sources of international law अंतरराष्ट्रीय कानून के स्रोत

अंतरराष्ट्रीय कानून के स्रोत वैसे तो स्पस्त रूप से काही नही बताया गया है पर अनुच्छेद 38(1)(a-c), मे ऐसा कहा गया है की समझौते या संधियां (ट्रीटी), प्रथा और सामान्य नियम केवल औपचारिक (फॉर्मल) स्रोत हैं, जबकि अनुच्छेद 38 (1) (d) के अनुसार अदालत के फैसले और कानूनी निर्देश ‘भौतिक (मैटेरियल) स्रोत’ हैं। औपचारिक स्रोत कानूनों पर ‘अनिवार्य चरित्र’ को लागू करते हैं, जबकि भौतिक स्रोतों में ‘नियमों का वास्तविक सार’ होता है। यह लेख स्रोतों और अन्य वैधानिक (स्टेच्यूटरी) साधनों की प्रामाणिकता पर विचार करेगा।

अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन (convention)

आईसीजे के अनुच्छेद 38(1) के अनुसार अंतरराष्ट्रीय कानून स्रोतों को सकारात्मक बयान के रूप में देखा जाता है। यह जरूरी है कि न्यायालय, अन्य बातों के साथ-साथ, अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलनों को लागू करे, चाहे वह सामान्य हो या विशेषरूप से हो । और जो चल रही समस्या पर राज्यों द्वारा विशेष रूप से स्वीकृत नियमों को निर्धारित करते हो:

  1. अंतरराष्ट्रीय रीति रिवाजऔर कानून के रूप में स्वीकृत एक सामान्य प्रथा के प्रमाण के रूप में;
  2. कानून की सामान्य अवधारणाएं जो को सभ्य राष्ट्रों द्वारा स्वीकार की जाती हैं;
  3. कुछ प्रावधानों के अनुसार, विभिन्न राष्ट्रों के सबसे सक्षम प्रचारकों (पब्लिसिस्ट) के न्यायिक निर्णय और शिक्षा कानून के नियमों को निर्धारित करने के सहायक साधन का गठन करेंगे। तथा अंतर्राष्ट्रीय समझौतों के अनुसार द्विपक्षीय (बाईलेटरल) और बहुपक्षीय (मल्टीलेटरल) संधियों के रूप में भी संदर्भित किया जा सकता है, अर्थात् संयुक्त राष्ट्र चार्टर, साथ ही बाद में अन्य समझौते और अनुबंध। संधि एक ‘अंतर्राष्ट्रीय समझौता’ है जो अंतरराष्ट्रीय कानून द्वारा शासित राज्यों के बीच लिखित रूप में संपन्न होता है।

अंतर्राष्ट्रीय रीति रिवाज से संबन्धित

अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय के क़ानून के अनुसार महत्वपूर्ण तत्व राज्य के आचरण, दृढ़ता और कानून के रूप में ऐसी प्रथाओं की मान्यता व्याप्त हैं, जिन्हें की ‘ओपिनियो ज्यूरिस’ के रूप में भी जाना जाता है। प्रथागत कानून के अनुसार यह एक संधि के रूप में ‘सरल’ नहीं हो सकता है।

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जबकि परंपरा को एक प्रकार का ‘मौन समझौता’ माना जाता है। इसमे राज्यों का एक-दूसरे के साथ उचित तरीके से व्यवहार करना सही व्यवहार में योगदान देता है। इस दृष्टिकोण के साथ समस्या यह है कि यदि समझौता इसे शुरू करता है, तो उसको समझौते के अभाव में इसे समाप्त किया जा सकता है।

यहा पर प्रथागत कानून जो की राज्य अभ्यास से कानून के रूप में उत्पन्न होता है। तथा क्या यह प्रथागत कानून बदल सकता है अथवा नही ? प्रथागत कानून के इस ‘आशंका’ और ‘स्वीकृति’ के सिद्धांत पर बदल सकता है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि प्रथागत कानून,जो की कानून का एक मजबूत नियम नहीं है,उसको प्रथागत कानून प्रक्रिया लगातार अंतरराष्ट्रीय कानून के लिए अच्छी है क्योंकि यह अंतरराष्ट्रीय कानून की समय पर जरूरतों को पूरा कर सकती है ।

क्योंकि जहा पर दुनिया विकसित होती है और कानून भी विकसित होते है। अधिक धीमी गठन प्रक्रिया की अपनी कमियां यहा पर हो सकती हैं; जिसको की एक संधि के विपरीत, इसमें निश्चितता और दृश्यता का अभाव है।

राज्य की गतिविधियों के साथ इसकी व्यापक तुलना के मामले में इसका बहुत फायदा है। जहा पर संधि के लाभ हैं वह दूसरी तरफ रीति रिवाज में कमियां हैं,और वे अंतरराष्ट्रीय कानून के स्रोतों में सुधार के लिए एक साथ काम करने के लिए अपेक्षित जुड़वां स्तंभों की तरह हैं।

ह्यूग के अनुसार ‘जिस तरह से चीजें हमेशा की जाती रही हैं, उसी तरह से कानून होना चाहिए, हम कह सकते है की अंतरराष्ट्रीय कानून स्थानीय कानूनी प्रणालियों में दिखाई देने वाली प्रवृत्ति की ओर विचलित नहीं होता है।

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वही पर प्रथागत कानून के पहलुओं में से एक के रूप में राज्य अभ्यास समय की अवधि में अंतरराष्ट्रीय कार्यों का एक सतत राज्य अभ्यास है,, जिसमे की सरकारी कार्यों, कानून बनाने और नीति निष्पादन (एग्जिक्यूशन), सरकारी घोषणा, प्रशासनिक (एडमिनिस्ट्रेटिव) प्रथाओं और राज्यों के भीतर दिशानिर्देश राज्य अभ्यास के अच्छे स्रोत हैं।

‘एकरूपता (यूनिफॉर्मिटी)’ और ‘संगति (कंसिस्टेंसी)’ परीक्षण ‘सामान्य अभ्यास’ हैं न कि ‘सार्वभौमिक अभ्यास’ और ‘सबसे प्रभावशाली और प्रमुख राज्यों का अभ्यास सबसे बड़ा भार वहन करेगा,’ उपरोक्त से घटाकर, इसका मतलब यह नहीं है कि सभी राज्य अभ्यास में संलग्न हों। हम यह कह सकते है की एक बार प्रथा को प्रथागत अंतरराष्ट्रीय कानून के हिस्से के रूप में विकसित किया जाता है, तो वह पर सभी राज्य बाध्य हो जाते हैं, जिसमें वो राज्य और नए राज्य भी शामिल हैं जिन्होंने शुरू में अभ्यास में योगदान नहीं दिया था।

न्यायायिक निर्णय

आईसीजे सिद्धांत के अनुसार कानून बनाने की प्रक्रिया में रुचि रखने वाले व्यवहार की तुलना में अधिक मात्र मे है, और इसमें कानूनी बाधा भी बहुत है। अंतरराष्ट्रीय कानून के नए क्षेत्रों को तोड़ने में, अदालत मामलो, न्यायाधीश के शासन और सलाहकार राय द्वारा कानून बनाने की प्रक्रिया में भाग लेती है।

डिक्सन मे यह कहा गया की ‘आईसीजे के कार्यों को प्रतिबंधित करके राज्य की संप्रभुता की रक्षा करने का प्रयास करें मध्यस्थ (आर्बिट्रेशन) न्यायाधिकरण और राष्ट्रीय अदालतें प्रचारक लेखन से परामर्श करती हैं जबकि सही क्या है ?अंतरराष्ट्रीय न्यायाधिकरण ‘सिद्धांत’ का कम उपयोग करते हैं, पर जहां पर प्रचारक लेखन कुशल है वह मसौदा (ड्राफ्ट) लेख है। इन दिनों लेखकों की राय कम प्रासंगिक हो गई है क्योंकि राज्य अब संयुक्त राष्ट्र के अंगों के माध्यम से खुद को अच्छी तरह से व्यक्त कर रहे हैं और सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि लेखक अपने लेखन में विचारों के कारण व्यक्तिपरक (सब्जेक्टिव) हैं।

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यहा पर निसकर्ष यह कहता है की संयुक्त राष्ट्र ने अंतरराष्ट्रीय कानून के अन्य स्रोतों के सटीक विपथन के रूप में बनाए गए जो भी अंतराल है उसके के लिए एक वास्तविक पूरक प्रदान किया है। तथा इसकी गतिविधियों ने सुरक्षा परिषद के 15 सदस्यों और महासभा के 191 सदस्यों द्वारा प्रस्तावों और तेज़ साधनों के माध्यम से कानून-निर्माण को सकारात्मक रूप से प्रभावित किया है।

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