जैसा कि आप सभी को ज्ञात होगा इससे पहले की पोस्ट मे हमने भारतीय संविधान के अनुसार (अनुच्छेद 78 )तक का वर्णन किया था अगर आप इन धाराओं का अध्ययन कर चुके है तो यह आप के लिए लाभकारी होगा । यदि आपने यह धाराएं नही पढ़ी है तो पहले आप उनको पढ़ लीजिये जिससे आपको आगे की धाराएं समझने मे आसानी होगी।
अनुच्छेद 79-
इस अनुच्छेद के अनुसार संघ के लिये एक संसद होगी। और वह संसद राष्ट्रपति और दो सदनों से मिलकर बनेगी।
अनुच्छेद 80-
इस अनुच्छेद मे राज्यसभा के गठन का प्रावधान है। राज्यसभा के सदस्यों की अधिकतम संख्या 250 हो सकती है। परंतु वर्तमान में यह संख्या 245 है। इनमें से 12 सदस्यों को राष्ट्रपति द्वारा साहित्य, विज्ञान, कला और समाज सेवा से संबंधित क्षेत्र के 12 सदस्यों को मनोनीत किया जाता है। राज्य सभा में प्रत्येक राज्य के प्रतिनिधियों का निर्वाचन उसके अनुसार उस राज्य की विधानसभा के निर्वाचित सदस्यों द्वारा आनुपातिक प्रतिनिधित्व पद्धति के अनुसार एकल संक्रमणीय मत द्वारा किया जाएगा।तथा राज्यसभा में संघ राज्य क्षेत्रों के प्रतिनिधि ऐसी रीति से चुने जाएँगे जो संसद विधि द्वारा विहित किया जाये।
इसमे निम्न संशोधन को शामिल किया गया है।
संविधान (पैंतीस वाँ संशोधन) अधिनियम 1974 की धारा 3 के अनुसार ”राज्य सभा” पर प्रतिस्थापित।
संविधान (छत्तीसवां संशोधन) अधिनियम 1975 की धारा 5 के अनुसार (1975 से) ”दसवीं अनुसूची के पैरा 4 के उपबंधों के अधीन रहते हुए” शब्दों का लोप किया गया।
संविधान (सातवाँ संशोधन) अधिनियम 1956 की धारा 3 के अनुसार जोड़ा गया।
संविधान (सातवाँ संशोधन) अधिनियम 1956 की धारा 3 के अनुसार ”पहली अनुसूची के भाग का भाग ख में विनिर्दिष्ट” शब्दों और अक्षरों का लोप किया गया।
संविधान (सातवाँ संशोधन) अधिनियम 1956 की धारा 3 के अनुसार ”पहली अनुसूची के भाग ग में विनिर्दिष्ट राज्यों” के स्थान पर प्रतिस्थापित।
अनुच्छेद 81-
इस अनुच्छेद के अनुसार लोकसभा की संरचना को परिभाषित किया गया है। इसके अनुसार सदन में 550 से अधिक निर्वाचित सदस्य नहीं होंगे। जिनमें से राज्यों के प्रादेशिक निर्वाचन क्षेत्रों से 530 से अधिक तथा संघ शासित प्रदेशों का प्रतिनिधित्व करने के लिये 20 से अधिक सदस्य नहीं होंगे।
इसके अनुसार किसी राज्य को आवंटित लोकसभा सीटों की संख्या ऐसी होगी कि उस संख्या और राज्य की जनसंख्या के बीच का अनुपात, सभी राज्यों के लिये समान हो।, यह तर्क उन छोटे राज्यों पर लागू नहीं होता है जिसकी आबादी 60 लाख से अधिक नहीं है। इसलिये कम-से-कम एक सीट हर राज्य को आवंटित की जाती है। भले ही उस राज्य का जनसंख्या-सीट-अनुपात उस सीट के लिये योग्य होने के लिये पर्याप्त नहीं हो।भारत का हर नागरिक जिसकी आयु 18 वर्ष हो वह लोकसभा के चुनावों में वोट देने का अधिकारी है।
इसके अनुसार ”जनसंख्या” पद से उसी अंतिम पूर्ववर्ती जनगणना में अभी निश्चित की गई जनसंख्या अभिप्राय है। जिसके सुसंगत आंकड़े प्रकाशित हो चुके है।
इसके अनुसार निम्न संविधान संशोधन को शामिल किया गया है।
संविधान (सातवाँ संशोधन) अधिनियम 1956 की धारा 4 के अनुसार अनुच्छेद 81 और 82 के स्थान पर प्रतिस्थापित।
संविधान (पैंतीस वाँ संशोधन) अधिनियम 1974 की धारा 4 के अनुसार ”अनुच्छेद 331 के उपबंधों के अधीन रहते हुए” के स्थान पर प्रतिस्थापित।
संविधान (छत्तीसवां संशोधन) अधिनियम 1975 की धारा 5 के अनुसार ”और दसवीं अनुसूची के पैरा 4” शब्दों और अक्षरों का लोप किया जाएगा।
गोवा, दमन और दीव पुनर्गठन अधिनियम 1987 (1987 का 18) की धारा 63 के अनुसार ”पांच सौ पच्चीस” के स्थान पर प्रतिस्थापित।
संविधान (इकतीसवा संशोधन) अधिनियम 1973 की धारा 2के अनुसार”पच्चीस सदस्यों” के स्थान पर प्रतिस्थापित।
संविधान (इकतीसवा संशोधन) अधिनियम 1973 की धारा 2 के अनुसारअंतःस्थापित।
संविधान (बयालीसवाँ संशोधन) अधिनियम 1976 की धारा 15 के अनुसार) अंतःस्थापित।
संविधान (चौरासी वाँ संशोधन) अधिनियम 2001 की धारा 3के अनुसार प्रतिस्थापित।
संविधान (सातवाँ संशोधन) अधिनियम 2003 की धारा 2 के अनुसारप्रतिस्थापित।
संविधान (बयालीसवाँ संशोधन) अधिनियम 1976 की धारा 16 के अनुसार
अनुच्छेद 82 –
इस अनुच्छेद के अनुसार प्रत्येक जनगणना के पश्चात् पुनः समायोजन को बताया गया है। जिसके अनुसार –
प्रत्येक जनगणना की समाप्ति पर राज्यों को लोक सभा में स्थानों के आबंटन और प्रत्येक राज्य के प्रादेशिक निर्वाचन-क्षेत्रों में विभाजन का ऐसे प्राधिकारी के द्वारा या फिर ऐसी रीति से पुनः समायोजन किया जाएगा जो संसद विधि द्वारा अवधारित करता है।
परन्तु इसके पुनः समायोजन से लोक सभा में प्रतिनिधित्व पर तब तक कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा जब तक उस समय विद्यमान लोक सभा का विघटन नहीं हो जाता है ।
और यह समायोजन उस तारीख से प्रभावी होगा जो राष्ट्रपति आदेश द्वारा विनिर्दिष्ट करते है। और ऐसे पुनः समायोजन के प्रभावी होने तक लोक सभा के लिए कोई निर्वाचन उन प्रादेशिक निर्वाचन-क्षेत्रों के आधार पर हो सकेगा। जो ऐसे पुनः समायोजन के पहले विद्यमान होता है।
पर यह तब तक लागू नही होगा जब तक सन् 11[2026] के पश्चात् की गई पहली जनगणना के सुसंगत आंकड़े प्रकाशित नहीं हो जाते हैं। तब तक इस अनुच्छेद के अनुसार
राज्यों को लोक सभा में 1971 की जनगणना के आधार पर पुनः समायोजित स्थानों के आबंटन और
प्रत्येक राज्य के प्रादेशिक निर्वाचन-क्षेत्रों में विभाजन जो की 2001 की जनगणना के आधार पर पुनः समायोजित किए जाएं। और इसका पुनः समायोजन आवश्यक नहीं होगा ।
इसके अनुसार निम्न संविधान संशोधन को शामिल किया गया है।
संविधान (सातवाँ संशोधन) अधिनियम 1956 की धारा 4 के अनुसार अनुच्छेद 81 और 82 के स्थान पर प्रतिस्थापित।
संविधान (पैंतीस वाँ संशोधन) अधिनियम 1974 की धारा 4 के अनुसार ”अनुच्छेद 331 के उपबंधों के अधीन रहते हुए” के स्थान पर प्रतिस्थापित।
संविधान (छत्तीसवां संशोधन) अधिनियम 1975 की धारा 5 के अनुसार ”और दसवीं अनुसूची के पैरा 4” शब्दों और अक्षरों का लोप किया जाएगा।
गोवा, दमन और दीव पुनर्गठन अधिनियम 1987 की धारा 63 के अनुसार ”पाँच सौ पच्चीस” के स्थान पर प्रतिस्थापित।
संविधान (इकतीसवा संशोधन) अधिनियम 1973 की धारा 2 के अनुसार ”पच्चीस सदस्यों” के स्थान पर प्रतिस्थापित।
संविधान (इकतीसवा संशोधन) अधिनियम 1973 की धारा 2 के अनुसार अंतःस्थापित।
संविधान (बयालीसवाँ संशोधन) अधिनियम 1976 की धारा 15 के अनुसार अंतःस्थापित।
संविधान (चौरासी वाँ संशोधन) अधिनियम 2001 की धारा 3 के अनुसार प्रतिस्थापित।
संविधान (सातवाँ संशोधन) अधिनियम 2003 की धारा 2 के अनुसार प्रतिस्थापित।
संविधान (बयालीसवाँ संशोधन) अधिनियम 1976 की धारा 16 के अनुसार
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