सिविल प्रक्रिया संहिता धारा 36 से 38 तक का विस्तृत अध्ययन


जैसा कि आप सभी को ज्ञात होगा इससे पहले की पोस्ट मे सिविल प्रक्रिया संहिता धारा 33   तक का विस्तृत अध्ययन करा चुके है यदि आपने यह धराये नही पढ़ी है तो पहले आप उनको पढ़ लीजिये जिससे आपको आगे की धराये समझने मे आसानी होगी।

धारा 36

धारा 36 सिविल प्रक्रिया संहिता डिग्री निसपादन से संबन्धित है। निसपादन न्याय्यलय की वह प्रक्रिया है जिसमे डिग्री और निसपादन को प्रवर्तन कराया जाता है।

इसमे यह उपबंध बताया गया है जिसमे डिक्री से संबन्धित निसपादन की प्रक्रिया आदेश पर भी लागू हो सकता है।

इसके अनुसार निम्न व्यक्ति को डिक्री निसपादन के लिए उपर्युक्त बताया गया है।

डिक्री दार –

डिक्री धारा 2 (3) मे परिभाषित किया गया है।

यह विधिक प्रतिनिधि को शामिल करता है।

संयुक्त रूप से पारित डिक्री मे से कोई भी व्यक्ति।

डिक्री का आंतरित व्यक्ति

डिक्री के अधीन दावा करने वाला व्यक्ति।

निर्णीत ऋणी क्या होता है।

यह धारा 2(10) मे बताया गया है।

ऐसा व्यक्ति जिसके पक्ष मे न्यायालय ने कोई डिक्री पारित की है या निसपादन योग्य कोई आदेश दिया है।

यदि न्यायायालय रवि के पक्ष मे डिक्री पारित करती है और गया को रवि को 5000 रुपये देने है जो कि गया ने नही दिया तो रवि डिक्री के निसपादन के लिए न्याययाल के पास जाएगा जब

रवि पैसा वशूल कर लेगा तो यह क्रिया निसपादन कहलाती है।

यह 2 प्रकार होती है।

निर्णीत ऋणी के प्रति व्यक्तिगत कार्यवाही– इसमे ऋणी को जेल भेज दिया जाता है और उससे उसूली करेगा और दबाव बनाएगा।

निर्णीत ऋणी के संपत्ति पर कार्यवाही –

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निर्णीत ऋणी के संपत्ति को कुर्क कर उससे ऋण का भुगतान किया जाएगा।

डिक्री और आदेश का निष्पादन –

डिक्री सिविल प्रक्रिया संहिता के धारा 2(2) मे बताया गया है। डिक्री वह है जिसमे न्यायालय द्वारा दिया गया आदेश शामिल होता। यह न्याय के निर्णय की अभिव्यक्ति होती है इसको आज्ञप्ति भी कह सकते है। यह न तो किसी भूल चूक के लिए खारिज करने की अपील होती है। इसमे न्यायालय अपने पास आए वाद या किसी विवाद पर वाद के पक्षकार को निश्चायक रूप से निर्णय देता है।

इसमे कोई निर्णय ऐसा नही आता है जिसमे अपील की आवश्यकता होती है।

इस प्रकार की डिक्री का निष्पादन किया जाएगा यदि डिक्री के प्रति अपील नही की गयी है तो प्रथम अधिकारिता वाले डिक्री को निष्पादन किया जा सकता है।

प्रथम अधिकारिता वाले डिक्री को निष्पादन किया जा सकता है। यदि अपील की गयी है तो अंतिम निर्णय का अपील किया जा सकता है।

डिक्री धारक वह व्यक्ति होता है जिसके पक्ष मे डिक्री दी जाती है।

डिक्री का निष्पादन के लिए विधिक व्यक्ति एप्लिकेशन दे सकता है। डिक्री होल्डर के मृतु के बाद वह निष्पादन कर सकता है।

कोई भी व्यक्ति जिसके पक्ष मे डिक्री पास की गयी है तो कोई भी व्यक्ति डिक्री का निष्पादन करा सकता है।

यदि डिक्री दार के द्वरा डिक्री का आंतरित किया गया है तो आंतरित व्यक्ति डिक्री व्यक्ति डिक्री का निष्पादन करा सकता है।

डिक्री दार के अधीन दावा करने वाला कोई भी व्यक्ति डिक्री का निष्पादन करा सकता है।

डिक्री के निष्पादन हेतु किसके विरुद्ध निष्पादन किया जा सकता है।

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डिक्री दार यदि जीवित है तो उसके खिलाफ डिक्री का निष्पादन करा सकता है।

डिक्री दार यदि जीवित नही है तो उसके प्रतिनिधि के खिलाफ निष्पादन करा सकते है।

धारा 37

इसके अंतर्गत डिक्री पारित करने वाले न्यायालय को परिभाषित किया गया है। इसके अनुसार जो न्यायालय डिक्री पारित करता है वह प्रथम वाद का न्यायालय होगा। यदि प्रथम न्यायालय को निष्पादन की भूमिका न रह गयी है तो जो न्यायालय डिक्री पारित करने वाला न्यायालय जो डिक्री के निष्पादन के आवेदन के लिए वैध है वह निष्पादन न्यायालय होगा।

प्रथम न्यायालय की शक्ति इस आधार पर समाप्त नही हो जाती है कि वाद संस्थित करने के बाद नाययालय किसी अन्य न्यायालय मे निहित हो गया हो। परंतु उस समय भी नाययालय को डिक्री की निष्पादन करने की अधिकारिता हो।

धारा 38 –

इसमे यह बताया गया है की डिक्री या तो पारित करने वाले न्यायालय या उस न्यायालय द्वारा निष्पादित होगा जहा उसको संस्थित किया गया है।

डिक्री का निष्पादन निम्न न्यायालय द्वारा किया जा सकता है।

डिक्री पारित करने वाले न्यायालय से इसमे नियुक्त अधिकारी या अन्य संस्थित अधिकारी द्वारा किया जा सकता है। या आंतरित न्यायालय के द्वारा

आदेश 21 नियम 22 निम्न दशा मे विरोधी पक्षकार को सूचना देना आवश्यक है।

जब आवेदन 2 वर्ष बाद डिक्री मिलने के किया गया हो।

जब आवेदन विधिक प्रतिनिधि को किया गया हो।

जब आवेदन धारा 44क  के उपबंध  के अधीन हो।

जब आवेदन समावेशित के अधीन हो।

यह सूचना इस लिए दिया जाता है की ताकि वह यह बताए की डिक्री उसके विरुद्ध  क्यो न पारित की जाए।

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आदेश 21 नियम 1 के अनुसार निम्न रीति से डिक्री के अधीन संदाय  धन राशि कैसे दी जाएगी।

उस न्यायालय जहा पर डिक्री का निष्पादन किया जा रहा है वह मनी ऑर्डर और बैंक से धन भेज कर।

जहा डिक्री का निष्पादन न्यायालय के बाहर किया जा रहा हो वह डिक्री दार को मनी ऑर्डर और बैंक से धन  भेज कर।

जब धन बैंक और मनी ऑर्डर द्वारा किया जाता है तो इस प्रकार किया जाएगा।

मूल वाद की संख्या

2 प्रतिनिधि की संख्या

भेजे गए धन का समायोजन किस प्रकार किया जाएगा।

न्यायालय का मामला का संखायक जहा मामला लंबित हो।

आदेश 21 नियम 3 के अनुसार एक से अधिक न्यायालय की अधिकारिता कोई अचल संपत्ति स्थित है वहा पूरी संपदा को न्यायालय कुर्क या विक्रय कर सकता है।

आदेश 21 नियम 4 के अनुसार 2000 रुपये से अधिक का डिक्री का निष्पादन लघु न्यायालय द्वारा अंतरण के पश्चात किया जाएगा।

आदेश 21 नियम 5 के अनुसार डिक्री के निष्पादन के लिए दूसरे न्यायालय मे स्थित मे उसे सीधे दूसरे न्यायालय मे भेजा जा सकता है चाहे वह उस राज्य मे स्थित हो या नही।

आदेश 21 नियम 11 के अनुसार डिक्री के धन के संदाय के स्थित मे डिक्री दार को मौखिक रूप से न्यायालय डिक्री पारित करते समय यह आदेश दे सकता है कि वारंट के तैयारी के पूर्व ही डिक्री का निष्पादन हो सकता है।

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