(सीआरपीसी) दण्ड प्रक्रिया संहिता धारा 174 से 176 का विस्तृत अध्ययन

जैसा कि आप सभी को ज्ञात होगा इससे पहले की पोस्ट में दंड प्रक्रिया संहिता धारा 173   तक का विस्तृत अध्ययन करा चुके है यदि आपने यह धाराएं नहीं पढ़ी है तो पहले आप उनको पढ़ लीजिये जिससे आपको आगे की धाराएं समझने में आसानी होगी।

धारा 174

इस धारा के अनुसारजब पुलिस थाने के भारसाधक अधिकारी या फिर  राज्य सरकार द्वारा उस निमित विशेषतया सशक्त किए गए किसी अन्य पुलिस अधिकारी को यह इतिला मिलती है।  कि किसी व्यक्ति ने आत्महत्या कर ली है।  अथवा कोई व्यक्ति किसी अन्य व्यक्ति द्वारा या जीवजंतु द्वारा या किसी यंत्र द्वारा या दुर्घटना द्वारा मारा गया है।  अथवा कोई व्यक्ति ऐसी परिस्थितियों में मरा है जिनसे उचित रूप से यह संदेह होता है कि किसी अन्य व्यक्ति ने कोई अपराध किया है तो ऐसे स्थित मे  वह मुत्यु समीक्षाएं करने के लिए सशक्त निकटतम कार्यपालक मजिस्ट्रेट को तुरंत उसकी सूचना देगा

और जब तक राज्य सरकार द्वारा विहित किसी नियम द्वारा या जिला या उपखण्ड मजिस्ट्रेट के किसी साधारण या विशेष आदेश द्वारा अन्यथा निर्दिष्ट न हो वह उस स्थान को जाएगा जहां ऐसे मृत व्यक्ति का शरीर है । और वहां पड़ौस के दो या अधिक प्रतिष्ठित निवासियों की उपस्थिति में अन्वेषण करेगा और मृत्यु के दृश्यमान कारण की रिपोर्ट तैयार करेगा और जिसमें ऐसे घावों, अस्थिभंगों, नीलों और क्षति के अन्य चिन्हों का, जो शरीर पर पाए जाएंउसका लिखित रूप मे  वर्णन होगा और यह कथन होगा कि ऐसे चिन्ह किस प्रकार से और किस आयुध या उपकरण द्वारा (यदि कोई हो) किए गए प्रतीत होते है।

इस रिपोर्ट पर ऐसे पुलिस अधिकारी और अन्य व्यक्तियों जो वहा मौजूद हो  या उनमें से इतनों द्वारा जो उससे सहमत हैं। उनका  हस्ताक्षर किए जाएंगे और वह जिला मजिस्ट्रेट या उपखण्ड मजिस्ट्रेट को तत्काल भेज दी जाएगी।

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जब – किसी मामलें में किसी स्त्री द्वारा उसके विवाह की तारीख से सात वर्ष के भीतर आत्महत्या अंतर्वलित है।  या

या फिर )यह मामला किसी स्त्री की उसके विवाह के सात वर्ष के भीतर ऐसी परिस्थितियों में मृत्यु से संबंधित है।  जो यह युक्तियुक्त संदेह उत्पन्न करती है कि अन्य व्यक्ति ने ऐसी स्त्री के संबंध में कोई अपराध किया है।  या

मामला किसी  ऐसे स्त्री की उसके विवाह के सात वर्ष के भीतर मृत्यु से संबंधित है।  और उस स्त्री के किसी नातेदार ने उस निमित निवेदन किया है।  या

मृत्यु के कारण की बाबत कोई संदेह है।  या

 किसी अन्य कारण पुलिस अधिकारी ऐसा करना समचीन समझता है।

तब ऐसे नियमों के अधीन रहते हुए जो राज्य सरकार द्वारा इस निमिमि विहित किए जाएं तो  वह अधिकारी यदि मौसम ऐसा है और दूरी इतनी है कि रास्ते में शरीर के ऐसे सड़ने की जोखिम के बिना जिससे उसकी परीक्षा स्वयं व्यर्थ हो जाए उसे भिजवाया जा सकता है । तो शरीर को उसकी परीक्षा की दृष्टि से, निकटतम सिविल सर्जन के पास या राज्य सरकार द्वारा इस निमित नियुक्त अन्य अर्हित चिकित्सक के पास भेजेगा।

 निम्नलिखित मजिस्ट्रेट मृत्यु-समीक्षा करने के लिए सशक्त है, अर्थात कोई जिला मजिस्ट्रेट या उपखण्ड मजिस्ट्रेट और राज्य सरकार द्वारा या जिला मजिस्ट्रेट द्वारा इस निमित विशेषतया सशक्त किया गया कोई अन्य कार्यपालक मजिस्ट्रेट आदि हो सकता है।

धारा 175

इस धारा के अनुसार व्यक्तियों को समन करने की शक्ति को बताया गया है।
इस के अंतर्गत  धारा 174 के अधीन कार्यवाही करने वाला पुलिस अधिकारी यथापूर्वोक्त दो या अधिक व्यक्तियों को उक्त अन्वेषण के प्रयोजन से और किसी अन्य ऐसे व्यक्ति को जो इस  मामले के तथ्यों से परिचित प्रतीत होता है। उसको  लिखित आदेश द्वारा समन कर सकता है । तथा ऐसे समन किया गया प्रत्येक व्यक्ति हाजिर होने के लिए और उन प्रश्नों के सिवाय जिनके उत्तरों की प्रवृत्ति उसे आपराधिक आरोप या शास्ति या समपहरण की आशंका में डालने की है। इसमे  सब प्रश्नों का सही-सही उत्तर देने के लिए आबद्ध होगा।

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यदि तथ्यों से ऐसा कोई संज्ञेय अपराध जिसे धारा 170 लागू है। और  प्रकट नहीं होता है तो पुलिस अधिकारी ऐसे व्यक्ति से मजिस्ट्रेट के न्यायालय में हाजिर होने की अपेक्षा न करेगा।

धारा 176

इस धारा के अनुसार मृत्यु के कारण की मजिस्ट्रेट द्वारा जांच को बताया गया है।
इस मम्म्ले मे  धारा 174 की उपधारा (3) के खंड (i) या खंड (11) में निर्दिष्ट प्रकृति का है तो उस समय  मृत्यु के कारण की जांच, पुलिस अधिकारी द्वारा किए जाने वाले अन्वेषण के बजाय या उसके अतिरिक्त वह निकटतम मजिस्ट्रेट करेगा जो मृत्यु-समीक्षा करने के लिए सशक्त है।  और धारा 174 की उपधारा (1) में वर्णित किसी अन्य दशा में इस प्रकार सशक्त किया गया कोई भी मजिस्ट्रेट कर सकेगा तथा यदि वह ऐसा करता है तो उसे ऐसी जांच करने में वे सब शक्तियां होंगी जो उसे किसी अपराध की जांच करने में प्राप्त  होती  है ।

 जहाँ पर

1 (क) कोई व्यक्ति मर जाता है।  या गायब हो जाता है।  या

(ख) किसी स्त्री के साथ बलात्संग किया गया अभिकथित है। तो उस दशा में जब कि ऐसा व्यक्ति या स्त्री पुलिस अभिरक्षा या इस संहिता के अधीन मजिस्ट्रेट या न्यायालय द्वारा प्राधिकृत किसी अन्य अभिरक्षा में है, वहां पुलिस द्वारा की गई जांच या किए गए अन्वेषण के अतिरिक्त यथास्थिति, ऐसे न्यायायिक मजिस्ट्रेट या महानगर मजिस्ट्रेट के द्वारा जिसकी अधिकारिता की स्थानीय सीमाओं के भीतर अपराध किया गया है। उसकी  जांच की जाएगी।

(2) ऐसी जांच करने वाला मजिस्ट्रेट उसके संबंध में लिए गए साक्ष्य को इसमें इसके पश्चात् विहित किसी प्रकार से उस  मामले की परिस्थितियों के अनुसार अभिलिखित करेगा।

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(3) जब कभी ऐसे मजिस्ट्रेट के विचार में यह समीचीन है । कि किसी व्यक्ति के, जो पहले ही गाड़ दिया गया है। या  मृत शरीर की इसलिए परीक्षा की जाए कि उसकी मृत्यु के कारण का पता चले तब मजिस्ट्रेट उस शरीर को निकलवा सकता है और उसकी परीक्षा करा सकता है।

(4) जहां कोई जांच इस धारा के अधीन की जानी है। तो  वहां मजिस्ट्रेट जहां कहीं साध्य है, मृतक के उन नातेदारों को, जिनके नाम और पते ज्ञात हैं, इत्तिला देगा और उन्हें जांच के समय उपस्थित रहने की अनुज्ञा देगा।

(5) उपधारा (1क) के अधीन, यथास्थिति, जांच या अन्वेषण करने वाला न्यायिक मजिस्ट्रेट या महानगर मजिस्ट्रेट या कार्यपालक मजिस्ट्रेट या पुलिस अधिकारी, किसी व्यक्ति की मृत्यु के चौबीस घंटे के भीतर उसकी परीक्षा किए जाने की दृष्टि से शरीर को निकटतम सिविल सर्जन या अन्य अर्हित चिकित्सा व्यक्ति को, जो इस निमित्त राज्य सरकार द्वारा नियुक्त किया गया हो, भेजेगा जब तक कि लेखबद्ध किए जाने वाले कारणों से ऐसा करना संभव न हो।

स्पष्टीकरण-

इस धारा में “नातेदार” पद से माता-पिता, संतान, भाई, बहिन और पति या पत्नी अभिप्रेत हैं।

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