सिविल प्रक्रिया संहिता धारा 39 से 44 तक का विस्तृत अध्ययन


जैसा कि आप सभी को ज्ञात होगा इससे पहले की पोस्ट मे सिविल प्रक्रिया संहिता धारा 33   तक का विस्तृत अध्ययन करा चुके है यदि आपने यह धराये नही पढ़ी है तो पहले आप उनको पढ़ ली जिये जिससे आपको आगे की धराये समझने मे आसानी होगी।

धारा 39

इसमे डिग्री के अंतरण को बताया गया है। इसके अनुसार डिग्री पारित करने वाला न्यायालय डिक्रीदार के कहने पर डिक्री को अन्य न्यायालय मे निष्पादित कर देता है।

यदि जिसके खिलाफ डिक्री पारित की गयी है वह अन्य न्यायालय मे निवास करता है। या उधर कारोबार करता है। या अभिलाभ के लिए कार्य करता है।

यदि ऐसे व्यक्ति की संपत्ति जो डिक्री पारित करने के लिए पर्याप्त हो और डिक्री पारित करने वाले न्यायालय के अधिकार क्षेत्र मे न होकर अन्य न्यायालय क्षेत्र मे हो तो डिक्री का निष्पादन उस न्यायालय मे होगा।

डिक्री पारित करने वाली न्यायालय के बाहर की संपत्ति का विक्रय दूसरे न्यायालय जिसके अधिकार क्षेत्र मे संपत्ति हो के द्वारा निस्पदित की जाएगी।

यदि डिक्री पारित करने वाला न्यायालय यह लिखता है की इसको अन्य न्यायालय द्वारा निस्पदित किया जाएगा तो वह अन्य न्यायालय के द्वारा निस्पदित किया जाएगा।

डिक्री पारित करने वाला न्यायालय उसको खुद की स्वेच्छा से कसी अन्य अधिकारिता वाले न्यायालय को निसपादन के लिए भेज सकता है।

इस धारा के अनुसार उस न्यायलय को सक्षम न्यायालय माना जाएगा जहा डिक्री का आवेदन किया गया था और उस समय न्यायालय की अधिकारिता डिक्री पारित करने की थी।

धारा 40

इसके अनुसार किसी अन्य राज्य मे डिक्री का अंतरण कैसे किया जाएगा। इसके अनुसार यदि डिक्री किसी अन्य राज्य को भेजी जा रही है तो वह ऐसे न्यायालय को भेजी जाएगी जो नियम के अनुसार हो और वहा पर जो रीति और नियम निसपादन के लिए लागू होगा वह उस राज्य के अनुसार होगा जहा डिक्री को निसपादन के लिए भेजा गया है।

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धारा 41

इसमे बताया गया है की किस प्रकार निसपादन करने की प्रक्रिया के परिणाम को प्रमाणित किया जाएगा। इसके अनुसार वह न्यायालय जो डिक्री पारित करता है तो उसका तथ्य लिखित होगा और जो न्यायालय डिक्री पारित करने और उसका निष्पादन करने के लिए असफल रहता है तो ऐसे असफलता का कारण स्पस्ट करेगा।

धारा 42

अंतरण डिक्री के निसपादन के लिए न्यायालय की शक्तिया –

इसके अनुसार निष्पादित न्यायालय को वही शक्तिया प्राप्त होगी जैसे उसने खुद ही डिक्री पारित की हो।

वे सभी व्यक्ति दोषी होंगे जो न्यायालय के निसपादन क्रिया मे बाधा डालेंगे। वह न्यायालय के उसी रीत के द्वारा दंडनीय होंगे जैसे डिक्री उसी न्यायालय ने पारित की हो।

ऐसे वाद मे डिक्री के निसपादन से संबन्धित अपील भी उसी अनुसार होगा जैसे डिक्री उसी ने पारित की हो।

धारा 2 उपधारा 1 के अनुसार  उपबंधो पर प्रतिकूल प्रभाव न डालते हुए उपधारा के अनुसार न्यायालय की शक्तिया डिक्री पारित करने वाले शक्तियों के अनुकूल इस प्रकार होंगी।

धारा 39 के अनुसार किसी अन्य न्यायालय को निसपादन के लिए भेजने की शक्ति

धारा 50 के अनुसार यदि कोई ऋणी है और उसकी मृतु हो गयी है तो उसके प्रतिनिधि के विरुद्ध डिक्री के निष्पादन करने की शक्ति

डिक्री को कुर्क करने के लिए आदेश की शक्ति

विनिर्दिस्ट शक्तियों का प्रयोग मे आदेश पारित करने वाला न्यायालय एक प्रति डिक्री प्रीत करने वाले न्यायालय को भी भेजेगा।

इस धारा के अनुसार यह नही समझा जाएगा की डिक्री के निष्पादन करने वाले न्यायालय को कोई शक्ति निष्पादन के लिए भेजी गयी है।

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डिक्री के अंत रेती से निष्पादन की शक्ति ।

किसी फ़र्म के विरुद्ध पारित डिक्री के आदेश 21 के अनुसार निर्दिस्त व्यक्ति से भिन्न किसी व्यक्ति के विरुद्ध डिक्री के निष्पादन करने की शक्ति।

धारा 43

जिस स्थान पर इस संहिता का विस्तार नही हुआ है वहा की डिक्री का निष्पादन करना –

यदि कोई डिक्री किसी ऐसे न्यायालय के द्वारा पारित की गयी है जहा इस संहिता का विस्तार नही हुआ है या किसी ऐसे न्यायालय के द्वारा पारित की गयी है जो केडरा सरकार के द्वारा भारत के बाहर स्थापित किया गया है। और उसको पारित करने वाले न्यायालय के भीतर उसको निष्पादित नही किया जा सकता है वह उसके अधिकार क्षेत्र मे नही है तो वह उस न्यायालय के निष्पादन के लिए भेज दी जाएगी जिस राज्य क्षेत्र के न्यायालय मे इस संहिता का विस्तार हुआ है। और वहा के किसी भी न्यायालय के द्वारा निष्पादित की जाएगी।  

धारा 44

जिस स्थान पर इस संहिता का विस्तार नही हुआ है वहा के राजस्व न्यायालय के द्वारा पारित डिक्री का निष्पादन करना-

इस धारा के अनुसार जिस स्थान पर इस संहिता का विस्तार नही हुआ है वहा के राजस्व न्यायालय के द्वारा पारित  डिक्री का निष्पादन कैसे करना है यह बताया जाता है। इसमे राज्य सरकार अपने राज पत्र के अधिसूचना द्वारा यह घोषित कर सकेगी की भारत के किसी ऐसे भाग मे जिस पर इस संहिता का विस्तार नही हुआ है। वहा किसी राजस्व न्यायालय की डिक्री या किसी वर्ग राज्य से संबन्धित है उसका निष्पादन किया जाएगा। और उसका निष्पादन ऐसे होगा मानो वह वही पारित की गयी हो।

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धारा 44 A

 व्यतिकारी राज्यो के द्वारा पारित डिक्री का निष्पादन –

इसके अनुसार जहा किसी व्यतिकारी राज्य क्षेत्र के बड़े न्यायालयों की डिक्री की प्रमाणित प्रति जिला न्यायालय मे फ़ाइल की गयी हो तो उसका निष्पादन भारत मे ऐसे होगा जैसे यही पर पारित की गयी डिक्री हो।

डिक्री की प्रमाणित प्रति के साथ ही वारिस्थ न्यायालय की प्रमाण पत्र फ़ाइल किया जाएगा जिसमे उसके विस्तार यदि कोई उल्लेख हो तो उसका विवरण और डिक्री की तुष्टि या समायोजन की प्रक्रिया का निश्चायक सबूत भी उसमे लिखा होना चाहिए।

धारा 47 के अधीन डिक्री का निसपादन यदि जिला न्यायालय करता है और वह डिक्री प्रमाणिक करते समय फ़ाइल की गयी हो और यदि जिला न्यायालय समाधान के रूप मे यह कहता है की यह डिक्री धारा 13 के अनुसार खंड क खंड च मे विनिर्दिस्ट अपवाद मे आती है तो वह डिक्री  के निष्पादन से इंकार कर सकता है।

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