कंपनी अधिनियम, 2013 की धारा 2(30) मे ‘डिबेंचर’ को परिभाषित किया गया है। इसमें यह बताया गया है कि डिबेंचर में डिबेंचर स्टॉक, बॉन्ड या कंपनी द्वारा ली गई राशि का भुगतान करने का वादा करने वाला कोई अन्य वित्तीय साधन शामिल है।
डिबेंचर को ऋण की अवधारणा से संबंधित किया जा सकता है। क्योंकि डिबेंचर एक कंपनी के लिए ऋण के समान कार्य करता है।
उदाहरण के लिए, यदि राम एक कार खरीदना चाहता है जिसका मूल्य 70 लाख रुपये है और उसके पास 20 लाख रुपये हैं, तो वह कार खरीदने के लिए ऋण के लिए आवेदन करेगा। कंपनी के नजरिए से देखे तो एक कंपनी बौद्धिक संपदा (इंटेलेक्चुअल प्रॉपर्टी) के व्यवसायीकरण (कमर्शियल डाइजेशन) को बढ़ाने के लिए अपने अनुसंधान और विकास कार्यक्रम का विस्तार करना चाहती है।
कंपनी के चरण लंबी अवधि में प्रभावी साबित हुए हैं और बहुत मूल्यवान हैं। इसलिए, कंपनी जनता से ऋण लेने के लिए पहुंच जाएगी। मूल रूप से, डिबेंचर उस दस्तावेज को संदर्भित करता है जो कंपनी द्वारा ऋण की औपचारिक पावती (फॉर्मल एक्नॉलेजमेंट) को दर्शाता है, और यह स्वीकार किया जाता है कि कंपनी ने जनता से ऋण लिया है। जिसमें यह भी बताया जाता है कि जब तक डिबेंचर मुक्त नहीं हो जाता तब तक निर्दिष्ट समय पर जनता को उधार ली गई राशि के लिए ब्याज का भुगतान किया जाएगा। सरल शब्दों में इसे कंपनी की देनदारी (लायबिलिटी) कहा जा सकता है। कंपनी के जारी किए गए शेयर खरीदने वाले निवेशक डिबेंचर धारक बन जाते हैं।
कंपनी अधिनियम, 2013 की धारा 2(30) में कंपनी की संपत्ति पर चार्ज के बारे में भी बात की गई है। यहां ‘चार्ज’ शब्द का अर्थ जनता को शेयर जारी करने के बाद दिया गया अधिकार या शक्ति है। इसमे कंपनी के एसेट पर चार्ज का महत्व और आवश्यकता सर्वोपरि (सुप्रीम) है । यहा पर एक चार्ज का अर्थ डिबेंचर धारकों को दी गई स्वतंत्रता है, जो तब लागू होगी जब कंपनी ब्याज के साथ उधार ली गई राशि के पुनर्भुगतान में विफल हो जाती है। डिबेंचर धारकों को कंपनी की संपत्ति बेचने और अपनी दी गई मूल राशि और ऋण ब्याज की वसूली करने की अत्यधिक स्वतंत्रता होती है।
विभिन्न आधारों पर डिबेंचर के प्रकार इस प्रकार से है।
इन विभिन्न प्रकार के डिबेंचर को नीचे बताया गया है।
सुरक्षा के आधार पर डिबेंचर—-
1. सुरक्षित डिबेंचर
सुरक्षित डिबेंचर संपार्श्विक (कोलेटरल) ऋण के समान हैं। जिसका अर्थ यह है कि ये डिबेंचर केवल संपार्श्विक सुरक्षा पर काम करते हैं जो कंपनी निवेशकों को देती है। अन्य शब्दों मे बोले तो ऐसे डिबेंचर के लिए कुछ संपार्श्विक रखा जाना चाहिए तथा वह संपार्श्विक कंपनी की संपत्ति होगी। यदि कंपनी ब्याज सहित मूल राशि का भुगतान करने में विफल रहती है तो डिबेंचर धारक संपत्ति की बिक्री के माध्यम से अपने पैसे की वसूली कर सकते हैं।
उदाहरण के लिए, एक कंपनी एबीसी को अपने व्यवसाय संचालन के लिए पूंजी की आवश्यकता होती है; ऐसा करने के लिए, यह निवेशकों के लिए सुरक्षित डिबेंचर जारी करती है। अब यहां जब कंपनी सुरक्षित प्रकृति का डिबेंचर जारी करती है, तो कंपनी ज्यादा मूल्य वाली मूर्त (टैंजिबल) संपत्ति यानि वैकल्पिक बिजली संयंत्र (प्लांट) को संपार्श्विक के रूप में रखती है। अगर भविष्य में, कंपनी दिवालिया (इंसॉल्वेंट) हो जाती है, तो वह बिजली संयंत्र को बेचकर डिबेंचर धारकों के कर्ज को चुका देगी। जब कंपनी दिवालिया हो जाती है। तो ऐसे दशा मे डिबेंचर धारक उसकी संपत्ति पर पूर्ण अधिकार प्राप्त कर लेते हैं और उसे बेचकर अपना पैसा वसूल कर सकते हैं।
सुरक्षित डिबेंचर को आगे दो श्रेणियों में वर्गीकृत किया गया है। वे इस प्रकार हैं:
फिक्स्ड चार्ज एसेट
फिक्स्ड चार्ज एसेट्स वे विशेष संपत्तियां हैं जो कंपनी उधार लिए गए कर्ज के खिलाफ देती हैं। यह एक अचल संपत्ति है जिसके खिलाफ बिक्री के माध्यम से ऋण की वसूली की जाती है यदि कंपनी अपने वादे को पूरा करने में विफल रहती है।
अंत में, यह स्पष्ट है कि इन एसेट्स को कंपनी द्वारा डिबेंचर धारकों की सहमति के बिना नहीं बेचा जा सकता है। उदाहरण के लिए, कंपनी ने अपनी सभी प्रकार की भारी मशीनरी से एक डिबेंचर जारी किया। यह फिक्स चार्ज है।
फ्लोटिंग चार्ज एसेट
फ्लोटिंग चार्ज एसेट्स प्रकृति में सामान्य हैं; ये फिक्स्ड चार्ज एसेट की तरह विशिष्ट नहीं हैं। कंपनी सुरक्षा के रूप में सामान्य संपत्ति देकर डिबेंचर जारी करती है।
फ्लोटिंग चार्ज एसेट्स के मामले में, कंपनी को संपार्श्विक के रूप में रखे जाने के संबंध में पूर्ण विवेकाधिकार है, और इस कारण से, वे प्रकृति में सामान्य हैं। उदाहरण के लिए, यह संपार्श्विक के रूप में संयंत्रों, मशीनरी या अपने आधिकारिक कार्यालय भवन को रख सकती है।
असुरक्षित डिबेंचर —-
असुरक्षित’ इस लिए कहा जाता है क्योंकि उधार लिए गए ऋण को वापस करने के लिए कोई संपार्श्विक मौजूद नहीं होता है। डिबेंचर धारक कंपनी को उसकी बाजार छवि, विश्वसनीयता और मूल्य के अनुसार ऋण देते हैं। ऐसे डिबेंचर के मामले में, डिबेंचर धारकों के पास कंपनी की संपत्ति को बेचने की शक्ति नहीं होती है।
परिवर्तनीयता के आधार पर——
परिवर्तनीय डिबेंचर
इस प्रकार के डिबेंचर को एक निश्चित अवधि के बाद अंततः कंपनी के इक्विटी शेयरों में बदला जा सकता है। इक्विटी शेयर सामान्य या साधारण शेयर होते हैं, जिसमें खरीद पर आंशिक (पार्शियल) स्वामित्व प्राप्त होता है।
उदाहरण के लिए, कंपनी एबीसी एक निश्चित अवधि के लिए डिबेंचर जारी करती है, और उक्त अवधि के दौरान कंपनी के शेयरधारक उन डिबेंचर को इक्विटी शेयरों में बदलने का निर्णय लेते हैं। और उसके बाद, सभी डिबेंचर धारक अब इक्विटी शेयरधारकों की स्थिति का आनंद लेंगे, जहां उन्हें अब कंपनी के निर्णयों और संचालन में वोट देने का अधिकार होगा।
परिवर्तनीय डिबेंचर को आगे दो वर्गों में विभाजित किया गया है, जो इस प्रकार हैं:
आंशिक रूप से परिवर्तनीय
ऐसे डिबेंचर जो केवल एक विशिष्ट अनुपात (प्रोपोर्शन) में इक्विटी शेयरों में परिवर्तित होते हैं, आंशिक रूप से परिवर्तनीय डिबेंचर कहलाते हैं। आम जनता को प्रतिभूति (सिक्योरिटी) जारी करने के बाद कंपनी परिवर्तन के लिए अनुपात तय करती है।
उदाहरण के लिए, एक कंपनी 200 रुपये प्रति डिबेंचर के मूल्य पर 100 डिबेंचर जारी करती है। कुछ समय बाद, शेयरधारकों ने 30 डिबेंचर को इक्विटी शेयरों में बदलने का फैसला किया। परिवर्तन पर, उन 30 डिबेंचर के डिबेंचर धारकों को कंपनी के संचालन में वोट देने का अधिकार होगा और उन्हें कंपनी का मालिक कहा जाएगा क्योंकि वे अब शेयरधारक हैं।
पूरी तरह से परिवर्तनीय
ये डिबेंचर पूरी तरह से कंपनी के इक्विटी शेयरों में परिवर्तित हो जाते हैं। कंपनी यह तय करती है कि जारी करने के समय डिबेंचर को इक्विटी शेयरों में बदलना है या नहीं।
उदाहरण के लिए, एक कंपनी एबीसी मे 100 डिबेंचर जारी करती है और कुछ समय बाद, उन्हें इक्विटी शेयरों में बदलने का फैसला करती है। इस मामले में, सभी डिबेंचर में निवेशक अब शेयरधारकों में परिवर्तित हो जाएंगे और इसलिए उनके पास उपरोक्त अधिकार होंगे।
प्राथमिकता के आधार पर —-
1. पहले गिरवी रखे गए डिबेंचर
कंपनी के परिसमापन (लिक्विडेशन) के समय पहले गिरवी रखे गए डिबेंचर को पहली वरीयता (प्रिफरेंस) दी जाती है, जिसका अर्थ है कि जब कंपनी अपने ऋण और देनदारियों के अन्य रूपों को चुकाना शुरू करती है तो पहले गिरवी रखे गए डिबेंचर के धारकों को पहले भुगतान किया जाता है। इन डिबेंचर के पुनर्भुगतान के बाद ही अन्य प्रकार के डिबेंचर का भुगतान किया जाता है।
2. दूसरे गिरवी रखे गए डिबेंचर
परिसमापन के समय पहले गिरवी रखे गए डिबेंचर को चुकाने के बाद ही कंपनी द्वारा दूसरे गिरवी रखे गए डिबेंचर का भुगतान किया जाता है। वे पहले गिरवी रखे गए डिबेंचर के बाद दूसरे स्थान पर आते हैं।
उदाहरण के लिए, 100 निवेशकों में से, लगभग 50 ने पहले गिरवी रखे गए डिबेंचर में निवेश किया, और अन्य 50 ने दूसरे गिरवी रखे गए डिबेंचर में निवेश किया। अब जब कंपनी ने पूंजी उत्पन्न करना शुरू कर दिया है और अपनी देनदारियों का भुगतान करना शुरू कर दिया है, तो वह पहले गिरवी रखे हुए डिबेंचर धारकों को भुगतान करेगी और फिर दूसरे को करेगी।
रिकॉर्ड के आधार पर —
1. पंजीकृत (रजिस्टर्ड) डिबेंचर
यहां ‘पंजीकृत’ शब्द का अर्थ है कंपनी द्वारा बनाए गए रजिस्टर में डिबेंचर धारकों के नाम और पते जैसी आवश्यक जानकारी दर्ज करना, जहां कंपनी द्वारा डिबेंचर के हस्तांतरण को पंजीकृत किया जाता है। जिन डिबेंचर के संबंध में उक्त रिकॉर्ड बनाया गया है वे पंजीकृत डिबेंचर हैं।
2. अपंजीकृत (अनरजिस्टर्ड) डिबेंचर
इन डिबेंचर को बियरर डिबेंचर के रूप में भी जाना जाता है। सरल भाषा में, अपंजीकृत डिबेंचर को ‘अनौपचारिक (इनफॉर्मल) डिबेंचर’ के रूप में समझा जा सकता है, क्योंकि पंजीकृत डिबेंचर के विपरीत, उन्हें औपचारिक और निर्धारित प्रक्रिया शामिल नहीं होती है। विवरण, जैसे कि डिबेंचर धारकों के नाम और पते, कंपनी द्वारा डिबेंचर के रजिस्टर में पंजीकृत नहीं होते हैं। अपंजीकृत डिबेंचर भी लिखत (इंस्ट्रूमेंट) की सुपुर्दगी (डिलीवरी) पर हस्तांतरणीय होते हैं, इसलिए लिखत रखने वाले व्यक्ति को भुगतान किया जाता है।
उदाहरण के लिए, यदि कंपनी एबीसी उपर्युक्त डिबेंचर जारी करती है, तो पंजीकृत डिबेंचर के मामले में, कंपनी भविष्य में निवेशकों को आसानी से भुगतान करने के लिए सभी आवश्यक जानकारी रखने के लिए एक रजिस्टर बनाए रखेगी। लेकिन एक अपंजीकृत डिबेंचर के मामले में, कंपनी एक सूचना रिकॉर्ड रजिस्टर नहीं बनाएगी; बल्कि, यह अनौपचारिक रूप से निवेशकों को भुगतान करने के लिए एक लिखत जारी करेगी।
प्रदर्शन के आधार पर —
1. प्रतिदेय डिबेंचर
कंपनी द्वारा एक निश्चित अवधि के लिए प्रतिदेय डिबेंचर जारी किए जाते हैं। कंपनी, डिबेंचर जारी करने की तिथि पर, डिबेंचर प्रमाणपत्र प्रदान करती है, जिसमें उस तारीख का उल्लेख होता है जिस पर मूल राशि का भुगतान किया जाएगा। कंपनी, इस तरह के डिबेंचर जारी करने के बाद और जारी होने की तारीख को और उसके बाद, अपने वादे से बाध्य हो जाती है। इस प्रकार के डिबेंचर को निवेश का सबसे सुरक्षित रूप माना जाता है क्योंकि मूल राशि का पुनर्भुगतान सुनिश्चित होता है और धारक को एकमुश्त (लम सम) या किस्तों में आगे ब्याज दिया जाता है। इस पर आगे के पैराग्राफों में विस्तार से चर्चा की गई है।
2. अप्रतिदेय (इन रिडीमेबल) डिबेंचर
प्रतिदेय डिबेंचर के विपरीत, इन डिबेंचर में पुनर्भुगतान के लिए एक निर्दिष्ट समय अवधि नहीं होती है। कंपनी डिबेंचर धारकों को केवल तभी भुगतान करती है जब वह परिसमापन में जाती है, अर्थात, जब वह अपने ऋणों और देनदारियों का भुगतान करना शुरू करती है।