भारतीय दंड संहिता धारा 235 से 241 तक का विस्तृत अध्ययन

धारा 235-

इस धारा के अनुसार सिक्के के कुटकरण के लिए उपकरण या सामग्री उपयोग में लाने के प्रयोजन से उसे कब्जे में रखना आदि को बताया गया है।
जो कोई व्यक्ति  किसी उपकरण या सामग्री को सिक्के के कूटकरण में उपयोग में लाए जाने के प्रयोजन से या यह जानते हुए या यह विश्वास करने का कारण रखते हुए की वह उस प्रयोजन के लिए उपयोग में लाए जाने के लिए बाध्य होगा। वह  अपने कब्जे में रखेगाया फिर  वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से जिसकी अवधि तीन वर्ष तक होती है उससे  दंडित किया जाएगा और जुर्माने से भी दंडनीय होगा ।

यदि भारतीय सिक्का हो और यदि कूटकरण किया जाने वाला सिक्का भारतीय सिक्का है तो ऐसे स्थित मे वह दोनों में से किसी भांति के कारावास सेजो साधारण या कठोर हो सकता है और  जिसकी अवधि दस वर्ष तक की हो सकेगी उससे  दंडित किया जाएगा और जुर्माने से भी दंडनीय होगा |

धारा 236-

इस धारा के अनुसार भारत से बाहर सिक्के के कूटकरण का भारत में दुष्प्रेरण को बताया गया है।

भारतीय दंड संहिता की धारा 236 के अनुसारयह कहा जाता है कि  जो कोई[भारत में होते हुए भारत से बाहर सिक्के के कूटकरण का दुष्प्रेरण करेगा तो वह व्यक्ति   ऐसे दंडित किया जाएगा।  मानो उसने ऐसे सिक्के के कूटकरण का दुसप्रेरण भारत  में किया गया हो।  

धारा 237-

इस धारा के अनुसार भारत से बाहर सिक्के के कूटकरण का भारत में दुष्प्रेरण को बताया गया है।
 कूटकृत सिक्के का आयात या निर्यात के द्वारा जो कोई किसी कूटकृत सिक्के का यह जानते हुए या फिर विश्वास करने का कारण रखते हुए कि वह कूटकृत है।  भारत में जो आयात करेगा या भारत से जो निर्यात करेगा।  वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से जिसकी अवधि तीन वर्ष तक की हो सकेगीवह उस अनुसार  दंडित किया जाएगा और जुर्माने से भी दंडनीय होगा |

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धारा 238-

इस धारा के अनुसार भारतीय सिक्के की कूटकृतियों का आयात या निर्यात को बताया गया है।
इसके अनुसार जो कोई किसी कूटकृत सिक्के को यह जानते हुए या फिर ऐसा विश्वास करने का कारण रखते हुए कि वह भारतीय सिक्के की कूटकृति है। . इसके बावजूद भी वह भारत से आयात या फिर निर्यात करेगा तो वह आजीवन कारावास से दंडित किया जाएगा। जो की दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि दस वर्ष तक की हो सकेगीउस कारावास से  दंडित किया जाएगा और जुर्माने से भी दंडनीय होगा ।

धारा 239-

इस धारा के अनुसार  जो कोई अपने पास कोई ऐसा कूटकॄत सिक्का होते हुए जिसे वह उस समय जब वह उसके कब्जे में आया थाउसको यह  जानता था कि वह कूटकॄत है। या  कपटपूर्वक है  या इस आशय से कि कपट किया जाएकी  उसे किसी व्यक्ति को परिदत्त करेगा या किसी व्यक्ति को उसे लेने के लिए उत्प्रेरित करने का प्रयत्न करेगा। ऐसे स्थित मे  वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से जिसकी अवधि पांच वर्ष तक की हो सकेगी उस कारावास से  दंडित किया जाएगा और जुर्माने से भी दंडनीय होगा ।

धारा 240-

इस धारा के अनुसार उस भारतीय सिक्के का परिदान जिसका कूटकृत होना कब्जे में आने के समय ज्ञात था उसके बारे मे बताया गया है।
जो कोई अपने पास कोई ऐसा कूटकृत सिक्का होते हुए जो भारतीय सिक्का है और  जो भारतीय सिक्के की कूटनीति हो और जिसे वह उस समय के अनुसार  जब वह उसके कब्जे में आया था तब वह  जानता था कि वह भारतीय सिक्के की कूटकृति है।  कपटपूर्वक, या इस आशय से कि कपट किया जाएकी  उसे किसी व्यक्ति को परिदत्त करेगा या किसी व्यक्ति को उसे लेने के लिए उत्प्रेरित करने का प्रयत्न करेगा।  वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से जो की 10 साल  का कारावास जो की कठिन या साधारण हो सकता है उसे  दंडित किया जाएगा और जुर्माने से भी दंडनीय होगा ।

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धारा 241

इस धारा के अनुसार  किसी सिक्के का असली सिक्के के रूप में परिदान, जिसका प्रदान करने वाला उस समय जब वह उसके कब्जे में पहली बार आया था। उसका कूटकॄत होना नहीं जानता था बताया गया है।

जो कोई किसी दूसरे व्यक्ति को कोई ऐसा कूटकृत सिक्का जिस सिक्के  जिसका कूटकृत होना वह जानता हो।  किन्तु उसका वह उस समय जिस समय से  जब उसने उसे अपने कब्जे में लिया हो ऐसे दशा मे  कूटकृत होना नहीं जानता था। और  असली सिक्के के रूप में प्रदान करेगा या किसी दूसरे व्यक्ति को उसे असली सिक्के के रूप में लेने के लिए उत्प्रेरित करने का प्रयत्न करता है।

1 1955 के अधिनियम सं0 26 की धारा 117 और अनुसूची द्वारा (1-1-1956 से) आजीवन निर्वासन के स्थान पर प्रतिस्थापित ।
2 ब्रिटिश भारत शब्द अनुक्रमशः भारतीय स्वतंत्रता (केन्द्रीय अधिनियम तथा अध्यादेश अनुकूलन) आदेश, 1948, विधि अनुकूलन आदेश, 1950 और 1951 के अधिनियम सं0 3 को धारा 3 और अनुसूची द्वारा प्रतिस्थापित किए गए हैं ।
3 विधि अनुकूलन आदेश, 1950 द्वारा क्वीन के सिक्के के स्थान पर प्रतिस्थापित ।
4 1955 के अधिनियम सं0 26 की धारा 117 और अनुसूची द्वारा (1-1-1956 से) आजीवन निर्वासन के स्थान पर प्रतिस्थापित । भारतीय दंड संहिता, 1860 48
करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि दो वर्ष तक की हो सकेगी, या इतने जुर्माने से, जो कूटकॄत सिक्के के मूल्य के दस गुने तक का हो सकेगा या  कठोर या साधारण दोनों से दंडित किया जाएगा ।

दृष्टांत

जय , एक सिक्काकार, अपने सह-अपराधी वीरू  को कूटकृत कम्पनी का रुपए चलाने के लिए परिदत्त करता है तथा वीरू  उन रुपयों को सिक्का चलाने वाले एक दूसरे व्यक्ति संजय  को बेच देता है, जो उन्हें कूटकृत जानते हुए खरीदता है । संजय  उन रुपयों को विजय  को, जो उनको कूटकृत न जानते हुए प्राप्त करता है, माल के बदले दे देता है । विजय  को रुपये प्राप्त होने के पश्चात् यह पता चलता है कि वे रुपए कूटकृत हैं।  और वह उनको इस प्रकार चलाता है, मानो वे असली हों । यहां, विजय   केवल इस धारा के अधीन दंडनीय है, किन्तु संजय और वीरू  यथास्थिति, धारा 239 या 240 के अधीन दंडनीय हैं ।

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