भारतीय दंड संहिता धारा 186 से 190 तक का विस्तृत अध्ययन

जैसा कि आप सभी को ज्ञात होगा इससे पहले की पोस्ट मे भारतीय दंड संहिता तक का विस्तृत अध्ययन करा चुके है यदि आपने यह धाराये नही पढ़ी है तो पहले आप उनको पढ़ लीजिये जिससे आपको आगे की धाराएं समझने मे आसानी होगी।

धारा 186

इस धारा मे बताया गया है की लोक सेवक के लोक हित कार्यो के निर्वहन में बाधा डालने पर क्या परिड़ाम होगा।

जो कोई व्यक्ति किसी लोक सेवक के लोक कृत्यों के निर्वहन में स्वेच्छा से बाधा डालेगा । वह साधारण या कठिन दोनों में से किसी भांति के कारावास से जिसकी अवधि तीन मास तक की हो सकती है। या जुर्माना जो की पांच सौ रुपए तक का हो सकता है। या फिर दोनों से दंडित किया जा सकता है। इसका अर्थ यह है कि जो कोई व्यक्ति किसी प्रकार की सरकार द्वारा प्रदत्त अधिकारों के तहत लोगो के कल्याण के कार्यों में लिप्त हो इसको ही लोक कृत्यों के निर्वहन कहा जाता है |और अगर इसमें कोई बाधा डाले या रुकावट पैदा करे तो ये एक अपराध माना जाएगा।

यदि जो कोई व्यक्ति किसी लोक सेवक के लोक कृत्यों के निर्वहन में अपनी मर्जी से बाधा डालेगा, उसको इस अपराध के लिए दंडित किया जाएगा। यह एक जमानती और गैर संज्ञेय अपराध माना गया है। और किसी भी मजिस्ट्रेट द्वारा विचारणीय है।
यह अपराध समझौता करने योग्य नहीं है।

धारा 187

इस धारा मे बताया गया है की अगर कोई लोक सेवक विधि द्वारा बंधे किसी कर्तव्यों का पालन करते हुए कोई कार्य को कर रहा है। या किसी वैध जाँच कर रहा है। तब कोई व्यक्ति उस अधिकारी की सहायता नही करता या सही जानकारी छुपाता हैं। तब ऐसा करने वाला व्यक्ति इस धारा अंतर्गत दोषी होगा।अगर इसमें कोई बाधा डाले या रुकावट पैदा करे तो ये एक अपराध माना जाएगा।यदि जो कोई व्यक्ति किसी लोक सेवक के लोक कृत्यों के निर्वहन में अपनी मर्जी से बाधा डालेगा, उसको इस अपराध के लिए दंडित किया जाएगा। यह एक जमानती और गैर संज्ञेय अपराध माना गया है। और किसी भी मजिस्ट्रेट द्वारा विचारणीय है।
यह अपराध समझौता करने योग्य नहीं है।

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इसकी सजा को निम्न प्रकार बताया गया है।
कोई भी सरकारी अधिकारी की यदि जानबूझकर कर सहायता करने से मना करना या सही जानकारी नही देने पर एक माह की कारावास या दो सौ रूपये जुर्माना या दोनो से दण्डित किया जा सकता है।

और यदि आदेश निष्पादन या अपराधों के निवारण में जानबूझकर कर सहायता न करने पर उसको छह माह की कारावास या पांच सौ रुपये जुर्माना या दोनों से दण्डित किया जा सकता है।

धारा 188

इस धारा मे बताया गया है की कोई न्यायालय जो की धारा 172 से धारा 188 तक की धाराओं के (जिनके अन्तर्गत ये दोनों धाराएँ भी हैं)उसके अधीन दण्डनीय किसी अपराध का
अथवा ऐसे अपराध के किसी दुष्प्रेरण या ऐसा अपराध करने के प्रयत्न का
अथवा ऐसा अपराध करने के लिए किसी आपराधिक षड्यंत्र का, ज्ञान संबद्ध लोक-सेवक के अथवा
किसी अन्य ऐसे लोक-सेवक के, जिसके वह प्रशासनिक तौर पर अधीनस्थ है। लिखित परिवाद पर ही करेगा, अन्यथा नहीं।

इसको सरल भाषा मे समझे तो जब जिले के लोक सेवक के द्वारा लागू विधान का उल्लंघन किया जाता है। तब ये सरकारी आदेश के पालन में बाधा और अवज्ञा के तहत आता है. जब प्रशासन की ओर से लागू किसी ऐसे नियम जिसमें जनता का हित छुपा होता है। और कोई इसकी अवमानना करता है तो प्रशासन उस पर यह धारा लागू करती है।

उत्तर प्रदेश राज्य बनाम माता भीख और अन्य (1994) 4 एससीसी 95 के मामले में उच्चतम न्यायालय ने यह साफ़ किया था कि कोई भी अदालत, आईपीसी की धारा 172 से 188 (दोनों सम्मिलित) के तहत किसी भी अपराध का संज्ञान, ‘सम्बंधित लोक सेवक’ या उसको छोडकर अन्य परिवाद को नही ले सकती है।
इसकी अवमानना करने पर एक माह की कारावास या दो सौ रूपये जुर्माना या दोनो से दण्डित किया जा सकता है।
अगर ये अवज्ञा मानव जीवन, स्वास्थ्य या सुरक्षा के लिए खतरे का कारण बनती है। या दंगे का कारण बनती है। तब ये सजा छह महीने के कारावास या 1000 रुपये जुर्माना या फिर दोनों हो सकता है।

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जैसे आज के समय मे कोरोना वायरस को रोकने के लिए महामारी रोग अधिनियम, 1897 की धारा 3, अधिनियम के तहत किये गए किसी भी विनियमन या आदेश की अवज्ञा करने के लिये दंड का प्रावधान करती जो कि लोक सेवक द्वारा जारी आदेश का उल्लंघन करने से संबंधित है।

धारा 189

इस धारा मे यह बताया गया है की जो कोई किसी लोक सेवक को या ऐसे किसी व्यक्ति को जिससे उस लोक सेवक के हितबद्ध होने का उसे विश्वास रखता हो और इस प्रयोजन से क्षति की कोई धमकी देगा कि उस लोक सेवक को उत्प्रेरित किया जाए। कि वह ऐसे लोक सेवक के कार्य के प्रयोग से संसक्त कोई कार्य करे या करने से प्रविरत रहे। या करने में विलम्ब करे तो ऐसे व्यक्ति को वह साधारण या कठिन दोनों में से किसी भांति के कारावास से जिसकी अवधि 2 वर्ष तक की हो सकती है। या जुर्माना या फिर दोनों से दंडित किया जा सकता है।

धारा 190

इस धारा मे यह बताया गया है की लोक सेवक से संरक्षा के लिए आवेदन करने से विरत रहने के लिए किसी व्यक्ति को उत्प्रेरित करने के लिए क्षति की धमकी देना शामिल है।

जो कोई किसी व्यक्ति को इस प्रयोजन से क्षति की कोई धमकीदेता है कि वह उस व्यक्ति को उत्प्रेरित करे कि वह किसी क्षति से संरक्षा के लिए कोई वैध आवेदन किसी ऐसे लोक सेवक से करने से विरत रहे। या प्रतिविरत हो। जो ऐसे लोक सेवक के नाते ऐसी संरक्षा करने या कराने के लिए वैध रूप से सशक्त हो तो वह साधारण या कठिन दोनों में से किसी भांति के कारावास से जिसकी अवधि 2 वर्ष तक की हो सकती है। या जुर्माना या फिर दोनों से दंडित किया जा सकता है।

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यदि आपको इन धाराओ को समझने मे कोई परेशानी आ रही है। या फिर यदि आप इससे संबन्धित कोई सुझाव या जानकारी देना चाहते है।या आप इसमे कुछ जोड़ना चाहते है। तो कृपया हमे कमेंट बॉक्स मे जाकर अपने सुझाव दे सकते है।

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