लॉ ऑफ टोर्ट (अपकृत्य विधि) के अंतर्गत प्रतिनिधित्व और स्वामी सेवक के दायित्व क्या है ?

लॉ ऑफ टोर्ट (अपकृत्य विधि) के अंतर्गत प्रतिनिधित्व और स्वामी सेवक के दायित्व इस प्रकार है।

जैसा की आप सभी जानते है की भारत मे समान्यता हर व्यक्ति अपने द्वारा किए कार्यो के लिए जिम्मेदार होता है। पर कभी कभी कुछ ऐसे स्थित आती है जब एक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति के लिए भी जिम्मेदार होता है ऐसे दायित्व को ही प्रतिनिधि दायित्व कहते है।

इस दायित्व मे पहला स्थान स्वामी का होता है जो अपने सेवक के कार्यो के लिए उत्तरदाई होता है।

अपने सेवक के कार्यो के अप्क्रत्य के लिए स्वामी जिम्मेदार होता है। कानून की द्र्स्टि मे स्वामी जिम्मेदार होता है।

यदि नौकर कोई कार्य करता है तो यह समझा जाएगा की मालिक ने ही यह कार्य करता है क्योकि मालिक नौकर को जो आदेश देगा वही नौकर करेगा । नौकर मालिक के घर मे रहता है और उसकी के अनुसार कार्य करता है तो उसके लिए किए गए कार्यो की ज़िम्मेदारी भी मालिककी ही होगी।

यदि कोई एजेंट है तो भी वह अपने मालिक के अनुसार कार्य करेगा और यदि कोई सहयोगी या हिस्सेदार है तो भी एक के द्वारा किए गए कार्यो के लिए दोनों जिम्मेदार होंगे।

प्रतिनिधित्व दायित्व के आधार

दूसरे के माध्यम से कार्य करने वाला ही असली कर्ता है। यदि नौकर कोई कार्य करता है तो यह समझा जाएगा की मालिक ने ही यह कार्य करता है क्योकि मालिक नौकर को जो आदेश देगा वही नौकर करेगा ।

प्रधान व्यक्ति उत्तरदायी होता है।

इसका आशय यह है कि जो व्यक्ति बड़ा होता है उसकी ज़िम्मेदारी अधिक होती है वह अन्य व्यक्ति के द्वारा किए गए कार्यो के लिए उत्तरदायी होगा। जैसे उदाहरण के तौर पर घर का जो मुखिया होता है वह घर के अन्य सदस्य के लिए जिम्मेदार होता है अन्य सदस्य भी यदि कोई कार्य करते है तो मुखिया उसका उत्तरदायी होगा।

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प्रतिनिधित्व दायित्व कैसे उत्पन्न होता है।

एक मकान का कार्य चल रहा है और ठेकेदार कई मजदूर लकर कार्य कराता है यदि कोई गलती होती है तो उसका उत्तरदायी ठेकेदार होगा।

अनुसमर्थन के द्वारा –

कभी कभी कोई व्यक्ति दूसरे व्यक्ति के कार्यो को समर्थन दे देता है जिसका उस पर कोई हक नही होता है पर विधि के द्वारा यह माना जाएगा कि व्यक्ति ने अनुसमर्थन दे दिया है और इसके प्रति उत्तरदायी होगा। पर वह विधिक होना चाहिए। वैध होना चाहिए, उनके बीच संबंध होना चाहिए,

विशिस्ट संबंध के द्वारा

मालिक और एजेंट

फ़र्म और उसके भागीदार

स्वामी और सेवक

यदि नौकर कोई कार्य करता है तो यह समझा जाएगा की मालिक ने ही यह कार्य करता है क्योकि मालिक नौकर को जो आदेश देगा वही नौकर करेगा ।

एजेंट कोई कार्य कर्ता है तो मालिक उसके लिए उत्तरदायी होगा।

स्टेट बैंक बनाम श्याम देवी मे यह बताया गया है कि इस मामले मे श्याम देवी ने बैंक मे पैसे जमा किए जिसको जमाकर्ता ने बैंक मे नही जमा किया तो बैंक उस व्यक्ति द्वारा नही जमा किए गए पैसे कि भरपाई की क्योकि बैंक अपने एजेंट के लिए उत्तरदायी होगी।

यदि भागीदार फ़र्म मे कोई अप्क्रत्य कर्ता है तो पूरी फ़र्म उसके लिए उत्तरदायी होगी।

स्वामी और सेवक के द्वारा किया गाया अपक्र्त्य के लिए उत्तरदाई होगा । जब वह नियोजक के अंतर्गत कार्य करता है और जब नियोजक के अनुकरण मे कार्य करता है तब नियोजक उसके द्वारा किए गए कार्यो के लिए त्तरदाई होगा। इसमे कार्य करने का समय भी निश्चित होना चाहिए। जैसे की यदि सेवक सुबह 6 से रात 8 तक किसी के घर कार्य करता है तो उस समय सेवक के द्वारा किया गया कार्य मालिक के द्वारा उत्तरदाई होगा।

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यह तब लागू नही होगा जब –

जब सेवक ने असावधानी बरते तो –

जब सेवक के असावधानी से किसी व्यक्ति को नुकसान होता है तो उसकी भरपाई सेवक करता है।

जब सेवक ने स्वामी के आदेश का जानबूझ कर उलंघन करता है तो वह खुद उत्तरदाई होगा।

जब सेवक ने आदेश को करने मे भूल की हो।

जब सेवक ने कपट किया हो।

जब सेवक की सेवा किसी और को दी गयी हो।

अपक्रत विधि मे जहा अधिकार है वहा उपाय भी है। इसको देखते है । जहा विधिक उपचार होता है वहा विधिक दोष नही होता है। इसका लैटिन शब्द है इस मे बताया गया है की अगर आपको अधिकार दिया गया है तो उपचार मिलना चाहिए जब अधिकार होगा और उपचार नही मिलेगा तो अधिकार का अस्तित्व समाप्त हो जाता है यहा विधि द्वारा अपक्र्त्य पर होने वाले उपचार के बारे मे बताया गया है अगर किसी के अधिकार पर अवरोध लगाया जाता है तो उसको उपचार मिलना चाहिए।

इसका उदाहरण है ashby vs. White इस वाद मे कहा गया है लार्ड होल्ड ने कहा की यदि किसी व्यक्ति को अधिकार प्रपट है तो अधिकार के सुरक्षा के लिए साधन होना आवश्यक है। और यदि उस अधिकार के प्रयोग मे कोई बढ़ा डालता ही तो उसके वीरुध उपचार किया जाना आवश्यक है। बिना उपचार के किसी भी अधिकार की कल्पना करना व्यर्थ है। अधिकार का अभाव और उपचार का अभाव भिन्न है।

यह ऐसे अधिकार के उपयोग के रूप मे किया जाता है की वहा ऐसे अधिकार के उपाए के रूप मे बात की जाती है जो विधि के द्वारा दिया गया है। अपक्र्त्य विधि का दायित्व तभी सुरू होता है जब किसी के अधिकार की अवहेलना की जाती है।

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लॉं ऑफ टोर्ट (अप्क्रत्य विधि) क्या होता है उसका उत्पत्ति तथा मान हानि आदि के बारे मे बता चुके है । यदि आपने यह नही पढ़ी है तो पहले आप उनको पढ़ लीजिये जिससे आपको आगे की समझने मे आसानी होगी।

यदि आपको समझने मे कोई परेशानी आ रही है। या फिर यदि आप इससे संबन्धित कोई सुझाव या जानकारी देना चाहते है।या आप इसमे कुछ जोड़ना चाहते है।या फिर आपको इन धाराओ मे कोई त्रुटि दिख रही है तो उसके सुधार हेतु भी आप अपने सुझाव भी भेज सकते है।

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