केशवानंद बनाम केरल केस हैं | जिसमें सर्वोच्च न्यायालय ने ‘केशवानंद भारती बनाम केरल राज्य जो कि 24 अप्रैल 1973 का मामला हैं जिसमे संविधान पर असर डालता हैं और वह इतिहास का महत्वपूर्ण अंग हैं।
अब आपको केशवानंद जी के बारे में कुछ जानकारी दे दे –
केशवानंद जी के जन्म के सम्बन्ध में कहा जाता है कि यह केरल के एक मठ जो की इडनीर मठ के नाम से जाना जाता हैं | जिसमे। केशवानंद भारती जी इस मठ के प्रमुख थे। यह मठ कासरगोड़ जो कि केरल का सबसे उत्तरी जिला है. कर्णाटक में स्थित एक शिव जी का यह मठ हैं जो कि करीब 1,200 साल पुराना माना जाता है और यह मठ बहुत विख्यात हैं । यही कारण है कि केरल और कर्नाटक में इसका काफी महत्व है। तथा शंकराचार्य की क्षेत्रीय पीठ का दर्जा प्राप्त होने के चलते इस मठ के प्रमुख को ‘केरल के शंकराचार्य’ का नाम भी दिया गया है।
जिसके प्रमुख बिंदु निम्न हैं।
केशवानंद जी केरल के इडनीर मठ के मुखिया थे |
केशवानंद जी भूमि रक्षा के लिए कोर्ट गए थे |
केशवानंद जी के प्रयत्न से 29 संविधान संशोधन में भूमि सुधार में संशोधन किया गया हैं
13 न्यायधीश वाली पीठ ने निर्णय लिया कि संविधान संशोधन ने यह बताया की मूलढांचे को परिवर्तित कर संविधान संसोधन नही किया जा सकता |
‘मूलभूत संरचना’ को कोर्ट के अनुसार एक सिधान्त के रूप मे जाना गया |
संविधान की मूलभूत संरचना से तात्पर्य उस रचना से हैं जिसमे मूल संविधान के अंगो का वर्णन हैं |
केशवानंद भारती केस में यह कहा गया हैं कि संसद भी संविधान मे परिवर्तन नही कर सकती हैं |
मूल भूत संरचना का सिधांत क्या हैं-
केशवानंद भारती केस में पीठ के हर व्यक्ति का अलग अलग मत था जिसमे पीठ का सर्व भौम का फैशला लेते हुए संसद ने कहा कि संविधान के ‘आधारभूत संरचना’ में बदलाव नही करना चाहिए।
सर्वोच्च न्यायालय के अनुछेद ३६८ के अनुसार संविधान में संशोधन किया जा सकता हैं पर संविधान के आधारभूत संरचना में परिवर्तन नही करना चाहिए ।
(Basic Structure) मूलभूत संरचना क्या होता हैं ।
केशवानंद केस मे न्यायलय ने कोई परिभाषा तो नही दिया परन्तु धर्मनिरपेछता ,लोकतंत्र आदि ‘मूलभूत संरचना’ हैं। और इसके बाद संसद द्वारा इसका लगातार विस्तार करते जा रहे हैं।
(Basic Structure of the Constitution)मूलभूत संरचना की सूची का हैं?
निम्नलिखित को सर्वोच्च न्यायालय ने मूलभूत संरचना के अंतर्गत निम्न को शामिल किया गया।
संविधान का सर्वोच्च होना
नयायपालिका का विस्तार होना
शक्तिकरण का सिधांत
विधि का शाशन
संघवाद
धर्मनिरपेक्षता
सम्प्रब्भुता धर्म निरपेक्षता
संसदीयप्रडाली
स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव
कल्याणकारी राज्य
लोकतांत्रिक गणराज्य
केशवानंद भारती मामला-
समाज के आर्थिक शक्ति को मजबूत करने के लिए तथा भूमि अधिग्रहण करने के लिए राज्य सरकार अपने अपने नियम बनाने लगी।। इडनीर मठ की संपत्ति भी इसी के अंतर्गत आ गयी हैं इस मठ की सैकड़ों एकड़ की जमीन जो अब सरकार द्वारा अधिग्रहण कि जा चुकी थी। ऐसे में एडनीर मठ के प्रमुख केशवानंद जी ने केस किया ।
केशवानंद भारती केस के अनुसार अनुच्छेद 26 को हटा दिया और भूमि सुधार कानून को विस्तार मे बताया गया |
स्वामी केशवानंद भारती के केस में नये प्रावधान के अनुसार केरल में केस दायर किया गया । हालांकि केरल हाईकोर्ट में मठ को उसका हक दिलाने मे कामयाबी नहीं मिली और मामले को सुप्रीम कोर्ट ले जाना पड़ा |
स्वतंत्रता के बाद सुप्रीम कोर्ट ने शंकरी प्रसाद का वाद के बाद और सज्जन सिंह को संविधान में संशोधन करने की पूर्ण शक्ति प्रदान की। परन्तु यह स्वतंत्रता के बाद शुरुआती वर्षों में सुप्रीम कोर्ट ने तत्कालीन राजनीतिक नेतृत्व पर विश्वास जताया क्योंकि उस वक्त प्रमुख स्वतंत्रता सेनानी ही आमतौर पर संसद के सदस्यों को ही भार दिया जाता था क्योकि वह ही प्रमुख था । इसके बाद गोलकनाथ (1967) मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि संसद अनुच्छेद 368 के तहत मौलिक अधिकारों को समाप्त या सीमित करने की शक्ति नहीं रखती है। सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला जब आया जब सत्तारूढ़ सरकारों ने अपने राजनीतिक हितों के लिए संविधान में संशोधन करना शुरू कर दिया था। 1970 के अनुसार शुरुआत में तत्कालीन इंदिरा गांधी की सरकार द्वारा आरसी कूपर और माधवराव सिंधिया जैसे अनेक मामलों में सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए निर्णयों को बदलने के लिए धारा 24, 25, 26 तथा 29 संविधान मे संशोधन किया गया |
केशवानन्द जी ने कई संविधान संसोधन को चुनौती देते हुए संविधान को अलग पहचान दिलाई|
भूमि सुधार क़ानून के अनुसार धार्मिक जगह पर भूमि सुधार पर ध्यान दिया गया |और इसके लिए अनेक संशोधन हुए | और कुछ धाराओ को हटा भी दिया गया |
29वें संविधान संशोधन के अनुसार इसको चुनौती नही दी जा सकती थी इस लिए इसमें परिवर्तन किया गया। इस प्रकार केशवानंद मामले में 13 न्यायाधीशों की पीठ का गठन किया । जिसकी सुनवाई 68 दिनों तक चली थी और मुख्य न्यायाधीश एस एम सिकरी की अध्यक्षता वाली 13 जजों की बेंच ने यह ऐतिहासिक फ़ैसला सुनाया था।
इस मामले में केशवनंद भारती को कोई सहायता नही दी गयी लेकिन ‘केशवानंद भारती बनाम स्टेट ऑफ़ केरल’ मामले की वजह से एक बहुत बड़ी संवैधानिक सिद्धांत का निर्माण हुआ जिसने संसद की संशोधन करने की शक्ति को कम कर दिया ।
यह मामला इसलिए भी सर्व् विख्यात हुआ क्योकि इसमें निम्न गुण मौजूद रहे ।
न्यायिक समीक्षा व पंथनिरपेक्षता, स्वतंत्र चुनाव व्यवस्था और लोकतंत्र को संविधान का मूल तत्त्व कहा गया और संसद की शक्तियां संविधान के मूल तत्त्व को बिगाड़ नहीं सकतीं। संविधान की प्रस्तावना इसकी आत्मा है और पूरा संविधान इसी पर टिका हुआ शरीर हैं सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि न्यायपालिका की स्वतंत्रता संविधान के मूल ढांचे का हिस्सा है, इसलिए उससे छेड़छाड़ नहीं किया जा सकता हैं अतः संसद संविधान में वहीं तक बदलाव कर सकती है जहां तक वह संविधान के प्राथमिक ढांचे पर असर न डालें।