भारतीय दंड संहिता धारा 99 से 108 तक का विस्तृत अध्ययन

जैसा कि आप सभी को ज्ञात होगा इससे पहले की पोस्ट मे भारतीय दंड संहिता धारा 98 तक का विस्तृत अध्ययन करा चुके है यदि आपने यह धराये नही पढ़ी है तो पहले आप उनको पढ़ ली जिये जिससे आपको आगे की धराये समझने मे आसानी होगी।

धारा 99

यह धारा बताती है कि कौन से मामलो मे प्रतिरक्षा का अधिकार नही होगा। लोक सेवक के द्वारा अपने पद पर कार्य करते हुए कोई कार्य करता है तो आप प्रतिरक्षा नही कर सकते है। कोई सरकारी

व्यक्ति के विरुद्ध प्रतिरक्षा का अधिकार नही है पर वह पद पर रहते हुए कार्य कर रहा है।

यदि कोई पुलिस वाला किसी समान्य ड्रेस मे किसी को पकड़ता है तो वह प्रतिरक्षा नही कर सकता है।  

यह धारा बताती है कि प्राइवेट प्रतिरक्षा का अधिकार बताया गया है। जहा तक आप पुलिस को सूचित कर सकते है वहा आपको प्रतिरक्षा का अधिकार नही है। जब हमलावर के द्वारा हमला करने कि सत्यता समाप्त हो चुकी हो तो वहा आपको प्रतिरक्षा का अधिकार नही है। जितनी शक्ति का प्रयोग हमलावर आपको करता है उससे कम हानी आप उसको पाहुचा सकते है।

 धारा 100

भारतीय दंड संहिता की इस धारा मे यह बताया गया है शरीर के प्रति प्रतिरक्षा । इस धारा मे यह बताया गया है कि आपको लगता है कि यह व्यक्ति आपको जान से मार देगा तो आप प्रतिरक्षा मे हमलावर कि हत्या तक किया जा सकता है। यदि जहा घोर उत्तपत्ति कि संभावना है तो हमलावर कि हत्या तक किया जा सकता है। यदि महिला को लगता है कि कोई व्यक्ति उसके साथ बलात्कार कर सकता है तो उसको जान से मार सकती है।

See Also  विधिक व्यक्ति क्या होता है। विधि शास्त्र के प्रकार का विस्तृत अध्ययन

यदि कोई व्यक्ति आपका अपहरण कर लेता है तो उससे छूटने के लिए कोई उपाए न हो और पुलिस तक आप नही पहुँच सकते है तो आप उसकी हत्या तक कर सकते है।

धारा 101

इस धारा मे यह बताया गया है ऐसे अधिकार का विस्तार मृतु से भिन्न होता है। यदि कोई हमलावर आप पर हमला करता है तो आप उसको उतनी ही चोट पहुँचा सकते है जिससे आप खुद को बचा सकते है।

धारा 102

भारतीय दंड संहिता की इस धारा मे यह बताया गया है शरीर के निजी प्रतिरक्षा का अधिकार बने रहना बताया गया है। यदि कोई व्यक्ति आपको धमकी देता है कि आपको हथियार से  मार देगा तो आपको प्रतिरक्षा का अधिकार है। वह अधिकार तब तक रहेगा जब तक यह आशंका रहता है कि वह व्यक्ति आपको मार देगा। परंतु यदि वह व्यक्ति पकड़ा जाता है तो आपके अधिकार समाप्त हो जाता है।

धारा 103

भारतीय दंड संहिता की इस धारा मे यह बताया गया है यह संपत्ति के अधिकार को बताता है यह अधिकार किसी व्यक्ति को जान से मारने तक का अधिकार बताया गया है जब कोई व्यक्ति लूट कर रहा है ,चोरी के समय मे, रात्रि गृह भेदन के समय मे ,आग लगाने पर आप हमलावर को जान से मार सकते है।यदि कोई घर मे घुसने कि कोसिस कर रहा हो या हानि पाहुचाने के कोसिस कर रहा हो तो आप उसको मार भी सकते है।  

धारा 104

यह धारा बताती है कि जब आप किसी व्यक्ति को मार नही सकते तो उतनी ही हानि पहुचा सकते है जितनी आवश्यकता है।

See Also  (सीआरपीसी) दंड प्रक्रिया संहिता धारा 326 से धारा 328  तक का विस्तृत अध्ययन

उदाहरण

यदि कोई चोर चोरी कर भाग रहा है और आपने उसका पीछा किया और वह सामान छोर के भाग गया तो आपकी प्रतिरक्षा वहा समाप्त हो जाती है।

धारा 105

इसमे बताया गया है कि संपत्ति कि रक्षा का अधिकार कब से कब तक बना रहता है । यदि कोई आपका मकान तोड़ रहा है तो वह प्रतिरक्षा तब सुरू हो जाएगी जब वह घर तोड़ रहा हो और तब समाप्त हो जाती है जब वह तोड़ना बंद कर देता है उसके बाद आप  पुलिस को सूचित कर सकते है और आपकी आत्म रक्षा का अधिकार समाप्त हो जाती है।

धारा 106

भारतीय दंड संहिता की इस धारा मे यह बताया गया है यदि भीड़ ने आप पर हमला कर दिया और आप खुद को बचाने के लिए किसी निर्दोष व्यक्ति को मार दिया जो दोषी नही है तो आप प्राइवेट प्रतिरक्षा के लिए उत्तरदाई है।

उदाहरण

यदि आप रास्ते से जा रहे है और भीड़ आपके पिच्छे चोर समझ का आ रही है और आपको मारने के लिए तेजी से दौड़ा रही है तो आप भीड़ को हटाने के लिए उसमे से किसी पर गोली चला देते है तो आप प्रतिरक्षा कर सकते है। और आप दोषी नही होंगे।

धारा 107

यह धारा बताती है कि किसी बात का दुस्प्रेरण

यदि किसी बात को उकषाया जाये

किसी कार्य मे शामिल होना

किसी कार्य का लोप करना

उदाहरण

यदि कोई लोक सेवक किसी व्यक्ति को पकड़ना चाहता है और दूसरे व्यक्ति से पुच्छता है और वह व्यक्ति उसको जानता है पर गुमराह कर दूसरे व्यक्ति को पकड़वा दिया कि यदि वह व्यक्ति है यह मामला दुस्प्रेरण कहलाती है।

See Also  भारत का संविधान अनुच्छेद 211 से 215 तक

धारा 108

इस धारा मे यह बताया गया है कि दुसप्रेरक क्या होता है वह व्यक्ति जो अपराध के लिए दुस्प्रेरण करता है। और जो अपराध किए जाने का दुस्प्रेरण है यदि वह व्यक्ति के द्वारा आशय के साथ किया जाये।

उदाहरण

माना क को स नाम का व्यक्ति यह कहता है कि ह के यहा चोरी कर लो और उसको ऊकषता है और यदि स चोरी करता है तो क दोषी है चाहे वह अपराध हो या न  हो।

यदि अपराध घटित न हुआ हो फिर भी वह दोषी माना जाता जैसे अपराध यदि घटित हो जाता तो वह दोषी होता है।

भारतीय दंड संहिता की कई धराये अब तक बता चुके है यदि आपने यह धराये नही पढ़ी है तो पहले आप उनको पढ़ लीजिये जिससे आपको आगे की धराये समझने मे आसानी होगी।

यदि आपको इन धाराओ को समझने मे कोई परेशानी आ रही है। या फिर यदि आप इससे संबन्धित कोई सुझाव या जानकारी देना चाहते है।या आप इसमे कुछ जोड़ना चाहते है।या फिर आपको इन धाराओ मे कोई त्रुटि दिख रही है तो उसके सुधार हेतु भी आप अपने सुझाव भी भेज सकते है।

हमारी Hindi law notes classes के नाम से video  भी अपलोड हो चुकी है तो आप वहा से भी जानकारी ले सकते है।  कृपया हमे कमेंट बॉक्स मे जाकर अपने सुझाव दे सकते है।

Leave a Comment