सिविल प्रक्रिया संहिता 141 से लेकर के 145 तक

जैसा की आप सबको ज्ञात होगा कि इससे पहले की पोस्ट में हमने धारा 135 से लेकर के 140 तक बताया था अगर आपने धाराएं नहीं पड़ी है तो सबसे पहले आप इन धाराओं को पढ़ लीजिए जिससे की आगे की 

धाराएं समझने में आपको आसानी होगी !

धारा 141

  इस धारा के अनुसार प्रकीर्ण कार्यवाही के बारे में बताया गया है। इसके अनुसार उस प्रक्रिया का जो वादों के विषय में इस संहिता से उपबंधित है ।

सिविल अधिकारिता वाले किसी भी न्यायालय में की गई सभी कार्यवाहिया वहां तक अनुसरण किया जाएगा जहां तक वह लागू किया जा सकता है ।

इसका स्पष्टीकरण यह है कि इस धारा में कार्यवाही शब्द के अंतर्गत आदेश 9 के अधीन कार्यवाही शामिल है किंतु इसके अंतर्गत संविधान के अनुच्छेद 226 के अधीन कार्यवाही शामिल नहीं है।

धारा 142

इस धारा के अधीन आदेशों और सूचनाओं का लिखित होना बताया गया है जिसके अनुसार सभी आदेश और सूचनाएं जो कि  इस संहिता के अधीन किसी भी व्यक्ति पर की जाए या फिर उसको दी जाए या फिर लिखित रूप में होगी

धारा 143

इस संहिता। के अनुसार डाक महसूल के बारे में बताया गया है जहां पर इस संगीता के अधीन निकाली गई और डाक द्वारा प्रेषित किसी भी सूचना संबंधित पत्र के द्वारा डाक महसूस प्रभाव है वहां पर ऐसा डाक महसूल और उनके रजिस्ट्रीकरण की थी उस समय के भीतर संदत्त की जाएगी । जो कि उस पत्र व्यवहार के लिए किए जाने के पूर्व नियत किया गया है । परंतु राज्य सरकार ऐसे डाक या फिर से या फिर दोनों से छूट दे सकेगी या फिर उसके बदले में कुछ ग्रहणी न्यायालय फीस का मापमान वित्त कर सकेगी

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धारा 144

इस धारा के अनुसार प्रत्यय स्थापना के लिए आवेदन के बारे में बताया गया है।

. जहां की और जहां तक कि किसी भी डिक्री या फिर आदेश में किसी अपील पुनरीक्षण या फिर अन्य कार्यवाही में फेरबदल किया जाए या फिर उसे उल्टा दिया जाए या फिर उसको इस प्रयोजन के लिए संस्थित किसी भी बात में अपास्त किया जाए या फिर उपस्थित किया जाए वहां और वहां तक के न्यायालय जिसमें डिक्री आदेश पारित किया गया था । उस प्रकार के आवेदन पर जो की प्रतिष्ठापना द्वारा या फिर अन्यथा कोई फायदा पाने के हकदार है।

 ऐसे प्रतिष्ठापना कराएगा जिससे कि जहां तक हो सके उस स्थिति में हो जाएंगे जिसमें वे होते यदि या फिर उसका कोई फेरबदल किया गया है उसे उल्टा दिया गया है किया गया है किया गया है जिनके अंतर्गत के लिए व्यास और नुकसानी प्रति कर और अंता कार्यों के लिए आदेश होंगे ऐसा कर सकेगा जो कि उस देश को ऐसे फेरबदल करने या फिर रूपांतरण के लिए उचित रूप से परिणाम है

स्पष्टीकरण इस धारा के प्रयोजन के लिए वह न्यायालय जिसने की डिक्री या आदेश पारित किया था या फिर पछकार के बारे में यह समझा जायेगा कि उसके अंतर्गत निम्नलिखित को शामिल किया गया है।

 जहां पर डिक्री या फिर आदेश में फेरबदल या फिर उलट-पुलट किया गया है या फिर अपीलीय प्राधिकार का के प्रयोग में किया गया है वहां पर प्रथम बार का न्यायालय जहां पर डिक्री या फिर आदेश को पृथक बार पर अपास्त किया गया है।

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 वहां पर प्रथम बार का न्यायालय जिससे ऐसी डिग्री का आदेश पारित किया गया है ।

जहां पर प्रथम बार वाला विधमान नहीं रहा है या फिर उसकी निष्पादित करने के अधिकार का नहीं रही है तो वहां पर उसने है जिसे ऐसे बात का विचरण करने के अधिकार का होती है यदि विवाद में जिसमें की डिक्री या आदेश पारित किया गया है । इस धारा के अधीन स्थापना के लिए आवेदन किए जाने के समय । संस्थित किया गया होता है।

धारा 145

इस धारा के अनुसार प्रतिभू के दायित्व का प्रवर्तन के बारे में बताया गया है ।

जिसके अनुसार जहां पर किसी व्यक्ति ने किसी डिक्री या फिर उसके किसी भाग के पालन करने के लिए अथवा किसी भी अधिकारी के निष्पादन में ली गई किसी संपत्ति के प्रत्यय अथवा किसी भी बात में उसके परिणाम स्वरुप किसी भी कार्रवाई में न्यायालय के किसी आदेश के अधीन किसी धन के संदाय के लिए

 या फिर किसी व्यक्ति के अधीन आरोपित की पूर्ति के लिए कोई प्रतिभूति या फिर प्रति है वहां पर बिक्री या फिर आदेश यात्रियों के निष्पादन के लिए उससे उत्पादन किया जाएगा यदि उसने अपने आप को व्यक्तिगत रुप में उत्तरदायी बनाया है तो उसके विरुद्ध विस्तार तक ।

 यदिउसने  प्रतिभुति के रूप में कोई संपत्ति है तो ऐसी प्रतिबंधित संपत्ति के द्वारा खंड 1 और 2 दोनों के अधीन है तब तक के बारे में यह समझा जायेगा कि वह तार है परंतु एक मामले में पर्याप्त समझे प्रतिभू को दी जा चुकी होगी।

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