भारतीय साक्ष्य अधिनियम के अनुसार धारा 92 से 95 तक का अध्ययन

जैसा कि आप सभी को ज्ञात होगा इससे पहले की पोस्ट मे हमने भारतीय साक्ष्य अधिनियम के अनुसार धारा  91 तक का अध्ययन  किया था अगर आप इन धाराओं का अध्ययन कर चुके है।  तो यह आप के लिए लाभकारी होगा ।  यदि आपने यह धाराएं  नहीं पढ़ी है तो पहले आप उनको पढ़ लीजिये जिससे आपको आगे की धाराएं समझने मे आसानी होगी।

धारा 92

इस धारा के अनुसार  मौखिक करार के साक्ष्य का अपवर्जन को बताया गया है। इसके अनुसार  जबकि किसी ऐसी सुविधा या फिर  अनुदान या संपत्ति के अन्य व्यय के संबंधों को या फिर किसी ऐसे बात को जिनके बारे में विधि द्वारा अपेक्षित है । कि वह दस्तावेज के रूप में लेखबद्ध की जाए और जिसमे  अन्तिम पिछली धारा के अनुसार साबित किया जा चुका हो।  तब ऐसी किसी लिखत के पक्षकारों या उनके हत प्रतिनिधियों के बीच के किसी मौखिक करार या कथन का कोई भी साक्ष्य उसके निबन्धनों का खण्डन करने के या उनमें फेरफार करने के या जोड़ने के या उनमें से घटाने के प्रयोजन के लिए ग्रहण न किया जायेगा।

परन्तु 1- ऐसा कोइ तथ्य  साबित किया जा सकेगा जो किसी दस्तावेज को अविधिमान्य बना दे या जो किसी व्यक्ति को तत्सम्बन्धी किसी डिक्री या आदेश का हकदार बना देता है ।  तथा कपट, अभित्रास, अवैधता, सम्यक् विष्पादन का अभाव, प्रतिफल का अभाव या निष्फलता या विधि की या तथ्य की भूल आदि शामिल है।

परन्तु 2- किसी विषय के बारे में जिसके बारे में दस्तावेज कुछ नही कहता है।  और जो उसके निबन्धनों से असंगत नहीं है। उस तथ्य पर  किसी पृथक मौखिक करार का अस्तित्व साबित किया जा सकेगा। इस पर विचार करते समय कि यह परन्तुक लागू होता है या नहीं न्यायालय दस्तावेज की प्ररूपिता की मात्रा का ध्यान में रखेगा।

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परन्तु 3- ऐसी किसी संविदा या फिर  अनुदान या सम्पत्ति के व्ययन के अधीन कोई बाध्यता संलग्न होने की पुरोभाव्य शर्त गठित करने वाले किसी पृथक् मौखिक करार का अस्तित्व साबित किया जा सकेगा।

परन्तु 4- ऐसी किसी संविदा या फिर  अनुदान या संपत्ति के व्ययन को विखण्डित या उपान्तरित करने के लिए किसी सुभिन्न पाश्चिक मौखिक करारक का अस्तित्व उन अवस्थाओं के सिवाय साबित किया जा सकेगा।  जिनमें विधि द्वारा अपेक्षित है कि ऐसी संविदाया  अनुदान या सम्पत्ति का व्ययन लिखित हो अथवा जिनमें दस्तावेज के रजिस्ट्रीकरण के बारे में तत्समय प्रवृत्त के अनुसार उसका रजिस्ट्रीकरण किया जा चुका है।

परन्तु 5- कोई प्रथा या रूढ़ि, जिसके द्वारा किसी संविदा में अभिव्यक्त रूप से वर्णित न होने वाली प्रसंगतियां उस प्रकार की संविदाओं से प्रायः उपाबद्ध रहती हैजो की  साबित की ना सकेगी। परन्तु यह तब जब कि ऐसी प्रसंगतियों का उपाबन्धन संविदा के अभिव्यक्त निबन्धनों के विरुद्ध या उनसे असंगत न हो।

परन्तु 6- इसके अंतर्गत कई तथ्य ऐसे आते है  जो यह दर्शित करता है कि किसी दस्तावेज की भाषा की वर्तमान तथ्यों से किस प्रकार सम्बन्धित है। और जिसको  साबित किया जा सकेगा।

उदाहरण –

 (क) बीमा की एक पाॅलिसी इस माल के लिए की गई जो “कलकत्ता से लन्दन जाने वाले पोतों में” है। माल किसी विशिष्ट पात से भेजा जाता है।  जो पोत नष्ट हो जाता हैं।  यह तथ्य कि वह विशिष्ट पोत उस पाॅलिसी से मौखित रूप् से अपवादित था साबित नहीं किया जा सकता।

‘रामपुर चाय सम्पदा’ नाम एक संपदा किसी विलेख द्वारा बेची जाती है। और उस विलेख मे  जिसमें विक्रीत सम्पत्ति का मानचित्र अन्तर्विष्ट है। यह तथ्य कि मानचित्र में न दिखाई गई भूमि सदैव सम्पदा का भाग रूप मानी जाती रही थी और उस विलेख क्षरा उसका अन्तरित होना अभिप्रेत था जिसको  साबित नहीं किया जा सकता।

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क किन्हीं खानों को जो ख की संपत्ति है। और  किन्हीं निबंधनों पर काम में लाने का ख से लिखित करार करता है। उनके मूल्य के बारे में ख के दुर्व्यपदेशन द्वारा क ऐसा करने के लिए उत्प्रेरित हुआ र्था यह तो  साबित किया जा सकेगा।

 धारा 93

इस धारा के अनुसार संदिग्ध अर्थ दस्तावेज को स्पष्ट करने या फिर  उसका संशोधन करने के साक्ष्य का अपवर्जन को बताया गया है।  जबकि किसी दस्तावेज में प्रयुक्त भाषा देखते ही संदिग्ध अर्थ या त्रुटिपूर्ण है।  तब उन तथ्यों का साक्ष्य नहीं दिया जा सकेगा अर्थात  जो उनका अर्थ दर्शित या उसकी त्रुटियों की पूर्ति कर दें।

उदाहरण –

जय  को वीरू  1,000 रुपयों या 1,500 रुपयों में एक घोड़ा बेचने का लिखित करार करता है।

यह दर्शित करने के लिए कि कौन-सा मूल्य दिया जाना था इसका  साक्ष्य नहीं दिया जा सकता।

 किसी विलेख में रिक्त स्थान है। उन तथ्यों का साक्ष्य नहीं दिया जा सकता जो यह दर्शित करते हों कि उनकी किस प्रकार पूर्ति अभिप्रेत थी।

धारा 94

इस धारा के अनुसार विद्यमान तत्वों को दस्तावेज के लागू होने के विरुद्ध मे किसी  साक्ष्य का अपवर्जन को बताया गया है । इसके अनुसार  जबकि दस्तावेज में प्रयुक्त भाषा स्वयं स्पष्ट हो और जबकि वह विद्यमान तत्वों को ठीक-ठीक लागू हो  तब उस समय  यह दर्शित करने के लिए साक्ष्य नहीं दिया जा सकेगा की वह ऐसे तत्वों को लागू होने के लिए अभिप्रेत नहीं थी।

उदाहरण –

जय  को बीरौ मे “रामपुर में 100 बीघे वाली मेरी सम्पदा” विलेख द्वारा बेचता हैं।  जय  के पास रामपुर में 100 बीघे वाली एक सम्पदा हैं इस तथ्य का साक्ष्य नहीं दिया जा सकेगा कि विक्रय अर्थ अभिप्रेत सम्पदा किसी भिन्न स्थान पर स्थित और भिन्न माप की थी।

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धारा 95

इस  धारा के अनुसार मौजूदा तथ्यों के संदर्भ में स्पष्ट दस्तावेज के रूप में साक्ष्य  को बताया गया है। जब किसी दस्तावेज में प्रयुक्त भाषा अपने आप में स्पष्ट होती है, लेकिन मौजूदा तथ्यों के संदर्भ में अस्पष्ट होती है । तो साक्ष्य की मदद से यह दिखाया जा सकता है कि इसका उपयोग स्पष्ट रूप से किया गया है।

न्यायाधीश एन वी रमाना की अगुवाई वाली पीठ ने कहा कि, “इन दो धाराओं  धारा 92 और 95  में स्पष्ट है कि ये धाराएं केवल उन मामलों के लिए है जहां दस्तावेज़ की शर्तों पर संदेह पैदा होता हैं।  लेकिन यदि दस्तावेज में कोई अस्पष्टता नहीं है तो भारतीय साक्ष्य अधिनियम ( इंडियन एविडेंस एक्ट), 1872 की धारा 92 का परंतुक (Proviso) 6 और धारा 95 लागू नहीं होगा।

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