जैसा कि आप सभी को ज्ञात होगा इससे पहले की पोस्ट मे भारतीय दंड संहिता धारा 228 तक का विस्तृत अध्ययन करा चुके है यदि आपने यह धाराएं नहीं पढ़ी तो आप उनको पढ़ लीजिये जिससे आपको आगे की धाराएं समझने में आसानी होगी।
धारा 229-
भारतीय दंड संहिता की धारा 229 के अनुसार ऐसा कोई मामला जो कोई किसी मामले में प्रतिरूपण के द्वारा या अन्यथा अपने को यह जानते हुए जूरी सदस्य या संकलन कर्ता के रूप में तालिकांकित, सूचीबद्ध या गॄहीतशपथ इस आशय के साथ कराई गई या होने देना जानते हुए सहन करेगा कि वह इस प्रकार तालिकांकित, सूचीबद्ध या गॄहीतशपथ होने का विधि द्वारा हकदार नहीं है । या यह जानते हुए कि वह इस प्रकार तालिकांकित, सूचीबद्ध या गृहीत शपथ विधि के द्वारा प्रतिकूल हुआ है। उसे जूरी में या ऐसे संकलन कर्ता के रूप में स्वेच्छा पूर्वक सेवा करेगा। तो उसे 2 वर्ष तक का कारावास जो की कठोर कारावास तक बढ़ाया जा सकता है। जो कि या आर्थिक दंड कारावास या दोनों से दण्डित किया जाएगा।
इसमे निम्न अपराध को शामिल किया जाता है जिसमें की जूरी सदस्य या संकलन कर्ता का प्रतिरूपण शामिल है।यह एक जमानती तथा गैर-संज्ञेय अपराध है और प्रथम श्रेणी के न्यायाधीश द्वारा विचारणीय है।तथा यह अपराध समझौता करने योग्य नहीं है।
धारा 230-
इस धारा के अनुसार “सिवका” की परिभाषा को बताया गया है।
सिक्का जो की तत्समय धन के रूप में उपयोग में लाई जा रही एक प्रतिभूति है। और इस प्रकार उपयोग में लाए जाने के लिए किसी भी प्रकार के राज्य या संपूर्ण प्रभुत्व सम्पन्न शक्ति के प्राधिकार द्वारा, स्टाम्पित और प्रचलित धातु है ।
भारतीय सिक्का–भारतीय सिक्का धन के रूप में उपयोग में लाए जाने वाला भारत सरकार के प्राधिकार द्वारा स्टाम्प और प्रचलित एक धातु है। और इस प्रकार स्टाम्प और प्रचलित धातु इस अध्याय के प्रयोजनों के लिए भारतीय सिक्का हमेशा बनी रहती है। यद्यपि धन के रूप में उसका उपयोग में लाया जाना बंद हो गया हो ।
दृष्टांत-
(क) कौड़ियाँ सिक्के नहीं हैं।
(ख) मुद्रित तांबे के टुकड़े, यद्यपि धन के रूप में उपयोग में लाए जाते हैं। वह अब सिक्के नहीं हैं ।
(ग) पदक सिक्के नहीं हैं। क्योंकि वे धन के रूप में उपयोग में लाए जाने के लिए आश्रित नहीं हैं।
(घ) जिस सिक्के का नाम कंपनी रुपया है। वह एक प्रकार का भारतीय सिक्का है।
(ङ) “फरूखाबाद रुपया जो धन के रूप में भारत सरकार के प्राधिकार के अधीन पहले कभी उपयोग में लाया जाता था। वह भारतीय सिक्का माना गया है, यद्यपि वह अब इस प्रकार उपयोग में नहीं लाया जाता है |
धारा 231 –
इस धारा के अनुसार जो कोई सिक्के का कूटकरण करेगा या फिर यह जानते हुए सिक्के के कूटकरण की प्रतिक्रिया के किसी भाग को करेगा वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से जो की साधारण या कठिन कारावास हो सकता है और जिसकी अवधि सात वर्ष तक की हो सकेगी। उस अनुसार दंडित किया जाएगा और जुर्माने से भी दंडनीय होगा ।
स्पष्टीकरण-
जो व्यक्ति असली सिक्के को किसी अलग सिक्के के जैसा दिखाई देने वाला इस आशय से बनाता है । कि उसकी प्रवंचना की जाए या यह संभाव्य जानते हुए बनाता है कि उस अनुसार उसकी प्रवंचना की जाएगी। वह यह अपराध करता है ।
1. 1872 के अधिनियम की 19 की धारा 1 द्वारा प्रथम मूल पैरा के स्थान पर प्रतिस्थापित ।
2. विधि अनुकूलन आदेश, 1950 के द्वारा पूर्ववर्ती पैरा के स्थान पर प्रतिस्थापित ।
3. विधि अनुकूलन आदेश, 1950 के द्वारा क्वीन का सिक्का के स्थान पर प्रतिस्थापित ।
4. 1896 के अधिनियम संख्या 6 की धारा 1(2) के द्वारा जोड़ा गया ।
5. विधि अनुकूलन आदेश, 1950 के द्वारा क्वीन के सिक्के के स्थान पर प्रतिस्थापित ।
धारा 232 –
इस धारा के अनुसार जो कोई भी भारतीय सिक्के का कूटकरण करेगा ।या फिर यह जानते हुए भारतीय सिक्के के कूटकरण की प्रतिक्रिया के किसी भाग को करेगा। तो वह आजीवन कारावास से या फिर दोनों में से किसी भांति के कारावास से जो की दस वर्ष से कम नहीं होगी। इस अवधि तक दंडित किया जाएगा और जुर्माने से भी दंडनीय होगा ।।यह एक जमानतीतथा गैर-संज्ञेय अपराध है और सत्र न्यायालय के द्वारा विचारणीय है।तथा यह अपराध समझौता करने योग्य नहीं है।
धारा 233-
इस धारा के अनुसार सिक्के के कूटकरण के लिए उपकरण बनाना या बेचना बताया गया है।
इसके अनुसार जो कोई किसी डाई या उपकरण को सिक्के के कूटकरण के लिए उपयोग में लाए जाने के प्रयोजन से या फिर यह जानते हुए या यह विश्वास करने का कारण रखते हुए कि वह सिक्के के कूटकरण में उपयोग में लाए जाने के लिए आशयित है। उस सिक्के को बनाएगा या सुधरेंगे या बनाने या सुधारने की प्रतिक्रिया के किसी भाग को करेगा। अथवा खरीदना, बेचना या व्ययनित करेगा। वह दोनों में से किसी भी भांति के कारावास से जो की तीन वर्ष तक की हो सकेगी उसे दंडित किया जाएगा तथा जुर्माने से भी दंडनीय होगा ।
धारा 234 –
इस धारा के अनुसार भारतीय सिक्के के कूटकरण के लिए उपकरण बनाना या बेचना के सजा का प्रावधान बताया गया है।
जो कोई व्यक्ति किसी डाई या उपकरण को भारतीय सिक्के के कूटकरण के लिए उपयोग में लाए जाने के प्रयोजन से या फिर यह जानते हुए या यह विश्वास करने का कारण रखते हुए कि वह भारतीय सिक्के के कूटकरण में उपयोग में लाए जाने के लिए निर्धारित है की वह बनेगा या सुधरेंगे या बनाने या सुधारने की प्रक्रिया के किसी भाग को करेगा। अथवा खरीदना, बेचना या व्ययनित करेगा फिर वह दोनों में से किसी भी भांति के कारावास से जिसकी अवधि सात वर्ष तक की हो सकेगी उसे दंडित किया जाएगा और जुर्माने से भी दंडनीय होगा।
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