।फिर भी कुन्दन इन कथनों को साबित कर सकेगा क्योंकि ये विवाद्यक तथ्य से प्रभावित उसके आचरण के स्पष्टीकरण हैं।
धारा 22
इस धारा मे यह बताया गया है की दस्तावेजों की अंतर्वस्तु के बारे में मौखिक स्वीकृति कब सुसंगत होंगी।
जब किसी दस्तावेज की अन्तर्वस्तु के बारे में मौखिक स्वीकृति तब तक सुसंगत नहीं होतींहै। यदि और जब तक उन्हें साबित करने की प्रस्थापना करने वाला पक्षकार यह दर्शित न कर दे कि ऐसे दस्तावेज की अन्तर्वस्तुओं का द्वितीयक साक्ष्य देने का वह इसके बाद दिए हुए नियमों के अधीन हकदार है। अथवा जब तक पेश की गई दस्तावेज का असली होना प्रश्नगत न हो।
इसके अनुसार स्वीकृति एक मौखिक या दस्तावेजी अथवा इलेक्ट्रॉनिक रूप में अंतर्विष्ट कथन है। जो किसी विवाद्यक तथ्य या सुसंगत तथ्य के बारे में कोई अनुमान को इंगित करता है । और जो ऐसे व्यक्तियों में से किसी के द्वारा और ऐसी परिस्थितियों में किया गया है। जो इसके बाद वर्णित है।
धारा 23
इस धारा के अनुसार सिविल मामलों में स्वीकृति कब सुसंगत होंगी यह बताया गया है।
इसमे कहा गया है की यदि सिविल मामलों में कोई भी स्वीकृति सुसंगत नहीं है। यदि वह या तो इस अभिव्यक्त शर्त पर की गई हो कि उसका साक्ष्य नहीं दिया जाएगा या ऐसी परिस्थितियों के अधीन दी गई हो जिनसे न्यायालय यह अनुमान कर सके कि पक्षकार इस बात पर परस्पर सहमत हो गए थे कि उसका साक्ष्य नहीं दिया जाना चाहिए।
स्पष्टीकरण-
इस धारा की कोई भी बात किसी बैरिस्टर, प्लीडर, अटॉर्नी या वकील को किसी ऐसी बात का साक्ष्य देने से छूट देने वाली नहीं मानी जाएगी जिसका साक्ष्य देने के लिए धारा 126 के अधीन उसे विवश किया जा सकता है।
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