जैसा की हम सभी को पता है की जब भी हम अकाउंट की सुरुवात करते है तो जर्नल से ही करते है। जर्नल व्यवसायी कीप्राथमिक किताब होती है। इसे हिन्दी मे ‘रोजनामचा’ कहते हैं। इसमें सभी व्यावसायिक लेंन देंन की एंट्री की जाती है यह एंट्री दोहरा लेखा प्रणाली (Double Entry System) के principles के रूल के अनुसार बही खाते में लिखी जाती है। जब भी कोई लेंन देन होता है । तो उसे सबसे पहले इसी जर्नल(Journal) में ही उसकी एंट्री किया जाता है। और फिर एक रूल के अनुसार लिखा जाता है। और जैसे-जैसे लेंन देन होते रहते हैं उसी तरह इसको लिखते रहते है।
जर्नल (Journal) शब्द प्राचीन शब्द लातिनी ‘द्विर्नालिस’ (diurnalis जिसका मतलब होता है प्रतिदिन) और फ्रेंच शब्द ‘जूना’ (Journal) से उत्पन्न हुआ है जिसका अर्थ “दैनिकी” होता है। यह शब्द का प्राचीन और वर्तमान प्रचलित अर्थ “दैनिक लेख” है।
journal की परिभाषा –
जिस किताब में व्यापार के लेंन देन को सबसे पहले और एक systematic तरीके से लिखा जाता है, उसे Journal (जर्नल)कहते हैं। journal (जर्नल )में लें देन के लिखने की जो प्रक्रिया होती है उसे ‘Journalising’ कहते हैं।
कोई भी व्यापार हो छोटा हो या बड़ा होता है। यदि छोटा है तो यह एक हद तक सम्भव होता है कि प्रत्येक लेन-देनों कोजर्नल में ही record कर लिया जाता है,पर यही व्यापार जब बड़ा हो जाता है। और उसमें ज़्यादा लेन-देन होने लगते हैं तो यहसंभव ही नहीं है कि सभी लेन-देनों को Journal(जर्नल) में record किया जाए, तो इसके लिए Journal को कई भाग मे बाट देते है जिसको Sub-Journalsकहते है। और जिसे सहायक पुस्तक (Subsidiary Books) या “books of original entry” भी कहते हैं।
प्रतिदिन होने वाले लेखा को व्यवस्थित तरीके से date wise और serial wise जिस लेखा पुस्तक में लिखा जाता है उसे रोजनामचा या journal जर्नल कहते हैं।
जर्नल के माध्यम से ही यह सुनिश्चित किया जा सकता है कि किस व्यवहार के किस पक्ष को नाम (Debit) और किस पक्ष को जमा (Credit) किया जाए। खाता बही में खतौनी करने के लिए भी जर्नल की आवश्यकता पड़ती है। और यह जर्नल रूल के अनुसार होता है।
Format of Journal (जर्नल का प्रारूप)-
जर्नल को इस प्रकार से तैयार किया जाता है।
तिथि(Date) :-
यह Journal( जर्नल ) का पहला column होता है। जिसके अनुसार वह date जिसमें transactions हो रहे हैं। उस date को लिखा जाता है।इसमे सबसे ऊपर year लिखते हैं फिर month और फिर transaction की तारीख लिखी जाती है। जिससे इसको आसानी से देखा जा सके Date और Month भी दोनों एक sequence में और ठीक से लिखे जाने चाहिए।
विवरण(Particulars) :-
इसमे transactions की जानकारी दी जाती है । इसके अनुसार हर एक transaction मे से दो Account प्रभावित होते हैं। जिसमें एक Account को Debit किया जाता है । और दूसरे को Creditकिया जाता है। पर यह ध्यान रखें कि जिस Account को Debit करना है वह हमेशा पहली Line में ही लिखा जाता है। तथा उसके आगे ‘Dr.’ Word लिखा जाता है। और दूसरे Account को Credit किया जाता है जिसे दूसरी Line में थोड़ा सा space देकर शुरू किया जाता है। और इसके पहले ‘To’ Word का use किया जाता है। इस तरह हर एक entry करने के बाद उसका डीटेल नीचे लिख दिया जाता है, जिससे future में इसका पता चल सके कि यह entry क्यों Debit या Credit की गयी है। और इस short में explain करने को हम ‘Narration’ भी कहते हैं।
खाता संख्या (Ledger Folio Number) :-
Journal का तीसरा column Ledger Folio का होता है।यह column बाकी के column से छोटा बनाया जाता है। और इसे हम ‘L.F.’ के नाम से भी लिखते है। Journal में जब सारी entries कर ली जाती है तो इसके बाद इसकी posting Ledger में की जाती है। और इसकी सहायता से column में उस page number को लिखा जाता है जहाँ पर उस particular account की Ledger Posting की गई है। उसकी सम्पूर्ण जानकारी न लिख कर पोस्टिंग के समय उसका नंबर डाल दिया जाता है जिससे की वह एंट्री आसानी से मिल सके।
राशि निकासी (Amount Debit) :-
खाता संख्या (Ledger Folio Number) के बाद राशि यानि की amount लिखा होता है। जिसमें बस Debit की जाने वाली ही amount लिखी जाती है। इसमें इस बात का ध्यान रखा जाता है कि जिस Account को Debit किया जा रहा है उसकी amount Debit वाली entry के सामने ही लिखी जाये।और credit की उसके entry के सामने लिखी होती है।
राशि जमा (Amount Credit) :-
इसमे Credit की जाने वाली amount लिखी जाती है। इसमें जिस Account को Credit किया जाता है। उसकी amount Credit की जाने वाली entry के सामने ही लिखी जाती है।
इस प्रकार Journal Entries इस तरह से की जाती हैं की रूल के अनुसार यह पता चल जाए की कौन-सा Account Debit और कौन-सा Account Credit किया गया है। क्योंकि इसी के basis पर फिर आगे Accounts Book में तरह-तरह के Accounts prepare किये जाते हैं यानी Ledger Posting की जाती है। फिर trail balance और balancesheet बनती है।
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