अंतर्राष्ट्रीय कानून क्या है इसके तत्व कौन कौन से है?

विधि मनुष्य के अनुरूप होती है इसलिए विधि को थोपा नही जा सकता है यह मनुष्य
के विकास के लिए आवश्यक होती है। अंतर्राष्ट्रीय  विधि भी उनमे से एक है।

अंतर्राष्ट्रीय  कानून के संबंध मे अनेक लेखकों ने अलग अलग बाते लिखी है आज के
आधुनिक युग मे अंतर्रातीय कानून की प्रगाढ़ता भी बढ़ गयी है। आज यह नियमों का
समूह मात्र नही रह गया है बल्कि आज यह समाज के विकास मे महत्वपूर्ण भूमिका
निभाता है।

यह 2 या 2 से अधिक देशो पर लागू होती है यह सामाजिक प्रड़ियों पर समान रूप से
लागू होता है और सभी को उसका पालन करना होता है। यह दीतीय विश्व युद्घ के बाद
इसकी आवश्यकता पढ़ी।

यह ऐसे नियमो का समूह है जो अंतर्राष्ट्रीय  देशो पर लागू होता है जो इसके
अंतर्गत आते है उसको अंतर्राष्ट्रीय  कानून भी कहते है। यह रास्टो के कानून का
पर्यायवाची है। इसका अर्थ आप तभी समझ सकते है जब हम इसकी परिभाषा पढ़ते है।

मायार्श माक्डूगल ने लिखा है कि –


अंतर्राष्ट्रीय  कानून नियमों का समूह मात्र नही है बल्कि उन नियमों को एजन्सि के
माध्यम से प्रयुक्त करने कि क्षमता भी रखता है।

दिलफ़्रेड ने कहा है कि –

अंतर्राष्ट्रीय  कानून राज्यों का नियमन करने वाला कानून नही है। इसके अलावा भी
इसमे बहुत कुछ शामिल है। राज्यों के संबंधों का नियमन उनमे से एक कार्य है।

बेंथम ने इसकी परिभाषा इस प्रकार दी है-

अंतर्राष्ट्रीय  कानून एक नियमों का समूह है यह दो या दो से अधिक देशो पर समान
रूप से लागू होता है यह शांति काल और युद्घ के समय भी समान रूप से लागू होता
है।

यह उन नियमों का समूह है जो संधि के समय बने नियमों के रूप मे सभी राज्यों पर
बाध्यकारी होता है। और सभी राज्य इसका पालन करते है।

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हुयज के शब्दो मे-

अंतर्राटीय कानून सिद्धांतों का समूह है जिसको सभ्य राज्य परस्पर मिल कर लागू
करते है। यह कानून सर्वोच्चता प्रयोग होने वाले राज्यों के नियमो पर निर्भर
होता है।

आज कल अंतर्राष्ट्रीय  कानून कि पारंपरिक परिभाषा विलुप्त हो गयी है जो परिभाषा
है उससे अंतर्राष्ट्रीय  क़ानूनों के गुणो , प्रकृति आदि का बोध नही हो पता
है।कानून कि व्यक्तिगत अवधारणा का स्थान आज सामाजिक अवधारणा ले रहा है।आज का
अंतर्राष्ट्रीय  कानून केवल विधि ही नही बल्कि राजनीतिक ,सामाजिक ,मौलिक रूप ले
रहा है।

इस परिवर्तन को देखते हुए ऐसी परिभाषा का भी वर्णन करना चाहिए जो परिवर्तन और
विकास कि और ले जा रही हो। जो अंतर्राष्ट्रीय  कानून को जीवित और विकसित करती हो।

अडवर्ड कालिस के अनुसार-

अंतर्राष्ट्रीय  कानून निरंतर विकसित होने वाले नियमों का समूह है जो कि
अंतर्राष्ट्रीय  सदस्य परस्पर संबंधों को बनाए रखने के लिए प्रयोग करते है। यह
राज्यों और उससे संबन्धित व्यक्तियों को अधिकार प्रदान करते है।

अंतर्राष्ट्रीय  कानून के आवश्यक तत्व –

अंतर्राष्ट्रीय  कानून के आवश्यक तत्व निम्नलिखित है।

इसमे भी विभिन्न विद्वानो का अलग अलग मत है। किसी के अनुसार अंतर्राष्ट्रीय
कानून कानून है किसी के अनुसार यह कानून नही है। कानून मे यह गुण होना आवश्यक
है। और

इस कानून मे निम्न तत्व पाये जाते है।

सभी देशो के मध्य पाये जाने वाले व्योहार और आचरण

रीति रिवाज और परम्परा

विभिन्न देशो के मध्य होने वाले समझौते

इसमे तत्वो को समझने के लिए सबसे पहले नियम और कानून को अच्छे से जान लेना
आवश्यक है।

अंतर्राष्ट्रीय  कानून के रूप मे कानून शब्द भ्रम उत्पन्न करता है क्योकि यह
नियमो का समूह है न कि कानून है। नियमो को इसलिए बनाया जाता है कि समाज के
व्यक्तियों के आचरण को नियंत्रित किया जा सके।ये नियम भी कई प्रकार के होते है
और कही कही पर ये नियम कानून से जादा बाध्यकारी होते है।

जो व्यक्ति धर्म के अनुसार चलता है वह धर्म के वीरुध कार्य नही कर सकता है। और
जब कोई प्रथा लंबे समय से चलती आ रही है तो वह रूढ़ि बन जाती है। और यह लोकमत
प्राप्त होती है।

कानून वह शक्ति होती है जो राज्य के द्वारा बाध्यकारी होती है।और इस नियम क
जो उलंघन करता है उसको दंड दिया जाता है। अंतर्राष्ट्रीय  कानून की अवहेलना ठीक
उसी प्रकार से की जाती है जैसे नागरिक कानून की होती है।

ऑस्टिन ने माना कि जो तत्व अंतर्राष्ट्रीय  कानून मे होना चाहिए वह इसमे नही ह
अतः यह कानून नही है बल्कि यह नियमो का समूह मात्र ही है।यह बाध्यकारी नही है।

किसी भी कानून को कानून तभी माना जाएगा जब उसकी नियुक्ति करने के लिए एक
संस्था का होना आवश्यक है। क्योकि यह दोनों ही गुण इसमे नही है अतः यह कानून
नही है बल्कि नियमो कि शक्ति मात्र है।

कुछ विद्वान ने कहा कि यह भिन्न कानून है और यह विधि से भिन्न है।यह कानून नही
है ऑस्टिन ने प्रमुख रूप से यह माना है कि यह नैतिक मूल्यो का समूह है यह
कानून नही है।

यह एक कमजोर कानून है क्योकि अब आचरण का नियम धीरे धीरे लुप्त होता जा रहा है।
और समय के अनुसार यह बदलता रहता है। इसलिए यह कानून नही है।

रीति रिवाज और परंपरा भी समय के साथ परिवर्तित होती जा रही है पहले महिलाये
नौकरी नही करती थी फिर भी वह मालकिन कही जाती थी। पुरुष अपना सम्पूर्ण धन
उन्हे सौप देता था आज महिलाये नौकरी कर रही है और उनका अधिकार कम होता जा रहा
है। समाज की द्रस्टी से तो महिला सशक्त हो गयी है पर आज महिलाओ की स्थित दयनीय
है कहा वो पूज्यनीय होती थी। यह सोच आचरण रीति रिवाज के अनुसार बदलता जा रहा
है अतः यह कोई कानून नही है।

यदि कई देशो के मध्य झगड़ा हो रहा है तो कोई भी आधिकारिक शक्ति नही है जो
निर्णय दे सके। अंतर्राष्ट्रीय  कानून सलहकार के रूप मे कार्य करता है।यह एक
कमजोर कानून है।

अंतर्राष्ट्रीय  कानून एक भ्रम है यह स्वतंत्र राज्यो के मध्य कोई स्वतंत्र
संस्था नही है जो बाध्यकारी हो किसी देश पर अतः यह भ्रम का कानून है।

अंतर्राष्ट्रीय  कानून का पालन करना राज्यो की इच्छा पर निर्भर है कोई देश अगर
कोई समझौता करता है तो वह अपने हित के लिए करता है कोई ऐसी शक्ति नही है जो
उनको कानून मानने के लिए बाध्य कर सके। इसलिए अंतर्राष्ट्रीय  कानून को कानून
कहना ठीक नही है बल्कि यह नियमो का सिधान्त हो सकता है।

इस प्रकार हमने आपको इस पोस्ट के माध्यम से अंतर्राष्ट्रीय  कानून को समझाने का
प्रयास किया है यदि कोई गलती हुई हो या आप इसमे और कुछ जोड़ना चाहते है या
इससे संबंधित आपका कोई सुझाव हो तो आप हमे अवश्य सूचित करे।

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