भारतीय साक्ष्य अधिनियम के अनुसार धारा 46 से 50 तक का अध्ययन

जैसा कि आप सभी को ज्ञात होगा इससे पहले की पोस्ट मे हमने भारतीय साक्ष्य अधिनियम के अनुसार धारा 45  तक का अध्ययन  किया था अगर आप इन धाराओं का अध्ययन कर चुके है।  तो यह आप के लिए लाभकारी होगा ।  यदि आपने यह धाराएं  नही पढ़ी है तो पहले आप उनको पढ़ लीजिये जिससे आपको आगे की धाराएं समझने मे आसानी होगी।

धारा 46  –

इस धारा के अनुसार विशेषज्ञों की रायों से सम्बन्धित तथ्य को बताया गया है। इस धारा के अनुसार  वे तथ्य जो अन्यथा सुसंगत नहीं  होते है । या फिर सुसंगत होते है। यदि वे विशेषज्ञों की रायों का समर्थन करते हों या उनसे असंगत हों जबकि ऐसी रायें सुसंगत हो।

उदाहरण –

 प्रश्न यह है कि अन्य व्यक्तियों में जिन्हें वह विष दिया गया था। उस व्यक्ति मे  अमुक लक्षण प्रकट हुये थे।  जिनका उस विष के लक्षण होना विशेषज्ञ प्रतिज्ञात या प्रत्याख्यात करते है।
अब प्रश्न यह है कि क्या बन्दरगाह में कोई बाधा अमुक समूद्र-भित्ति से कारित हुई है।
यह तथ्य सुसंगत है कि अन्य बन्दरगाह  जो अन्य दृष्टियों से वैसे ही स्थित थे जैसे बताया गया है।  किन्तु जहां ऐसी समुद्र-भित्तियाँ नहीं थींजो  लगभग उसी समय बाधित होने लगे थे।

धारा 47 –

इस धारा के अनुसार हस्तलेख के बारे में राय कब सुसंगत है यह बताया गया है।इसके अनुसार  जब न्यायालय को यह  राय बनानी हो कि कोई दस्तावेज किस व्यक्ति ने लिखी है  या किसके द्वारा हस्ताक्षरित की थी। तब  ऐसे दशा मे उस व्यक्ति के हस्तलेख से जिसके द्वारा वह लिखी या उस व्यक्ति के  हस्ताक्षरित की गई अनुमानित की जाती है। परिचित किसी व्यक्ति की यह राय कि वह उस व्यक्ति द्वारा लिखी या हस्ताक्षरित की गई थी अथवा लिखी या हस्ताक्षरित नहीं की गई थीयह  सुसंगत तथ्य है।

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स्पष्टीकरण — कोई व्यक्ति किसी अन्य व्यक्ति के हस्तलेख से परिचित तब माना जाता है।  जबकि उसने उस व्यक्ति को लिखते देखा है । या जबकि स्वयं अपने द्वारा या अपने प्राधिकार के अधीन लिखित और उस व्यक्ति को संबोधित दस्तावेज के उत्तर में उस व्यक्ति द्वारा लिखी हुई तात्पर्यित होने वाली दस्तावेजें कभी प्राप्त की हैं।  या फिर जबकि कारबार के मामूली अनुक्रम में उस व्यक्ति द्वारा लिखी हुई तात्पर्यित होने वाली दस्तावेजें उसके समक्ष बराबर रखी जाती रही हैं।

उदाहरण –

इसमे प्रश्न यह है कि क्या अमुक पत्र लन्दन के एक व्यापारी जॉन  के हस्तलेख में है।

जानी  कलकत्ते में एक व्यापारी है जिसने जान  को पत्र संबोधित किए हैं तथा उसके द्वारा लिखे हुए तात्पर्यित होने वाले पत्र प्राप्त किए हैं। यमन  ।जानी का लिपिक है।  जिसका कर्त्तव्य जानी  के पत्र व्यवहार को देखना और फाइल करना था। जानी का दलाल सीम  है जिसके समक्ष जान  द्वारा लिखे गए तात्पर्यिंत होने वाले पत्रों को उनके बारे में उससे सलाह करने के लिए जानी  बराबर रखा करता था।

जानी  और सीएम की इस प्रश्न पर राय कि क्या वह पत्र क के हस्तलेख में है सुसंगत है, यद्यपि न तो जानी  ने, यमन  घोरा  ने, न सीएम  ने, जान  को लिखते हुए कभी देखा था।

धारा 48

इस धारा के अनुसार  अधिकार या रुढ़ि के अस्तित्व के बारे में रायें कब सुसंगत हैं यह बताया गया है। इसके अनुसार जब न्यायालय को किसी साधारण रुढ़ि या अधिकार के अस्तित्व के बारे में राय बनानी होती है तब वह   ऐसी रुढ़ि या अधिकार  के अस्तित्व के बारे में उन व्यक्तियों की रायें सुसंगत माना जाता है  जो यदि उसका अस्तित्व होता तो सम्भाव्यतः उसे जानते होते।

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स्पष्टीकरण- “साधारण रूढ़ि या अधिकार” के अन्तर्गत ऐसी रुढ़ियां या अधिकार शामिल होते है। जो व्यक्तियों के किसी काफी बड़े वर्ग के लिए सामान्य हैं।

उदाहरण –

 किसी विशिष्ट ग्राम के निवासियों का अमुक कूप के पानी का उपयोग करने का अधिकार इस धारा के अर्थ के अन्तर्गत साधारण अधिकार है।

धारा 49

इस धारा के अनुसार  प्रथाओं, सिद्धान्तों आदि के बारे में रायें कब सुसंगत हैं यह बताया गया है। इसके अनुसार जब  न्यायालय को मनुष्यों के किसी निकाय या कुटुम्ब की प्रथाओं या सिद्धांतों केजो की  किसी धार्मिक या खैराती प्रतिष्ठान के संविधान और शासन के द्वारा  अथवा

विशिष्ट जिले या विशिष्ट वर्गों के लोगों द्वारा प्रयोग में लाए जाने वाले शब्दों या पदों के अर्थों के बारे में अपनी  राय बनानी हो तब उनके संबंध में ज्ञान के विशेष साधन रखने वाले व्यक्तियों की रायें संगत तथ्य मानी जाती है।

धारा 50

इस धारा के अनुसार नातेदारी के बारे में राय कब सुसंगत हैं यह बताया गया है। इसके अनुसार  जब न्यायालय को एक व्यक्ति की किसी अन्य व्यक्ति के साथ नातेदाीर के बारे में रायको  बनानी होती है।  तब ऐसी नातेदाीर के अस्तित्व के बारे में ऐसे किसी व्यक्ति के आचरण के द्वारा अभिव्यक्त राय जिसके पास कुटुम्ब के सदस्य के रूप में या अन्यथा उस विषय के सम्बन्ध में ज्ञान के विशेष साधन होता  हैं तब वह तथ्य  सुसंगत तथ्य हैं।

परन्तु; भारतीय विवाह विच्छेद अधिनियमके अनुसार  1869 (1869 का 4) के अधीन कार्यवाहियों में या भारतीय दण्ड संहिता (1860 का 45) को धारा 494, 495, 497 या 498 के अधीन अभियोजनों में ऐसी राय विवाह साबित सकने के लिए पर्याप्त नहीं होगी।

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उदाहरण –
 प्रश्न यह है कि क्या शिम  और सीमा  विवाहित थे।यह तथ्य कि वे अपने मित्रों द्वारा पति और पत्नी के रूप में प्रायः स्वीकृत किए जाते थे और उनसे वैसा बर्ताव किया जाता थातो यह  सुसंगत है।

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