जैसा कि आप सभी को ज्ञात होगा इससे पहले की पोस्ट मे भारतीय दंड संहिता तक का विस्तृत अध्ययन करा चुके है यदि आपने यह धाराये नही पढ़ी है तो पहले आप उनको पढ़ लीजिये जिससे आपको आगे की धाराएं समझने मे आसानी होगी।
धारा 179
इस धारा के अनुसार जब कोई किसी लोकसेवक से किसी विषय पर सत्य कथन करने के लिए वैध रूप से आबद्ध होते हुए, ऐसे लोक सेवक की वैध शक्तियों के प्रयोग में उस लोक सेवक द्वारा उस विषय के बारे में उससे पूछे गए किसी प्रश्न का उत्तर देने से इंकार करेगा तो उसे 6 माह की अवधि के लिए साधारण कारावास की सजा हो सकती है। या एक हजार रुपए तक का आर्थिक दण्ड या फिर दोनों से दण्डित किया जाएगा। यह मुख्य रूप से कानूनी रूप से राज्य की सच्चाई के लिए बाध्य होना और सवालों के जवाब देने से इंकार करने पर दिया जाता है।
धारा 180
इस धारा मे कथन पर हस्ताक्षर करने से इंकार करने के बारे मे बताया गया है। इसके अनुसार जो कोई अपने द्वारा किए गए किसी कथन पर हस्ताक्षर करने को ऐसे लोक सेवक द्वारा अपेक्षा किए जाने पर जो उससे यह अपेक्षा करने के लिए वैध रूप से सक्षम हो कि वह व्यक्ति उस कथन पर हस्ताक्षर करे तथा वह व्यक्ति उस कथन पर हस्ताक्षर करने से इंकार करेगा तो वह सादा कारावास से जो की तीन मास तक की हो सकेगी या जुर्माना जो पांच सौ रुपए तक का हो सकता है। या दोनों से दंडित किया जा सकता है।
धारा 181
जब कोई लोकसेवक या कोई व्यक्ति जानबूझकर ऐसी शपथ या प्रतिज्ञा लेगा जो शपथ या प्रतिज्ञा विधि के अनुसार सही नहीं हैया वह झूठी हैं अवैध है या जो लोकसेवक शपथ दिला रहा है। या उसकी अधिकारिता से पूर्णतः बाहर होया अधिकृत न हो। तब जो लोकसेवक या कोई व्यक्ति ऐसा करेगा वह इस धारा के अंतर्गत दोषी होगा। इस धारा के अपराध किसी भी प्रकार से समझौता योग्य नहीं होते हैं। यह अपराध असंज्ञेय एवं जमानतीय अपराध होते है। इनकी सुनवाई प्रथम श्रेणी के मजिस्ट्रेट करते हैं। जो इसका पालन नही करता है। वह सादा कारावास से जो की तीन मास तक की हो सकेगी या जुर्माना जो पांच सौ रुपए तक का हो सकता है।
धारा 182
इस धारा के अनुसार जब कोई किसी लोक सेवक को कोई ऐसी सूचना जो की निराधार होने का उसे ज्ञान या विश्वास है। तब इस आशय से देगा कि वह उस लोक सेवक को प्रेरित करे या यह सम्भाव्य जानते हुए देगा कि वह उस लोक सेवक को तद्द्वारा प्रेरित करे कि वह
कोई ऐसी काम करे या छोड़े जिसे वह लोक सेवक, यदि उसे उस संबंध में, जिसके बारे में ऐसी सूचना दी गई है। तब ऐसे तथ्यों की सही स्थिति का पता होता तो न करता या छोड़ता अथवा
ऐसे लोक सेवक की विधिपूर्ण शक्ति का उपयोग करे जिस उपयोग से किसी व्यक्ति को क्षति या क्षोभ हो।
तो उसे 6 माह की अवधि के लिए कारावास की सजा या एक हजार रुपए तक का आर्थिक दंड या दोनों से दण्डित किया जा सकता है।
धारा 183
जब कोई व्यक्ति अगर किसी सरकारी अधिकारी द्वारा विधिपूर्ण अधिकारित अधिकार से कोई संपत्ति लिए जाने का आदेश जारी है। और तब कोई व्यक्ति इस कार्य मे प्रतिरोध बाधा, रुकावट, या प्रतिबंध करता है तब वह व्यक्ति धारा 183 के अंतर्गत दोषीमाना जाएगा।
यहा पर प्रतिरोध का आशय शारिरिक सक्रिय बाधा उत्पन्न करने से है।जो की संपत्ति देने से मना करना या बाधा पंहुचाने की धमकी देना इस धारा में प्रतिरोध का अपराध नहीं है।इसमे पुलिस के कार्य या कर्तव्य का अनुपालन में नुकसान पहुंचने की धमकी देना इस धारा के अंतर्गत अपराध नहीं है।
इस धारा के अपराध किसी भी प्रकार से समझौता योग्य नहीं होता । यह असंज्ञेय एवं जमानतीय अपराध होते हैं। इनकी सुनवाई कोई भी मजिस्ट्रेट कर सकते इसमे 6 माह की अवधि के लिए कारावास की सजा या एक हजार रुपए तक का आर्थिक दंड या दोनों से दण्डित किया जा सकता है।
धारा 184
इस धारा के अनुसार जो भी कोई ऐसी किसी संपत्ति के विक्रय में जो किसी लोक सेवक के विधिपूर्ण प्राधिकार द्वारा विक्रय के लिए प्रस्थापित की गई हो इस आशय से बाधा डालता है। तो उसे उसे 1 माह की अवधि के लिए कारावास की सजा या पांच सौ रुपए तक का आर्थिक दण्ड या दोनों से दण्डित किया जाएगा। लागू अपराध लोक सेवक के प्राधिकार द्वारा विक्रय के लिए प्रस्थापित की गई संपत्ति के विक्रय में बाधा डालना। इसमे एक महीने कारावास और पांच सौ रुपए आर्थिक दण्ड या दोनों से दंडित किया जा सकता है। यह एक जमानती गैर-संज्ञेय अपराध है। और किसी भी मेजिस्ट्रेट द्वारा विचारणीय है। यह अपराध समझौता करने योग्य नहीं है।
धारा 185
इस धारा के अनुसार जो कोई किसी प्रकार की सरकार द्वारा प्रदत्त अधिकारों के तहत लोगो के कल्याण के कार्यों में संलग्न हो इसको ही लोक कृत्यों के निर्वहन कहा जाता है।
और अगर इसमें कोई बाधा डाले या रुकावट पैदा करे तो ये एक अपराध है। जो कोई किसी लोक सेवक के लोक कृत्यों के निर्वहन में अपनी मर्जी से बाधा डालेगा। उसको इस अपराध के लिए दंडित किया जाएगा । जिसमे उसे किसी एक अवधि के लिए कारावास की सजा जिसे 3 माह तक बढ़ाया जा सकता है, या 500 रुपए तक का आर्थिक दण्ड, या दोनों दिए जा सकते है | यह एक जमानती गैर-संज्ञेय अपराध है। और किसी भी मेजिस्ट्रेट द्वारा विचारणीय है। यह अपराध समझौता करने योग्य नहीं है।
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