भारतीय संविधान के अनुसार अनुच्छेद 83 से 87 तक का वर्णन

जैसा कि आप सभी को ज्ञात होगा इससे पहले की पोस्ट में हमने भारतीय संविधान के अनुसार  (अनुच्छेद 82) तक का वर्णन किया था अगर आप इन धाराओं का अध्ययन कर चुके है तो यह आप के लिए लाभकारी होगा ।  यदि आपने यह धाराएं नहीं पढ़ी है तो पहले आप उनको पढ़ लीजिये जिससे आपको आगे की धाराएं समझने मे आसानी होगी।

अनुच्छेद 83

इस अनुच्छेद के अनुसार इसमें संसद के सदनों के बारे मे बताया गया है। इसके अनुसार राज्यसभा का विघटन नहीं होगा।  किन्तु उसके सदस्यों में से यथा संभव निकटतम एक-तिहाई सदस्य जो की  संसद द्वारा विधि द्वारा इस निमित्त किए गए उपबंधों के अनुसार होंगे जो  प्रत्येक द्वितीय वर्ष की समाप्ति पर यथाशक्य शीघ्र निवृत्त हो जाएँगे।

इसके अनुसार लोकसभा को  यदि पहले ही विघटित नहीं कर दी जाती है।  तो वह  अपने प्रथम अधिवेशन के लिए नियत तारीख से 5 वर्ष  तक बनी रहेगी।  और इस  अवधि की समाप्ति का परिणाम लोकसभा का विघटन होगा।
परन्तु जब  उक्त अवधि को जब आपात की उद्घोषणा प्रवर्तन में है।  उस समय संसद विधि द्वारा ऐसी अवधि को  बढ़ा सकेगी। तथा  जो एक बार में एक वर्ष से अधिक नहीं होगी और उद्घोषणा के प्रवर्तन में न रह जाने के पश्चात उसका विस्तार किसी भी दशा में छह मास की अवधि से अधिक नहीं होगा।

इसमे निम्न संशोधन को शामिल किया गया है।

संविधान (चवालीसवाँ संशोधन) अधिनियम 1978 की धारा 13 के अनुसार  ”छह वर्ष” शब्दों के स्थान पर प्रतिस्थापित।

संविधान (बयालीसवाँ संशोधन) अधिनियम 1976 की धारा 17 के अनुसार   ”पाँच वर्ष” मूल शब्दों के स्थान पर ”छह वर्ष” शब्द प्रतिस्थापित किए गए थे।

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अनुच्छेद 84

इस अनुच्छेद के अनुसार कोई व्यक्ति संसद के किसी स्थान को भरने के लिए तभी अर्हित होगा जब वह निम्न के अनुसार होगा ।
 वह भारत का नागरिक होना चाहिए।  और निर्वाचन आयोग द्वारा इस निमित्त प्राधिकृत किसी व्यक्ति के समक्ष तीसरी अनुसूची में इस प्रयोजन के लिए दिए गए प्रारूप के अनुसार शपथ लेता है।  या प्रतिज्ञान करता है । और उस पर अपने हस्ताक्षर करता है।
की  वह राज्यसभा में स्थान के लिए कम से कम तीस वर्ष की आयु का और लोकसभा में स्थान के लिए कम से कम पच्चीस वर्ष की आयु रखता है।  और
उसके पास ऐसी अन्य अर्हताएं हैं । जो संसद द्वारा बनाई गई किसी विधि द्वारा या उसके अधीन इस निमित्त विहित की जाती है।

इसमे निम्न संशोधन को शामिल किया गया है।

संविधान (सोलहवाँ संशोधन) अधिनियम 1963 की धारा 3 के अनुसार  खंड (क) के स्थान पर प्रतिस्थापित।

अनुच्छेद 85

इस अनुच्छेद के अनुसार  संसद के सत्र के संबंध में में प्रावधान किया गया है।
संसद के किसी सत्र को बुलाने की शक्ति सरकार के पास निहित  है। इसका  निर्णय संसदीय मामलों की कैबिनेट समिति द्वारा लिया जाता है।  जिसे राष्ट्रपति द्वारा औपचारिक रूप दिया जाता है।
भारत में कोई निश्चित संसदीय कैलेंडर नहीं है। संसद के एक वर्ष में तीन सत्र होते हैं।
 बजट सत्र (पहला सत्र) जनवरी के अंत में शुरू होता है।  और अप्रैल के अंत या मई के पहले सप्ताह तक समाप्त हो जाता है। यह सबसे लंबासत्र है। इस सत्र में एक अवकाश होता है ताकि संसदीय समितियां बजटीय प्रस्तावों पर चर्चा कर सकें।
दूसरा सत्र तीन सप्ताह का मानसून सत्र होता है। जो जुलाई माह में शुरू होता है । और अगस्त में खत्म होता है।
तीसरे सत्र शीतकालीन सत्र का आयोजन नवंबर से दिसंबर तक किया जाता है।

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 राष्ट्रपति जब चाहे  समय-समय पर इस पर निर्णय ले सकते है।

सदनों का या किसी सदन का सत्रावसान कर सकते है।

 लोकसभा का विघटन कर सकते है।

इसमे निम्न संशोधन को शामिल किया गया है।

संविधान (संशोधन) अधिनियम, 1951 की धारा 6 के अनुसार नुच्छेद 85 के स्थान पर प्रतिस्थापित।

अनुच्छेद 86

इस अनुच्छेद के अनुसार  राष्ट्रपति द्वारा संसद को संबोधित करने तथा संदेश भेजने के अधिकार का उल्लेख किया गया है।
राष्ट्रपति , संसद के किसी एक  सदन में या एक साथ समस्त दोनों सदनों में अभिभाषण  कर सकेगा और इस प्रयोजन के लिए सदस्यों की उपस्थिति  की अपेक्षा कर सकेगा ।

जिसमे राष्ट्रपति जो की संसद में उस समय लंबित किसी विधेयक के संबंध में संदेश या कोई अन्य संदेश जो की  संसद के किसी सदन को भेज सकते है। और जिस सदन को कोई संदेश इस प्रकार भेजा गया है वह सदन उस संदेश द्वारा विचार करने के लिए  अपेक्षित विषय पर सुविधानुसार शीघ्रता से विचार करेगा ।

अनुच्छेद 87

इस अनुच्छेद मे   राष्ट्रपति के अभिभाषण को बताया गया है। जिसमे राष्ट्रपति लोक सभा के लिए प्रत्येक साधारण निर्वाचन के पश्चात प्रथम सत्र के शुरुआत  में एक साथ समवेत संसद के दोनों सदनों में अभिभाषण करेंगे  और संसद को उसके आह्वान के कारण भी बताएँगे।

भारत के राष्ट्रपति में सभी कार्यकारी शक्तियां निहित होती हैं।तथा  प्रधानमंत्री के नेतृत्व वाली मंत्रिपरिषद राष्ट्रपति की सहायता करती है । तथा उन्हें सलाह देती है जबकि उस सलाह के अनुसार अपनी शक्तियों का प्रयोग करते हैं।

जिसमे प्रत्येक वर्ष के प्रथम सत्र की दशा में राष्ट्रपति का अभिभाषण संसद के दोनों सदनों के सत्रारंभ हेतु अधिसूचित समय और तिथि को होता है।तथा  अभिभाषण की समाप्ति के आधे घंटे बाद दोनों सभाएं अपने-अपने सदन में अलग बैठक करती हैं।  और राष्ट्रपति के अभिभाषण की प्रति सभा मे  रखी जाती है तथा प्रत्येक सदन के कार्यवाही को वृतांत में सम्मिलित की जाती है।

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राष्ट्रपति के अभिभाषण में सरकार की नीतिगत प्राथमिकताओं और आने वाले वर्ष की योजनाओं का अनिवार्य रूप से उल्लेख होता है। तथा इसमे अभिभाषण सरकार के एजेंडा और दिशा का व्यापक नीति  प्रदान किया जाता है।

यदि आपको इन को समझने मे कोई परेशानी आ रही है। या फिर यदि आप इससे संबन्धित कोई सुझाव या जानकारी देना चाहते है।या आप इसमें कुछ जोड़ना चाहते है। तो कृपया हमें कमेंट बॉक्स में जाकर अपने सुझाव दे सकते है।

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