सिविल प्रक्रिया संहिता धारा 45 से 52 तक का विस्तृत अध्ययन

जैसा कि आप सभी को ज्ञात होगा इससे पहले की पोस्ट मे सिविल प्रक्रिया संहिता धारा 44  तक का विस्तृत अध्ययन करा चुके है यदि आपने यह धराये नही पढ़ी है तो पहले आप उनको पढ़ ली जिये जिससे आपको आगे की धराये समझने मे आसानी होगी।

धारा 45

इस धारा मे भारत के बाहर डिक्री के निष्पादन कैसे किया जाएगा यह बताया गया है। इसमे से उतनी धराए जो न्यायालय निष्पादन के लिए भेजी है उसका अर्थ यहा लगाया जाएगा की वह राज्य सरकार के द्वारा या केंद्रीय प्राधिकरण के द्वारा भारत के बाहर किसी न्यायालय मे निष्पादन के लिए भेजी जा रही है। यह ऐसे डिक्री भेजने के लिए सशक्त करती है जिसके बारे मे उस राज्य सरकार के द्वारा राज्य पत्र मे अधिसूचना के द्वारा यह बताया गया है कि यह धारा लागू होगी।

धारा 46

इसमे आज्ञा पत्र को बताया गया है।

जब डिक्री पारित करने वाला न्यायालय डिक्री धारक के आवेदन को ठीक समझता है तो उस पर कार्यवाही करते हुए अन्य न्यायलय को यह भेज सकता है कि वह न्यायलय उसका निष्पादन करे जिसके लिए वह आज्ञा पत्र निकाल सकता है। कि वह उसकी संपत्ति को कुर्क कर ले

वह न्यायालय जिसको आज्ञा पत्र मिला है वह कुर्की संपत्ति कि ऐसे करेगा जैसे कि निष्पादन कि प्रक्रिया उस आज्ञा पत्र मे लिखा होगा।

परंतु यदि पूर्व न्यायालय के द्वारा कुर्क का समय न बढ़ाया गया हो और या जब तक पूर्व न्यायालय के द्वारा अंतरित न कर दी गयी हो। या डिक्री धारक के द्वारा विक्रय के लिए आवेदन न कर दिया गया हो तब तक आज्ञा पत्र के अधीन कोई भी कुर्की 2 माह से अधिक तक नही चलेगी।

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 धारा 47

ऐसे प्रश्न जिंका निवारण डिक्री के निष्पादन करने वाले न्यायालय करेगा।

इस धारा के अनुसार वह सभी प्रश्न जो पक्षहकारो और उनके प्रतिनिधि के बीच होते है उसका निवारण न्यायालय करेगी।

जब कभी पक्षकार के प्रतिनिधि से संबन्धित प्रश्न आ जाएगा कि यह व्यक्ति उससे संबन्धित प्रतिनिधि है कि नही तो इसका निवारण नयायालय करेगी।

इसमे वह वादी और वह प्रतिवादी जिंका वाद खारिज हो चुका है इसके अंतर्गत आते है। और वह इस धारा के अनुसार वाद के पक्षकार है।

स्पस्टिकरण –

 डिक्री के निष्पादन के लिए डिक्री के विक्रय मे संपत्ति का क्रेता वाद का पक्ष कार माना जाएगा। जिसमे वह डिक्री पारित कि गयी हो।

ऐसे डिक्री से संबन्धित संपत्ति पर कब्जा दिया जाये या  नही यह डिक्री के निष्पादन ,उन्मोचन या तुष्टि संबन्धित प्रश्न मे आता है इस पर क्रेता या प्रतिनिधि को कब्जा मिलेगा या नही इसका निवारण न्यायालय करेगा।

धारा 48 के अनुसार कुछ मामले ऐसे भी होते है जिसपर निष्पादन वर्जित होता है।

यह धारा के अनुसार परिसीमा अधिनियम 1963 के अनुसार धारा 28 द्वारा 1 जनवरी 1964 को निरसित है।

धारा 49

इसमे अंतरिती और विधिक प्रतिनिधि को बताया गया है। इसके अनुसार डिक्री का सभी अंतरिती यदि कोई समयाए है तो उसके अधीन रहते हुए निर्णीत ऋण मूल जो डिक्री दार के विरुद्ध परिवर्तित करा सकता था उसको धारण करेगा।

धारा 50

विधिक प्रतिनिधि –

जब डिक्री के निष्पादन से पहले या तुष्ट से पहले निर्णीत ऋणी कि मृतु हो जाती है तो डिक्री का धारक डिक्री पारित करने वाले न्यायालय मे यह आवेदन करेगा कि वह उसका निष्पादन म्रतक के प्रतिनिधि के विरुद्ध करे।

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जब डिक्री ऐसे प्रतिनिधि के विरुद्ध कि जाती है वह म्रतक के उस परिणाम तक उत्तरदाई होगा जहा तक वह संपत्ति उसके हाथ मे है। और व्यथित नही कि गयी है। और ऐसे डिक्री का निष्पादन करने वाला न्यायालय ऐसे दायित्व के लिए खुद कि प्रेणाना से डिक्रीडार के आवेदन पर ऐसे लेखा को जो न्यायलय ठीक समझती है उसको पेश करने के लिए विधिक प्रतिनिधि को कहेगा।

धारा 51

निष्पादन कराने कि न्यायालय कि शक्तिया –

ऐसे शर्त और परिसीमा के अधीन रहते हुए न्यायलय डिक्रीडार के आवेदन पर यह आदेश दे सकता है कि –

विनिर्दिस्ट रूप से डिक्री किसी संपत्ति का परिदान करना

किसी संपत्ति जिसका कुर्की और विक्रय करना है उसका विक्रय कुर्की के बिना किया जाये।

जहा धारा 58 के अधीन निरोध और गिरफ्तारी अनुज्ञेय है। वह गिरफ्तारी और निरोध जो इस धारा से अधिक हो निरोध किया जाये।

रिसीवर को नियुक्ति के द्वारा किया जाये या ऐसे विधि के द्वारा किया जाये जिससे कि अनुतोष कि प्रकृति अपेक्षा करे।

यदि जहा डिक्री धन के संदाय के लिए होती है वह करगार मे निरोध के लिए निष्पादन तब तक नही दिया जाएगा जब तक निर्णीत ऋणी को कारावास के लिए सुपुर्द न कर दिया गया हो।  और न्यायालय के द्वारा यह समाधान नही हो जाता है कि

निर्णीत ऋणी के द्वारा या परिणाम पैदा करने के लिए डिक्री के निसपादन मे बढ़ा उत्पन्न न हो।

वह न्यायालय के स्थानीय सीमाओ से फरार होने वाला या छोडने वाला है।

यह उस वाद को संस्थित किए जाने से है जिसमे वह डिक्री पारित कि गयी हो। जिसमे अपनी संपत्ति के किसी भाग को बेईमानी से अंतरित कर लिया गया हो।

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डिक्री कि रकम या उसके पश्चात उसके प्राप्त भाग ऋणी के पास हो। या उसको संदत करने से इंकार कर चुका हो।

डिक्री कि वह राशि जिसका लेखा देने के लिए निर्णीत ऋणी आबद्ध था।

धारा 52

विधिक प्रतिनिधि के विरुद्ध डिक्री का प्रवर्तन –

जब डिक्री किसी म्रत व्यक्ति के प्रतिनिधि के विरुद्ध कोई डिक्री पारित कि गयी हो तो डिक्री म्रतक कि संपत्ति मे संदान किए जाने से संबन्धित हो तो वह ऐसे दशा मे संपत्ति कि कुर्क या विक्रय के द्वारा निष्पादित की जाएगी ।

जब ऋणी के कब्जे मे कोई संपत्ति बाकी न बची हो तो उसका समाधान न्यायालय करेगा । और यदि नय्यलाय असफल रहता है तो उसने उस मरता की संपत्ति का सामक र्रोप से उपयोजन कर दिया है और उसके कब्ज़े मे आना साबित कर दिया है तो डिक्री निर्णीत ऋणी के विरुद्ध उस संपत्ति के परिणाम तक उस तरह निष्पादित की जाएगी मानो व्यक्तिगत रूप से उसके विरुद्ध पारित की गयी हो।

यदि आपको इन धारा को समझने मे कोई परेशानी आ रही है। या फिर यदि आप इससे संबन्धित कोई सुझाव या जानकारी देना चाहते है।या आप इसमे कुछ जोड़ना चाहते है। तो कृपया हमे कमेंट बॉक्स मे जाकर अपने सुझाव दे सकते है।

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