अंकेक्षण एक विधिवत् मूल्यांकन एवं परीक्षण प्रक्रिया है । जिसके द्वारा किसी निश्चित उद्देश्य की पूर्ति हेतु किया जाता है । और अंकेक्षण कार्य के सम्बन्ध में अपनी राय प्रतिवेदन के रूप में सम्बन्धित पक्ष को प्रेषित की जाती है। तथा अंकेक्षण के सम्बन्ध में उपर्युक्त कथन, अंकेक्षण के प्रकारों का वर्णन को बताता है।
अंकेक्षण को निम्न प्रकार वर्गीकृत किया जाता है।
(1) व्यापारिक संस्था के संगठन के अनुसार
(2) व्यावहारिक दृष्टिकोण से
व्यापारिक संस्था के संगठन के अनुसार-
वैधानिक अंकेक्षण
निजी अंकेक्षण
सरकारी अंकेक्षण
आन्तरिक अंकेक्षण
व्यावहारिक दृष्टिकोण से अंकेक्षण –
चालू अंकेक्षण
वार्षिक अंकेक्षण
आंतरिम अंकेक्षण
लागत अंकेक्षण
प्रबंधकीय अंकेक्षण
कर अंकेक्षण
सामाजिकअंकेक्षण
पर्यावरणअंकेक्षण
रोकण अंकेक्षण
निपुणता अंकेक्षण
चिठ्हे का अंकेक्षण
संगामी अंकेक्षण
पूर्ण अंकेक्षण
आंशिक अंकेक्षण
वैधानिक अंकेक्षण (Statutory Audit)-
उन संस्थाओं में जिनमें किसी विधान के अनुसार सारा कार्य किया जाता है। अंकेक्षण भी उसी प्रकार उस विधान के अन्तर्गत अनिवार्य कर दिया गया है। जो भिन्न-भिन्न अधिनियमों के आधार पर चलने वाली संस्थाओं के लिए विधान के अनुसार अंकेक्षण अनिवार्य कर दिया गया है। इसे वैधानिक अंकेक्षण कहते हैं। ऐसे अंकेक्षण के निम्न उदाहरण हो सकते हैं।
कम्पनियों का अंकेक्षण (Audit of Companies) –
भारत में सन् 1913 से ही भारतीय कम्पनी अधिनियम के अन्तर्गत सीमित दायित्व वाली कम्पनियों के हिसाब-किताब का अंकेक्षण अनिवार्य कर दिया गया है। कम्पनी अधिनियम, 1956 के अनुसार अंकेक्षण से सम्बन्धित कुछ परिवर्तन भी किये गये हैं। प्रत्येक कम्पनी के लिए यह निर्धारित कर दिया गया है कि वह अपने हिसाब-किताब का वार्षिक अंकेक्षण कराने के लिए एक निश्चित योग्यता रखने वाला अंकेक्षक को नियुक्त करे। कम्पनियों के अंकेक्षण की रिपोर्ट अंकेक्षक द्वारा अंशधारियों को दी जाती है जिसमें वे वित्तीय लेखों की शुद्धता एवं सत्यता को प्रमाणित करते हैं।
प्रन्यासों का अंकेक्षण (Audit of Trust)—
जायदातर प्रन्यास (trusts) जो कि नाबालिगों, विधवाओं तथा असहाय व्यक्तियों के लिए बनाये जाते हैं। और जो इन प्रन्यासों के हिसाब-किताब न तो अच्छी तरह समझ सकते हैं। और न उसकी आलोचना और छानबीन ही कर सकते हैं।ऐसे कुछ प्रन्यास जो अपना हिसाब-किताब नहीं रखते और यदि रखते भी हैं तो वे गलतियों तथा छल-कपट से पूर्ण होते हैं। इस प्रकार प्रन्यासी अपने कोषों का दुरुपयोग भी किया करते हैं। अतः भारत में कुछ राज्यों ने सार्वजनिक प्रन्यास अधिनियम (Public Trusts Act) बना दिया है ।
अन्य संस्थाओं का अंकेक्षण (Audit of other Organisations) –
सरकार ने कुछ ऐसे अधिनियम भी बनाये हैं जिनके अनुसार कम्पनी तथा प्रन्यास के अतिरिक्त अन्य सार्वजनिक संस्थाएं चलती हैं। जैसे बिजली तथा गैस कम्पनियां अपने-अपने अधिनियमों के आधार पर कार्य करती हैं। इन अधिनियमों के अन्तर्गत इन संस्थाओं के लिए हिसाब-किताब का अंकेक्षण अनिवार्य किया गया है।
सार्वजनिक संस्थाओं का एक दूसरा वर्ग भी है जो अपने-अपने विधि विधान के अनुसार अंकेक्षण कार्य करवाता है।
निजी अंकेक्षण (Private Audit)
जिन संस्थाओं के हिसाब-किताब के अंकेक्षण के लिए किसी प्रकार का वैधानिक बन्धन नहीं होता है। ऐसे अंकेक्षण निजी अंकेक्षण कहलाता है। ये संस्थाएं अपनी इच्छानुसार अंकेक्षण करवाती हैं । और अंकेक्षण का क्षेत्र भी निश्चित करती हैं।
इनके तीन वर्ग हो सकते हैं ।
एकाकी व्यापार का अंकेक्षण (Audit of account of sole trader) –
एकाकी व्यापारी के हिसाब-किताब का अंकेक्षण स्वयं उसकी इच्छा पर निर्भर करता है उसमे कितने खातों का कब और कितना अंकेक्षण किया जाए यह स्वयं निश्चित करता है। इसमे अंकेक्षक का कार्य, उसके अधिकार तथा दायित्व आदि सभी बातें एकाकी व्यापारी तथा अंकेक्षक के बीच होने वाले समझौते के अनुसार ही निश्चित की जाती हैं। अंकेक्षक के लिए यह आवश्यक है कि वह शर्त प्रारम्भ में तय कर लिया जाता है। और लिखित रूप में सारे आदेश प्राप्त करने के पश्चात् ही अपना कार्य सुरू किया जाता है।
साझेदारी फर्मों का अंकेक्षण साझेदारी अधिनियम के अनुसार साझेदारी फर्म का अंकेक्षण होना अनिवार्य नहीं होता है। पर सभी साझेदारों के साथ फर्म के लिए यह लाभदायकहोगा कि फर्म का अंकेक्षण होना आवश्यक है। साझेदारी अनुबन्ध में इस बात का उल्लेख होना चाहिए कि साझेदारी के खातों का अंकेक्षण किस प्रकार किया जाये । जिससे साझेदारों तथा अंकेक्षक के मध्य अंकेक्षण का अनुबन्ध होना चाहिए जो कार्य की शर्तों व दायित्वों के अनुसार किया जाता है। यदि कोई और समझौता न हो तो साझेदारी अधिनियम का पालन करना चाहिए।
प्राइवेट व्यक्तियों के हिसाब–किताब का अंकेक्षण (Audit of accounts of private individuals)-
इसमे उन व्यक्तियों के हिसाब-किताब का अंकेक्षण होता है जिनकी आमदनी जादा होती है तथा साथ ही साथ उनके व्यय भी पर्याप्त होते हैं। इन व्यक्तियों के खातों का अंकेक्षण होने से हिसाब-किताब रखने वाले कर्मचारियों पर नैतिक दबाव होता है। और साथ ही आयकर आदि के लिए भी अंकेक्षित खातों से अधिक सहायता मिलती है। जो व्यक्ति अपने एजेण्टों के सहारे काम करता है उसके लिए भी अंकेक्षण लाभदायक होता है।
रोकड़ अंकेक्षण (Cash Audit)-
इस प्रकार के ऑडिट मे जब कोई संस्था किसी निश्चित अवधि के लिए रोकड़ के लेन-देनों की जाँच करने के लिए अंकेक्षक की नियुक्ति करती है तो इसे रोकड़ अंकेक्षण के नाम से जाना जाता है। इस प्रणाली के अन्तर्गत आवश्यक प्रमाणों की सहायता से अंकेक्षक के द्वारा आय-व्यय के नकदी लेन-देनों का ही अंकेक्षण किया जाता है। यह रोकड़ बही तक ही सीमित होता है।
सरकारी अंकेक्षण (Government Audit)-
सरकारी विभागों के हिसाब-किताब की जाँच करना सरकारी अंकेक्षण के अंतर्गत आता है। इस कार्य के लिये जिन अंकेक्षकों की नियुक्ति की जाती है। उनके अधिकार एवं कर्त्तव्य सरकारी नियमों के अनुसार ही होते हैं। केन्द्रीय सरकार के विभागों के वित्तीय खातों के अंकेक्षण के लिये अलग -अलग विभाग होता है। जिसका सबसे बड़ा अधिकारी कम्पट्रोलर एण्ड आडीटर जनरल कहलाता है।
अन्तरिम या मध्य अंकेक्षण (Interim Audit)-
वित्तीय वर्ष के बीच में किसी विशेष उद्देश्य से लेखा-पुस्तकों का किया जाने वाला अंकेक्षण अन्तरिम अथवा मध्य अंकेक्षण कहलाता है।
चिट्ठा अंकेक्षण (Balance Sheet Audit)-
इस अंकेक्षण से आशय चिट्ठे की विभिन्न मदों के अंकेक्षण से है। दूसरे शब्दों में हम यह कह सकते है कि चिट्टे के सम्पत्ति एवं दायित्व दोनों पक्षों की विभिन्न मदों का अंकेक्षण ही चिट्ठा अंकेक्षण कहलाता है।
प्रमाण अंकेक्षण (Standard Audit)
प्रमाण अंकेक्षण का आशय उस अंकेक्षण से है । जिसके अंतर्गत कुछ विशेष मदों की पूर्ण जाँच की जाती है। तथा शेष मदों की जाँच सरसरी निगाह (Test Checking) से की जाती है ।
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