भारतीय संविधान के अनुसार अनुच्छेद 117 से 121 तक का वर्णन

जैसा कि आप सभी को ज्ञात होगा इससे पहले की पोस्ट मे हमने भारतीय संविधान के अनुसार अनुच्छेद 116  तक का वर्णन किया था अगर आप इन धाराओं का अध्ययन कर चुके है। तो यह आप के लिए लाभकारी होगा । यदि आपने यह धाराएं नहीं पढ़ी है तो पहले आप उनको पढ़ लीजिये जिससे आपको आगे की धाराएं समझने मे आसानी होगी।

अनुच्छेद 117

इस अनुच्छेद मे वित्त विधेयकों के बारे में विशेष उपबंध को बताया गया है।

(1) अनुच्छेद 110 के खंड (1) के उपखंड (क) से उपखंड (च) में यह बताया गया है कि  किसी विषय के लिए उपबंध करने वाला विधेयक या उसमे  संशोधन राष्ट्रपति की सिफारिश से ही पुरःस्थापित या प्रस्तावित किया जाएगा। और यदि सहमति नहीं मिलती तो  नहीं पुरःस्थापित या प्रस्तावित किया जाएगा।और ऐसा उपबंध करने वाला विधेयक राज्य सभा में पुरःस्थापित नहीं किया जाएगा।

परन्तु किसी कर के घटाने या उत्सादन के लिए उपबंध करने वाले किसी संशोधन के प्रस्ताव के लिए इस खंड के अधीन सिफारिश की ऐसे अपेक्षा नहीं होगी।

(2) इसके अनुसार यदि कोई विधेयक या संशोधन उक्त विषयों में से किसी के लिए उपबंध करने वाला केवल इस कारण नहीं समझा जाएगा कि वह जुर्माना या अन्य धनीय शास्तियों के अधिरोपण का अथवा अनुज्ञप्तियों के लिए फीस की या की गई सेवाओं के लिए फीस की मांग का या उनके संदाय का उपबंध करता है ।या फिर ऐसा भी नहीं होगा कि वह किसी स्थानीय प्राधिकारी या निकाय द्वारा स्थानीय प्रयोजनों के लिए किसी कर के अधिरोपण, उत्सादन, परिहार, परिवर्तन या विनियमन का उपबंध करता है।

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(3) जिस विधेयक को अधिनियमित और परिवर्तन किए जाने पर भारत की संचित निधि में से व्यय करना पड़ेगा । वह विधेयक संसद के किसी सदन द्वारा तब तक पारित नहीं किया जाएगा । जब तक ऐसे विधेयक पर विचार करने के लिए उस सदन से राष्ट्रपति ने सिफारिश नहीं की है।

अनुच्छेद 118

इस अनुच्छेद मे प्रक्रिया को बताया गया है।

(1)- इस संविधान के उपबंध के अनुसार संसद के प्रत्येक सदन अपनी प्रक्रिया और अपने कार्य संचालन के विनियमन के लिए  एक नियम बना सकेगा ।

(2)- जब तक खंड [1] के अनुसार नियम नहीं बनाए जाते हैं तब तक इस संविधान के प्रारंभ से ठीक पहले भारत डोमिनियन के विधान-मंडल के संबंध में जो प्रक्रिया के नियम और स्थायी आदेश प्रवृत्त थे । वे ऐसे उपांतरणों और अनुकूलनों के अधीन रहते हुए संसद के संबंध में प्रभावी होंगे । जिन्हें, यथास्थिति, राज्य सभा का सभापति या लोक सभा का अध्यक्ष इनमें करे।

(3)- राष्ट्रपति जो कि  राज्य सभा के सभापति और लोक सभा के अध्यक्ष से परामर्श करने के बाद मे दोनों सदनों की संयुक्त बैठकों से संबंधित और उनमें परस्पर संचार से संबंधित प्रक्रिया के नियम बना सकेगा ।

(4)- दोनों सदनों की सयुंक्त बैठक में लोक सभा का अध्यक्ष या उसकी अनुपस्थिति में ऐसा व्यक्ति  जो पीठासीन होगा और जिसका खंड
 [3]के अधीन बनाई गई प्रक्रिया के नियमों के अनुसार अवधारणा किया जाए ।

अनुच्छेद 119

इस अनुच्छेद के अनुसार संसद में वित्तीय कार्य संबंधी प्रक्रिया का विधि द्वारा विनियमन को बताया गया है।

इसके अनुसार संसद जो कि  वित्तीय कार्य को समय के भीतर पूरा  करने के प्रयोजन के लिए  किसी वित्तीय विषय से संबंधित या भारत की संचित निधि में से धन का विनियोग करने के लिए किसी विधेयक से संबंधित जो कि  संसद के प्रत्येक सदन की प्रक्रिया और कार्य संचालन का विनियमन विधि द्वारा कर सकेगी तथा यदि और जहां तक इस प्रकार बनाई गई किसी विधि का कोई उपबंध  जो कि अनुच्छेद 118 के खंड (1) के अधीन संसद  के किसी सदन द्वारा बनाये गए नियम से या उस अनुच्छेद के खंड (2)के अधीन संसद के संबंध में प्रभावी किसी नियम या स्थायी आदेश से असंगत है । तो ऐसे स्थान मे  जहां तक ऐसा उपबंध  अभिभावी होना ।

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अनुच्छेद 120

इस अनुच्छेद के अनुसार संसद में प्रयोग की जाने वाली भाषा के बारे मे बताया गया है।

(1) इस अनुच्छेद के अनुसार भाग 17 मे यदि कोई बात है । किन्तु अनुच्छेद 348 के उपबंधों के अधीन रहते हुए उसको  संसद में कार्य हिन्दी में या अंग्रेजी में किया जाएगा।

परन्तु, यथास्थिति, राज्य सभा का सभापति या लोकसभा का अध्यक्ष अथवा उस रूप में कार्य करने वाला व्यक्ति किसी सदस्य को जो हिन्दी में या अंग्रेजी में अपनी पर्याप्त अभिव्यक्ति नहीं कर सकता है। उसको  अपनी मातृभाषा में सदन को संबोधित करने की अनुज्ञा दे सकेगा।

(2) जब तक संसद विधि द्वारा अन्यथा उपबंध न करे।  तब तक इस संविधान के प्रारंभ के पंद्रह वर्ष की अवधि की समाप्ति के पश्चात यह अनुच्छेद ऐसे प्रभावी होगा मानो ”या अंग्रेजी में” शब्दों का उसमें से लोप कर दिया गया हो।

अनुच्छेद 121

इस अनुच्छेद के अनुसार संसद में चर्चा पर निर्बन्धन को बताया गया है।

इस अनुच्छेद के अनुसार उच्चतम न्यायालय या किसी उच्च न्यायालय के किसी न्यायाधीश को  अपने कर्तव्यों के निर्वहन में किए गए आचरण के विषय में संसद में यदि  कोई चर्चा  या फिर इसमें इसके पश्चात उपबंधित रीति से उस न्यायाधीश को हटाने की प्रार्थना करने वाले समावेदन को राष्ट्रपति के समक्ष प्रस्तुत करने के प्रस्ताव पर ही होगी अन्यथा नहीं होगी।

यदि आपको इन को समझने मे कोई परेशानी आ रही है। या फिर यदि आप इससे संबन्धित कोई सुझाव या जानकारी देना चाहते है।या आप इसमे कुछ जोड़ना चाहते है। तो कृपया हमें कमेंट बॉक्स  जाकर अपने सुझाव दे सकते है।

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