जैसा कि आप सभी को ज्ञात होगा इससे पहले की पोस्ट मे हमने भारतीय साक्ष्य अधिनियम के अनुसार धारा 86 तक का अध्ययन किया था अगर आप इन धाराओं का अध्ययन कर चुके है। तो यह आप के लिए लाभकारी होगा । यदि आपने यह धाराएं नहीं पढ़ी है तो पहले आप उनको पढ़ लीजिये जिससे आपको आगे की धाराएं समझने मे आसानी होगी।
धारा 87
इस धारा के अनुसार पुस्तकों, मानचित्रों और चार्टों के बारे में उपधारणा को बताया गया है। इस धारा के अनुसार न्यायालय यह उपधारित कर सकेगा कि कोई पुस्तक जिसे वह लोक या साधारण हित संबंधी बातों की जानकारी के लिए देखा जा सकता है। और कोई प्रकाशित मानचित्र या चार्ट, जिसके कथन सुसंगत तथ्य हैं। और जिसके पीछे जो उसके निरीक्षण अर्थ पेश किया गया है। वह उस व्यक्ति द्वारा तथा उस समय और उस स्थान पर लिखा गया और प्रकाशित किया गया था जिनके द्वारा या जिस समय या जिस स्थान पर उसका लिखा जाना या प्रकाशित होना तात्पर्यित है।
धारा 88
इस धारा के अनुसार तार संदेशों के बारे में उपधारणा को बताया गया है । जिसके अनुसार न्यायालय यह उपधारणा कर सकेगा कि कोई भी संदेश जो किसी तार घर से उस व्यक्ति को भेजा गया है। जिस व्यक्ति को ऐसे संदेश का संबोधित होना तात्पर्यित है। तथा उस संदेश के समरूप है जो भेजे जाने के लिए उस कार्यालय को जहां से वह संदेश पारेषित किया गया उसको तात्पर्य है। तथा उसको परिदत्त किया गया था। किन्तु न्यायालय उस व्यक्ति के बारे में, जिसने संदेश पारेषित किए जाने के लिए परिदत्त किया था, कोई उपधारणा नहीं करेगा।
धारा 89
इस धारा के अनुसार पेश न की गई दस्तावेजों के सम्यक् निष्पादन आदि के बारे में उपधारणा को बताया गया है। इसके अनुसार न्यायालय उपधारित करेगा कि हर दस्तावेज जिसे पेश करने की अपेक्षा की गई थी । तो वह जो पेश करने की सूचना के पश्चात् पेश नहीं की गई है। विधि द्वारा अपेक्षित प्रकार से अनुप्रमाणित, स्टाम्प और निष्पादित की गई थी।
धारा 90
इस धारा के अनुसार तीस वर्ष पुरानी दस्तावेजों के बारे में उपधारणा को बताया गया है । जहां कि कोई दस्तावेज जो की तीस वर्ष पुरानी होना तात्पर्यित है या साबित किया गया है। की ऐसी किसी अभिरक्षा में से जिसको न्यायालय उस विशिष्ट मामले में उचित समझता है। वह पेश की गई है।
और वहां न्यायालय यह उपधारणा कर सकेगा कि ऐसी दस्तावेज पर हस्ताक्षर और उसका हर अन्य भाग जिसका किसी विशिष्ट व्यक्ति के हस्तलेख में होना तात्पर्यित है, उस व्यक्ति के हस्तलेख में है। और उसका निष्पादित या अनुप्रमाणित दस्तावेज होने की दशा में यह उपधारित कर सकेगा कि वह उन व्यक्तियों द्वारा सम्यक् रूप से निष्पादित और अनुप्रमाणित की गई थी जिनके द्वारा उसका निष्पादित और अनुप्रमाणित होना तात्पर्यित है।
स्पष्टीकरण –इसमे दस्तावेजों का उचित अभिरक्षा में होना बताया गया है। यदि वे ऐसे स्थान में और उस व्यक्ति की देखरेख में है। और जहां और जिसके पास वे प्रकृत्या होनी चाहिए। किन्तु कोई भी अभिरक्षा अनुमति नहीं है। यदि यह साबित कर दिया जाए कि अभिरक्षा का उद्गम विधिसम्मत था या यदि उस विशिष्ट मामले की परिस्थितियां ऐसी हों, जिससे ऐसा उद्गम अधिसम्भाव्य हो जाता है।
दृष्टांत
(क) अभी भू-संपत्ति पर दीर्घकाल से कब्जा रखता आया है। वह उस भूमि संबंधी विलेख, जिनसे उस भूमि पर उसका हक दर्शित होता है। और वह अपनी अभिरक्षा में से पेश करता है। यह अभिरक्षा उचित है।
(ख) अभी उस भू-संपत्ति से संबद्ध विलेख, जिसका वह बंधकदार है। उसको पेश करता है। बंधककर्ता संपत्ति पर कब्जा रखता है। यह अभिरक्षा उचित है।
(ग) रानी का संसंगी अभी और रानी के कब्जे वाली भूमि से संबंधित विलेख पेश करता है, जिन्हें रानी ने उसके पास सुरक्षित अभिरक्षा के लिए निक्षिप्त किया था। यह अभिरक्षा उचित है।
उत्तर प्रदेश — विद्यमान धारा, धारा 90(1) के रूप में पुनः संख्यांकित की जाएगी। और
(क) शब्द “तीस वर्ष के स्थान पर “बीस वर्ष” प्रतिस्थापित किए जाएंगे। और
(ख) अग्रलिखित को नई धारा (2) के रूप में जोड़ा जाएगा, अर्थात् :-
“(2) जब कोई दस्तावेज जो उपधारा (1) में विनिर्दिष्ट है। तो ऐसे दस्तावेज़ को दस्तावेज के पंजीयन संबंधी विधि न के अनुसार पंजीकृत किया गया था । और सम्यक् रूप से प्रमाणित उसकी प्रति प्रस्तुत की गई है तो न्यायालय उपधारणा कर सकेगा कि ऐसे दस्तावेज के हस्ताक्षर तथा उसका अन्य प्रत्येक भाग जिसका किसी विशिष्ट व्यक्ति का होना तात्पर्यित है उस व्यक्ति के हस्तलेख में है । और उस व्यक्ति द्वारा अनुप्रमाणित है जिसके द्वारा उसका निष्पादित या अनुप्रमाणित होना तात्पर्यित है।”
धारा 90 के पश्चात् धारा 90-क अंतःस्थापित की जावेगी। अर्थात यह भी कहा जा सकता है की –
(1) जब कोई पंजीकृत दस्तावेज या उसकी विधिवत अनुप्रमाणित प्रति या दस्तावेज की कोई अनुप्रमाणित प्रति जो कि न्यायालय के रेकार्ड का भाग मे राखी गयी है। किसी की अभिरक्षा में से प्रस्तुत की जाती है । और जिसे न्यायालय किसी विशेष मामले में उचित समझता है । तो न्यायालय यह उपधारणा कर सकेगा कि मूल दस्तावेज उस व्यक्ति द्वारा निष्पादित किया गया था जिसके द्वारा उसका निष्पादित किया जाना तात्पर्यित है।
(2) कोई दस्तावेज जो किसी वाद का या प्रतिरक्षा का आधार है। या फिर वह वाद पत्र में या लिखित कथन में जिस पर विश्वास किया गया है। उसके बाबत उक्त उपधारणा नहीं की जाएगी।”
धारा 90 की उपधारा (1) में दिया गया स्पष्टीकरण इस धारा को भी लागू होगा।
धारा 91
इस धारा के अनुसार दस्तावेजों के रूप् में लेखबद्ध संविदाओं तथा अनुदानों तथा सम्पत्ति के अन्य व्यंजनों के निबंधों साक्ष्य को बताया गया है। जबकि किसी संविदा के या अनुदान के या संपत्ति के किसी अन्य व्यय के निबन्ध दस्तावेज के रूप में लेखबद्ध की जाए तो फिर ऐसी संविदा, अनुदान या संपत्ति के अन्य व्ययन के निबंधों के या ऐसी बात के साबित किए जाने के लिए स्वयं उस दस्तावेज के सिवाय या उन दशाओं में जिनमें एतस्मिन् पूर्व अंतर्विष्ट उपबन्धों के अधीन द्वितीयक साक्ष्य ग्राह्य है। उसकी अन्तर्वस्तु के द्वितीयक साक्ष्य के सिवाय कोई भी साक्ष्य नहीं दिया जाएगा।
अपवाद 1 – जबकि विधि अक्षरा यह अपेक्षित है कि किसी लोक अफसर की नियुक्ति लिखित रूप में हो और जब यह दर्शित किया गया है कि किसी विशिष्ट व्यक्ति ने ऐसे अफसर के नाते कार्य किया है। तब उस लेख का जिसके द्वारा वह नियुक्त किया गया था। उसका साबित किया जाना आवश्यक नहीं है।
अपवाद 2 – जिन बिलो का भारत में प्रोबेट मिला है। वे बिल प्रोबेट द्वारा साबित की जा सकेगी।
स्पष्टीकरण 1- यह धारा उन दशाओं को, जिनमें निर्दिष्ट संविदाएं अनुदान या सम्पत्ति के व्यय एक ही दस्तावेज में अन्तर्विष्ट हैं तथा उन दशाओं को, जिनमें वे एक से अधिक दस्तावेजों में अन्तर्विष्ट है। समान रूप से लागू है।
स्पष्टीकरण 2- जहां कि एक से अधिक मूल हैं। वहां केवल एक मूल साबित करना आवश्यक हैं
स्पष्टीकरण 3 – इस धारा में निर्दिष्ट तथ्यों से भिन्न किसी तथ्य का किसी भी दस्तावेज में कथन के अनुसार उसी तथ्य के बारे में मौखिक साक्ष्य की ग्राह्यता का प्रवारण नहीं करेगा।