अनुबंध क्या है? इसकी आवश्यक विशेषताओं, आवश्यक तत्व, योग्यता, वैधता की व्याख्या करें? Contract Law Introduction

Contract Law Introduction – अनुबंध शब्द का अर्थ है,  बंध या सातत्य अथवा संबंध जोड़नेवाला।जैसे जिया जो एक वस्तु का उत्पादक है, अपने उत्पाद का विक्रय करने के लिए श्याम के पास प्रस्ताव रखता है और श्याम उसे स्वीकार कर लेता है तथा निश्चित समय पर दोनों पक्ष अपने-अपने वचन का निष्पादन कर देते हैं तथा अनुबन्ध क्रियान्वयित हो जाता है।

अनुबंध किसे कहते हैं?

अनुबंध मे दो पक्षकारों का होना अनिवार्य है।  पहला तो  प्रस्ताव को रखने वाला तथा  दूसरा पक्ष वह जो इसे स्वीकार करेंगा। एक पक्षकार कोई भी अनुबंध नही कर सकता इसलिए अनुबंध मे दो पक्षकारों का होना अनिवार्य है।इसमे  बिना समझौते के अनुबंध नही हो सकता इसलिए दोनों पक्षकारों के बीच कार्य को करने या नही करने के लिए समझौता होना जरूरी है।

समझौते के बिना अनुबंध नहीं हो सकता तथा यदि समझौते का उद्देश्य दायित्व उत्पन्न करना नहीं है अथवा उसे राजनियम द्वारा प्रवर्तनीय नहीं कराया जा सके तो वह अनुबंध नहीं हो सकता केवल समझौता ही रहेगा।

सर विलियम अनशन (Sir William Anson) : ‘‘अनुबंध दो पक्षकारों के मध्य किया गया ऐसा ठहराव है जो राजनियम द्वारा प्रवर्तनीय होता है। तथा जिसके द्वारा एक या अधिक पक्षकारों द्वारा कुछ कार्यों के लिए अधिकार प्राप्त किए जाते हैं। अथवा दूसरे या अन्य पक्षकारों द्वारा उनका त्याग किया जाता है।’’

सर जॉन सोलमन (Sir John Solmon) : ‘‘अनुबंध एक ऐसा समझौता है जो दो पक्षकारों के मध्य दायित्व उत्पन्न करता है एवं उनकी व्यवस्था करता है।’’

पोलक– “कानून द्वारा लागू हर समझौता और वादा एक अनुबंध है”।

अनुबंध की विशेषताएं—

अनुबन्ध की विशेषताओं को इस प्रकार से है।

    पक्षकारों के मध्य प्रस्ताव एवं स्वीकृति होने से ठहराव होता है।
    प्रस्ताव एवं स्वीकृति हो जाने से पक्षकार पारस्परिक रूप से वचनबद्ध हो जाते हैं।
    अनुबन्ध पक्षकारों के मध्य संवैधानिक दायत्वि उत्पन्न करता है।
    अनुबन्ध में पक्षकारों को संवैधानिक अधिकार प्राप्त होता है कि वह दूसरे पक्षकार से उसके वचन का पालन करवा सकें।
    अनुबन्ध में कम से कम दो पक्षकारों का होना अनिवार्य है।
    अनुबन्ध पक्षकारों के आपस में सहमत होने से उत्पन्न होता है।

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अनुबंध के तत्व —

धारा (10) तथा धारा 2 (h) के अनुसार एक वैध अनुबन्ध में निम्नलिखित आवश्यक लक्षण (तत्व) होते हैं-

1. ठहराव या समझौता- एक वैध अनुबंध का प्रथम लक्षण या तत्व पक्षकारों के मध्य ठहराव का होना आवश्यक है। ठहराव में प्रस्ताव व स्वीकृति का होना आवश्यक है। केवल प्रस्ताव अथवा बिना प्रस्ताव के स्वीकृति ठहराव का रूप धारण नहीं कर सकता है ।

2. पक्षकारों में अनुबंध क्षमता का होना-

 अनुबन्ध अधिनियम के अन्तर्गत निम्नलिखित व्यक्ति संवैधानिक दृष्टि से ठहराव करने के योग्य समझे जाते, हैं

-(i) वयस्क व्यक्ति, (ii) स्वस्थ मस्तिष्क का व्यक्ति, (iii) अनुरोध करने के अयोग्य घोषित न किया हो।

3. स्वतंत्र सहमति-

यहा पर स्वतन्त्र सहमति से आशय हैं-

 “जब दो व्यक्ति एक ही बात पर तथा एक ही भाव में राजी हो जाते हैं तब कहा जाता है कि उन्होंने सहमति की। स्पष्टतः निम्नलिखित परिस्थितियों के न होने से यह समझा जाता है कि सहमति स्वतन्त्र होगी- (i) उत्पीड़न, (ii) अनुचित प्रभाव, (iii) कपट, (iv) मिथ्यावर्णन, (v) गलती।

4. न्यायोचित प्रतिफल एवं उद्देश्य –

 प्रतिफल का उद्देश्य ‘बदले में’ कुछ प्राप्त करने से है तथा इसे प्रत्येक स्थिति में वास्तविक एवं न्यायोचित होना चाहिए तथा शब्दों में ठहराव का उद्देश्य-(i) अवैध, (ii) अनैतिक, (iii) लोकनीति के विरुद्ध नहीं होना चाहिए। अवैध प्रतिफल व उद्देश्य वाले अनुबन्ध व्यर्थ होते हैं।

5. ठहराव का स्पष्ट रूप से व्यर्थ घोषित न किया जाना-

ठहराव ऐसा नहीं होना चाहिए जो इस अधिनियम के द्वारा स्पष्ट रूप से व्यर्थ घोषित कर दिया गया हो। भारतीय अनुबन्ध अधिनियम द्वारा व्यर्थ घोषित ठहराव निम्न हैं- विवाह में रोक लगाने वाले ठहराव, व्यापार में रुकावट डालने वाले ठहराव, वैधानिक कार्यवाही को रोकने वाले ठहराव, अनिश्चित ठहराव आदि।

See Also  क्षतिपूर्ति भारतीय संविदा अधिनियम 1872

6. ठहराव का पक्षकारों पर कानूनन लागू होना-

एक वैध अनुबन्ध का आवश्यक लक्षण यह भी है कि अनुबन्ध के लिए किया गया ठहराव अनुबन्ध के सभी पक्षकारों पर लागू होगा।

7. वैधानिक औपचारिकतायें –

 किसी अनुबन्ध को वैध होने के लिए आवश्यक वैधानिक औपचारिकताओं को भी पूर्ण किया जाना चाहिए। जैसे-किसी अचल सम्पत्ति के बन्धक पट्टे आदि के सम्बन्ध में समझौते का लिखित होना, प्रमाणित होना, पंजीकृत होना, मुद्रित होना अत्यन्त आवश्यक है।

8. अनुबन्ध लिखित, साक्षी द्वारा प्रमाणित तथा रजिस्टर्ड होना चाहिए,

बशर्ते कि वैधानिक रूप से ऐसा होना आवश्यक हो- अनुबन्ध लिखित होना चाहिए, साक्षी द्वारा प्रमाणित होना चाहिए तथा पंजीकृत होना चाहिए, बशर्ते कि भारत में प्रचलित किसी राजनियम द्वारा ऐसा होना आवश्यक हो।

9. अन्य लक्षण-

    ठहराव निश्चित हो, न कि अनिश्चित।
    व्हराव वैध होना चाहिए न कि अवैध।
    टहराव निस्पादन करने के उद्देश्य से किया गया हो। एक वैध अनुबन्ध के लिए उपर्युक्त सभी लक्षणों का होना आवश्यक है।

अनुबंध कि योग्यता —

अवयस्क अनुबंध करने के लिए असक्षम होते है । अर्थात वह अनुबंध नहीं कर सकता । वास्तव में कानून अवयस्क के संरक्षक का कार्य करता है तथा उसके अधिकारों की रक्षा करता है क्योंकि वह इतने परिपक्व नहीं होते हैं कि वह यह निर्णय कर सकें कि उनके लिए क्या अच्छा है या क्या बुरा है ।

अनुबंध की वैधता —

    एक से अधिक पक्षकारों का होगा
    ठहराव का होना
    ठहराव का वैधानिक रूप में लागू होना
    पक्षकारों में अनुबंध करने की क्षमता
    पक्षकारों की स्वतंत्र सहमति
  अनुबंध अधिनियम की धारा 10 के अनुसार मुक्त सहमति “अनुबंध हैं यदि वे स्वतंत्र सहमति द्वारा किए गए हैं” तो इसका मतलब है कि अनुबंध को पार्टियों के
    स्वयं की इच्छा से बाहर प्रवेश करना चाहिए और बिना मजबूर हुए, या धोखा दिया जाना चाहिए।
    कानूनी रिश्ते में प्रवेश करने का इरादा होना चाहिए।
    निश्चितता, अनुबंध निश्चित होना चाहिए न कि अस्पष्ट  (धारा 29)
    एक अनुबंध को स्पष्ट रूप से शून्य घोषित नहीं किया जाना चाहिए। (अनुबंध अधिनियम की धारा 10)

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