जैसा कि आप सभी को ज्ञात होगा इससे पहले की पोस्ट मे हमने भारतीय संविधान के अनुसार अनुच्छेद 124 तक का वर्णन किया था अगर आप इन धाराओं का अध्ययन कर चुके है। तो यह आप के लिए लाभकारी होगा । यदि आपने यह धाराएं नहीं पढ़ी है तो पहले आप उनको पढ़ लीजिये जिससे आपको आगे की धाराएं समझने मे आसानी होगी।
अनुच्छेद 125
इस अनुच्छेद मे न्यायाधीशों के वेतन के बारे मे बताया गया है।
[(1) उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों को ऐसे वेतनों का संदाय किया जाएगा । जो कि संसद के विधि द्वारा अवधारित करे । और जब तक इस निमित्त इस प्रकार उपबंध नहीं किया जाता है । तब तक ऐसे वेतनों का संदाय किया जाएगा जो दूसरी अनुसूची में विनिर्दिष्ट हैं।
(2) प्रत्येक न्यायाधीश ऐसे विशेषाधिकारों और भत्तों का तथा अनुपस्थिति छुट्टी और पेंशन के संबंध में ऐसे अधिकारों का जो कि संसद द्वारा बनाई गई विधि द्वारा या फिर उसके अधीन समय-समय पर अवधारित किए जाएँ। और जब तक इस प्रकार अवधारित नहीं किए जाते हैं । तब तक ऐसे विशेषाधिकारों भत्तों और अधिकारों का जो दूसरी अनुसूची में विनिर्दिष्ट हैं। इसका हकदार होगा।
परन्तु किसी न्यायाधीश के विशेषाधिकारों और भत्तों में तथा अनुपस्थिति छुट्टी या पेंशन के संबंध में उसके अधिकारों में उसकी नियुक्ति के पश्चात् उसके लिए अलाभकारी परिवर्तन नहीं किया जाएगा।
इसमे निम्न संशोधन किया गया है।
संविधान (चौवनवा संशोधन) अधिनियम, 1986 की धरा 2 द्वारा (1-4-1986 से) खंड (1) के स्थान पर प्रतिस्थापित किया गया है।
अनुच्छेद 126
इस अनुच्छेद के अनुसार कार्यकारी मुख्य न्यायमूर्ति की नियुक्ति को बताया गया है।
इस अनुच्छेद के अनुसार जब भारत के मुख्य न्यायमूर्ति का पद रिक्त होता है। या जब मुख्य न्यायमूर्ति जो कि अनुपस्थिति के कारण या अन्यथा अपने पद के कर्तव्यों का पालन करने में असमर्थ है। तब न्यायालय के अन्य न्यायाधीशों में से ऐसा एक न्यायाधीश जिसे राष्ट्रपति इस प्रयोजन के लिए नियुक्त किया जा सकता है। उसको उस पद के कर्तव्यों का पालन करना होगा।
अनुच्छेद 127
इस अनुच्छेद के अनुसार न्यायाधीशों की नियुक्ति को बताया गया है।
(1) यदि किसी भी समय उच्चतम न्यायालय के सत्र को आयोजित करने या चालू रखने के लिए उस न्यायालय के न्यायाधीशों की गणपूर्ति प्राप्त न हो तो भारत का मुख्य न्यायमूर्ति राष्ट्रपति की पूर्व सहमति से और संबंधित उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायमूर्ति से परामर्श करने के बाद मे किसी भी उच्च न्यायालय के किसी ऐसे न्यायाधीश से जो कि उच्चतम न्यायालय का न्यायाधीश नियुक्त होने के लिए सम्यक् रूप से अर्हित है । और जिसे भारत का मुख्य न्यायमूर्ति नामोदिष्ट करे। उनको न्यायालय की बैठकों में उतनी अवधि के लिए जितनी आवश्यक हो। तदर्थ न्यायाधीश के रूप में उपस्थित रहने के लिए लिखित रूप में अनुरोध कर सकेगा।
(2) इस प्रकार नामोदिष्ट न्यायाधीश का कर्तव्य होगा कि वह अपने पद के अन्य कर्तव्यों पर पूर्विकता देकर उस समय और उस अवधि के लिए जिसके लिए उसकी उपस्थिति अपेक्षित है। उच्चतम न्यायालय की बैठकों में वह उपस्थित हो और जब वह इस प्रकार उपस्थित होता है तब उसको उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश की सभी अधिकारियों शक्तियां और विशेषाधिकार प्राप्त होंगे और वह उक्त न्यायाधीश के कर्तव्यों का निर्वहन करेगा।
अनुच्छेद 128
इस अनुच्छेद के अनुसार उच्चतम न्यायालय की बैठकों में सेवानिवृत्त न्यायाधीशों की उपस्थिति को बताया गया है।
इस अनुच्छेद के अनुसार भारत का मुख्य न्यायाधीश जो कि किसी भी समय राष्ट्रपति की पूर्व सहमति से किसी व्यक्ति से जो उच्चतम न्यायालय या फेडरल न्यायालय के न्यायाधीश का पद धारण कर चुका है । या जो उच्च न्यायालय के न्यायाधीश का पद धारण कर चुका है । और उच्चतम न्यायालय का न्यायाधीश नियुक्त होने के लिए सम्यक् रूप से अर्हित है। उसको उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में बैठने और कार्य करने का अनुरोध कर सकेगा और प्रत्येक ऐसा व्यक्ति जिससे मुख्य न्यायधीश के द्वारा इस प्रकार अनुरोध किया जाता है-
वह व्यक्ति इस प्रकार बैठने और कार्य करने के दौरान ऐसे भत्तों का हकदार होगा जो राष्ट्रपति आदेश द्वारा अवधारित करे । और उसको उस न्यायालय के न्यायाधीश की सभी अधिकारिता शक्तियाँ और विशेषाधिकार उसको प्राप्त होंगे। किन्तु उसे अन्यथा उस न्यायालय का न्यायाधीश नहीं समझा जाएगा।
परन्तु जब तक यथापूर्वोक्त व्यक्ति उस न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में बैठने और कार्य करने की सहमति नहीं दे देता है। तब तक इस अनुच्छेद की कोई बात उससे ऐसा करने की अपेक्षा करने वाली नहीं समझी जाएगी।
इसमे निम्न संशोधन किए गए है।
संविधान (पन्द्रहवां संशोधन) अधिनियम, 1963 की धरा 3 द्वारा अन्तःस्थापित
अनुच्छेद 129
इस अनुच्छेद के अनुसार उच्चतम न्यायालय का अभिलेख न्यायालय होना बताया गया है।
इस अनुच्छेद के अनुसार उच्चतम न्यायालय अभिलेख न्यायालय होगा और उसको अपने अवमान के लिए दंड देने की शक्ति सहित ऐसे न्यायालय की सभी शक्तियाँ प्राप्त होंगी।
अनुच्छेद 130
इस अनुच्छेद के अनुसार उच्चतम न्यायालय का स्थान को बताया गया है।
इसके अनुसार उच्चतम न्यायालय दिल्ली में अथवा ऐसे अन्य स्थान या स्थानों में अधिविष्ट होगा । जिन्हें भारत का मुख्य न्यायमूर्ति या राष्ट्रपति के अनुमोदन से समय-समय पर नियत करे।
अनुच्छेद 131
इस अनुच्छेद के अनुसार उच्चतम न्यायालय की आरंभिक अधिकारिता को बताया गया है।
इस संविधान के उपबंधों के अधीन रहते हुए,–
(क) भारत सरकार और एक या अधिक राज्यों के बीच या
(ख) एक ओर भारत सरकार और किसी राज्य या राज्यों और दूसरी ओर एक या अधिक अन्य राज्यों के बीच या
(ग) दो या अधिक राज्यों के बीच
किसी भी विवाद में जहाँ तक उस विवाद में (विधि का या तनय का) ऐसा कोई प्रश्न अंतर्वलित है । जिस पर किसी विधिक अधिकार का आघ्स्तत्व या विस्तार निर्भर है। तो ऐसे विवाद मे वहाँ तक अन्य न्यायालयों का अपवर्जन करके उच्चतम न्यायालय को आरंभिक अधिकारिता होगी।
परन्तु उक्त का अधिकारिता विस्तार उस विवाद पर नहीं होगा। जो किसी ऐसी संधि, करार, प्रसंविदा, वचनबंध, सनद या वैसी ही अन्य लिखत से उत्पन्न हुआ है। जो इस संविधान के प्रारंभ से पहले की गई थी या निष्पादित की गई थी । और ऐसे प्रारंभ के पश्चात प्रवर्तन में है या जो यह उपबंध करती है कि उक्त का विस्तार ऐसे विवाद पर नहीं होगा।
इसमे निम्न संशोधन किया गया है।
संविधान (सातवाँ संशोधन) अधिनियम 1956 की धारा 5 के द्वारा परन्तुक के स्थान पर प्रतिस्थापित।
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