भारतीय साक्ष्य अधिनियम का धारा 4 से 6 तक का विस्तृत अध्ययन

धारा 4

उप धारणा के बारे मे बताती है।

इसके अनुसार यदि किसी व्यक्ति द्वारा किसी के खिलाफ एफ़आईआर दर्ज करायी गयी है। तो न्यायालय  उस व्यक्ति को जिसके उपर एफ़आईआर लिखी गयी है। उसको तब तक दोषी मानेगी जब तक बचाव पक्ष यह सिद्ध न कर दे कि वह व्यक्ति दोषी नही है। यह न्यायालय की अवधारणा माना जाएगा। न्यायालय के सामने आए तथ्यों के अनुसार न्यायालय अनुमान लगता है और उस अनुसार निर्णय देगा। न्यायालय द्वारा किसी एक तथ्य को देखकर दूसरे तथ्य का अनुमान लगाना ही अवधारणा है। न्यायालय तब तक उन तथ्यों को सही  मानता है जब तक कि उन तथ्यों को गलत नही सिद्ध कर दिया जाता है।जैसे अगर कही आग लगी है तो वह से धुवा निकलता दिखाई देता है इस प्रकार अगर कही से धुवा दिखायी देता है तो आप यही समझेंगे की यहा आग लगी होगी। यह मात्र एक अवधारणा हो सकती है।

उपधरणा का अर्थ किसी बात का सत्य होना है। यह तथ्य का अनुमान है जो किसी जाने हुए तथ्य से निकाली जाती है।

अवधारणा 3 प्रकार की होती है।

तथ्य की अवधारणा

विधि की अवधारणा

विधि और तथ्य की मिश्रित अवधारणा

उप धारणा कर सकेगा मे न्यायलय या तो तथ्य को मान लेगा और उप धारणा कर सकेगा।

यह तथ्य को मान लेगा जब तक की उसको कोई ऐसा सबूत नही मिलता जिससे यह साबित हो की यह सही नही है।

या फिर किसी अन्य सबूत की मांग कर सकेगा।

इसका मतलब होता है न्यायालय को यह यह अधिकार होता है की या तो वह तथ्य को मान ले या फिर उसके लिए सबूत की मांग करे।

See Also  (सीआरपीसी) दंड प्रक्रिया संहिता धारा 266 से 270 तक का विस्तृत अध्ययन

उपधारणा करेगा –

न्यायालय  को यह विवेकाधिकार प्राप्त नही है जब तक की किसी तथ्य को मान लेने के लिए बाध्य है जबतक की उसको ना साबित नही किया गया है।

न्यायालय तब तक उसको साबित मानेगी जब तक दूसरा पक्ष उसको न साबित करने का सबूत नही देता है।

जब किसी व्यक्ति के बारे मे यह सुना गया है की वह 7 वर्ष से गायब है तब न्यायालय उसको मृतु मानेगा। जब तक कि वह साक्ष्य देकर खुद को जीवित न साबित कर दे। न्यायालय उप धारणा करने के लिए बाध्य नही है। न्यायालय उप धारणा के अनुसार निष्कर्ष निकालता है। न्यायालय को यह शक्ति है की वह तथ्यों के अनुसार अवधारणा को सही माने या फिर सबूत की मांग करे। 

धारा 86, 87, 88, 90, 114, 118 के अनुसार उप धारणा कर सकेगा यह निहित है। 

उपधाराणा करेगा – यह विधि द्वारा निहित यदि न्यायालय किसी का उपधाराणा करेगा तो ऐसे मानेगी कि वह तथ्य साबित हो चुका है। जबतक कि उसको न साबित किया गया है। 

निश्चयाक सबूत –

इस अधिनियम द्वारा एक तथ्य को दूसरे तथ्य का निश्चयाक सबूत मानेगी और एक तथ्य यदि साबित हो जाता है तो दूसरे तथ्य को अपने आप ही साबित मान लिया जाएगा। और उसको न साबित करने के लिए साक्ष्य देने के लिए अधिकार नही देगा।

धारा 5

विवाधक तथ्यों और सुसंगत तथ्यो का साक्ष्य दिया जा सकता है।

इसमे निम्न तथ्यो को सामील किया गया है।

विवाधक तथ्य –

यह किसी मामले मे उपस्थित अधिकार और दायित्व के अशमानता के रूप मे होता है जिसमे एक पक्ष तथ्य के होने और दूसरा पक्ष तथ्य के न होने पर ज़ोर देता है।

See Also  भारतीय साक्ष्य अधिनियम के अनुसार धारा 46 से 50 तक का अध्ययन

सुसंगत तथ्य-

यह तथ्य जो एक दूसरे से बहुत मिले हुए होते है जिसमे एक तथ्य ही दूसरे तथ्य को साबित कर दे वह सुसंगत तथ्य कहलाता है।

इस धारा को केवल विवादित और सुसंगत मे रखा गया है इसके अतिरिक्त अन्य मे नही आएगा। असंगत तथ्य को असांगित कर दिया जाता है।

उदाहरण को देखते है।

जैसे आ कि मृत के लिए ब को विचार किया जाता है। कि वह उसको लाठी से मार देता है।

आ को लाठी से मारना

ब के द्वारा आ को मारना और ब का विचारण करना

ब का आशय

स्पष्टीकरण-

यह धारा किसी व्यक्ति को तथ्य का साक्ष्य देने के लिए योग्य नही बनाएगी जिसमे सिविल प्रक्रिया मे जिन तथ्यों को रोका गया  है उसको यह लागू नही करेगी । अर्थात उन साक्ष्य को यह नही प्रस्तुत करने देगी..

धारा 6

एक ही संव्योहार मे होने वाले तथ्यों की सुसंगति

ऐसे तथ्य जो विवाद न होते हुए भी किसी विवाद तथ्य से जुड़े हुए होते है। सुसंगति कहलाते हैं। चाहे वह उसी समय क्यो न घटित हुआ हो या फिर बाद मे घटित हुआ हो और उसका संबंध इस तथ्य से है। जैसे अपराध संविदा ,कोई दुसकरतीय जांच पड़ताल का विषय  सम्मलित है।

जैसे कोई घटना घटित हुई है तो उस घटना से संबन्धित दोनों पक्ष कार के रूप रेखा कथन ,शारीरिक लक्षण या घटित घटना मानशिक स्थित पक्षकार द्वरा की गयी घोषणा आदि समिल है। जिसमे धमकी देना है जो किसी को मारने या तथ्य को छुपाने आदि से संबन्धित हो सकता है।

आ एक पत्र के लिए अपमान के लिए ब को वाद लता है। जिस विषय मे अपमान लेख उजागीर हुआ है उससे संबन्धित सभी पक्षकार की पत्र मे प्रविस्ट तथ्य सुसंगत तथ्य है चाहे उसमे अपमान लिखित है या नही।

See Also  भारतीय साक्ष्य अधिनियम के अनुसार धारा 79 से 86 तक का अध्ययन

रेस गेस्टे –

यह एक सिद्धान्त है। यह इंग्लिश का सिद्धान्त है। ऐसे कथन या कार्य जो किसी सव्योंयहार के साथ हुआ है।सभी कार्य के लिए कुछ न कुछ संविदा किया जाता है। और जब किसी अपराध के विवादक तथ्य हो तो सभी का अलग अलग साक्ष्य दिया जा सकेगा।

प्रत्येक प्रकार की घटना मे कुछ कार्य होते है और प्रत्येक वह कार्य जिससे किसी घटना से संबन्धित हो वह उस घटना से सुसंगत माना जाता है। और उसके लिए साक्ष्य दिया जा सकता है।

रटन बनाम कूईन

इस वाद मे रटन की पत्नी पुलिस को फोन कर अपनी  रक्षा की माग करती है। और उसकी आवाज मे घबराहट थी जब तक वह पुलिस पाहुचती उसकी मृतु हो चुकी थी जो की रटन द्वारा की गयी थी। रटन का कहना था की गोली धोखे  से चल गयी और उसकी पत्नी की  मृतु हो गयी परंतु कोर्ट ने उसकी पत्नी की कॉल और उसकी आवाज को सुसंगत माना और इस घटना को मर्डर का नाम दिया।

आज हम आपको साक्ष्य अधिनियम का धारा 4 से 6 का विस्तृत ज्ञान दिया। इसके बारे मे और जानकारी के लिए hindilawnotes हमेशा पढ़ते रहे। और इससे संबन्धित सुझाव आप हमे कमेंट बॉक्स मे दे सकते है।

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