सिविल प्रक्रिया संहिता के अनुसार सेक्शन 1 एवं 2 का विस्तृत अध्ययन

सेक्शन 1 –

आपको बता दे कि सिविल प्रक्रिया संहिता 1908 मे पास हुआ। यह 1 जनवरी 1909 को लागू हुआ था। यह पूरे देश मे लागू होता हैं यह नागालैंड और ट्रिबल एरिया मे लागू नही होता । नागालैंड कि सरकार यदि चाहती हैं तो इसको पूरा या इसके कुछ भाग को नागालैंड मे अप्लाई कर सकती हैं। यह कोर्ट के नियम को लागू कर सकती हैं उसके लिए उसको official gazette मे नोटिफ़िकेशन करना होगा।

स्पस्टीकरण-

ट्रिबल एरिया का मतलब constitution मे बताया गया हैं। यह 6थ शैड्यूल के 20वे पैराग्राफ मे बताया गया हैं। इसके अनुसार 21 जनवरी 1972 से पहले के असम के छेत्र को यहा पर ट्रिबल एरिया माना गया हैं।

अमीनदीवी दीपसमूह और आंध्रप्रदेश राज्य मे पूर्वी गोदावरी, पश्चिमी गोदावरी और विशाखापटनम और लक्ष्यदीप मे यदि यहा के कोई रुल्स या रेग्युलेशन हैं और सिविल प्रक्रिया संहिता  मे भी वैसे ही रुल्स रेग्युलेशन हैं तो यही रुल्स रेग्युलेशन लागू होगा।  परंतु यदि अमीनदीवी दीपसमूह और आंध्रप्रदेश राज्य मे पूर्वी गोदावरी, पश्चिमी गोदावरी और विशाखापटनम और लक्ष्यदीप के रुल्स रेग्युलेशन सिविल प्रक्रिया संहिता के नियम मे अन्तर हैं तो अमीनदीवी दीपसमूह और आंध्रप्रदेश राज्य मे पूर्वी गोदावरी, पश्चिमी गोदावरी, विशाखापटनम और लक्ष्यदीप मे लागू होने वाले रुल्स रेग्युलेशन प्रभावी होगा।

सेक्शन 2(1)–

इसमे सिविल प्रक्रिया संहिता के परिभाषा दी गयी हैं । इसमे काफी चीजों कि परिभाषा दी गयी हैं।

इसमे संहिता को पहले परिभाषित किया गया हैं। इसमे बताया गया हैं कि संहिता मे नियम का प्रयोग हुआ हैं।

इसके लिए सबसे पहले आपको एक वाद देखना होगा जो कि यू.पी V सीबी मिश्रा का वाद हैं जिसमे कहा गया है कि संहिता मे केवल सेक्शन ही नही होता है बल्कि हाइकोर्ट के नियम और कानून भी सम्मलित होते है। जो कि फ़र्स्ट शैड्यूल मे दिया गया है या सेक्शन 122,125 मे दिये गए नियम को भी सम्मलित किया गया है।

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 सेक्शन 2(2)-

यह decree को बताता हैं। decree अपने मे सम्पूर्ण हैं। कोर्ट का निर्णय 2 भागो मे विभाजित होता हैं। जो decree और order होता हैं। यह सिविल कोर्ट मे होता हैं। decree judgement के 15 दिन के भीतर दी जाती हैं। decree लिखित होती हैं। अपील decree के अंतर्गत होता हैं। हम पालन भी decree का ही कराते हैं। decree का मतलब कोर्ट के निर्णय का लिखित रूप होता हैं यह judgement को संछिप्त रूप से प्रस्तुत करता हैं। decree को 2 भाग मे बाँट सकते हैं यह preliminary और फ़ाइनल decree होती हैं। और अपील दोनों decree के खिलाफ हो सकती है। inquiry से पहले यदि decree दी गयी हैं तो वह preliminary decree होगी वही यदि inquiry के बाद फ़ाइनल मे जो judgement दिया जाएगा वह final decree हो जाएगी। इसमे रिजेक्शन ऑफ प्लेन भी सम्मलित होता हैं। सेक्शन 144 के अंतर्गत होने वाले वाद भी सम्मलित होगा। कोर्ट का अपील ऑर्डर इसमे सम्मलित नही होगा। कभी कभी preliminary decree भी फ़ाइनल decree बन सकती है।

इसमे कोर्ट का न्यायिक निर्णय होना चाहिए।

यह किसी वाद के अंतर्गत होना चाहिए। यह वाद पत्र देने के बाद ही लागू होगा।

वाद का निर्णय आने के बाद decree माना जाएगा।

Decree के अन्दर दोनों पक्षो का विवाद पूर्णटा निपट जाना चाहिए।

यदि अपील को रिजैक्ट कर दिया जाता हैं जिसके लिए कोई सबूत नही हो तो वह भी decree होगा। 

सेक्शन 2(3) डिक्री होल्डर

वह व्यक्ति जिसके अनुसार आदेश दिया गया है वह डिक्री होल्डर कहलाता हैं। उदाहरण के लिए यदि क् ने ब के खिलाब म वस्तु के लिए वाद फाइल किया हैं जबकि पता चला की वह ह की है तो ह डिक्री होल्डर कहलायेगा। जिसके पछ मे डिक्री आयेगी वह डिक्री होल्डर कहलाता हैं। यह दोनो के पछ मे हो सकता हैं। यह तीसरे के पछ मे भी आ सकती है। 

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सेक्शन 2(5) foreign court

वह कोर्ट जो इंडिया के बाहर स्थित है जो कि सेंट्रल गोवर्नमेंट द्वारा स्थापित नही है वह foreign कोर्ट कहलाती हैं। 

सेक्शन 2(6) foreign कोर्ट जजमेंट

ऐसा जजमेंट जो foreign कोर्ट द्वारा दिया गया हो foreign जजमेंट कहलाता है। 

सेक्शन 2(7) गोवर्नमेंट प्लीडर

स्टेट गोवर्नमेंट द्वारा जिसको अपॉइंट् किया जाता हैं कि वह सिविल प्रक्रिया संहिता के अनुसार स्टेट गोवर्नमेंट द्वारा दिये हुए कार्यो को कर सके गोवर्नमेंट प्लीडर कहलाता है। वह व्यक्ति जो प्लीडर के रूप मे कार्य करे वह भी प्लीडर कहलाता हैं। 

सेक्शन 2(15) प्लीडर

वह व्यक्ति जो दूसरे के लिए कोर्ट मे प्रस्तुत होता हैं उसका वाद लड़ता हैं तो वह प्लीडर कहलाता है। जिसमे एडवोकेट, वकील, हाई कोर्ट के अटॉर्नी सम्मलित होते हैं। 

सेक्शन 2 (8) जज

यह सिविल कोर्ट के प्रेसीडिंग ऑफिसर होते है। 

सेक्शन 2(9) जजमेंट

जजमेंट 2 शब्दों से मिल कर बना होता हैं जज और स्टेटमेंट यह जज के द्वारा दिया गया स्टेटमेंट होता हैं। जब जज कोई ऑर्डर या डिक्री देता है तो वह उसका कारण बताता है तो वह जजमेंट कहलाता है। सभी जजमेंट मे प्लीडिंग की संछिप्त रूप से प्रस्तुत करना होगा। इसमें वाद का कारण, वादी का नाम, वाद का फैक्ट क्या है। 

सेक्शन 2 (11) 

Legal reprasentative

वह व्यक्ति जो लॉ के अनुसार मरे हुए व्यक्ति का प्रतिनिधित्व करता है। वह व्यक्ति जो कि मरे हुए व्यक्ति के स्टेट मे दखल अंदाजी करता हैं। और वह व्यक्ति जिसको संपति मिलती है वह भी इसमे शामिल होते हैं। 

सेक्शन 2 (12) main प्रॉफिट

मेन प्रॉफिट वह कमाया धन हैं जो दूसरे के द्वारा कब्जा की गयी संपति पर कमाया गया धन हैं। इसमे ब्याज भी शामिल होता हैं। लेकिन कब्जा किये गए व्यक्ति द्वारा किया गया कोई भी इंप्रोवमेंट इसमें शामिल नही होगा। इसका एक उदाहरण देते हैं जैसे कि व ने य के जमींन पर कब्जा कर लिया था य ने व के खिलाफ वाद दायर किया और जजमेंट आने मे 3 साल लग गया वो 3 साल जिसमे व ने य के जमीन से जो कमाया उसको ब्याज सहित प्राप्त करना ही मेन प्रॉफिट होता हैं। लेकिन अगर व कोई अलग से य के जमीन पर कार्य करता हैं जिससे लाभ को बढ़ाया जा सके वह सम्मलित नही किया जायेगा। 

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सेक्शन 2 (13) चल संपति

चल संपति वह होता है जिसमे घास, बढ़ती फशल, उपजा पेड़ आदि शामिल है। अचल संपति को छोड कर जो संपति होती है वह चल संपति कहलाती हैं। 

सेक्शन 2(14) ऑर्डर

कोर्ट के द्वारा प्रस्तुत किया गया एक लेख होता हैं जो किसी कार्य को करने के लिए प्ररित करता हैं। 

यह सिविल कोर्ट के द्वारा दिया गया एक निर्णय है जो डिक्री नही है। 

सेक्शन 2(16) वर्णित का मतलब जो लॉ द्वारा वर्णित हो। 

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