जैसा कि आप सभी को ज्ञात होगा इससे पहले की पोस्ट मे भारतीय दंड संहिता धारा 51 तक का विस्तृत अध्ययन करा चुके है यदि आपने यह धराये नही पढ़ी है तो पहले आप उनको पढ़ लीजिये जिससे आपको आगे की धराये समझने मे आसानी होगी।
धारा 52 –
भारतीय दंड संहिता की इस धारा के अनुसार यह धारा सद्भावपूर्वक को बताती है।इसके अनुसार यदि जो कोई बात सतर्कता और ध्यान के बिना की गई होती है वह सद्भावपूर्वक की गई या मानी नहीं जा सकती है।
धारा 53 –
भारतीय दंड संहिता की इस धारा के अनुसार अपराधी इस संहिता के उपबंधों के अधीन जिन दण्डों से दण्डनीय है वह इस प्रकार से है। इसमे सुधारत्म्क प्रावधान किया जाता है।
मॄत्यु का दंड
आजीवन कारावास
कारावास जिसके 2 प्रकार है।
कठिन कारावास और सादा
सम्पत्ति का समपहरण का दंड
आर्थिक दण्ड
1949 के अधिनियम 17 द्वारा निरस्त
यदि कही आजीवन निर्वाह शब्द का प्रयोग हुआ है तो उसको आजीवन कारावास समझा जाएगा।
हर विधि जिसमे उस विधि के पूरा होने से पहले निर्वाषित शब्द का प्रयोग हुआ हो तो उसको कठोर दंड माना जाता है।
निर्वासन शब्द का यदि प्रयोग किसी अवधि के लिए दिया गया है तो निर्देश लुप्त कर दिया गया समझा जाता है।
किसी अन्य विधि मे यदि कोई निर्वासन का निर्देश है और उस पैराग्राफ मे निर्वासन लिखा गया है तो उसको आजीवन कारावास समझा जाएगा।
यदि कम समय मे देश निकाला दिया गया है तो उसको लुप्त कर दिया गया है।
धारा 54
भारतीय दंड संहिता की धारा 54 के अनुसार सरकार हर मामले में जिसमें मॄत्यु का दण्डादेश दिया गया हो। उस दण्ड को अपराधी की सहमति के बिना भी समुचित सरकार इस संहिता द्वारा उपबन्धित किसी अन्य दण्ड में रूपांतरित कर सकेगी।
इसके अनुसार किसी के दंड को कम कर सकते है।
धारा 55
भारतीय दंड संहिता की धारा 55 के अनुसार दंड का प्रावधान सुधारत्म्क होता है और जिसको आजीवन कारावास दिया गया है उसको कम किया जा सकता है। जिसको आजीवन कारावास दिया गया है उसको अपराधी की सहमति के बिना 14 साल तक कर दिया जा सकता है।
इसमे समुचित सरकार को बताया गया है यदि केंद सरकार के अधीन दंडादेश दिया गया है तो समुचित सरकार केंद्र सरकार को माना जाएगा। यदि राज्य सरकार के अधीन दंडादेश दिया गया है तो समुचित सरकार राज्य सरकार को माना जाएगा।
जहा केंद्र सरकार का विस्तार है वहा तो समुचित सरकार केंद्र सरकार को माना जाएगा।और जहा राज्य सरकार का विस्तार है तो समुचित सरकार राज्य सरकार को माना जाएगा।
धारा 56 को निरसित कर दी गयी है। भारतीय दंड संहिता की इस धारा के अनुसार दण्ड प्रव्रिEया संहिता (संशोधन) अधिनियम, 1955 के द्वारा इसको निरसित कर दिया गया है।
धारा 57
भारतीय दंड संहिता की धारा के अनुसार ऐसा कारावास जो आजीवन कारावास से दंडित किया गया है तो उसको 20 साल की कारावास समझा जाएगा।
धारा 58
भारतीय दंड संहिता की धारा 58 को समाप्त कर दिया गया है। दण्ड प्रव्रिEया संहिता (संशोधन) अधिनियम, 1955 के द्वारा इसको निरसित कर दिया गया है।
धारा 59
भारतीय दंड संहिता की धारा 59 को समाप्त कर दिया गया है। दण्ड प्रव्रिEया संहिता (संशोधन) अधिनियम, 1955 के द्वारा इसको निरसित कर दिया गया है।
धारा 60
इस धारा मे यह बताया गया है कि दण्डादिष्ट कारावास के कतिपय मामलों में सम्पूर्ण कारावास या उसका कोई भाग कठिन या सादा हो सकेगा।
भारतीय दंड संहिता की धारा 60 के अनुसार इसमे हर मामले में जिसमें अपराधी दोनों में से किसी भांति के कारावास से दंडनीय है। वह न्यायालय जो ऐसे अपराधी को दण्डादेश देगा जो सक्षम होगा कि दण्डादेश में यह निर्दिष्ट करे कि ऐसा सम्पूर्ण कारावास कठिन होगा या यह कि ऐसा सम्पूर्ण कारावास सादा होगा। या यह कि ऐसे कारावास का कुछ भाग कठिन होगा और शेष सादा।
धारा 61
यह धारा निरसित कर दी गयी है यह दण्ड प्रव्रिEया संहिता (संशोधन) अधिनियम, 1955 के द्वारा इसको निरसित कर दिया गया है।
धारा 62
दण्ड प्रव्रिEया संहिता (संशोधन) अधिनियम, 1955 के द्वारा इसको निरसित कर दिया गया है।
धारा 63
भारतीय दंड संहिता की इस धारा के अनुसार
इस धारा के अनुसार जुर्माना कितना होगा हर जगह नही बताया गया है यदि जुर्माना है तो उसकी मर्यादा नही होगी पर यह अत्यधिक नही होगा। यह नय्यालय के द्वारा अपराध की गंभीरता और व्यक्ति की क्षमता पर निर्भर करता है। इसमे पीड़ित व्यक्ति को भी दिया जा सकता है।
व्यक्ति जिस पर जुर्माना लगाया जाता है वह अमर्यादित होगा पर अत्यधिक नही होगा।
धारा 64
भारतीय दंड संहिता की इस धारा के अनुसार इस धारा मे यदि कोई व्यक्ति जुर्माना नही देता है तो उसको कारावास की सजा दी जा सकती है। जब अपराध इस प्रकार का हो तो कारावास और जुर्माना दोनों लगता है तो अपराधी कारावास सहित या रहित दंडित हुआ है वह न्यायलय जो ऐसे अपराधी को दंड देगा वह निर्धाराइट करेगा की जुर्माना न जमा करने पर अपराधी कितनी अवधि के लिए कारावास का दंड मिलेगा जो जुर्माना के अतिरिक्त होगा।
धारा 65
भारतीय दंड संहिता की धारा 65 के अनुसार यदि अपराध कारावास और जुर्माना दोनों से दण्डनीय हो। तो वह अवधि, जिसके लिए जुर्माना देने में व्यतिक्रम होने की दशा के लिए न्यायालय अपराधी को कारावासित करने का निदेश दे। कारावास की उस अवधि की एक चौथाई से अधिक न होगी। जो अपराध के लिए अधिकतम नियत है ।
भारतीय दंड संहिता की कई धराये अब तक बता चुके है यदि आपने यह धराये नही पढ़ी है तो पहले आप उनको पढ़ लीजिये जिससे आपको आगे की धराये समझने मे आसानी होगी।
यदि आपको इन धाराओ को समझने मे कोई परेशानी आ रही है। या फिर यदि आप इससे संबन्धित कोई सुझाव या जानकारी देना चाहते है।या आप इसमे कुछ जोड़ना चाहते है।या फिर आपको इन धाराओ मे कोई त्रुटि दिख रही है तो उसके सुधार हेतु भी आप अपने सुझाव भी भेज सकते है।
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