भारतीय दंड संहिता धारा 225 से 228 तक का विस्तृत अध्ययन

जैसा कि आप सभी को ज्ञात होगा इससे पहले की पोस्ट मे भारतीय दंड संहिता धारा 224   तक का विस्तृत अध्ययन करा चुके है यदि आपने यह धाराएं नहीं पढ़ी तो आप उनको पढ़ लीजिये जिससे आपको आगे की धाराएं समझने में आसानी होगी।

धारा 225 –

इस धारा के अनुसार किसी अन्य व्यक्ति के विधि के अनुसार पकड़े जाने में प्रतिरोध या बाधा को बताया गया है।
जो कोई व्यक्ति  किसी अपराध के लिए किसी दूसरे व्यक्ति के विधि के अनुसार पकडे जाने में साशय प्रतिरोध करेगा या अवैध बाधा डालेगा या फिर किसी दूसरे व्यक्ति को किसी ऐसी अभिरक्षा से जिसमें वह व्यक्ति किसी अपराध के लिए विधिपूर्वक निरुद्ध हो, साशय छुडाएगा या छुडाने का प्रयत्न करेगातो  वह किसी भी प्रकार के कारावास जुर्माना जो की 2 वर्ष तक हो सकता है या दोनों से दंडित किया जा सकता है।

अथवा यदि वह  व्यक्ति पर जिसे पकडा जाना हो या जो छुडाया गया हो या, जिसके छुडाने का प्रयत्न किया गया हो यदि उसको आजीवन कारावास की सजा दी गयी हो या फिर उसको जो सजा दी गयी है वह 10 साल से अधिक की है । तो वह व्यक्ति जो उसको छुढ़ाएगा  वह किसी भी प्रकार के कारावास जुर्माना जो की 3 वर्ष तक हो सकता है या दोनों से दंडित किया जा सकता है।

अथवा यदि उस व्यक्ति पर जिसे पकडा जाना हो या जो छुडाया गया ह। , या जिसके छुडाने का प्रयत्न किया गया हो,ऐसे व्यक्ति को यदि मृतु दंड का  अपराध का आरोप हो या वह उसके लिए पकड़े जाने के दायित्व के अधीन होतो ऐसा व्यक्ति जो उसको छुढ़ाएगा  वह किसी भी प्रकार के कारावास जुर्माना जो की 2  वर्ष तक हो सकता है या दोनों से दंडित किया जा सकता है।

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अथवा यदि वह व्यक्ति जिसे पकडा जाना हो या जो छुडाया गया हो या जिसके छुडाने का प्रयत्न किया गया हो, किसी न्यायालय के दंडादेश के अधीन या वह ऐसे दंडादेश के लघुकरण के आधार पर यदि उसको आजीवन कारावास की सजा दी गयी हो या फिर उसको जो सजा दी गयी है वह 10 साल से अधिक की है । तो वह व्यक्ति जो उसको छुढ़ाएगा  वह किसी भी प्रकार के कारावास जुर्माना जो की 7  वर्ष तक हो सकता है या दोनों से दंडित किया जा सकता है।

अथवा यदि वह व्यक्ति जिसे पकड़ा जाना हो या जो छुडाया गया हो या जिसके छुडाने का प्रयत्न किया गया हो,यदि मृतु दंड का  अपराध का आरोप हो या वह उसके लिए पकड़े जाने के दायित्व के अधीन होतो वह व्यक्ति जो उसको छुड़ाएगा वह   दोनों में से किसी भांति के कारावास से, इतनी अवधि के लिए जो इस वर्ष से अनधिक है, दंडित किया जाएगा और जुर्माने से भी दंडनीय होगा ।

धारा 226 –

इस धारा मे निर्वासन से विधिविरुद्ध वापसी को बताया गया है। यह धारा निरसित कर दी गयी है।

धारा 227-

इस धारा के अनुसार जो कोई दंड का सशर्त परिहार प्रतिगॄहीत कर लेने परउस शर्त के अनुसार  जिस पर ऐसा परिहार दिया गया था। यह  जानते हुए उस पर अतिक्रमण करेगा। और  यदि वह उस दंड का, जिसके लिए वह मूलतः दंडादिष्ट किया गया था। उसमे  कोई भाग पहले ही न भोग चुका हो तो ऐसे दशा मे वह उस दंड से और यदि वह उस दंड का कोई भाग भोग चुका हो। तो वह उस दंड के उतने भाग को  जितने को वह पहले ही भोग चुका हो बाकी बचे भाग से दंडित किया जाएगा । यह एक संज्ञेय अपराध है । और यह गैर जमानती वारंट द्वारा जारी किया जाता है।

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धारा 228-

इस धारा के अनुसार कतिपय अपराधों आदि से पीड़ित व्यक्ति की पहचान का प्रकटीकरण को बताया गया है।

(1) जो कोई किसी नाम या अन्य बात को जिससे किसी ऐसे व्यक्ति की जिसको इस धारा के अनुसार पीड़ित व्यक्ति कहा जा सकता है और उसकी पहचान हो सकती है। तथा  जिसके विरुद्ध धारा 376, धारा 376क, धारा 376ख, धारा 376ग या धारा 376घ के अधीन किसी अपराध का किया जाना निश्चित होता है। यह मुद्रित या प्रकाशित करेगा वह दोनों में से किसी भी ऐसे कारावास से  जिसकी अवधि दो वर्ष तक की हो सकती है उसके लिए दंडित किया जाएगा और जुर्माने से भी दंडनीय होगा ।या फिर दोनों से दंडनीय हो सकता है।

(2) उपधारा (1) के अनुसार किसी भी बात का विस्तार किसी नाम या अन्य बात के ऐसे मुद्रण या प्रकाशन पर जिससे  यदि उससे पीड़ित व्यक्ति की पहचान हो सकती है। यह धारा उस दशा मे लागू नहीं होता है जब ऐसा मुद्रण या प्रकाशन–

1. 1957 के अधिनियम सं0 36 की धारा 3 और अनुसूची 2 के  द्वारा  के लिए शब्दों का लोप किया गया ।

2. 1955 के अधिनियम सं0 26 की धारा 117 और अनुसूची  के द्वारा (1-1-1956 से) निर्वासन शब्द का लोप किया गया ।

3. 1949 के अधिनियम सं0 17 की धारा 2 के  द्वारा (6-4-1949 से) कठोरश्रम कारावास शब्दों का लोप किया गया ।

4. 1886 के अधिनियम सं0 10 की धारा 24(1) द्वारा धारा 225क तथा 225ख को धारा 225क, जो 1870 के अधिनियम सं0 27 की धारा 9 के द्वारा अंतःस्थापित की गई थी। उसके स्थान पर प्रतिस्थापित ।

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5. 1983 के अधिनियम सं0 43 की धारा 2 के  द्वारा (25-12-1983 से) अंतःस्थापित ।

(क) पुलिस थाने के भारसाधक अधिकारी के  द्वारा या उसके लिखित आदेश के अधीन रहते हुए अथवा ऐसे अपराध का अन्वेषण करने वाले पुलिस अधिकारी के द्वारा जो ऐसे अन्वेषण के प्रयोजनों के लिए  कार्य करता है । या उसके लिखित आदेश के अधीन कार्य किया जाता है ।  या
(ख) पीडित व्यक्ति के  द्वारा या उसके लिखित प्राधिकार से किया जाता है।
(ग) जहां पीड़ित व्यक्ति की मॄत्यु हो चुकी है।  अथवा वह अवयस्क या विकॄतचित्त है। और  वहां पीड़ित व्यक्ति के निकट संबंधी के  द्वारा या उसके लिखित प्राधिकार से सूचित  किया जाता है ।

परन्तु  यदि निकट संबंधी  के द्वारा कोई भी ऐसा प्राधिकार किसी मान्यताप्राप्त कल्याण संस्था या संगठन के अध्यक्ष या सचिव के द्वारा जिसमे उसका जो भी नाम हो, भिन्न किसी अन्य व्यक्ति को नहीं दिया जाएगा ।

(3) जो कोई व्यक्ति उपधारा (1) में निर्दिष्ट किसी अपराध के अनुसार किसी न्यायालय के समक्ष किसी कार्यवाही के संबंध में या  उस न्यायालय की पूर्व अनुज्ञा के बिना कोई बात मुद्रित या प्रकाशित करेगा। तो  वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से चाहे वह साधारण हो या कठोर  जिसकी अवधि दो वर्ष तक की हो सकेगी उससे  दंडित किया जाएगा और जुर्माने से भी दंडनीय होगा ।

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