जैसा कि आप सभी को ज्ञात होगा इससे पहले की पोस्ट मे हमने भारतीय साक्ष्य अधिनियम के अनुसार धारा 10 से 14 तक का अध्ययन किया था अगर आप इन धाराओं का अध्ययन कर चुके है। तो यह आप के लिए लाभकारी होगा । यदि आपने यह धाराएं नही पढ़ी है तो पहले आप उनको पढ़ लीजिये जिससे आपको आगे की धाराएं समझने मे आसानी होगी।
धारा 15-
इस धारा के अनुसार कोई भी कार्य जो किया गया वह आकस्मिक था या फिर साशय था यह बताया गया है।
इस धारा के अनुसार जब प्रश्न यह उठता है कि कार्य आकस्मिक या साशय था। या किसी विशिष्ट ज्ञान या आशय से किया गया था। तब यह तथ्य कि ऐसा कार्य समरूप घटनाओं की आवली का भाग होता है । जिनमें से हर एक घटना के साथ वह कार्य करने वाला व्यक्ति सम्पृक्त था या फिर सुसंगत है।
उदाहरण –
राम पर यह अभियोग है। कि अपने गृह के बीमे का धन अभिप्राप्त करने के लिए उसने अपने घर को जला दिया।
ये तथ्य कि क कई गृहों में एक के पश्चात् दूसरे में रहा जिनमें से हर एक का उसने बीमा कराया। जिनमें से हर एक में आग लगी और जिन अग्निकांडों में से हर एक के उपरान्त राम को किसी भिन्न बीमा कार्यालय से बीमा धन मिला। इस नाते सुसंगत हैं कि उनसे यह दर्शित होता है कि वे अग्निकांड आकस्मिक नहीं थे।
भगत के ऋणियों से धन प्राप्त करने के लिए राम नियोजित है। राम का यह कर्तव्य है कि बही में अपने द्वारा प्राप्त राशियां दर्शित करने वाली प्रविष्टि करे । वह एक प्रविष्टि करता है। जिससे यह दर्शित होता है। कि किसी विशिष्ट अवसर पर उसे वास्तव में प्राप्त राशि से कम राशि प्राप्त हुई।
प्रश्न यह है कि क्या यह मिथ्या प्रविष्टि आकस्मिक थी या साशय ।
ये तथ्य कि उसी बही में राम द्वारा की हुई अन्य प्रविष्टियां मिथ्या हैं और कि हर एक अवस्था में मिथ्या प्रविष्टि क के पक्ष में है सुसंगत है।
भगत को कपटपूर्वक कूटकृत रुपया प्रदान करने का राम अभियुक्त है।
प्रश्न यह है कि क्या रुपए का परिदान आकस्मिक था।
ये तथ्य किभगत को परिदान के तुरन्त पहले या पीछे राम ने सीता ,माला और पूंगा को कूटकृत रुपए परिदान किए थे इस नाते सुसंगत हैं कि उनसे यह दर्शित होता है कि भगत को किया गया परिदान आकस्मिक नहीं था।
धारा 16-
इस धारा के अनुसार कारोबार के अनुक्रम का अस्तित्व कब सुसंगत होता है यह बताया गया है।
जबकि इसमें प्रश्न यह बनता है कि क्या कोई विशिष्ट कार्य किया गया था, तब कारोबार के ऐसे किसी भी अनुक्रम का अस्तित्व जिसके अनुसार वह कार्य स्वभावतः किया जाता क्या वह सुसंगत तथ्य है।
उदाहरण –
एक विशिष्ट पत्र प्रेषित किया गया था।ये तथ्य कि कारोबार का यह साधारण अनुक्रम था कि वे सभी पत्र जो किसी खास स्थान में रख दिए जाते थे। डाक में डाले जाने के लिए ले जाए जाते थे और कि वह पत्र उस स्थान में रख दिया गया था क्या वह सुसंगत है।इसमे यह प्रश्न उठाया गया है।
प्रश्न यह है कि क्या एक विशिष्ट पत्र राम को मिला। ये तथ्य कि वह सम्यक् अनुक्रम में डाक में डाला गया था। और वह पुनः प्रेषण केन्द्र द्वारा लौटाया नहीं गया था। क्या वह सुसंगत है।
धारा 17-
इस धारा मे स्वीकृति की परिभाषा बताई गयी है।
इसके अनुसार स्वीकृति एक मौखिक या दस्तावेजी अथवा इलेक्ट्रॉनिक रूप में अंतर्विष्ट कथन है। जो किसी विवाद्यक तथ्य या सुसंगत तथ्य के बारे में कोई अनुमान को इंगित करता है । और जो ऐसे व्यक्तियों में से किसी के द्वारा और ऐसी परिस्थितियों में किया गया है। जो एतस्मिन पश्चात वर्णित है।
धारा 18-
इस धारा के अनुसार स्वीकृति कार्यवाही के पक्षकार या उसके अभिकर्ता द्वारा किए गए कथन के बारे मे बताया गया है।
इस धारा के अनुसार ये वे कथन या स्वीकृति हैं। जिन्हें कार्यवाही के किसी पक्षकार के द्वारा किया गया हो । या ऐसे किसी पक्षकार के ऐसे किसी अभिकर्ता ने किया हो जिसे मामले की परिस्थितियों में न्यायालय उन कथनों को करने के लिए उस पक्षकार द्वारा अभिव्यक्त या विवक्षित रूप से प्राधिकृत किया हुआ मानता है।
प्रतिनिधिक रूप से दानकर्ता द्वारा जब कोई वाद के ऐसे पक्षकारों द्वारा जो प्रतिनिधिक हैसियत में वाद ला रहे हों। या जिन पर प्रतिनिधिक हैसियत में बाद लाया जा रहा हो। या फिर ऐसे किए गए कथन जब तक कि वे उस समय न किए गए हों जबकि उनको करने वाला पक्षकार वैसी हैसियत धारण करता था। तो वह स्वीकृति नहीं हैं।
वे कथन स्वीकृति होती हैं। जो कि –
किसी विषयवस्तु में हितबद्ध पक्षकार द्वारा ऐसे व्यक्तियों द्वारा किए गए हैं। जिनका कार्यवाही की विषयवस्तु में कोई साम्पत्तिक या धन संबंधी हित है । और जो इस प्रकार हितबद्ध व्यक्तियों की हैसियत में वह कथन करते हैं।
अथवा
यह उस व्यक्ति द्वारा जिससे हित व्युत्पन्न हुआ हो ऐसे व्यक्तियों द्वारा किए गए होते हैं। जिनसे वाद के पक्षकारों का वाद की विषयवस्तु में अपना हित व्युत्पन्न हुआ है। यदि वे कथन उन्हें करने वाले व्यक्तियों के हित के चालू रहने के दौरान में किए गए हैं।
धारा 19-
इस धारा के अनुसार उन व्यक्तियों द्वारा स्वीकृत जिनकी स्थिति वाद के पक्षकारों के विरुद्ध साबित की जानी चाहिए बताया गया है।
इस धारा के अनुसार ऐसे कथन जो कि उन व्यक्तियों द्वारा किए गए हैं । जिनकी वाद के किसी पक्षकार के विरुद्ध स्थिति या दायित्व साबित करना आवश्यक है। वे स्वीकृति हैं। ऐसे कथन ऐसे व्यक्तियों द्वारा या उन पर लाए गए वाद में ऐसी स्थिति या दायित्व के संबंध में ऐसे व्यक्तियों के विरुद्ध सुसंगत होते और यदि वे उस समय किए गए हों। जबकि उन्हें करने वाला व्यक्ति ऐसी स्थिति ग्रहण किए हुए है या ऐसे दायित्व के अधीन होता है।
उदाहरण
भगत के लिए भाटक संग्रह का दायित्व राम लेता है। सीता द्वारा भगत को शोध्य भाटक संग्रह न करने के लिए राम पर भगत वाद लाता है। राम इस बात का प्रत्याख्यान करता है कि सीता से भगत को भाटक देय था।
सीता द्वारा यह कथन कि उस पर भगत को भाटक देय है स्वीकृति है, और यदि राम इस बात से इन्कार करता है कि सीता द्वारा भगत को भाटक देय था तो वह राम के विरुद्ध सुसंगत तथ्य है।
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